Thursday 10 June 2021

कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया

 कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया


कबीरदास जी महाराज निर्गुण भक्ति धारा के महान संत, समाज सुधारक दीन दुखी मनके हितवा रिहिन, अउ बेबाक अपन बात ल कहने वाला सिद्ध पुरुष रिहिन। उंखर दिये ज्ञान उपदेश न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि भारत भर के मनखे मनके अन्तस् मा राज करथें। कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़ के ये पावन प्रसंग म,मैं उंखर कुछ दोहा, जेन छत्तीसगढ़ के मनखे मनके अधर म सबे बेर समाये रहिथे, ओला सँघेरे के प्रयास करत हँव, ये दोहा मन आजो सरी संसार बर दर्पण सरीक हे, ये सिर्फ पढ़े लिखें मनखे मनके जुबान म ही नही, बल्कि जेन अनपढ़ हे तिंखरो मनके अधर ले बेरा बेरा म सहज बरसथे-----


                 जब जब हमर मन म कभू कभू भक्ति भाव उपजथे, अउ हमला सुरता आथे कि माया मोह म अतेक रम गे हन, कि भाव भजन बर टेम नइहे, त कबीरदास जी के ये दोहा अधर म सहज उतर जथे- 

*लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।*

*पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ।।*

(देवारी तिहार म जब राउत भाई मन दफड़ा दमउ के ताल म, दोहा पारथे, तभो ये दोहा सहज सुने बर मिलथे।)


          कबीरदास जी के ये दोहा, तो लइका संग सियान सबे ल, समय के महत्ता के सीख देथे, अउ आज काली कोनो कहिथें, त इही दोहा कहे अउ सुने बर मिलथे-

*काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।*

*पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।।*


लोक मंगल के भाव जब अन्तस् म जागथे, त कखरो कमी, आफत -विपत देख अन्तस् आहत होथे, त हाथ जोड़ छत्तीगढ़िया मनके मुख ले इही सुनाथे-

*साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए ।*

*मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।।*


                 मनखे के स्वभाव हे सुख म सोये अउ दुख म कल्हरे के, कहे के मतलब सुख के बेरा सब ओखर अउ दुख आइस त ऊपर वाला के देन। फेर जब समय रहत ये दोहा हमला याद आथे, त सजग घलो हो जथन, अउ अपन अहम ल एक कोंटा म रख देथन। सुख अउ दुख हमरे करनी आय। गूढ़ ज्ञान ले भरे, कबीर दास जी के ये दोहा काखर मुख म नइ होही---

*दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।*

*जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।*


                     कहूँ भी मेर कुछु भी चीज के अति होवत दिखथे त सबे कथे- अति के अंत होही। कोनो भी चीज के अति बने नोहे। कतको मनके मुख म, कबीर साहेब के यहू दोहा रथे---

*अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,*

*अती का भला न बरसना, अती कि भलि न धूप ।*


मनखे ल आन के बुराई फट ले दिख जथे, अउ जब वोला कबीरदास जी के ये दोहा हुदरथे, त वो लज्जित हो जथे।कबीर साहेब कथे-

*बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,*

*जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।*


                        छत्तीसगढ़ का सरी संसार मया के टेकनी म टिके हे। मनखे पोथी पढ़े ले पंडित नइ होय, मया प्रेम मनखे ल विद्वान बनाथे। यहू दोहा जम्मो लइका सियान ल मुखाग्र याद हे-

*पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय*

*ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।*



मनखे के सही अउ देखावा म बहुत फरक होथे, तभे तो हमर सियान म हाना बरोबर कबीर साहेब के ये दोहा ल कहिथें-

*माटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाय।*

*जिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाय ।।*


तन के मइल ल धोय ले जादा जरूरी मन के मइल ल धोना हे, मन जेखर मइला ते मनुष बइला। यहू दोहा ल सियान मन हाना बरोबर तुतारी मारत दिख जथे-

*मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।*

*नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।।*


          बोली ल गुरतुर होना चाही, तभे बोलइया मान पाथे।  छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा इही सुनाथे घलो, चाहे राउत भाई मनके दोहा म होय, या फेर लइका सियान मनके जुबान म,

बने बात बोले बर कोनो ल कहना हे त सबे कहिथें--

*ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।*

*औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होए ।।*



                   हम छत्तीगढ़िया मनके आदत रहिथे बड़ाई सुनना अउ बुराई म चिढ़ना, फेर जब वोला कबीर साहेब के ये दोहा सुरता आथे त रीस तरवा म नइ चढ़े, बल्कि सही गलत सोचे बर मजबूर कर देथें-

*निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय*

*बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।*



         मनखे के शरीर म माया मोह अतेक जादा चिपके रहिथे, कि तन सिराये लगथे तभो माया मोह ल नइ छोड़ पाय, त कबीर साहब के ये दोहा सबके मुखारबिंद म सहज आ जथे-

*माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।*

*आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥*


 कबीरदास जी के बेबाकी के सबे कायल हन, कोनो जाति धरम ल बढ़ावा न देके सिरिफ इंसानियत ल बढ़ाइस-

*हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमान,*

*आपस में दोउ लड़ी मुए, मरम न कोउ जान।*


            दोस्ती अउ दुश्मनी ले परे रहिके, सन्त ह्रदय कस काम करे बर कोनो कहिथे त, इही सूरता आथे-

*कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर*

*ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।*


                  गुरु के महत्ता के बात ये दोहा ल छुये बिन कह पा सम्भव नइहे-

*गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।*

*बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥*

        

                  आजो कोई यदि अपन आप ल बड़े होय के डींग हाँकथे, त सियान का, लइका मन घलो इही कहिके तंज कँसथें-

*बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।*

*पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।*


                   निर्गुण भजन *बिरना बिरना बिरना---*  श्री कुलेश्वर ताम्रकार जी के स्वर म सीधा अन्तस् ल भेद देथे,वो भजन म ये दोहा सहज मान पावत हे, अउ इही दोहा हमर तुम्हर जिनगी के अटल सत्य घलो आय।

*माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।*

*एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।*


           घर म गुर्रावत जाँता, वइसे तो दू बेरा बर रोटी के व्यवस्था करथे, अउ कहूँ कबीरदास जी के ये दोहा मन म आ जाय, त अंतर मन  सुख दुख के पाट देख गहन चिंतन म पड़ जथे-

*चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय ।*

*दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ।*


लालच बुरी बलाय, अइसन सबे कथें, फेर काबर कथें तेला कबीरदास जी महाराज जनमानस के बीच म रखे हे, अउ जब लालच के बात आथे,या फेर मन म लालच आथे, त इही दोहा मनखे ल हुदरथे-

*माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।*

*हाथ मले औ सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।*


               कबीरदास जी के दोहा संग जिनगी के अटल सत्य सबे के मन म समाहित रथे, मनखे जीते जियत ही राजा रंक आय, मरे म मुर्दा के एके गत हे, भले मरघटी तक पहुँचे म ताम झाम दिखथे।

*आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।*

*इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर।*


                    मनुष जनम ल ही सबे जीव जंतु के जनम ले श्रेष्ठ माने गेहे, अउ हे घलो, आज मनखे सब म राज करत हे। फेर जब कबीरदास जी के ये दोहा अन्तस् ल झकझोरथे, तब समझ आथे, मनखे हीरा काया धर कौड़ी बर मरत हे।

*रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।*

*हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।*


              धीर म ही खीर हे, इही बात ल कबीरदास जी महराज घलो केहे हे, जे सबके  अधर म समाये रथे, अउ मनखे ल धीर धरे के सीख देथे-

*धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।*

*माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।*


                      कबीरदास जी के ये दोहा मनखे ल इन्सानियत देखाय के, बने काम करे  के शिक्षा देवत कहत हे, कि भले जनम धरत बेरा हमन रोये हन अउ जमाना हाँसिस, फेर हमला अइसे कॉम करना हे, जे हमर बिछोह म जमाना रोय। 

*कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,*

*ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।*



                         काया के गरब वो दिन चूर चूर हो जथे जब हाड़, मास, केस सबे लकड़ी फाटा जस लेसा जथे। अइसन जीवन के अटल सत्य ले भला कोन अछूता हन-

*हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।*

*सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।*


              "अब पछताये होत का जब चिड़िया चुग गई खेत" काखर जुबान म नइहे। अवसर गुजर जाय म सबला कबीर साहेब के इही दोहा सुरता आथे-

*आछे  दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।*

*अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।*


                   आत्मा अउ परमात्मा के बारे म बतावत कबीर साहेब के ये दोहा, मनखे ल जनम मरण ले मुक्त कर देथे-

*जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानि ।*

*फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानि ।*


               छत्तीगढ़िया मन आँखी के देखे ल जादा महत्ता देथन, इही सार बात ल कबीरसाहेब घलो केहे हे-

*तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।*

*मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।*


                आज जब चारो मुड़ा कोरोना काल बनके गरजत हे, मनखे हलकान होगे हे, तन का मन से घलो हार गेहे, त सबे कोती सुनावत हे, मन ल मजबूत करव, काबर की "मनके हारे हार अउ मनके जीते जीत"। पहली घलो ये दोहा शाश्वत रिहिस अउ आजो घलो मनखे के जीये बर थेभा हे, मन चंगा त  कठोती म गंगा हमर सियान मन घलो कहे हे-

*मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।*

*कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ।*


                  "जइसे खाबे अन्न , तइसे रइही मन" ये हाना हमर छत्तीसगढ़ म सबे कोती सुनाथे, कबीर साहेब घलो तो इही बात ल केहे हे- संग म पानी अउ बानी के बारे म घलो लिखे हे-

*जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।*

*जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।*


         कबीरदास जी महाराज जइसन ज्ञानी सिद्ध दीया धरके खोजे म घलो नइ मिले, उंखर एक एक शब्द म जीवन के सीख हे। अन्याय अउ अत्याचार के विरोध हे। सत्य के स्थापना हे। दरद के दवा हे। केहे जाय त भवसागर रूपी दरिया बर डोंगा बरोबर हे। धन भाग धनी धरम दास जी जइसे चेला जेन, कबीर साहेब जी के शब्द मन ल पोथी बनाके हम सबला दिन। अउ धन भाग हमर छत्तीसगढ़ जेला अपन पावन गद्दी बनाइन। उंखरे पावन कृपा ले आज सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ कबीरमय हे।


साहेब बन्दगी साहेब


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)





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