Tuesday 2 October 2018

काबर

एक ठन अइसने चलती फिरती मन म आगे

मनखे मनखे सब एक हे,
त मोर अउ पर काबर।

गुजारा कुँदरा म हो सकथे,
त आलीशान घर काबर।

गाँव गंगा मथुरा काँसी,
त भाथे शहर काबर।

बेरा सब हे एक बरोबर,
त सुबे शाम दोपहर काबर।

साँस रोक घलो मर सकथस,
त पीथस जहर काबर।

सुख शांति के तहूँ पुजारी,
त मचथे कहर काबर।

दया मया नइ हे जिवरा म,
त काँपथे थर थर काबर।

सताये नहीं संसो काली के,
त कोठी हे भर भर काबर।

पीये बर घर म पानी नही,
त फोकटे नहर काबर।

बात जावत हे जिया तक,
त बइठाना बहर काबर।

लाँघ सकथस कानून कायदा,
त खोजथस डहर काबर।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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