Wednesday, 16 October 2024

माटी ले जुंड़बोन.....

 📝किसन्हा आसिक📝

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माटी ले जुंड़बोन.....

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नखरा नवा जमाना के,

मनखे ल चुरोना कस कांचही |

माटी ले जुंड़बोन  मितान,

तभे जिवरा  बांचही |


फिरिज टीभी कम्पूटर सस्तात हे,

मंहगात हे चांऊर दार |

सपना म घलो सपनाय नही खेती,

बेंचात हे खेतखार |

उद्धोग ढॉबा लाज बनत हे,

टेकत हे महल अटारी|

स्वारथ म रौंदाय भूंईया,

नईहे कोनो संगवारी |

पेट म मुसवा कुदही,

त कोन भला नांचही........ |

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही |


खेती आज बेटी होगे,

भात नईहे कोनो |

चाहे देखावा कतरो बखाने,

फेर अपनात नईहे कोनो |

करजा म किसान ,

कलहर-कलहर के अधमरहा होगे |

मेहनत भर ओखर तीर ,

ब्यपारी तीर थरहा होगे |

भूख मरही किरसी भूंईया भारत,

म बिदेसिया घलो हांसही.......|

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही  |


तंहू हस नंवकरी म,

मंहू हंव नंवकरी म,

पईसा हे ईफरात |

फेर दुच्छा हे हंड़िया,

दुच्छा हे परात |

कल कारखाना अंखमुंदा लगात  हे |

दार-चांउर छोंड़,आनी-बानी के चीज बनात हे|

हाय पईसा-हाय पईसा होगे,

का दुच्छा पेंट पईसा ल चांटही....?

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही |

            

              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

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