मुखारी(सार छंद)-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
ब्रस मंजन के माँग बाढ़गे, दतुन देख फेकागे।
आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।
खेत खार अब कोन ह जावै, तोड़ै कोन मुखारी।
मंजन आगे आनी बानी, होवै मारा मारी।
करँव भला का बात शहर के, गाँव ह घलो झपागे।
आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।
बम्हरी नीम करंज जाम के, दतुन करे सब रोजे।
दवा बरोबर दतुन जान के, पहली सबझन खोजे।
दाँत मसूड़ा मुँह के रोग ह, करत मुखारी भागे।
आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।
एक मिनट मा दाँत चमकगे, चाबे के नइ झंझट।
जीभी आगे अब नइ हावय, चिड़ी करे के कंझट।
दाँत बरत हे मोती जइसे, चाबत चना खियागे।
आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।
दाँत घलो हा पोंडा परगे, ब्रस घँसे के सेती।
ठेठरी खुरमी चाब सके नइ, काय चबाही रेती।
शरद गरम नइ सहि पावत हे, असली नकली लागे।
आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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