Tuesday, 1 October 2024

कलमकार न बने

 कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,

वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम के हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले के बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देंगें, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,

वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम का हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले का बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देगा, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


एक ठन अइसने चलती फिरती मन म आगे


मनखे मनखे सब एक हे,

त मोर अउ पर काबर।


गुजारा कुँदरा म हो सकथे,

त आलीशान घर काबर।


गाँव गंगा मथुरा काँसी,

त भाथे शहर काबर।


बेरा सब हे एक बरोबर,

त सुबे शाम दोपहर काबर।


साँस रोक घलो मर सकथस,

त पीथस जहर काबर।


सुख शांति के तहूँ पुजारी,

त मचथे कहर काबर।


दया मया नइ हे जिवरा म,

त काँपथे थर थर काबर।


सताये नहीं संसो काली के,

त कोठी हे भर भर काबर।


बात जावत हे जिया तक,

त बइठाना बहर काबर।


लाँघ सकथस कानून कायदा,

त खोजथस डहर काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




कैसे आएगी?

--------------------------------------------------

पप्पा    के  पप्पी  का ,पहरा  है  घर  में,

तो लाठी टेकती,बूढी दादी कैसे आएगी?


इरादें हो नेक और  हौसले  हो बुलंद,

तो सर उठाकर,बर्बादी कैसे आएगी?


फैसन के फंदे में ,फंसते जा रहे है लोग,

तो  लिबाज  बन , खादी  कैसे आएगी?


पहन लिया हो गुलामी का जिरहबख्तर राजा,

तो   प्रजा  के लिए ,आजादी  कैसे   आएगी?


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)


              9981441795


लिख रहा है वो

------------------------------------------

खेलकर मेरे जज्बातों से,

कहानी लिख रहा है वो।


बैठकर      मेरे   सीने   में,

जिंदगानी लिख रहा है वो।


देकर   रंग      लहू       का,

चुनर धानी लिख रहा है वो।


पिलाकर जहर की बोतल,

अब पानी लिख रहा है वो।


मेरे अरमानो पर कंसकर शिकंजा,

मनमानी    लिख   रहा   है     वो।


भरकर   तिजोरी   नोटों से,

खाते में हानि लिख रहा वो।


छीनकर  धन  औरो    का,

नाम दानी लिख रहा है वो।


कुबूल कर ली है गुलामी,फिर भी,

दिल हिन्दुस्तानी लिख रहा है वो।


     जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

       बालको(कोरबा)

     9981441795


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,

वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम के हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले के बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देंगें, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत है जिनकी,

वो बंद रहे बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम का हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले का बने, उपहार न बने।।4


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।5


स्वार्थ से सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।6


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देगा, होशियार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


एक ठन अइसने चलती फिरती मन म आगे


मनखे मनखे सब एक हे,

त मोर अउ पर काबर।


गुजारा कुँदरा म हो सकथे,

त आलीशान घर काबर।


गाँव गंगा मथुरा काँसी,

त भाथे शहर काबर।


बेरा सब हे एक बरोबर,

त सुबे शाम दोपहर काबर।


साँस रोक घलो मर सकथस,

त पीथस जहर काबर।


सुख शांति के तहूँ पुजारी,

त मचथे कहर काबर।


दया मया नइ हे जिवरा म,

त काँपथे थर थर काबर।


सताये नहीं संसो काली के,

त कोठी हे भर भर काबर।


बात जावत हे जिया तक,

त बइठाना बहर काबर।


लाँघ सकथस कानून कायदा,

त खोजथस डहर काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




कैसे आएगी?

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पप्पा    के  पप्पी  का ,पहरा  है  घर  में,

तो लाठी टेकती,बूढी दादी कैसे आएगी?


इरादें हो नेक और  हौसले  हो बुलंद,

तो सर उठाकर,बर्बादी कैसे आएगी?


फैसन के फंदे में ,फंसते जा रहे है लोग,

तो  लिबाज  बन , खादी  कैसे आएगी?


पहन लिया हो गुलामी का जिरहबख्तर राजा,

तो   प्रजा  के लिए ,आजादी  कैसे   आएगी?


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)


              9981441795


लिख रहा है वो

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खेलकर मेरे जज्बातों से,

कहानी लिख रहा है वो।


बैठकर      मेरे   सीने   में,

जिंदगानी लिख रहा है वो।


देकर   रंग      लहू       का,

चुनर धानी लिख रहा है वो।


पिलाकर जहर की बोतल,

अब पानी लिख रहा है वो।


मेरे अरमानो पर कंसकर शिकंजा,

मनमानी    लिख   रहा   है     वो।


भरकर   तिजोरी   नोटों से,

खाते में हानि लिख रहा वो।


छीनकर  धन  औरो    का,

नाम दानी लिख रहा है वो।


कुबूल कर ली है गुलामी,फिर भी,

दिल हिन्दुस्तानी लिख रहा है वो।


     जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

       बालको(कोरबा)

     9981441795


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कैसे आएगी?

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पप्पा    के  पप्पी  का ,पहरा  है  घर  में,

तो लाठी टेकती,बूढी दादी कैसे आएगी?


इरादें हो नेक और  हौसले  हो बुलंद,

तो सर उठाकर,बर्बादी कैसे आएगी?


फैसन के फंदे में ,फंसते जा रहे है लोग,

तो  लिबाज  बन , खादी  कैसे आएगी?


पहन लिया हो गुलामी का जिरहबख्तर राजा,

तो   प्रजा  के लिए ,आजादी  कैसे   आएगी?


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)

              9981441795

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