सब बण्ठाधार होगे हे
दहीं के जघा कपसा माढ़े हे।
देवता के जघा रक्सा ठाढ़े हे।
दवा अउ दुवा थोरको भी, काम नइ आत हे।
जरूरतमंद के राशनकार्ड म, नाम नइ आत हे।
मिर्चा मिट्ठा होगे, नून जमकरहा झार होगे हे।
सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।
मार मा झरगेहे, ढोलक तबला के खरवन।
ददा दाई ला तपत हे, आज के सरवन।
नाम के नदियाँ हे, जिहाँ पानी के नाम नही।
कोड़िहा मन काटे फर्जी,कमैया बर काम नही।
घर मा बारी बखरी दबगे, बंजर खेत खार होगे।
सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।
मनखे दवा ल मजबूरी मा,अउ दारू ल हाँस के पीयत हे।
कोई जीये बर खात हे, ता कतको खाय बर जीयत हे।
शहर के सताये सर्व सुविधा गाँव खोजत हे।
गाँव के लफरहा, पिज़्ज़ा बर्गर बोजत हे।
हँसिया बसुला भोथरागे,मनखे मन कटार होगे।
सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।
भँइसा के भाग म, स्विमिंग पूल हे।
तितली भौरा मरे,माछी बर फूल हे।
बेंदरा बइठे हे, परवा छानी मा।
झगरा फदके हे, जेठानी देरानी मा।
करधन ककनी ले वजनी, ढार होगे हे।
सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।
खजाना वाले, चिख चिख के खात हे।
भुखाय मनखे चीख चीख चिल्लात हे।
बूता के मारे कखरो,माँस नइहे।
ता कखरो तन मा, अमात नइहे।
निच्चट सरहा, नत्ता रिस्ता के तार होगे हे।
सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।
राजा घोड़ा छोड़, गदहा चढ़त हे।
सत स्वाहा होवत हे,बुराई बढ़त हे।
एक दूसर के ला खात हे, ता एक ला दूसर खवात हे।
फेर मनखे बीच के,घानी के बइला कस पेरात हे।
बिन लड़े भिड़े, सिपइहा के हार होगे।
सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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