अतंर्राष्ट्रीय चमचागिरी दिवस म
चमचागिरी- लावणी छंद
एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।
सरग सिंहासन हावै रीता, बता आज तैं मरबे का।।
स्वारथ अउ देखावा खातिर, काबर चम्मच बनगे हस।
मनखे हो के स्वाभिमान खो, रब्बड़ जइसे तनगे हस।।
चापलुसी के चरम लांघ के, आन बान सत चरबे का।
एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।।
पद पइसा धन बल वाले के, तेवर तोरे सेती हे।
नेकी धर्मी सतवादी के, परिया परगे खेती हे।।
आदर देना अलग बात ए, चमचा बनके सरबे का।
एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।
असल गुणी ज्ञानी मनखे मन, चम्मच एको नइ पोसे।
चमचा गिरी करइया मन ला, सदा जमाना हा कोसे।।
कखरो आघू पाछू होके, भव सागर ले तरबे का।
एखर ओखर खास बने बर, जीभ लमा के करबे का।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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जीभ लमाये के का जरूरत
जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।
शोभा देय नही चम्मच हा, कलम दवात साथ मा।।
मंच माइक सम्मान के खातिर, कलमकार नइ भागे।
कला गला के दम मा छाये, उही शारद पूत लागे।।
शब्द जोड़ के फूल बनालव, काँटा वाले पाथ मा।
जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।
ताकत हौ मुँह कखरो काबर, जानव कलम के ताकत।
ये दुनिया के रथ ला आजो, साहित्य हावय हाँकत।।
मुड़ी उँचाके कलम चलावव, झन अरझो गेरवा नाथ मा।
जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।
सूर कबीरा तुलसी जायसी, आजो अजर अमर हे।
जीभ लमाके नाम कमइया, नइ बाँचे स्वार्थ समर हे।।
सेवा मान के साहित गढ़लव, सजही ताज माथ मा।
जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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कलमकार न बने
जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।
बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1
जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।
वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2
चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,
वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3
धन हराम के हो, किसी के तिजोरी में।
तो फाँस गले के बने, उपहार न बने।।4
वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।
भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5
स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।
औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6
झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।
सच होश उड़ा देंगें, होशियार न बने।।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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@@@कलमकार@@@
कलमकार हरौं, चाँटुकार नही।
दरद झेल सकथौं,फेर मार नही।
दुख के दहरा म,अन्तस् ल बोरे हँव।
अपन लहू म,कलम ल चिभोरे हँव।
मैं तो मया मधुबन चाहथौं,
पतझड़ अउ उजार नही-----------
बने बात के गुण,गाथौं घेरी बेरी।
चिटिक नइ सुहाये,ठग-जग हेरा फेरी।
सत अउ श्रद्धा मा,माथ नँवथे बरपेली,
फेर फोकटे दिखावा स्वीकार नही-------
हारे ला ,हौंसला देथौं मँय।
दबे स्वर ला,गला देथौं मँय।
सपना निर्माण के देखथौं,
चाहौं कभू उजार नही---------
समस्या बर समाधान अँव मैं।
प्रार्थना आरती अजान अँव मैं।
मनखे अँव साधारण मनखे,
कोनो ज्ञानी ध्यानी अवतार नही-------
फोकटे तारीफ,तड़पाथे मोला।
गिरे थके के संसो,सताथे मोला।
जीते बर उदिम करहूँ जीयत ले,
मानौं कभू हार नही-------------
ऊँच नीच भेदभाव पाटथौं।
कलम ले अँजोरी बाँटथौं।
तोड़थौं इरसा द्वेष क्लेश,
फेर मया के तार नही----------
भुखाय बर पसिया,लुकाय बर हँसिया अँव।
महीं कुलीन,महीं घँसिया अँव।
मँय मीठ मधुरस हरौं,
चुरपुर मिर्चा झार नही----------
हवा पानी अगास पाताल।
कहिथौं मँय सबके हाल।
का सजीव का निर्जीव मोर बर,
मँय हौसला अँव,हँथियार नही-------
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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