बैपारी- सार छंद
ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।
जब किसान के महिनत आथे, सबे चीज बोहाथें।।
अब किसान कर नइहे कोठी, ना पउला ना पैली।
उपज जाय गोदाम खेत ले, भरा भरा के थैली।।
औने पौने दाम थमाके, गरी फेंक ललचाथें।
ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।
आलू मुनगा मेथी धनिया, का बंगाला भाँटा।
बैपारी कर सोना बनथे, अउ किसान कर काँटा।।
बिकै अन्न फर भाजी पाला, बिचौलिया के हाथें।
ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।
कई चीज मा करैं मिलावट, अउ काला बाजारी।
नियम धियम शासन राशन ले, बड़का हें बैपारी।।
अधिकारी अउ नेता चुप हें, आम मनुष गरियाथें।
ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
दुमदार दोहा
सबों खूँट भक्कम दिखय,आलू प्याज पताल।
तभो बढ़े बड़ भाव हे, पइधें हवँय दलाल।।।
करैं दलाल मन मनमानी।
फूटत नइहें कखरो बानी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment