अगोरा असाड़ के हे
बइला मेछरात हे, असकटात हे नाँगर ।
खेती-किसानी बर, ललचात हे जाँगर।
कॉटा-खूटी बिनागे हे।
तन मन मा उमंग हमा गेहे।
बँधा गेहे मुही ,जेन मेड़-पार के हे।
अब तो अगोरा,असाड़ के हे।
बिजहा लुकलुकात हे, कोठी ले खेत जाय बर।
मन करत हे मेड़ म, चटनी बासी-पेज खाय बर।
खेत कोती मेला लगही अब।
बन दूबी कांदी जगही अब।
पीये बर पानी पपीहा कस भुइयाँ,
खड़े मुहँ फार के हे |
अब तो अगोरा असाड़ के हे|
झँउहा-टुकनी,रापा-कुदारी।
अगोरत हे अपन अपन पारी ।
बड़का बाबू सधाये हे धान जोरे बर।
नान्हे नोनी सुर्रह्त हे टोकान कोड़े बर।
तियार हे खेले बर खेती के जुआ,
जे किसान पऊर सब चीज हार गेहे।
अब तो अगोरा असाड़ं के हे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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