Thursday 10 June 2021

मया-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 मया-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


मोर जिनगी होगे हे,अँधियार संगी रे।

छोड़ चल देहे मोला मोर,प्यार संगी रे।।


असाड़ आथे,त बिजुरी डरह्वाथे,

रोवाथे सावन के,बऊछार संगी रे।


भादो भर इती उती ,भटकत रहिथँव,

जरथँव रावन कस, कुँवार संगी रे।


संसो म बुलके,कातिक के देवारी,

अग्घन अगोरों,दीया बार संगी रे।


पूस के जाड़ा मा,काँपे बड़ हाड़ा,

माँघ म रोवँव  मैं, हार संगी रे।


कवने हा रँगही , फागुन रंग  म?

चैत अक्ति मनाँव का,तिहार संगी रे।


बइसाख बइरी,रहि-रहि बियापे,

जेठ भूंजे आगी म्,डार संगी रे।


तोर बिना मन,नइ लागे "जीतेन्द्र"

नइ भाये महीना,दिन बार संगी रे।


       जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

            बाल्को(कोरबा)

No comments:

Post a Comment