कबीर साहेब(कुंडलियाँ छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
धरहा करके लेखनी, कहिस बात ला सार।
सत के जोती बार के, दुरिहाइस अँधियार।
दुरिहाइस अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।
हरिस आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।
एक तुला सब तोल, बताइस बढ़िया सरहा।
करिस ढोंग मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।
बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।
साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।
लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।
लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।
तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।
तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।
जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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