जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के कुंडलियाँ छंद
1,करनी के फल
माटी कठवा ला करे,खाके खाक दिंयार।
तेखर नाँव बुझात हे,बाँटव सब ला प्यार।
बाँटव सब ला प्यार,ठिकाना का जिनगी के।
करके फोकट बैर,भला का पाहू जी के।
काँटय छाँटय जौन,होय मनखे या चाँटी।
करम करै बेकार,खुदे मिल जावै माटी।
2,आगी जंगल के
दहकत हे जंगल अबड़,बरै डार अउ पान।
भागत हे सब जीव मन,अपन बँचाके जान।
अपन बँचाके जान,छोड़ के जंगल झाड़ी।
हरियर हरियर पेड़,जरै जइसे गा काड़ी।
कतको जरगे जीव,पड़े कतको हे लहकत।
कइसे आग बुझाय,अबड़ जंगल हे दहकत।
3,दाना पानी चिरई बर
चहके चिरई डार मा,देख उलाये चोंच।
दाना पानी डार दे,मनखे थोरिक सोंच।
मनखे थोरिक सोंच,घाम हा गजब जनाये।
जल बिन कतको जीव,तड़प के गा मर जाये।
घाम सहे नइ जाय,बिकट भुँइया हा दहके।
पानी रखबे ढार,द्वार मा चिरई चहके।
1,करनी के फल
माटी कठवा ला करे,खाके खाक दिंयार।
तेखर नाँव बुझात हे,बाँटव सब ला प्यार।
बाँटव सब ला प्यार,ठिकाना का जिनगी के।
करके फोकट बैर,भला का पाहू जी के।
काँटय छाँटय जौन,होय मनखे या चाँटी।
करम करै बेकार,खुदे मिल जावै माटी।
2,आगी जंगल के
दहकत हे जंगल अबड़,बरै डार अउ पान।
भागत हे सब जीव मन,अपन बँचाके जान।
अपन बँचाके जान,छोड़ के जंगल झाड़ी।
हरियर हरियर पेड़,जरै जइसे गा काड़ी।
कतको जरगे जीव,पड़े कतको हे लहकत।
कइसे आग बुझाय,अबड़ जंगल हे दहकत।
3,दाना पानी चिरई बर
चहके चिरई डार मा,देख उलाये चोंच।
दाना पानी डार दे,मनखे थोरिक सोंच।
मनखे थोरिक सोंच,घाम हा गजब जनाये।
जल बिन कतको जीव,तड़प के गा मर जाये।
घाम सहे नइ जाय,बिकट भुँइया हा दहके।
पानी रखबे ढार,द्वार मा चिरई चहके।
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