गीत--कठपुतली(सार)
पद पइसा के आघू नाँचें, बने मनुष कठपुतली।
फेर देख के छोट मँझोलन, फुटें बने बम सुतली।।
जउन चलत हे तेला देखत, आथे रोना हाँसी।
चले एक तपका के चर्चा, होय एक ला फाँसी।।
चमचागिरी चरम मा हावय, सच्चाई हे उथली।
पद पइसा के आघू नाँचे, बने मनुष कठपुतली।।
पइसा वाले रहे कइसनों, भरे सबे झन पानी।
दुख तकलीफ सहइया मन के, नित उजड़े छत छानी।।
बने बने बड़का मन खायें, छोट फोकला गुठली।
पद पइसा के आघू नाँचे, बने मनुष कठपुतली।।
सात खून हे माफ बड़े के, सब मूंदे हें आँखी।
छोट मँझोलन चाहें उड़ना, ता काँटत हें पाँखी।।
आये हावय काय जमाना, चले हुकूमत तुगली।
पद पइसा के आघू नाँचे, बने मनुष कठपुतली।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment