हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
माने नही मन मोर जी,मस्तूरिहा के गीत बिन।
सुनके जिया मा जोश आथे,मन अघाथे जीत बिन।
सरसर करे पुरवा पवन मस्तूरिहा के गीत गा।
सबके सहारा गंग धारा वो मया अउ मीत गा।1।
चारो दिशा रोवत हवै,रोवत हवै घर खेत हा।
सुरता म आँसू नित ढरकथे,छिन हराथे चेत हा।
पानी पवन जब तक रही,तब तक रही मस्तूरिहा।
रहही जिया मा घर बना,होवय कभू नइ दूरिहा।2।
हीरा असन सिरजाय हे,छत्तीसगढ़ के धूल ला।
माली बने महकाय हे,साहित्य के वो फूल ला।
भभकाय हे जे धर कलम,आगी ल सोना खान के।
नँदिया लबालब जे भरे,संगीत अउ सुर तान के।3।
हारे थके मन गीत सुन,रेंगें मया धर संग मा।
सँउहत दिखे छत्तीसगढ़,संगीत के सतरंग मा।
कतको चिरैया चार दिन,खिलके इहाँ मतवार हे।
महके हवै मस्तूरिहा, छत्तीसगढ़ गुलजार हे।4।
अतका करे कोनो नहीं,जतका करे हे काम वो।
बाँटिस मया ममता सदा,माँगिस कहाँ पद नाम वो।
हे लेखनी जादू भरे,अउ का कहँव सुर ताल के।
मधुरस असन सब गीत हे, छत्तीसगढ़ के लाल के।5।
कइसे उदासी छाय हे,मन के सुवा मा देख ले।
नइहे भले तन हा इँहा,पर नाँव जीतै लेख ले।
वो नाँव के सूरज सदा,चमकत रही आगास मा।
दुरिहाय हावै तन भले,सुरता रही नित पास मा।6।
जब जब खड़े कविता पढ़े,बाँटे मया अउ मीत ला।
कतको घरी देखे हवँव,बाढ़े हवँव सुन गीत ला।
कर खैरझिटिया जोड़ के,पँउरी परै वो लाल के।
अन्तस् बसाके नाँव ला,नैना म सुरता पाल के।7।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
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