क्या हम रावण हैं?
चलो रावण के जलने का,
विरोध करते हैं।
क्योकि हम भी तो रावण हैं,
कोई हमें भी न जला दे।
जयकारा लगाते हैं, गुण गाते हैं।
गली मुहल्लें में, रावण का,
जय लंकेश, जय लंकेश, जयजय लंकेश।
कहीं का राजा नहीं तो क्या हुआ?
हमारी ही फौज दुनिया में सबसे बड़ी है।
हाँ हम रावण हैं।
उनके गुणों में नहीं, अवगुणों में।।
रावण से ही तो सीखें हैं-
महिलाओं पर कुदृष्टि डालना।
सत्य कहने वालों को लात मारना।
अहम में चूर, किसी का, कुछ न सुनना।
स्वयं का ही गुणगान करना।
मारना पीटना, आंख दिखाना।
जिद और स्वार्थ में धन दौलत ही नहीं,
प्रजा परिवार की भी बली चढ़ा देना।।
नाभि में अमृत कुंड तो नहीं,
पर मन में अपार जहर भरा है।
चलो रावण के जलने का विरोध करते हैं,
क्योकि आज दशहरा है।।
शुक्र है बुराई साल में एक बार जलती है।
अच्छाई की हमें क्या खबर?
क्योकि अच्छाई तो हम में है ही नही।
------------------क्या हम रावण भी हैं?
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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तो मार मुझे...........
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माना नजरें , गलत थी मेरी,
पर नजरें तुम्हारी सही है,तो मार मुझे।।
हाँ दिल में बैर, पाल रखा था मैंने,
पर तेरे दिल में बैर नही है,तो मार मुझे।
आज तो बुराई घर घर, घर कर गई है,
यदि सच में बुराई यही है,तो मार मुझे।
मैं तो कब का मर चुका हूँ,श्रीराम के हाथो,
तेरे दिल में राम कही है, तो मार मुझे।
मैं तो बहक गया था,हाल बहन का देखकर,
वो सनक तेरी रग में बही है,तो मार मुझे।
मैंने तो लुटा दिया,घर परिवार सब कुछ,
मेरे कारण तेरी आस ढही है,तो मार मुझे।
हजार बुराई लिये, हँस रहा है आज का रावण,
ये लकड़ी का पुतला वही है,तो मार मुझे।
मैं तो हर बार मरने को, तैयार बैठा हूँ,
यदि बुराई कम हो रही है ,तो मार मुझे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
विजयदशमी पर्व की आप सबको ढेरों बधाइयाँ
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कुंडलियाँ छंद- रावन(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")
रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।
रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।
रावन खुशी मनाय, भुलागे अपने गत ला।
अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।
धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।
नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।
रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।
अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।
झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।
छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।
मद माया लत लोभ, खोज लग जाव जलावन।
नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।
रावन हा कइसे जले, सावन कस हे क्वांर।
पानी रझरझ बड़ गिरे, होवय हाँहाकार।
होवय हाँहाकार, देख के पानी बादर।
दिखे ताल कस खेत, धान हा रोवय डर डर।
जगराता जस नाच, कहाँ होइस मनभावन।
का दशहरा मनान, जलावन कइसे रावन।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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दोहा
थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।
आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।
घनाक्षरी
आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,
दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।
घर बन एक मान,जीव सब एक जान,
जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।
मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,
खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।
रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,
अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।
मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,
तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।
झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,
बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।
बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,
उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।
पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,
वीर बन राम सहीं,रावण ल मार गा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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आज के रावण
बिन डर के मनमर्जी करत हे,आज के रावण।
सीता संग लक्ष्मी सरसती हरत हे,आज के रावण।
अधमी ,स्वार्थी ,लालची अउ बहरूपिया हे,
राम लखन के रूप घलो धरत हे,,आज के रावण।
बहिनी के दुख दरद नइ जाने,आज के रावण।
मंदोदरी हे तभो मेनका लाने,आज के रावण।
न संगी न साथी न लंका न डंका,
तभो तलवार ताने,आज के रावण।
भला बनके भाई के भाग हरे,आज के रावण।
आगी बूगी म घलो नइ जरे,आज के रावण।
ज्ञान गुण के नामोनिशान नही जिनगी म,
घूमय हजारों बुराई धरे ,आज के रावण।
जाने नही एको जप तप ,आज के रावण।
दारू पीये शप शप, आज के रावण।
मुर्गी मटन मछरी ल, पेट म पचावव,
सबे चीज झड़के गप गप,आज के रावण।
हे गली गली घर घर भरे,आज के रावण।
तीर तलवार म नइ मरे,आज के रावण।
बनाये खुद बर झूठ के कायदा कानून,
दिनोदिन तरक्की करे,आज के रावण।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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एसो के रावण
एसो के रावण, घुर घुर के मरही।
बरसा बड़ बरसत हे,बुड़ के मरही।
कुँवार महीना घलो,पानीच पानी।
छत्ता ओढ़े बइठे हवै,माता रानी।
जम्मो कोती माते,हावै गैरी।
कोन हितवा हे,कोन हे बैरी।
बन के का,रक्सा अन्तःपुर के मरही।
एसो के रावण, घुर घुर के मरही----।
एसो जादा सजे कहाँ हे।
बाजा गाजा बजे कहाँ हे।
आँखी कान पेट धँस गेहे,
मेंछा घलो मँजे कहाँ हे।
पहली ले एसो,खड़े नइहे।
तलवार धरके,अँड़े नइहे।
कोरबा रायगढ़ अउ रायपुर के मरही।
एसो के रावण,घुर घुर के मरही------।
नइ बाजे डंका।
नइ बाँचे लंका।
लगन तिथि बार,
सब मा हे शंका।
हाल बेहाल हे,गरजे कइसे।
सब तो रावण हे,बरजे कइसे।
पानी अउ अभिमानी देख,चुर चुर के मरही।
एसो के रावण, घुर घुर के मरही-----------।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
"रावण रावण हें तिहाँ, राम कहाँ ले आय।
रावण ला रावण हने, रावण खुशी मनाय।।"
विजयादशमी की ढेरों बधाइयाँ
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महँगाई
दशहरा के रावण कस, भूँजा जा रे महँगाई।
नटेरे हस जिनगी भर, अब ऊँघा जा रे मँहगाई।
साग दार नून के, स्वाद घलो भूला गे।
अब तो नाक में, सूँघा जा रे महँगाई।।
हने हस दर्रा सबके तिजोरी मा।
विनती हे झट ले, मूँदा जा रे महँगाई।
मछरी धरे कस छीते हव, जिनगी के डबरा ला।
निरवा पानी कस वो पार, रुँधा जा रे महँगाई।
जिभिया का, करेजा घलो लाम गे।
गौरा कस काली के पाँव मा,खूँदा जा रे महँगाई।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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