Tuesday, 29 October 2024

अतंर्राष्ट्रीय चमचागिरी दिवस म

 अतंर्राष्ट्रीय चमचागिरी दिवस म


चमचागिरी- लावणी छंद


एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।

सरग सिंहासन हावै रीता, बता आज तैं मरबे का।।


स्वारथ अउ देखावा खातिर, काबर चम्मच बनगे हस।

मनखे हो के स्वाभिमान खो, रब्बड़ जइसे तनगे हस।।

चापलुसी के चरम लांघ के, आन बान सत चरबे का।

एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।।


पद पइसा धन बल वाले के, तेवर तोरे सेती हे।

नेकी धर्मी सतवादी के, परिया परगे खेती हे।।

आदर देना अलग बात ए, चमचा बनके सरबे का।

एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।


असल गुणी ज्ञानी मनखे मन, चम्मच एको नइ पोसे।

चमचा गिरी करइया मन ला, सदा जमाना हा कोसे।।

कखरो आघू पाछू होके, भव सागर ले तरबे का।

एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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जीभ लमाये के का जरूरत


जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।

शोभा देय नही चम्मच हा, कलम दवात साथ मा।।


मंच माइक सम्मान के खातिर, कलमकार नइ भागे।

कला गला के दम मा छाये, उही शारद पूत लागे।।

शब्द जोड़ के फूल बनालव, काँटा वाले पाथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


ताकत हौ मुँह कखरो काबर, जानव कलम के ताकत।

ये दुनिया के रथ ला आजो, साहित्य हावय हाँकत।।

मुड़ी उँचाके कलम चलावव, झन अरझो गेरवा नाथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


सूर कबीरा तुलसी जायसी, आजो अजर अमर हे।

जीभ लमाके नाम कमइया, नइ बाँचे स्वार्थ समर हे।।

सेवा मान के साहित गढ़लव, सजही ताज माथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।


बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।


वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,


वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम के हो, किसी के तिजोरी में।


तो फाँस गले के बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।


भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।


औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।


सच होश उड़ा देंगें, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)

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@@@कलमकार@@@


कलमकार  हरौं, चाँटुकार  नही।

दरद झेल सकथौं,फेर मार नही।


दुख के दहरा म,अन्तस् ल बोरे हँव।

अपन लहू म,कलम ल चिभोरे हँव।

मैं तो मया मधुबन चाहथौं,

पतझड़ अउ उजार नही-----------


बने बात के गुण,गाथौं घेरी बेरी।

चिटिक नइ सुहाये,ठग-जग हेरा फेरी।

सत अउ श्रद्धा मा,माथ नँवथे बरपेली,

फेर फोकटे दिखावा स्वीकार नही-------


हारे ला ,हौंसला देथौं मँय।

दबे स्वर ला,गला देथौं मँय।

सपना निर्माण के देखथौं,

चाहौं  कभू उजार नही---------


समस्या बर समाधान अँव मैं।

प्रार्थना आरती अजान अँव मैं।

मनखे अँव साधारण मनखे,

कोनो ज्ञानी ध्यानी अवतार नही-------


फोकटे तारीफ,तड़पाथे मोला।

गिरे थके के संसो,सताथे मोला।

जीते बर उदिम करहूँ जीयत ले,

मानौं कभू हार नही-------------


ऊँच नीच भेदभाव पाटथौं।

कलम ले अँजोरी बाँटथौं।

तोड़थौं इरसा द्वेष क्लेश,

फेर मया के तार नही----------


भुखाय बर पसिया,लुकाय बर हँसिया अँव।

महीं कुलीन,महीं घँसिया अँव।

मँय मीठ मधुरस हरौं,

चुरपुर मिर्चा झार नही----------


हवा पानी अगास पाताल।

कहिथौं मँय सबके हाल।

का सजीव का निर्जीव मोर बर,

मँय हौसला अँव,हँथियार नही-------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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तइहा समय म देवारी तिहार के जोरा-खैरझिटिया

 तइहा समय म देवारी तिहार के जोरा-खैरझिटिया


             तइहा समय म चाहे कोनो परब तिहार होय, गांव के गांव ओखर जोरा म लग जावय। पहली सबके घर माटी खपरैल के होय तेखर सेती ओखर देख रेख बड़ जरूरी रहय। तिहार बार म लिपई पोतई, रोटी पीठा, सगा पहुना  आदि आदि जमे नेंग जोग, तन मन धन ले होवय, फेर बड़खा तिहार देवारी के जोरा करई के बाते अलग हे, जे दशहरा के बाद पाख भर ले घलो जादा दिन ले चले।  काबर कि चौमासा लगे के पहली घर के कोठ ल बरसा के पानी ले बचाय बर चारो मुड़ा झिपारी बाँधे जाय,तेला दशहरा मानके पानी बादर कम होय के कारण हेरेल लगे। तेखर सेती छाभना मूँदना लीपना पोतना देवारी के खास बूता रहय।


                   चार महीना पानी बादर म  घर के बाहिर का भीतर के घलो हालत खस्ता हो जावय। ते पाय के गाँव भर अपन अपन घर ल छाभ मूँद के लिपई पोतई इही देवारी तिहार म करे। देवारी तिहार के जोरा म घर के संगे संग कोठार बियारा ल घलो सिधोय बर लगे, काबर कि देवारी के बाद धान लुये के लइक हो जाय, अउ ओखर मिंजई कोठारे म होवय। कोठार बियारा के काँदी ल छोल छाल के बराबर पाटे बर माटी, कुधरील लाके, बढ़िया मता के छाभेल लगे।      


                   कोठ बियारा छाभे बर माटी मताये के घलो अलगे आंनद रहय। पहली माटी ल कुचर के गोलाकार  बनाके भिंगोय जाय। भींगे के बाद ओमा पिरोसी, कोदो पैरा या फेर अरसी के ठेठरा(चीला) ल मिलाके मनमाड़े खूँदे जाय। माटी म पैरा, पिरोसी मिलाके मताय ले छभे के बाद चटके(दरार) के समस्या नइ होत रिहिस। जादा अकन  माटी मताय बर बइला के उपयोग घलो होवय। मते के बाद राफा म छोपियाके गोलाकार सँकेल के, मते माटी ल छाभे मूँदे के काम म लाये जाय। कोठ या  फेर कोठार बियारा ल छाभे के बाद गोबर म बरण्डना घलो जरूरी रहय, अइसन करे ले छभे माटी के छोटे मोटे दरार मूंदा जाय, अउ लीपे पोते के लइक बराबर हो जाय। ये सब बूता सरलग घर परिवार जे जमो छोटे बड़े सदस्य मन मिलके करत रहय। टूटे फूटे कप सासर के टुकड़ा ल, दुवार अँगना छभात बेरा गड़ियाके फूल बनाये के घलो चलन रिहिस, जे देखे म बड़ सुघ्घर लगे। कोनो देखे होहू त सुरता आवत घलो होही, गोलाकार, चौकोर फूल मन मोहे।


             पड़ड़ी छूही, पिंवरी छूही, घेरू रंग अउ टेहर्रा रंग पोतई म लगे। परवा के खाल्हे पड़ड़ी छूही तेखर बाद आधा या आधा ले कमती कोठ म पिवरी छूही पोते जाय, अउ बीच म घेरू रंग के पट्टी अउ फूल।  पोते बर टेहर्रा रंग घलो चले। घर के आघू भाग के कोठ अउ मुख्य दीवाल टेहर्रा रंग म शोभा पाय। आज कस ब्रस पहली कमती रिहिस, ठूँठी बाहरी, नही ते जड़ के कूची पोते के काम आय। लकड़ी के दरवाजा मन म सकउ हिसाब कोनो मन पेंट त कतको मन तेल चुपरबके चमकावय।


             पोतई लिपई के बाद चालू होय नोनी अउ बाबू मनके कलाकारी। घर के कोठ म बाबू मन रंग रंग के फूल, फ़ोटो अउ नोनी मन अँगना दुवार म रंगोली बनाये के जोरा करे। पाँच सात किसम के रंग ल कप म घोर के राहेर काड़ी या फेर दतवन ल ब्रस बनाके नोनी बाबू मन कम्पास बॉक्स के प्रकार म पेंसिल फँसा के गोल गोल फूल बनाये, अउ वोला रंगे। कतको मन रंगोली लेय त कतको मन घुरहा पथरा के बुरादा म रंग मिलाके, कई कलर के रंगोली बनाय। घर के दीवाल म शुभ दीपावली अउ शेरो सायरी घलो लिखे। टीना के डब्बा ल छेद के वोमा कनकी पिसान भरके चँउक घलो पूरे। रंगोली बनई आजो जारी हे, फेर कोठ म कलाकारी कमती होगे हे,संग म जुगाड़ के समान के जघा रेडीमेंट चीज चलत हे।


                    देवारी के दीया के संग गियास घलो घरो घर रोज बरे।  लोगन मन एक दूसर ले ऊंच ऊंच गियास बनाये।गियास बनाय बर, बड़खा बाँस, तोरण ताव, डोरी अउ दीया रखे बर एक प्लेट लगे। प्लेट ल झिल्ली के तोरन म सजाके, डोरी के सहारा दीया बार के ऊपर चढ़ाये उतारे जाय। गियास ऊंच म रिगबिग रिगबिग बरत, मन मोहे। देवारी तिहार म जमे कोती चिक्कन चाँदुर दिखे, सार्फ़ सफाई, साज सज्जा सहज मन मोहे।


                   देवारी म बाजार हाट के का कहना, दीया,पुतरी कपड़ा लत्ता, पटाका, खई खजानी, साज सज्जा के समान चारो मुड़ा बेचाय। कतको लइका मन टीकली फटाका फोड़े बर बॉस के बंदूक घलो बनाये। राउत मन गाय बइला के गला म बाँधे बर सोहई बनाय बर लग जाय, त दफड़ा दमउ वाले मन बाजा-रूँगी ल सजाय बर। काँदा खोम्हड़ा के जोरा घलो तिहार के अकताही होय। देवारी के ये सब जोरा ले घर द्वार साफ स्वक्छ होके चमचम चमचम चमके, अउ लइका सियान मनके कई किसम के कला सामने आय, आज ये सब  बस सुरता के सन्दूक म धराये हे।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

हाय रे वाल पेपर

 हाय रे वाल पेपर


               पोतई लिपई छभई मुँदई बड़ महिनत लगथे देवारी बुता म, फेर आज नवा जमाना म वाल पेपर के एंट्री सबे चीज ले छुटकारा देय के ताकत रखथे। साज सज्जा के इही क्रम म, अमेजन,फ्लिपकार्ट------  म वाल पेपर छाँटत बेरा,जुन्ना सुरता मन म आगे।


               वाल केहे त दीवाल अउ पेपर केहे त पेपर, माने दीवाल म चिपकाय वाले पेपर। येमा "वाल पेपर" कहे ले भारी वजन बढ़ जावत हे, फेर वाल माने दीवाल,,  ठेठ भाँखा म कहन त कोठ---। कुछ सुरता आइस? हॉं कोठ अउ पेपर काहत हँव। एक जमाना रिहिस जब माई खोली, परछी, रसोई जमे जघा देख देख के कोठ म पेपर ठेंसाय रहय, फेर सो पिस बर नही ओखरो कारण रहय। हाड़ी खोली धुँवा म झन रचे, खूँटी म टँगाय कपड़ा म छूही झन रचे आदि आदि कारण।  हमर कस नवा लइका मन अपन अपन खोली म हीरो हीरोइन के फोटू वाले पेपर ल, सो पीस बरोबर घलो चिपकावन। कुरिया, परछी बने घलो दिखे अउ ओन्हा कोठ मइलाय घलो नही। शनिवार अउ इतवार के ज्यादातर रंगीन पेपर आवय। रतिहा होय के पहली दुकानदार ल चार आना देके, मैं खुद घर लाके कतको बेर अपन कुरिया म रंगबिरंगी  पेपर लगाये हँव। हो सकथे,आपो मन लगाये होहू, फेर रंगीन अउ सादा पेपर आपके मिजाज अउ उपलब्धता अनुसार होही।


                        खैर छोड़व, तइहा के बात ल बइहा लेगे। आज चकाचौध के दुनिया म  कोठ(वाल) बर, रंग रंग के पेंट, पुट्टी, टाइल्स, मार्बल आगे हे। इँखर माँग घलो भारी हे, अउ मोटहा रकम घलो तो ढिल्ला करे बर लगथे। फेर आज तुरते ताही अच्छा देखाय बर, वाल पेपर के माँग भारी बढ़त जावत हे, पेंट पुट्टी टाइल्स मार्बल कस मनमोहक घलो दिखथे। हाँ भले जादा टिकाउ नइ रहे, फेर टिकई ल कोन देखत हे, आहा जिनगीच ह, नइ टिकाऊ हे त का पेंट, पुट्टी अउ पेपर?  कथे दुनिया गोल हे, त दुनिया म होवइया जमे चीज घलो घूमत रहिथे, चीज उही रथे, रूप या फेर नाम बदल जाथे। इही क्रम म वाल  पेपर घलो हे, कोठ के जघा सीमेंटेड दीवाल अउ पेपर के जघा रंग रंग के स्टिकर अउ डिजाइनिंग पेपर। अखबारी पेपर के जघा इही वाल पेपर छाये हे, चाहे बेडरूम होय, किचन या फेर बैठक। येमा किचन म चपके पेपर तेल, फूल के दाग ले बचे बर हो सकथे, फेर हाल, बैठक, बेडरूम आदि म सो पीस बरोबर ही मिलथे। वर्तमान म वाल पेपर के माँग भारी बढ़त जावत हे, काबर कि पोते लीपे के झंझट नही अउ सस्ता के सस्ता, टिकाऊ ल कोन देखत हे। महँगा वाल पेपर के लाइफ घलो रथे। पोताई लिपाई बर कलर, बनिहार तेखर बाद साफ सफाई आदि के झंझट वाल पेपर म नइ रहय, कहे के मतलब हर्रा लगे न फिटकरी अउ रंग चढ़े चोक्खा। 


                 एक समय लिखो फेको के अलग से पेन आय, जेमा रिफिल भरा के दुबारा नइ लिखत रेहेन, फेर आज सबे पेन लिखो फेको होगे हे, बिरले लिखइया रिफिल डाल के अउ बउरत होही। सस्ता अउ लिखो फेको के अत्तिक पावर  हे कि कोनो भी बने चीज के उपलब्धता अउ कीमत कम होय ले उहू चीज घलो लिखो फेको हो जथे। मोर केहे के मतलब ये हे कि मनखे के रुझान अइसने हे, यूज एंड थ्रो वाला। आसपास सब देखते हन ,, चीज बस का नत्ता रिस्ता घलो इही म सवार होवत हे,,,। रुझान देखत लगथे कि, अवइया बेरा म वाल पेपर गांव शहर सबे कोती छा जही। रंग रोगन बाहरी बाउंड्री भर म होही। छुही- माटी, गोबर-पानी आदि तो गय होगे, अवइया बेरा डिस्टेंम्पर,पेंट-ब्रस,पोतइया के धंधा घलो मंदा हो सकथे। समय सुरसा ताय कब कोन ला खा दिही, का पता?


                         आज के सोच अउ समय ल देखत,कहूँ वाल पेपर कस चकाचोंध अउ चरदिनिया चीज कोती सबे के रुझान चल देही, त पेंट पुट्टी टाइल्स कस टिकाऊ अउ मूलभूत चीज के मरना हो जही। ये जमाना के सोच चिरहा कथरी म चमचमावत खोल धराये वाला हे। कतको जघा बिना लीपे पोते घलो वाल पेपर चिपके दिखथे, ये थोरे जुन्ना जमाना के कोठ हरे,जेमा पोते लीपे के बाद ही अखबारी पेपर चिपके। आज  घर तो घर मनखे मनके रहन सहन चाल चलन घलो वाल पेपर बरोबर होते जावत हे, जे बाहिर ले चमचमावत हे, फेर भीतर ल कोन जाने पोताय लिपाय हे,कि नही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

दुमदार दोहा- दाना दानव के असन, कहर झने बरसाय। दाना दाना खाय बर, कहूँ कोति झन आय। खेत धरे हावय दाना। ऐ दाना चल दुरिहाना।। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को, कोरबा(छग)

 दुमदार दोहा-


दाना दानव के असन, कहर झने बरसाय।

दाना दाना खाय बर, कहूँ कोति झन आय।

खेत धरे हावय दाना।

ऐ दाना चल दुरिहाना।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



दुमदार(पुछीवाले) दोहा


चलय बेल बॉटम गजब, तइहा समय म मित्र।

मिलिस रतनपुर के खिचे,अड़बड़ जुन्ना चित्र।।

घुँस जाय दू झन के गोड़।

आज के बातेच ल छोड़।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



दुमदार दोहा


सबों खूँट भक्कम दिखय,आलू प्याज पताल।

तभो बढ़े बड़ भाव हे, पइधें हवँय दलाल।।।

करैं दलाल मन मनमानी।

फूटत नइहें कखरो बानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी कविताओं में दीपावली"*

 *"छत्तीसगढ़ी कविताओं में दीपावली"*


                            कातिक अमावस्या के होवइया दीपावली तिहार हमर छत्तीसगढ़ के बड़का तिहार मा एक हे, जेखर जोरा बर जम्मो छत्तीसगढ़िया मन पाख भर पहली ले लग जथें। ये तिहार मा बरसा के पानी मा चोरो बोरो होय घर-कोठा, बारी-बखरी, गली-खोर जम्मों साफ सफाई होके, लीपा पोता के मुचमुच मुचमुच करत दिखथें। छोटे बड़े जम्मों मनखे अपन अपन घर अंगना के सुघराई ला बढ़ाये बर उछाह मा बूता करथें। ये तिहार के आरो पाके बरसा लगभग थम जाय रथे, जाड़ दस्तक देय बर लग जथे,खेत खार के पके धान पान छभाये मुंदाये कोठार मा सकलाय बर हवा संग दोहा पारके नाचत दिखथे। धनतेरस, नरक चौदस, सुरहोत्ती, गोवर्धन पूजा अउ भाई दूज ये प्रकार के देवारी पांच दिन के परब होथे। उज्जर उज्जर घर दुवार, नवा नवा ओनहा कपड़ा, किसम किसम के रंग- रंगोली, दाई लक्ष्मी अउ गोवर्धन महराज के घरों घर डेरा, आगास मा बरत गियास, रिगबिगावत दीया, फटाफट फूटत फटाका, दफड़ा दमउ मा मनमोहक राउत भाई मन के दोहा, गौरा गौरी अउ सुवा गीत, सबके मन ला मोह लेथे। अइसन मा कलमकार कवि मन ये समा ला अपन शब्द मा बाँधे बिना कइसे रही सकथे। आवन कवि मन के गीत कविता मा देवारी तिहार के दर्शन करत, ये पावन परब के आनन्द लेवन–


              कवि मनके कलम ले निकले आखर वो बेरा ला परिभाषित करथे। पड़ोसी देश मन संग छिड़े युध्द के आरो लेवत *जनकवि कोदूराम दलित जी*, देश के रक्षा खातिर बलिदान दें चुके, सैनिक मन ला देवारी तिहार मा अपन श्रद्धा सुमन अर्पित करत लिखथें-


आइस सुग्घर परब सुरहुती अउ देवारी


चल नोनी हम ओरी-ओरी दिया बारबो


जउन सिपाही जी-परान होमिन स्वदेश बर


पहिली उँकरे आज आरती हम उतारबो।


           देवारी तिहार के दिन राउत भाई मन घरो घर जोहार करत, गोधन ऊपर सोहाई बाँधत दफड़ा दमउ मा दोहा पारथे, उही दोहा मा देशभक्ति के रंग घोरे के किलौली करत *जनकवि कोदूराम दलित जी*, राउत भाई मन ले कहिथें–


राउत भइया चलो आज सब्बो झन मिलके


देश जागरण के दोहा हम खूब पारबो


सेना मा जाये खातिर जे राजी होही


आज उही भइया ला हम मन तिलक सारबो।


                       हमर जम्मो परब तिहार सुख समृद्धि के कामना अउ दया मया के संगे संग जिनगी जिये के तको सीख देथे, तभे तो अंजोरी बगरावत दीया ला देख के *डाँ पीसी लाल यादव जी*  लिखथें-


दिया ले सिखो मनखे


पीरित गीत लिखो मनखे


तन-मन ले एक रूप


सिरतोन म दिखो मनखे।।


                  देवारी के सुघराई अउ लइका मन के उछाह उमंग ला अपन शब्द मा बाँधत *मोहन डहरिया जी* लिखथें-


आगे देवारी के दिन रे संगी


गली-गली उजियारा हे


फोरत लइका फटाफट फटाका


सबो के मन उजियारा हे


                  सुरहोत्ती के दिन घरो घर माता लक्ष्मी के पूजा होथे, फेर कुछ मनखे मन ये दिन जुवा चित्ती तको खेलत दिखथें, जे बने बात नोहे, उही ला उजागर करत, मनखे मन ला अइसन बुराई ले दूर रहे बर काहत *राजेश चौहान* जी लिखथें-


जुआ अउ चित्ती के मेटव बुराई


एमा नइये सुन काखरो भलाई


ऐई ए नरक दुवारी


सुन सँगवारी,सुन सँगवारी,आगे देवारी,आगे देवारी


           लगभग हमर सबो परब तिहार खेती किसानी ले जुड़े  हे, खेती बने बने होथे तभे तिहार बार रंग पकड़थे। अंकाल दुकाल तिहार बार के रंग ला फीका कर देथे। देवारी उछाह मंगल के परब आय, तभो अंकाल दुकाल के बेरा मा कभू कभू मुड़ धरके,मन मार बइठे रहे बर पड़ जथे, उही दुख ला देखत, *दानेश्वर शर्मा जी अउ सुशील यदु जी* कहिथें-


कइसे दसेरा अउ कइसे देवारी


रिसागे हम्मर भुइँया महतारी।


कइसे के लइका बर कुरता सियाबो


कइसे फटाका-दनाका चलाबो


*(दानेश्वर शर्मा जी)*


बादर घलो दगा देइस अब,आँखी होगे सुन्ना


लइका मन करहीं करलाई,हो जाही दुख दुन्ना


*(सुशील यदु जी)*


             


        वइसे तो देवारी तिहार के पांचों दिन धूम रथे, तभो शहर मा सुरहोती ला ता गांव मा गोवर्धन पूजा(अन्न कूट या देवारी) ला जोर शोर ले मनाये जाथे, गोधन महिमा बतावत *दुष्यन्त कुमार साहू* जी लिखथें-


देवारी तिहार म गाँव भर, गऊ माता के पूजा घलो करथन


पूजापाठ के बाद खिचड़ी खवाथन, पाछू हमन जूठा खाथन।।


                 मया मीत सुख समृद्धि के रद्दा मा कतको बुराई जेन रीत बनके जबरदस्ती बइठे रथे, तेन बाधक होथे। मनखे मन नेंग जोग हरे कहिके वो बाट मा रेंगत घलो दिख जथे। वइसने एक बुराई आय भरे सुरहोती मा जुवा के फड़ जमना, उही बात ला वरिष्ट कवि अउ छंदकार *अरुण निगम जी* सोरठा छंद मा कहिथें-


सुटुर-सुटुर दिन रेंग, जुगुर-बुगुर दियना जरिस।


आज जुआ के नेंग, जग्गू घर-मा फड़ जमिस।।


                 देवारी तिहार बर हनहुना धान पक के कोठार बियारा मा, दाई लक्ष्मी बनके आय बर लग जथे, उही ला *बरवै छंद मा,आशा देशमुख* जी लिखथें-


सोन बरोबर चमके,खेती खार।


खरही गांजे भरगे ,हे कोठार।


अन धन गउ मा करथे ,लक्ष्मी वास।


ये तिहार मन भरथे, अबड़ मिठास।


             दीया माटी के होके घलो अंजोर बगराथे, मनखे काया घलो माटी आय अउ आखिर मा माटी मा मिलना हे, अइसने आध्यात्म के बाती बरके दया मया के जोत मा, कुमत,इरसा,द्वेष रूपी अँधियारी ला दुरिहावत *अजय अमृतांशु जी* लिखथें-


माटी के दीया बरत,बड़ निक लागत आज।


देवारी आ गे हवय,जुरमिल करबों काज।।


जुरमिल करबों काज, तभे खुशहाली लाबों।


सुखी रहय परिवार,मया ला हम बगराबों।


आवव मिलके आज,कुमत के गड्ढा पाटी।


आघू पाछू ताय, सबों ला होना माटी।


                ज्यादातर तिहार बार मा मनखे मन अपन हैसियत के हिसाब ले जोरा जाँगर करत चीज बस खरीदथें, फेर कतको झन देख देखावा अउ लालच मा घलो आ जथे, भेदभाव के फेर मा पड़ जथे, उही ला देखत *अनुज छत्तीसगढ़िया जी* लिखथें-


करौ दिखावा झन तुम संगी, देवारी के नाम।


चीज अगरहा अब झन लेवव,जेकर नइ हे काम।। 


मया बाँट के देवारी मा, भेदभाव लौ टार।


बारौ दीया ओखर घर मा, जेन हवय लाचार।। 


              पाँच दिन के पावन परब के वर्णन करत *सरसी छंद मा,संगीता वर्मा* जी लिखथें-


धन तेरस मा यम के दियना,जुरमिल सुघर जलाव।


चौदस मा सब बड़े बिहनिया,चंदन माथ लगाव।।


माँ लक्ष्मी के कृपा बरसही, करव आरती गान।


अन्न कूट भाई दूज परब, दिही मया धन धान।


        हमर कोनो भी परब तिहार के संग कोई ना कोई धार्मिक आस्था जुड़े रथे, वइसने देवारी तिहार मा भगवान राम चौदह बछर वनवास काट के अयोध्या लौटे रिहिस, अउ जम्मो नरनारी मन वो रतिहा ला दीया बार के उजराये रिहिस, उही प्रसंग मा *दुर्मिल सवैया के माध्यम ले गुमान प्रसाद साहू* जी कहिथे-


सजगे अँगना घर खोर गली सब मंगल दीप जलावत हे।


बनवास बिता रघुनंदन राम सिया अउ लक्ष्मण आवत हे।


खुश हे जनता नगरी भर के प्रभु के जयकार लगावत हे।


सब देव घलो मन फूल धरे प्रभु के पथ मा बरसावत हे।। 


          रिगबिगावत दीया गली घर खोर के अँधियारी ला दुरिहाथे, मन के अँधियारी ला भगाय बर ज्ञान जे जोत जलाये बर पड़ते,देवारी के परब ला इही भाव मा देखत *विजेन्द्र वर्मा जी, सरसी छंद मा कहिथे*-


परब आय हे सुघर देवारी,बाँटव सब ला प्यार।


परहित सेवा मा अरपन हो,जिनगी के दिन चार।।


जले ज्ञान के दीप सुघर जी,होय जगत उजियार।


येकर लौ मा सबो जघा ले,भागय द्वेष विकार।।


             सुरहोती मा माता लक्ष्मी धन दौलत संग दया मया अउ राग रंग के बरसा करथे। मया दया के पाग सबर दिन लाड़ू कस आपस मा बंधाये रहे, इही कामना करत *कुंडलिया छंद मा मनीराम साहू 'मितान'* जी लिखथें-


सुरहुत्ती मा सुर मिलय, मिलय सबो के राग।


चिटिक कनो छरियाय झन, रहय मया के पाग।


रहय मया के पाग,करी के लाड़ू जइसन।


मिलय खुशी भरमार,नँगत उत्साह भरे मन।


लक्ष्मी आय दुवार, सुरुज सुख लावय उत्ती


धन दौलत शुभ लाभ,दून देवय सुरहुत्ती।


                सुरहोती के दिन जगमगावत रतिहा ला शब्द मा पिरोवत *महेंद्र बघेल जी* लिखथें-


सुरहुत्ती शुभ रात मा, चहुॅंदिश होय ॲंजोर।


रिगबिग ले दीया बरे, गमकय ॲंगना खोर।


          परब तिहार,धर्म-आस्था के संगे संग संस्कार अउ संस्कृति के तको संवाहक होथे। देवारी मा छोटे बड़े नोनी मन कोस्टउँहा लुगरा पहिरे,गोल घेरा बनाके,थपड़ी पीटत, सुवा नाचथें, उही ला *जगदीश "हीरा" साहू* जी अउ *अरुण कुमार निगम जी* लिखथें-


नाचत हे सबझन सुआ, एक जगा जुरियाय।


लुगरा पहिरे लाल के, देखत मन भर जाय।।


देखत मन  भर जाय, सबो झन मिलके गावँय।


सुग्घर सबके राग, ताल मा ताल मिलावँय।।


*(जगदीश हीरा साहू)*


तरि नरि नाना गाँय, नान-नान नोनी मनन। 


सबके मन हरसाँय, सुआ-गीत मा नाच के।।


*(अरुण कुमार निगम)*


             सुवा के संगे संग गांव गांव मा बैगा बैगिन घर अउ गौरा चौरा मा महराज इसर देव के बिहाव संग गौरी गौरा गीत सहज सुने बर मिल जथे उही ला देखत अमृतध्वनि छंद मा *बोधनराम निषादराज* जी लिखथें-


गौरी गौरा के परब, सुग्घर  रीत  रिवाज।


परम्परा अद्भुत बने, छत्तीसगढ़ी साज।।


छत्तीसगढ़ी,साज सजे जी,देखव सुग्घर।


शंकर बिलवा,गौरा बनथे,गौरी उज्जर।।


रात-रात भर,बर बिहाव के,सजथे चौरा।


होत बिहनिया,करे विसर्जन,गौरी गौरा।।


              परब तिहार दया मया के संगे संगे मनखे ला जन्मभूमि ले घलो जोड़े के बूता करथे। देवारी तिहार के आरो पाके आन राज मा कमाए खाय बर गय जम्मो मनखे मन अपन गाँव मा सकलाये बर लग जथे, उही ला *परमानंद बृजलाल दावना* जी दोहा पारत कहिथें-


गांव छोड़ परदेस मा ,  बसे रहे सब आय।


अपन मयारू गांव मा अंतस के सुख पाय।।


                  


          आज मनखे के मन तिहार बार मा घलो स्वार्थ के घोड़ा मा चढ़े लाभ हानि के फेर मा पड़े देख देखावा अउ देखमरी ला पोटारे दिखथें, पहली कस निःस्वार्थ मया-दया अउ सुनता दुर्लभ होवत जावत हे, उही बात के चिंता करत *जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"* लिखथें-


अँगसा-सँगसा म दीया,कोन जलाय?


बरपेली   जिया  , कोन    मिलाय?


कोन हटाय, काँदी  -  कचरा    ल?


कोन  पाटे,खोंचका -  डबरा     ल?


मनखे के मन म,हिजगा पारी हमात हे।


देख  देवारी,दिनों - दिन , दुबरात    हे।


                उक्त लेख मा कवि मन के छोट छोट पंक्ति रखे के उदिम करे हँव, अउ जादा रस बर पूरा पूरा कविता जुगाड़ करके पढ़ सकत हव। ता आवन आसो देवारी मा तेल बाती के दीया ला तो जलावन ही,संगे संग अपन मन मा मानवता, सत,सुम्मत अउ सद्भावना के दीया ला जलावन,मया दया के तेल ले।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)


साभार- गुरुदेव अरुण निगम जी, छंद खजाना


देशबन्धु (मड़ई) में प्रकाशित

पत्रिका, पहट में प्रकाशित

देवारी मा पानी(तातंक छंद)

 देवारी मा पानी(तातंक छंद)


रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।

कतको के सपना पउलागे,अइसन आफत आरी मा।


हाट बजार मा पानी फिरगे,दीया बाती बाँचे हे।

छोट बड़े बैपारी सबके,भाग म बादर नाँचे हे।

खुशी झोपड़ी मा नइ हावै,नइहे महल अटारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।


काम करइया मनके जाँगर,बिरथा आँसों होगे हे।

बिना लिपाये घर दुवार के,चमक धमक सब खोगे हे।

फुटे फटाका धमधम कइसे,चिखला पानी धारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा----।


चौंक पुराये का अँगना मा,काय नवा कपड़ा लत्ता।

काय सुवा का गौरा गौरी,तने हवे खुमरी छत्ता।

काय बरे रिगबिग दियना हा,कातिक केअँधियारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


पाके धान के कनिहा टुटगे,कल्हरत हे दुख मा भारी।

खेत खार अउ रद्दा कच्चा,कच्चा हे बखरी बारी।

मुँह किसान के सिलदिस बादर,भात ल देके थारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी

 कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी


देवारी के हे परब, तभो धरे हें हाथ।

बड़का धोखा होय हे, दर्जी मन के साथ।

दर्जी मन के साथ, छोड़ देहे बेरा हा।

हे गुलजार बजार, हवै सुन्ना डेरा हा।

पहली राहय भीड़, दुवारी अँगना भारी।

वो दर्जी के ठौर, आज खोजै देवारी।1


कपड़ा ला सिलवा सबें, पहिरे पहली हाँस।

उठवा के ये दौर मा, होगे सत्यानॉस।

होगे सत्यानॉस, काम खोजत हें दर्जी।

नइ ते पहली लोग, करैं सीले के अर्जी।

टाप जींस टी शर्ट, मार दे हावै थपड़ा।

शहर लगे ना गाँव, छाय हे उठवा कपड़ा।


दर्जी के घर मा रहै, कपड़ा के भरमार।

खुले स्कूल कालेज या, कोनो होय तिहार।

कोनो होय तिहार, गँजा जावै बड़ कपड़ा।

लउहावै सब रोज, बजावैं घर आ दफड़ा।

कपड़ा सँग दे नाप, सिलावैं सब मनमर्जी।

उठवा आगे आज, मरत हें लाँघन दर्जी।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

धन्वन्तरि भगवान के , तेरस मा गुण गाव।

 दोहा--

धन्वन्तरि भगवान के , तेरस मा गुण गाव।

धनबल यस जस शांति सुख, सुमिरन करके पाव।।


धनतेरस-सार छंद


धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।

धनतेरस मा दीप जलाके, करत हवौं पहुनाई।।


चमकै चमचम ठिहा ठौर हा, दमकै बखरी बारी।

धन तेरस के दीया के सँग, आगे हे देवारी।।

भोग लगावौं फूल हार अउ , नरियर खीर मिठाई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।


रखे सबे के सेहत बढ़िया , धन्वंतरि देवा हा।

करै कुबेर कृपा सब उप्पर, बरसै धन मेवा हा।।

सुख समृद्धि देबे सब ला, धन वैभव बरसाई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।


देवारी कस सब दिन लागै, सबदिन बीतै सुख मा।

मनखे बन जिनगी जे जीये , दबे रहै झन दुख मा।

काय जीव का मनखे तनखे, दे सुख सब ला माई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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सेहत सब ले बड़का धन- सार छन्द


जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।

सेहत सबले बड़का धन ए, धन दौलत धन जाली।।


काली बर धन जोड़त रहिथस, आज पेट कर उन्ना।

संसो फिकर करत रहिबे ता, काल झुलाही झुन्ना।।

तन अउ मन हा हावय चंगा, ता होली दीवाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।


खाय पिये अउ सुते उठे के, होय बने दिनचरिया।

काया काली बर रखना हे, ता रख तन मन हरिया।

फरी फरी पी पुरवा पानी, देख सुरुज के लाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।


हफर हफर के हाड़ा टोड़े, जोड़े कौड़ी काँसा।

जब खाये के पारी आइस, अटके लागिस स्वाँसा।।

उपरे उपर उड़ा झन फोकट, जड़ हे ता हे डाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


भगवान धन्वंतरि ला स्वस्थ सुखी रखे।।।

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पकिस्तान ल पाट --------------------------------

 पकिस्तान ल पाट

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पकिस्तान ल पाट रे संगी,

पकिस्तान      ल     पाट।

रई  आगे  हे ओखर भैया,

चुपचाप   नइहे खात-----


नानचुन मरहा मेचका होके,

हाथी ल हे  दबकात-------

पाकिस्तान ल पाट रे संगी,

पाकिस्तान     ल     पाट।


चल   टुरा   ए     कहिके,

नइ जोर  देत रेहेन।

अब तब  सुधरही कहि,

नित छोड़ देत  रहेन।

फेर धर सब  ताँत डोरी,

नरी  ल   ओखर    फांस।

पकिस्तान ल  पाट रे संगी,

पकिस्तान     ल      पाट।


सुते    रिथन  त   नाचथे।

अउ जागथन  त  भागथे।

पड़थे  थपड़ा  चर्ररस  ले,

अजरहा कस  काँखथे।

गेन   हमु    ऊंखरो    घर,

त   ओधात   हे    कपाट।

पकिस्तान ल  पाट रे संगी,

पाकिस्तान    ल      पाट।


झर        जही          लगथे,

पाक     अब     पाकत   हे।

बंचाही कहिके ऐखर-ओखर,

मुंहूँ      ल     ताकत       हे।

बोजा      जही    घुरवा    म,

पड़ही      जब           लात।

पाकिस्तान   ल  पाट  रे संगी,

पाकिस्तान       ल       पाट।


तोर         गोला  -  बारूद,

त    हमर   हंसिया-तुतारी।

तोर        सव           घांव,

त   हमर    एक्के     दारी।

कलकलात हन काली कस,

लहू  पिबोन  मुड़ी ल काट।

पाकिस्तान  ल पाट रे संगी,

पाकिस्तान       ल    पाट।


अभो घलो समझात हन,

सोज    -    बाय     रहो।

नांव       बुझा       जही,

जादा    झन   ले   लहो।

भारत    के    भांडी   ल,

भुलाके    झन      झाँक।

पाकिस्तान ल पाट रे संगी,

पाकिस्तान    ल      पाट।


आ   ददा   घर  बने     बनके,

खवाबोन   तोला   खीरे-खीर।

इतराबे त मसानगंज बन जही,

सिंधु  - झेलम  के   तीरे -तीर।

सांप        के       बिला     म,

झन        डार              हॉत।

पाकिस्तान   ल   पाट  रे संगी,

पाकिस्तान       ल         पाट।


     जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

       बालको(कोरबा)

        9981441795

Wednesday, 16 October 2024

माटी ले जुंड़बोन.....

 📝किसन्हा आसिक📝

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माटी ले जुंड़बोन.....

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नखरा नवा जमाना के,

मनखे ल चुरोना कस कांचही |

माटी ले जुंड़बोन  मितान,

तभे जिवरा  बांचही |


फिरिज टीभी कम्पूटर सस्तात हे,

मंहगात हे चांऊर दार |

सपना म घलो सपनाय नही खेती,

बेंचात हे खेतखार |

उद्धोग ढॉबा लाज बनत हे,

टेकत हे महल अटारी|

स्वारथ म रौंदाय भूंईया,

नईहे कोनो संगवारी |

पेट म मुसवा कुदही,

त कोन भला नांचही........ |

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही |


खेती आज बेटी होगे,

भात नईहे कोनो |

चाहे देखावा कतरो बखाने,

फेर अपनात नईहे कोनो |

करजा म किसान ,

कलहर-कलहर के अधमरहा होगे |

मेहनत भर ओखर तीर ,

ब्यपारी तीर थरहा होगे |

भूख मरही किरसी भूंईया भारत,

म बिदेसिया घलो हांसही.......|

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही  |


तंहू हस नंवकरी म,

मंहू हंव नंवकरी म,

पईसा हे ईफरात |

फेर दुच्छा हे हंड़िया,

दुच्छा हे परात |

कल कारखाना अंखमुंदा लगात  हे |

दार-चांउर छोंड़,आनी-बानी के चीज बनात हे|

हाय पईसा-हाय पईसा होगे,

का दुच्छा पेंट पईसा ल चांटही....?

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही |

            

              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

भूलागेन@@@@ -------------------------

 @@@@भूलागेन@@@@

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संडे   मंडे   के     चक्कर   म,

एक्कम      दूज      भूलागेन।


दुनिया ल   भरमात   भरमात,

अपन तन  के  सुध  भूलागेन।


जिनगी  भर लकर-धकर करेन,

फेर  ठंऊका बेरा सुत भूलागेन।


गंजहा-मंदहा के संगत म पड़के,

अमरित कस दही दूध भूलागेन।


तंऊरे नइ जानन तभो देखावा म,

बीच   दहरा   म   कूद  भूलागेन।


अपन  अपन  कहिके  , जपन लगेन,

फेर का अपन ए,तेला खुद भूलागेन?


मनखे     होके    ,  मूरख    बनगेन,

सियान के बताय,बने बूध भूलागेन।


           जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

               बालको(कोरबा)

               9981441795

नइ जाने

 नइ जाने

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मुड़ म  नचईया मन, पाँव   नइ    जाने।

उजाड़ करईया मन,सहर-गाँव नइ जाने।


फोकटे-फोकट कल्हरत हे,मारे-काटे कस,

जेन  जिनगी   म   कभू  , घाव  नइ जाने।


अइसन   मनखे   के  ,  भाव   बाढ़े   हे,

जेन   तेल  नून के घलो ,भाव नइ जाने।


वो   मनखे    जरत   हे   ,  कायरी    म,

जेन कभू आगी-बुगी के , ताव नइ जाने।


जेन मरखंढा बन,एला-ओला मारत फिरथे,

वो  मनखे  कभू मया के ,  छाँव नइ जाने।


नांव   कमाय  म  ,  उमर    गुजर   जथे,

जेन नांव बोर दे,वो कभू  नांव नइ जाने।


          जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

               बालको(कोरबा)

               9981441795

वाह रे पानी-सार छंद

 वाह रे पानी-सार छंद


पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।

खेवन खेवन पानी बरसे, सफरी सरना सोगे।


का कुँवार का कातिक कहिबे,लागत हावै सावन।

रोहों पोहों खेत खार हे, बरसा बनगे रावन।।

धान सोनहा करिया होगे, लगगे कतको रोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


लूवे टोरे के बेरा मा, कइसे करयँ किसनहा।

आसा के सूरज हा बुड़गे,बुड़गे डोली धनहा।

जाँगर टोरिस जउन रोज वो, दुख मा अउ दुख भोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।।


करजा बोड़ी के का होही, संसो फिकर हबरगे।

देखमरी बादर ला छागे, देखे सपना मरगे।

चले धार कोठार खेत मा, सोच सोच सुध खोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

तो मार मुझे...........

 क्या हम रावण हैं?


चलो रावण के जलने का,

विरोध करते हैं।

क्योकि हम भी तो रावण हैं,

कोई हमें भी न जला दे।

जयकारा लगाते हैं,  गुण गाते हैं।

गली मुहल्लें में, रावण का,

जय लंकेश, जय लंकेश, जयजय लंकेश।

कहीं का राजा नहीं तो क्या हुआ?

हमारी ही फौज दुनिया में सबसे बड़ी है।

हाँ हम रावण हैं।

उनके गुणों में नहीं, अवगुणों में।।

रावण से ही तो सीखें हैं-

महिलाओं पर कुदृष्टि डालना।

सत्य कहने वालों को लात मारना।

अहम में चूर, किसी का, कुछ न सुनना।

स्वयं का ही गुणगान करना।

मारना पीटना, आंख दिखाना।

जिद और स्वार्थ में धन दौलत ही नहीं,

प्रजा परिवार की भी बली चढ़ा देना।।

नाभि में अमृत कुंड तो नहीं,

पर मन में अपार जहर भरा है।

चलो रावण के जलने का विरोध करते हैं,

क्योकि आज दशहरा है।।

शुक्र है बुराई साल में एक बार जलती है।

अच्छाई की हमें क्या खबर?

क्योकि अच्छाई तो हम में है ही नही।

------------------क्या हम रावण भी हैं?


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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तो मार मुझे...........

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माना     नजरें , गलत   थी    मेरी,

पर नजरें तुम्हारी सही है,तो मार मुझे।।


हाँ दिल में  बैर, पाल  रखा  था  मैंने,

पर तेरे दिल में बैर नही है,तो मार मुझे।


आज तो बुराई घर घर, घर कर गई है,

यदि सच में बुराई यही है,तो मार मुझे।


मैं तो कब का मर चुका हूँ,श्रीराम के हाथो,

तेरे  दिल  में  राम  कही  है, तो  मार  मुझे।


मैं तो बहक गया था,हाल बहन का देखकर,

वो सनक तेरी रग में बही है,तो मार मुझे।


मैंने तो लुटा दिया,घर परिवार सब कुछ,

मेरे कारण तेरी आस ढही है,तो मार मुझे।


हजार बुराई लिये, हँस रहा है आज का रावण,

ये लकड़ी का पुतला वही है,तो मार मुझे।


मैं तो हर बार मरने को,  तैयार  बैठा हूँ,

यदि बुराई कम हो रही है ,तो मार मुझे।


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बालको(कोरबा)

विजयदशमी पर्व की आप सबको ढेरों बधाइयाँ


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कुंडलियाँ छंद- रावन(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")


रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।

रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।

रावन खुशी मनाय, भुलागे अपने गत ला।

अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।

धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।

नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।


रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।

अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।

झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।

छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।

मद माया लत लोभ, खोज लग जाव जलावन।

नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।


रावन हा कइसे जले, सावन कस हे क्वांर।

पानी रझरझ बड़ गिरे, होवय हाँहाकार।

होवय हाँहाकार, देख के पानी बादर।

दिखे ताल कस खेत, धान हा रोवय डर डर।

जगराता जस नाच, कहाँ होइस मनभावन।

का दशहरा मनान, जलावन कइसे रावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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दोहा


थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।


घनाक्षरी


आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,

दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।

घर बन एक मान,जीव सब एक जान,

जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।

मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,

खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।

रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,

अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।


मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,

तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।

झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,

बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।

बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,

उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।

पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,

वीर बन राम सहीं,रावण ल मार गा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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आज के रावण


बिन डर के मनमर्जी करत हे,आज के रावण।

सीता संग लक्ष्मी सरसती हरत हे,आज के रावण।

अधमी ,स्वार्थी ,लालची अउ बहरूपिया हे,

राम लखन के रूप घलो धरत हे,,आज के रावण।


बहिनी के दुख दरद नइ जाने,आज के रावण।

मंदोदरी हे तभो मेनका लाने,आज के रावण।

न संगी न साथी न लंका न डंका,

तभो तलवार ताने,आज के रावण।


भला बनके भाई के भाग हरे,आज के रावण।

आगी बूगी म घलो नइ जरे,आज के रावण।

ज्ञान गुण के नामोनिशान नही जिनगी म,

घूमय हजारों बुराई धरे ,आज के रावण।


जाने नही एको जप तप ,आज के रावण।

दारू पीये शप शप, आज के रावण।

मुर्गी मटन मछरी ल, पेट म पचावव,

सबे चीज झड़के गप गप,आज के रावण।


हे गली गली घर घर भरे,आज के रावण।

तीर तलवार म नइ मरे,आज के रावण।

बनाये खुद बर झूठ के कायदा कानून,

दिनोदिन तरक्की करे,आज के रावण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


एसो के रावण


एसो के रावण, घुर घुर के मरही।

बरसा बड़ बरसत हे,बुड़ के मरही।


कुँवार महीना घलो,पानीच पानी।

छत्ता ओढ़े बइठे हवै,माता रानी।

जम्मो कोती माते,हावै गैरी।

कोन हितवा हे,कोन हे बैरी।

बन के का,रक्सा अन्तःपुर के मरही।

एसो के रावण, घुर घुर के मरही----।


एसो जादा सजे कहाँ हे।

बाजा गाजा बजे कहाँ हे।

आँखी कान पेट धँस गेहे,

मेंछा घलो मँजे कहाँ हे।

पहली ले एसो,खड़े नइहे।

तलवार धरके,अँड़े नइहे।

कोरबा रायगढ़ अउ रायपुर के मरही।

एसो के रावण,घुर घुर के मरही------।


नइ बाजे डंका।

नइ बाँचे लंका।

लगन तिथि बार,

सब मा हे शंका।

हाल बेहाल हे,गरजे कइसे।

सब तो रावण हे,बरजे कइसे।

पानी अउ अभिमानी देख,चुर चुर के मरही।

एसो के रावण, घुर घुर के मरही-----------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


"रावण रावण हें तिहाँ, राम कहाँ ले आय।

रावण ला रावण हने, रावण खुशी मनाय।।"


विजयादशमी की ढेरों बधाइयाँ


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


महँगाई


दशहरा के रावण कस, भूँजा जा रे महँगाई।

नटेरे हस जिनगी भर, अब ऊँघा जा रे मँहगाई।


साग दार नून के, स्वाद घलो भूला गे।

अब तो नाक में, सूँघा जा रे महँगाई।।


हने हस दर्रा सबके तिजोरी मा।

विनती हे झट ले, मूँदा जा रे महँगाई।


मछरी धरे कस छीते हव, जिनगी के डबरा ला।

निरवा पानी कस वो पार, रुँधा जा रे महँगाई।


जिभिया का, करेजा घलो लाम गे।

गौरा कस काली के पाँव मा,खूँदा जा रे महँगाई।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


पैदा होवत पर निकलगे।

फूल के बिन फर निकलगे।1


बाहिरी मा खोज होइस।

चोर घर भीतर निकलगे।2


दू भुखाये लड़ते रहिगे।

पेट तीसर भर निकलगे।3


सर्दी अउ खाँसी जनम के।

आज बड़का जर निकलगे।4


घुरघुरावत जी रिहिस बड़।

हौसला पा डर निकलगे।5


गाय गरुवा मन घरे के।

सब फसल ला चर निकलगे।6


जेन ला समझेन दाता।

साँप वो बिखहर निकलगे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

पुन्नी के चंदा(सार चंदा)

 


सूरज कस उजियार कर, हवस कहूँ यदि एक।

चंदा बन चमकत रहा, तारा बीच अनेक।।।।।।


पुन्नी के चंदा(सार चंदा)


सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।

अँधियारी रतिहा ला छपछप,काँचत हावै चंदा।


बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।

घटे बढ़े नित पाख पाख मा,एक्कम दूज कहाये।

कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।

शरद पाख सज सोला कला म,अमृत बूंद बरसाये।

सबके मन में दया मया ला,बाँचत हावै चंदा--।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा,नाँचत हावै चंदा।


बिन चंदा के हवै अधूरा,लइका मन के लोरी।

चकवा रटन लगावत हावै,चंदा जान चकोरी।

कोनो मया म करे ठिठोली,चाँद म महल बनाहूँ।

कहे पिया ला कतको झन मन,चाँद तोड़ के लाहूँ।

बिरह म रोवत बिरही ला अउ,टाँचत हावै  चंदा--।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।


सबे तीर उजियारा हावै,नइहे दुःख उदासी।

चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे,शुभ हे सबके रासी।

गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।

खीर चुरत हे चौक चौक मा,मिलजुल भोग लगाये।

धरम करम ला मनखे मनके,जाँचत हावै चंदा----।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।


शरद पुन्नी के चंदा,


ए,शरद पुन्नी के चंदा,

टुकनी म बइठार के तोला।

देखाहूँ मोर गाँव घर,

खेत खार घर कोला---।।


तोर बरसत अमृत ले,

सींचहूँ खेत खार ल।

तोर तेज ले टारहूँ,

इरसा जर बुखार ल।

बाँटहूँ मैं सबला,

तोर कला सोला-----।।


घुमाहूँ,मयारु मनके,

नजर ले बँचावत।

नान नान लइका मन ल,

टुहूँ देखावत।

उतारहूँ आमा तरी म,

तोर डोला------------।।

 

जिहाँ सुरुज घलो नइ जाय,

उँहचो ल उजराहूँ।

जागत मनखे मन बर,

दाई लक्ष्मी बन जाहूँ।

मोर टुकनी के लाड़ू खा ले,

बिरथा हे धनी के झोला----।।


नदी धार म,दीया ढील के,

मनभर डुबकी लगाहूँ।

हूम धूप दे पूजा करहूँ,

तोर महिमा ल गाहूँ।

आसा के पुल बाँधत हावै

मोर गरीबिन चोला----।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


अपने ही जलाते हैं, तो आग ढूँढकर क्या करूँ।

आस्तीन ही डसते हैं, तो नाग ढूँढकर क्या करूँ।

तेरे-मेरे;  इसके-उसके; सब में तो है,

फिर कोसों दूर चंद्रमा में दाग ढूँढकर क्या करूँ।

खैरझिटिया

बैपारी- सार छंद

 बैपारी- सार छंद


ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।

जब किसान के महिनत आथे, सबे चीज बोहाथें।।


अब किसान कर नइहे कोठी, ना पउला ना पैली।

उपज जाय गोदाम खेत ले, भरा भरा के थैली।।

औने पौने दाम थमाके, गरी फेंक ललचाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


आलू मुनगा मेथी धनिया, का बंगाला भाँटा।

बैपारी कर सोना बनथे, अउ किसान कर काँटा।।

बिकै अन्न फर भाजी पाला, बिचौलिया के हाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


कई चीज मा करैं मिलावट, अउ काला बाजारी।

नियम धियम शासन राशन ले, बड़का हें बैपारी।।

अधिकारी अउ नेता चुप हें, आम मनुष गरियाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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दुमदार दोहा


सबों खूँट भक्कम दिखय,आलू प्याज पताल।

तभो बढ़े बड़ भाव हे, पइधें हवँय दलाल।।।

करैं दलाल मन मनमानी।

फूटत नइहें कखरो बानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


Sunday, 13 October 2024

गीत--कठपुतली(सार)

 गीत--कठपुतली(सार)


पद पइसा के आघू नाँचें, बने मनुष कठपुतली।

फेर देख के छोट मँझोलन, फुटें बने बम सुतली।।


जउन चलत हे तेला देखत, आथे रोना हाँसी।

चले एक तपका के चर्चा, होय एक ला फाँसी।।

चमचागिरी चरम मा हावय, सच्चाई हे उथली।

पद पइसा के आघू नाँचे, बने मनुष कठपुतली।।


पइसा वाले रहे कइसनों, भरे सबे झन पानी।

दुख तकलीफ सहइया मन के, नित उजड़े छत छानी।।

बने बने बड़का मन खायें, छोट फोकला गुठली।

पद पइसा के आघू नाँचे, बने मनुष कठपुतली।।


सात खून हे माफ बड़े के, सब मूंदे हें आँखी।

छोट मँझोलन चाहें उड़ना, ता काँटत हें पाँखी।।

आये हावय काय जमाना, चले हुकूमत तुगली।

पद पइसा के आघू नाँचे, बने मनुष कठपुतली।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


 

Monday, 7 October 2024

रावण

 आज के रावण


बिन डर के मनमर्जी करत हे,आज के रावण।

सीता संग लक्ष्मी सरसती हरत हे,आज के रावण।

अधमी ,स्वार्थी ,लालची अउ बहरूपिया हे,

राम लखन के रूप घलो धरत हे,,आज के रावण।


बहिनी के दुख दरद नइ जाने,आज के रावण।

मंदोदरी हे तभो मेनका लाने,आज के रावण।

न संगी न साथी न लंका न डंका,

तभो तलवार ताने,आज के रावण।


भला बनके भाई के भाग हरे,आज के रावण।

आगी बूगी म घलो नइ जरे,आज के रावण।

ज्ञान गुण के नामोनिशान नही जिनगी म,

घूमय हजारों बुराई धरे ,आज के रावण।


जाने नही एको जप तप ,आज के रावण।

दारू पीये शप शप, आज के रावण।

मुर्गी मटन मछरी ल, पेट म पचावव,

सबे चीज झड़के गप गप,आज के रावण।


हे गली गली घर घर भरे,आज के रावण।

तीर तलवार म नइ मरे,आज के रावण।

बनाये खुद बर झूठ के कायदा कानून,

दिनोदिन तरक्की करे,आज के रावण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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एसो के रावण


एसो के रावण, घुर घुर के मरही।

बरसा बड़ बरसत हे,बुड़ के मरही।


कुँवार महीना घलो,पानीच पानी।

छत्ता ओढ़े बइठे हवै,माता रानी।

जम्मो कोती माते,हावै गैरी।

कोन हितवा हे,कोन हे बैरी।

बन के का,रक्सा अन्तःपुर के मरही।

एसो के रावण, घुर घुर के मरही----।


एसो जादा सजे कहाँ हे।

बाजा गाजा बजे कहाँ हे।

आँखी कान पेट धँस गेहे,

मेंछा घलो मँजे कहाँ हे।

पहली ले एसो,खड़े नइहे।

तलवार धरके,अँड़े नइहे।

कोरबा रायगढ़ अउ रायपुर के मरही।

एसो के रावण,घुर घुर के मरही------।


नइ बाजे डंका।

नइ बाँचे लंका।

लगन तिथि बार,

सब मा हे शंका।

हाल बेहाल हे,गरजे कइसे।

सब तो रावण हे,बरजे कइसे।

पानी अउ अभिमानी देख,चुर चुर के मरही।

एसो के रावण, घुर घुर के मरही-----------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

...........तो मार मुझे.............

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माना     नजरें , गलत   थी    मेरी,

पर नजरें तेरी सही है,तो मार मुझे।


हाँ दिल में  बैर, पाल  रखा  था  मैंने,

पर तेरे दिल में बैर नही है,तो मार मुझे।


आज तो बुराई घर घर, घर कर गई है,

यदि सच में बुराई यही है,तो मार मुझे।


मैं तो कब का मर चुका हूँ,श्रीराम के हाथो,

तेरे  दिल  में  राम  कही  है, तो  मार  मुझे।


मैं तो बहक गया था,हाल बहन का देखकर,

वो सनक तेरी रग में बही है,तो मार मुझे।


मैंने तो लुटा दिया,घर परिवार सब कुछ,

मेरे कारण तेरी आस ढही है,तो मार मुझे।


हजार बुराई लिये, हँस रहा है आज का रावण,

ये लकड़ी का पुतला वही है,तो मार मुझे।


मैं तो हर बार मरने को,  तैयार  बैठा हूँ,

यदि बुराई कम हो रही है ,तो मार मुझे।


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बालको(कोरबा)

विजयदशमी पर्व की आप सबको ढेरों बधाइयाँ


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कुंडलियाँ छंद- रावन(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")


रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।

रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।

रावन खुशी मनाय, भुलागे अपने गत ला।

अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।

धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।

नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।


रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।

अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।

झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।

छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।

मद माया लत लोभ, खोज लग जाव जलावन।

नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।


रावन हा कइसे जले, सावन कस हे क्वांर।

रझरझ रझरझ पानी गिरे, होवय हाँहाकार।

होवय हाँहाकार, देख के पानी बादर।

दिखे ताल कस खेत, धान हा रोवय डर डर।

जगराता जस नाच, कहाँ होइस मनभावन।

का दशहरा मनान, जलावन कइसे रावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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दोहा


थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।


घनाक्षरी


आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,

दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।

घर बन एक मान,जीव सब एक जान,

जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।

मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,

खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।

रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,

अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।


मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,

तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।

झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,

बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।

बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,

उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।

पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,

वीर बन राम सहीं,रावण ल मार गा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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आज के रावण


बिन डर के मनमर्जी करत हे,आज के रावण।

सीता संग लक्ष्मी सरसती हरत हे,आज के रावण।

अधमी ,स्वार्थी ,लालची अउ बहरूपिया हे,

राम लखन के रूप घलो धरत हे,,आज के रावण।


बहिनी के दुख दरद नइ जाने,आज के रावण।

मंदोदरी हे तभो मेनका लाने,आज के रावण।

न संगी न साथी न लंका न डंका,

तभो तलवार ताने,आज के रावण।


भला बनके भाई के भाग हरे,आज के रावण।

आगी बूगी म घलो नइ जरे,आज के रावण।

ज्ञान गुण के नामोनिशान नही जिनगी म,

घूमय हजारों बुराई धरे ,आज के रावण।


जाने नही एको जप तप ,आज के रावण।

दारू पीये शप शप, आज के रावण।

मुर्गी मटन मछरी ल, पेट म पचावव,

सबे चीज झड़के गप गप,आज के रावण।


हे गली गली घर घर भरे,आज के रावण।

तीर तलवार म नइ मरे,आज के रावण।

बनाये खुद बर झूठ के कायदा कानून,

दिनोदिन तरक्की करे,आज के रावण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


एसो के रावण


एसो के रावण, घुर घुर के मरही।


बरसा बड़ बरसत हे,बुड़ के मरही।


कुँवार महीना घलो,पानीच पानी।


छत्ता ओढ़े बइठे हवै,माता रानी।


जम्मो कोती माते,हावै गैरी।


कोन हितवा हे,कोन हे बैरी।


बन के का,रक्सा अन्तःपुर के मरही।


एसो के रावण, घुर घुर के मरही----।


एसो जादा सजे कहाँ हे।


बाजा गाजा बजे कहाँ हे।


आँखी कान पेट धँस गेहे,


मेंछा घलो मँजे कहाँ हे।


पहली ले एसो,खड़े नइहे।


तलवार धरके,अँड़े नइहे।


कोरबा रायगढ़ अउ रायपुर के मरही।


एसो के रावण,घुर घुर के मरही------।


नइ बाजे डंका।


नइ बाँचे लंका।


लगन तिथि बार,


सब मा हे शंका।


हाल बेहाल हे,गरजे कइसे।


सब तो रावण हे,बरजे कइसे।


पानी अउ अभिमानी देख,चुर चुर के मरही।


एसो के रावण, घुर घुर के मरही-----------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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Sunday, 6 October 2024

आन लाइन बाजार-रोला छंद

 आन लाइन बाजार-रोला छंद


सजे हवै बाजार, ऑनलाइन बड़ भारी।

घर बइठे समान, बिसावत हें नर नारी।।

होवत हे पुरजोर, खरीदी मोबाइल मा।

छोटे बड़े दुकान, पड़त हावैं मुश्किल मा।


देवत रहिथें छूट, लुभाये बर ग्राहक ला।

घर मा दे पहुँचाय, तेल तरकारी तक ला।

साबुन सोडा साल, सुई सोफा सोंहारी।

हवै मँगावत देर, पहुँच जाथे झट द्वारी।।


शहर लगे ना गाँव, सबे कोती छाये हे।।

बाढ़त हावै माँग, बेर डिजिटल आये हे।

सबे किसम के चीज, ऑनलाइन होगे हें।

बड़े लगे ना छोट, सबे येमा खोगे हें।


होमशॉप फ्लिपकार्ट, अमेजन अउ कतको कन।

खुलगे हे बाजार, मगन हें इहि मा सब झन।।

सुविधा बढ़गे आज, राज हे पढ़े लिखे के।

तुरते होवै काम, जरूरत हवै सिखे के।।


जतिक फायदा होय, ततिक नुकसान घलो हे।

का बिहना का साँझ, रोज के हलो हलो हे।।

लोक लुभावन फोन, मुफत मा ए वो बाँटे।

जे चक्कर मा आय, तौन आफत ला छाँटे।।


बिना जान पहिचान, काखरो बुध मा आना।

खाता खाली होय, पड़े पाछू पछताना।।

करव सोंच विचार, झपावौ झन बन भेंड़ी।

पासवर्ड आधार, आय खाता के बेंड़ी।।


आघू करही राज, ऑनलाइन हटरी हा।

दिखही सबके ठौर, बँधे इँखरे गठरी हा।

लूटपाट ले दूर, रही के होवै सेवा।।

करैं बने जे काम, तौन नित पावैं मेवा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday, 3 October 2024

मनखे मनखे सब एक हे, त मोर अउ पर काबर।

 एक ठन अइसने चलती फिरती मन म आगे


मनखे मनखे सब एक हे,

त मोर अउ पर काबर।


गुजारा कुँदरा म हो सकथे,

त आलीशान घर काबर।


गाँव गंगा मथुरा काँसी,

त भाथे शहर काबर।


बेरा सब हे एक बरोबर,

त सुबे शाम दोपहर काबर।


साँस रोक घलो मर सकथस,

त पीथस जहर काबर।


सुख शांति के तहूँ पुजारी,

त मचथे कहर काबर।


दया मया नइ हे जिवरा म,

त काँपथे थर थर काबर।


सताये नहीं संसो काली के,

त कोठी हे भर भर काबर।


बात जावत हे जिया तक,

त बइठाना बहर काबर।


लाँघ सकथस कानून कायदा,

त खोजथस डहर काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

हरहा बने फिरे

 हरहा बने फिरे


खाये पिये हे तौन हा मरहा बने फिरे।

टन्नक घलो तो आज अजरहा बने फिरे।1


जानत हवे कहानी तभो मनखे मन इहाँ।

कछवा के चाल देख के खरहा बने फिरे।2


तंखा मिले के बाद भी कतको सफेदपोश।

दू पइसा अउ मिले कही लरहा बने फिरे।3


चिक्कन चरत हे चारा बचे आन बर कहाँ।

गोल्लर असन दिखे उही हरहा बने फिरे।4


उल्टा जमाना आय हे का मैं कहँव भला।

जौने फले फुले न ते थरहा बने फिरे।5


साहेब बाबू नेता गियानी गुनी धनी।

इँखरो तो लोग लइका लफरहा बने फिरे।6


काखर ठिकाना हे कहाँ कब कोन बदल जही।

फुलवा घलो तो आज के धरहा बने फिरे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Tuesday, 1 October 2024

नवरात🐾

 🐾🐾नवरात🐾🐾

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माता रानी के आगे , नवरात  संगी रे।

दाई के पँवरी म , नंवे हे  माथ संगी रे।


बिराजे हे दाई,गाँव गली खोर म,

कुँवार अंजोरी  हे, पाख संगी रे।


झांझ  - मंजीरा ,  मादर   बजत  हे,

जस-सेवा  सेऊक  हे,गात  संगी रे।


बरत हे देवाला,रिगबिग-रिगबिग,

अंगना म लइका,मेछरात संगी रे।


घन्टा अउ संख संग,गुंजत हे आरती,

भरे माड़े  हे परसाद म,परात संगी रे।


संख चक्र गदा धरे,बघवा म बइठे,

धरम ध्वजा दाई,फहरात  संगी रे।


चल   रे  "जीतेन्द्र" , भक्ति   के  रद्दा,

दाई दुर्गा के रहि,मुड़ म हाथ संगी रे।


             जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)

              9981441795


****जय माता दी*****

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पी  ले   माता  रानी  की,

भक्ति का  रस घोलकर।

देखो  कितने   तर   गये,

"जय माता दी"बोलकर।


       न   पड़   मोह  -  माया   में।

       न   जड़   ताला    काया में।

       आधार बना माँ भवानी को।

       दिन गुजार उनकी छाया में।

       न   दिल  दुखा  किसी   का,

       बोल      बानी      तोलकर।

       देखो    कितने    तर     गये,

       "जय     माता  दी" बोलकर।


ह्रदय  में  अपने, बसाले  माँ को।

रोते को हँसाकर,हँसाले   माँ को।

क्यों फांसते हो छल से किसी को,

अपनी  भक्ति में फंसाले  माँ को।

तिनका - तिनका  तज  माया का,

बस माँ की  भक्ति  का, मोलकर।

देखो         कितने     तर     गये,

"जय      माता   दी "    बोलकर।


       सुम्भ -निसुम्भ, चण्ड-मुण्ड,

       है   महिषासुर    घाती  माँ।

       भैरव   लँगुरे    द्वार    खड़े,

       भक्तन  काज  बनाती   माँ।

       खाली   झोली   भरती   माँ,

       आशीष देती दिल खोलकर।

       देखो    कितने     तर    गये,

       "जय  माता   दी "  बोलकर।


दर्शन  की  लगन  लागी हो।

मन  भक्ति  का  आदी   हो।

जीवन  सफल  हो   जायेगा,

मुँह  में  "जय माता दी"  हो।

माँ की शरण में पड़े जीतेन्द्र,

गुण  गाये डोल  -  डोलकर।

देखो     कितने   तर     गये,

"जय   माता  दी "  बोलकर।

    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बालको(कोरबा)

              9981441795


बहुत पुरानी रचना


🌺🌺🌺जोत-जँवारा🌺🌺🌺

---------------------------------------------

जगमग जोत जलत हे,बोये हे जँवारा।

जस  सेवा  आरती मा,गूँजे पारा पारा।

फूल पान नँरियर चढ़े,

हूम-धूप के धुंवा बढ़े।

दाई   के   दरबार  मा,

भगतन   भाग    गढ़े।

उज्जर हेवे चारो खूंट,

गली-खोर लिपाये हे।

दाई   के   दरसन  बर,

भगत    जुरियाये   हे।

सूरुज जस दिन मा गाये,रतिहा मा तारा।

जस  सेवा   आरती मा,गूँजे  पारा  पारा।

गांव  गांव   सीतला मा,

जगमग जोत जलत हे।

दुखिया   के   दुख   हा,

छिन  भर   मा  टरत हे।

सुरुर  सुरुर   पूर्वा  चले,

डोले  नीम  पीपर पाना।

लिमुवा  गोभाये  सजे हे,

दाई  सीतला  मा  बाना।

घेरी बेरी  होवत हे, दाई  के जयकारा।

जस  सेवा  आरती मा,गूँजे पारा पारा।

कोनो  बम्लाई पहुँचे।

कोनो  सम्लाई पहुँचे।

कोनो  चंद्रसेनी पहुँचे,

कोनो महामाई पहुँचे।

माता   के  मंदिर   मा, 

भगत  मनके  रेला हे।

दुख   दूर   होवत  हवे,

सुघ्घर  सजे  मेला  हे।

चइत  नवरात बोहाय, भगति के धारा।

जस  सेवा  आरती मा,गूँजे पारा पारा।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795


माता रानी आप सबकी मनोकामना पूर्ण करे।


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


उल्लाला छंद


बाँटत हेवे मीत ला,

बइठे दाई सीतला।

तरिया लहरा मारथे,

दाई  पाँव पखारथे।


निमवा के डारा हले,

घरी  घरी  पूर्वा चले।

चिरई चिरगुन गात हे,

नवरात्री  हा आत हे।


(दोहा)


उड़े ध्वजा  बैरंग हा,

बाजे  मादर  झाँझ।

मेला तरिया पार मा,

होवय बिहना साँझ।


कइसे तन कठवा करौं,

कतिक करौं  मन टाँट।

पथरा  लादे  दुक्ख  के,

सुख  के  जोहँव  बॉट।


रोला छंद


महिना चइत कुँवार,जले जी जगमग जोती।

होवत  हे   जयकार,मात   के  चारो  कोती।

सजे    हवे   दरबार,पार   माता    नहकाये।

उतर  जाय  भवपार,जेन  माई   जस  गाये।


माता  के    दरबार,जोत  देखे  बर   जाबों।

संगी मिल सब साथ,चलो दर्सन कर आबों।

बइठे  ऊपर   पहाड़,मात   बम्लाई   बनके।

करे   सबो दुख दूर,हरय संकट तन मन के।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


कलमकार न बने

 कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,

वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम के हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले के बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देंगें, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,

वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम का हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले का बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देगा, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


एक ठन अइसने चलती फिरती मन म आगे


मनखे मनखे सब एक हे,

त मोर अउ पर काबर।


गुजारा कुँदरा म हो सकथे,

त आलीशान घर काबर।


गाँव गंगा मथुरा काँसी,

त भाथे शहर काबर।


बेरा सब हे एक बरोबर,

त सुबे शाम दोपहर काबर।


साँस रोक घलो मर सकथस,

त पीथस जहर काबर।


सुख शांति के तहूँ पुजारी,

त मचथे कहर काबर।


दया मया नइ हे जिवरा म,

त काँपथे थर थर काबर।


सताये नहीं संसो काली के,

त कोठी हे भर भर काबर।


बात जावत हे जिया तक,

त बइठाना बहर काबर।


लाँघ सकथस कानून कायदा,

त खोजथस डहर काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




कैसे आएगी?

--------------------------------------------------

पप्पा    के  पप्पी  का ,पहरा  है  घर  में,

तो लाठी टेकती,बूढी दादी कैसे आएगी?


इरादें हो नेक और  हौसले  हो बुलंद,

तो सर उठाकर,बर्बादी कैसे आएगी?


फैसन के फंदे में ,फंसते जा रहे है लोग,

तो  लिबाज  बन , खादी  कैसे आएगी?


पहन लिया हो गुलामी का जिरहबख्तर राजा,

तो   प्रजा  के लिए ,आजादी  कैसे   आएगी?


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)


              9981441795


लिख रहा है वो

------------------------------------------

खेलकर मेरे जज्बातों से,

कहानी लिख रहा है वो।


बैठकर      मेरे   सीने   में,

जिंदगानी लिख रहा है वो।


देकर   रंग      लहू       का,

चुनर धानी लिख रहा है वो।


पिलाकर जहर की बोतल,

अब पानी लिख रहा है वो।


मेरे अरमानो पर कंसकर शिकंजा,

मनमानी    लिख   रहा   है     वो।


भरकर   तिजोरी   नोटों से,

खाते में हानि लिख रहा वो।


छीनकर  धन  औरो    का,

नाम दानी लिख रहा है वो।


कुबूल कर ली है गुलामी,फिर भी,

दिल हिन्दुस्तानी लिख रहा है वो।


     जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

       बालको(कोरबा)

     9981441795


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,

वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम के हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले के बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देंगें, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,

वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम का हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले का बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देगा, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


एक ठन अइसने चलती फिरती मन म आगे


मनखे मनखे सब एक हे,

त मोर अउ पर काबर।


गुजारा कुँदरा म हो सकथे,

त आलीशान घर काबर।


गाँव गंगा मथुरा काँसी,

त भाथे शहर काबर।


बेरा सब हे एक बरोबर,

त सुबे शाम दोपहर काबर।


साँस रोक घलो मर सकथस,

त पीथस जहर काबर।


सुख शांति के तहूँ पुजारी,

त मचथे कहर काबर।


दया मया नइ हे जिवरा म,

त काँपथे थर थर काबर।


सताये नहीं संसो काली के,

त कोठी हे भर भर काबर।


बात जावत हे जिया तक,

त बइठाना बहर काबर।


लाँघ सकथस कानून कायदा,

त खोजथस डहर काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




कैसे आएगी?

--------------------------------------------------

पप्पा    के  पप्पी  का ,पहरा  है  घर  में,

तो लाठी टेकती,बूढी दादी कैसे आएगी?


इरादें हो नेक और  हौसले  हो बुलंद,

तो सर उठाकर,बर्बादी कैसे आएगी?


फैसन के फंदे में ,फंसते जा रहे है लोग,

तो  लिबाज  बन , खादी  कैसे आएगी?


पहन लिया हो गुलामी का जिरहबख्तर राजा,

तो   प्रजा  के लिए ,आजादी  कैसे   आएगी?


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)


              9981441795


लिख रहा है वो

------------------------------------------

खेलकर मेरे जज्बातों से,

कहानी लिख रहा है वो।


बैठकर      मेरे   सीने   में,

जिंदगानी लिख रहा है वो।


देकर   रंग      लहू       का,

चुनर धानी लिख रहा है वो।


पिलाकर जहर की बोतल,

अब पानी लिख रहा है वो।


मेरे अरमानो पर कंसकर शिकंजा,

मनमानी    लिख   रहा   है     वो।


भरकर   तिजोरी   नोटों से,

खाते में हानि लिख रहा वो।


छीनकर  धन  औरो    का,

नाम दानी लिख रहा है वो।


कुबूल कर ली है गुलामी,फिर भी,

दिल हिन्दुस्तानी लिख रहा है वो।


     जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

       बालको(कोरबा)

     9981441795


💐💐💐💐💐💐💐💐



कैसे आएगी?

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पप्पा    के  पप्पी  का ,पहरा  है  घर  में,

तो लाठी टेकती,बूढी दादी कैसे आएगी?


इरादें हो नेक और  हौसले  हो बुलंद,

तो सर उठाकर,बर्बादी कैसे आएगी?


फैसन के फंदे में ,फंसते जा रहे है लोग,

तो  लिबाज  बन , खादी  कैसे आएगी?


पहन लिया हो गुलामी का जिरहबख्तर राजा,

तो   प्रजा  के लिए ,आजादी  कैसे   आएगी?


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)

              9981441795

सियान मन

अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस के अवसर म


 गीत--सियान मन


ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।

जनम देवइया जतन करइया, भुइयाँ के भगवान मन।


पेड़ पात पानी पुरवा ला, जस के तस सौपिन हम ला।

रखिन बचा के सरी चीज ला,खुद उपभोग करिन कम ला।

लागा, पागा धर नइ करिन, सपना खातिर सुजान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


चिपके रिहिन हावयँ सबदिन, मानवता के गारा मा।

दया मया ला बाँटत फिरिन, गाँव गली घर पारा मा।

लाँघन नइ गिस जिंखर ठिहा ले,जानवर ना इंसान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


सही गलत अउ पाप पुण्य के, लहराइन सबदिन झंडा।

छोड़दिन बैरी ला बदी देके, नइ देखाइन आँखी डंडा।।

अंतर मन ला आनन्द देवयँ, जिंखर सुर अउ तान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


परम्परा अउ संस्कृति के, सौदा करिन नही कभ्भू।

देखावा अउ चकाचौंध बर, लड़िन मरिन नही कभ्भू।

चद्दर देख लमाइन हें पग, उड़िन मनुष नइ महान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


नता रिस्ता ला हाँस निभाइन,पीठ चढ़ाइन नाती ला।

कथा कहानी न्याय सुनाइन, लिखिन पढ़िन पाती ला।।

नवा समय मा नोहर होही, जुन्ना गुण अउ ज्ञान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)