Thursday, 3 October 2024

मनखे मनखे सब एक हे, त मोर अउ पर काबर।

 एक ठन अइसने चलती फिरती मन म आगे


मनखे मनखे सब एक हे,

त मोर अउ पर काबर।


गुजारा कुँदरा म हो सकथे,

त आलीशान घर काबर।


गाँव गंगा मथुरा काँसी,

त भाथे शहर काबर।


बेरा सब हे एक बरोबर,

त सुबे शाम दोपहर काबर।


साँस रोक घलो मर सकथस,

त पीथस जहर काबर।


सुख शांति के तहूँ पुजारी,

त मचथे कहर काबर।


दया मया नइ हे जिवरा म,

त काँपथे थर थर काबर।


सताये नहीं संसो काली के,

त कोठी हे भर भर काबर।


बात जावत हे जिया तक,

त बइठाना बहर काबर।


लाँघ सकथस कानून कायदा,

त खोजथस डहर काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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