Thursday 10 June 2021

मनहरण घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" महतारी

 मनहरण घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

महतारी

दूध के कटोरी लाये, चंदा ममा ल बुलाये।

लोरी गाके लइका ला, सुघ्घर सुताय जी।।

अँचरा के छाँव तरी, सरग हे पाँव तरी।

बड़ भागी वो हरे जे, दाई मया पाय जी।।

महतारी के बिना ग, दूभर हवे जीना ग।

घर बन सबे सुन्ना, कुछु नी सुहाय जी।।

महतारी के मया, झन दुरिहाना कभू।

सेवा कर जीयत ले, दाई देवी ताय जी।।



पेट काट काट दाई, मया बाँट बाँट दाई।

लाले लोग लइका ला, घर परिवार ला।।

दया मया खान दाई, हरे वरदान दाई।

शेषनाँग सहीं बोहे, सबे के वो भार ला।

लीपे पोते घर द्वार, दिखे नित उजियार।

हाँड़ी ममहाये बड़, पाये कोन पार ला।

सबे के सहारा दाई, गंगा कस धारा दाई।

माथा मैं नँवाओं नित, देवी अवतार ला।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)



शंकर छ्न्द-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



महतारी


महतारी कोरा मा लइका, खेल खेले नाँच।

माँ के राहत ले लइका ला, आय कुछु नइ आँच।

दाई दाई काहत लइका, दूध पीये हाँस।

महतारी हा लइका मनके, हरे सच मा साँस।।



अंगरखा पहिरावै दाई, आँख काजर आँज।

सब समान ला मॉं लइका के,रखे धो अउ माँज।

धरे रहिथे लइका ला दाई, बाँह मा पोटार।

अबड़ मया महतारी के हे, कोन पाही पार।।



करिया टीका माथ गाल मा, लगाये माँ रोज।

हरपल महतारी लइका बर, खुशी लाये खोज।

लइका ला खेलाये दाई, बजा तुतरू झाँझ।

किलकारी सुन माँ खुश होवै, रोज बिहना साँझ।



महतारी ला नइ देखे ता, गजब लइका रोय।

पाये आघू मा दाई ला, कलेचुप तब सोय।

बिन दाई के लइका मनके, दुःख जाने कोन।

लइका मन बर दाई कोरा, सरग हे सिरतोन।।


-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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