Tuesday, 25 June 2024

आम- रोला छंद

 आम- रोला छंद


फर गर्मी मा आय, लुभावै सब ला भारी।

छोट बड़े सब खाँय, बिसाके ओरी पारी।।

फर कहाय राष्ट्रीय, हमर भारत के एहा।

जाने उही सुवाद, खाय ये फर ला जेहा।।1


सुनके एखर नाम, चेहरा सबके खिलथे।

कई प्रकार के आम, सुने देखे बर मिलथे।।

कुछ आमा के नाम, गिनावत हँव लिख रोला।

कलमी चुहकी जोग, अचारी लौ भर झोला।।2


हिमसागर हापूस, बगीनापल्ली पैरी।

तोतापरी बदाम, लंगडा ललचि दसैरी।।

मलगोवा बनराज, मालदा अउ गुलबाड़ी।

जमरूखो जमदार, आम्रपाली आसाड़ी।।3


रत्नागिरी रुमानी, कालिया बघिकल्यानी।

अर्का अरुण पुनीत, आमड़ी अउ अरमानी।

निलेश्वरी निलपान, स्वर्ण रेखा श्रावनिया।

कंरजियो आण्डूस, चिम्पियो चौसा जमिया।।4


फजली फ्रंजोनील, चोग बटली बाजरिया।

अलफोंनस जर्दालु, पितर पिलिया पोपरिया।।

दूधमिया अमृतंग, रोम रूसा रसपूरी।।

केसर किरियाभोग, सफेदा सन सिंदूरी।।5


गौरजीत अनमोल, दूधपण्डो मक्का रम।

हरि गोपालाभोग, नारिएरी हिम नीलम।।

मलिका लक्ष्मणभोग, बम्बई बैगनीपल्ली।

नूरजहाँ जँहगीर, ग्रीन बम्बइया फल्ली।।6


सरदर पूसालाल, सुकुल बरमास बदंदी।

सब ला नइ लिख पाँव, जमत नइहे तुकबंदी।।

आम घलो अब हाथ, सहज नइ आवत हावै।

बने खास मन आम, आम ला खावत हावै।।7


आम कहाँ अब आम, खास बन महँगा होगे।

चटनी चिरा अथान, नवा जुग मा दुख भोगे।।

आम पना कोल्ड्रिंक, मुरब्बा लगथे बढ़िया।

आमा ला बन आम, खाँय सब छत्तीसगढिया।।8


आम होय या खास, हाँस खाये सब आमा।।

कई खास बन आम, करत दिख जाथे ड्रामा।

पद पाये बर आम, बने नेता अधिकारी।

स्वारथ जब सध जाय, आम के कहाँ पुछारी।।9


आम देय फर फूल, हवा लकड़ी अउ छँइहा।

गीत कोयली गाय, सुनत मन जाये बइहा।

कहे आम के आम, दाम गुठली के होथे।

गुठली ला झन गीन, आम खा तब मन रोथे।10


आम आदमी आम, सही चुँहका फेकागे।

बड़े बड़े जन खास, आम अन कहिके छागे।।

जब तक हें जन आम, चलत हे दुनिया दारी।

सब हो जाही खास, मरे के आही पारी।।11


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गर्मी मा बरफ गोला- सार छंद

 गर्मी मा बरफ गोला- सार छंद


गजब सुहाथे घाम घरी मा, बरफ बरफ के खाजी।

लइका संग सियान खाय बर, हो जाथे झट राजी।।


काड़ी वाले होय बरफ या, रंग रंग के गोला।

रबड़ी कुल्फी बरफ मलाई, दै नीयत ला डोला।।

सस्ता होवय या हो महँगा, कइथे सब झन ला जी।

गजब सुहाथे घाम घरी मा, बरफ बरफ के खाजी।।


आमा गन्ना नीम्बू रस मा, डार बरफ के चूरा।

ठंडा ठंडा मन भर पीले, जिया जुड़ाथे पूरा।।

बरफ संग मा सेवइ कतरी, खा के कहिबे वा जी।

गजब सुहाथे घाम घरी मा, बरफ बरफ के खाजी।


खुशी हमाथे मन मा भारी, देख बरफ के ठेला।

कोनो ला गर्मी नइ भाये, सब ठंडा के चेला।।

फोकट हे धन बल के गर्मी, जुड़ रख जिया जुड़ा जी।

गजब सुहाथे घाम घरी मा, बरफ बरफ के खाजी।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बइगा गुनिया के चक्कर(चौपाई छंद)

 बइगा गुनिया के चक्कर(चौपाई छंद)

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(16-16  मात्रा)

सरी मँझनिया  घूमे टूरा।

सिरतों मा बइहा हे पूरा।

पीपर पेड़ तीर  जा बइठे।

लोगन उँहा भूत हे कइथे।

        झुँझकुर छइँहा हे मनभावन।

        उँही   मेर   लागे   सुरतावन।

        बइठे  टूरा  गोड़  लमाये।

        कौवा घुघवा देख डराये।

खारे खार  कोलिहा भागय।

देखय भोड़ू बड़ डर लागय।

नांग  साँप  के  हरय बसेरा।

झींगुर   भाँवर   डारे   डेरा।

        हवा  चले   बड़  डारा  डोले।

        रहि रहि के बनबिलवा बोले।

        काँव काँव  कौवा  चिल्लाये।

        टेटका बिन बिन चाँटी खाये।

साँप पेड़ के उप्पर नाचे।

चिरई  अंडा कइसे बाँचे।

चील  बाज  हा बादर नापे।

भूँके कुकुर जिया हा काँपे।

        झरे पछीना तरतर तरतर।

        काँपय टूरा थरथर थरथर।

        हुरहा   बड़का  डारा   टूटे।

        मुँह ले बोल कहाँ जी फूटे।

सुध बुध खोये भागे पल्ला।

पारा  भर  मा  होगे  हल्ला।

दाई  दाई   कहि   चिल्लाये।

मनखे तनखे बड़ सँकलाये।

        बोली बोलय आनी बानी।

        डारव सिर मा ठंडा पानी।

        खींच बाहरी कोनो मारव।

        भूत  धरे  हे कोनो झारव।

लान जठावव खटिया खोर्रा।

मारव  भँदँई   मारव   कोर्रा।

हाथ गोड़ ला चपकव दोनो।

जावव बइगा  लानव कोनो।

        जल्दी  मरी  मसान  भगावव।

        लइका लोग तीर झन आवव।

        रोवय     दाई    बाबू    बइठे।

        आये    बइगा   मेंछा   अँइठे।

आँखी मा छाये हे लाली।

पहिरे हावय माला बाली।

गुर्री  गुर्री  देखय   बइगा।

कुकरी दारू माँगे सइघा।

        भूत  भाग  जा रे पीपर के।

        छीते राख जाप कर करके।

        लानव खैरी कुकरी चंदन।

        माँ  काली के करहूँ बंदन।

लहूँ  भरे  हाथे  हे लोटा।

देखय काँपे सबके पोटा।

बइगा लेवय  लउहा  लउहा।

जल्दी लानव लिमऊ मउहा।

        हँसिया  धरे  करे  दू चानी।

        काटे लिमऊ फेकय छानी।

        बोलय मंतर बड़ चिल्लाये।

        कुकरी  काटे बली चढ़ाये।

फूँके  मंतर   बाँधे    डोरी।

पइसा माँगे चालिस कोरी।

बोले  भूत  भाग गे कहिके।

चेत ह आही थोरिक रहिके।

        का होगे कहि डॉक्टर आगे।

        बइगा   गठरी   बाँधे   भागे।

        बोले डॉक्टर चेकप  करके।

        गिरे  हवय  ए   टूरा   डरके।

जरत घाम मा लू के डर हे।

बइगा नइ जाने का जर हे।

दवई ला जब लइका पीही।

का होइस  तेला वो कीही।

        अस्पताल  मा लेके जावव।

        बइगा गुनिया झन देखावव।

        भूत  प्रेत  के डर देखाके।

        ले जाथे पइसा गठियाके।

भूत प्रेत अउ  जादू टोना।

हरे वहम  एखर गा होना।

बइगा तीर कभू झन जावव।

कहीं  होय डॉक्टर देखावव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

आल्हा छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 आल्हा छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


गरमी घरी मजदूर किसान


सिर मा  ललहूँ पागा बाँधे,करे  काम मजदूर किसान।

हाथ मले बैसाख जेठ हा,कोन रतन के ओखर जान।


जरे घाम आगी कस तबले,करे काम नइ माने हार।

भले  पछीना  तरतर चूँहय,तन ले बनके गंगा धार।


करिया काया कठवा कस हे,खपे खूब नइ कभू खियाय।

धन  धन  हे  वो महतारी ला,जेन  कमइया  पूत  बियाय।


धूका  गर्रा  डर  के  भागे , का  आगी  पानी  का  घाम।

जब्बर छाती रहै जोश मा,कवच करण कस हावै चाम।


का मँझनी का बिहना रतिहा,एके सुर मा बाजय काम।

नेंव   तरी   के  पथरा  जइसे, माँगे  मान  न माँगे नाम।


धरे  कुदारी  रापा  गैतीं, चले  काम  बर  सीना तान।

गढ़े महल पुल नँदिया नरवा,खेती कर उपजाये धान।


हाथ  परे  हे  फोरा  भारी,तन  मा  उबके हावय लोर।

जाँगर कभू खियाय नही जी,मारे कोनो कतको जोर।


देव  दनुज  जेखर  ले  हारे,हारे  धरती  अउ  आकास।

कमर कँसे हे करम करे बर,महिनत हावै ओखर आस।


उड़े बँरोड़ा जरे भोंभरा,भागे तब मनखे सुखियार।

तौन  बेर  मा  छाती  ताने,करे काम बूता बनिहार।


माटी  महतारी  के खातिर,खड़े पूत मजदूर किसान।

महल अटारी दुनिया दारी,सबे चीज मा फूँकय जान।


मरे रूख राई अइलाके,मरे घाम मा कतको जान।

तभो  करे माटी के सेवा,माटी  ला  महतारी मान।


जगत चले जाँगर ले जेखर,जले सेठ अउ साहूकार।

बनके  बइरी  चले पैतरा,मानिस नही तभो वो हार।


धरती मा जीवन जबतक हे,तबतक चलही ओखर नाँव।

अइसन  कमियाँ  बेटा  मनके, परे  खैरझिटिया हा पाँव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

रेलगाड़ी- कुंडलियाँ छंद

 रेलगाड़ी- कुंडलियाँ छंद


कतको गाड़ी रद्द हे, कतको मा बड़ झोल।

सफर रेल के जेल ले, का कमती हे बोल।

का कमती हे बोल, रेलवे के सुविधा मा।

देख मगज भन्नाय, पड़े यात्री दुविधा मा।

सिस्टम होगे फेल, उतरगे पागा पटको।

ढोवत हावै कोल, भटकगे मनखे कतको।


ना तो कुहरा धुंध हे, ना गर्रा ना बाढ़।

तभो ट्रेन सब लेट हे, लाहो लेवय ठाढ़।

लाहो लेवय ठाढ़, रेलवे अड़बड़ भारी।

चलत ट्रेन थम जाय, मचे बड़ मारा मारी।

टीटी छिड़के नून, कहै आ टिकट दिखा तो।

यात्री हें हलकान, होय सुनवाई ना तो।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

जू के प्रानी- लावणी छंद

 जू के प्रानी- लावणी छंद


हमर नैन के सुख बर जू मा, कैद रथे कतको प्रानी।

लइका संग सियान झुमरथे, जीव जंतु के सुन बानी।।


चिरई चिरगुन चिंवचिंव चहकै, फुसकारे डोमी अजगर।

भँठेलिया भलुवा बनभैसा, इमू नेवला आय नजर।

नाचे फैला पाँख मँयूरा, करय बेंदरा मनमानी।

हमर नैन के सुख बर जू मा, कैद रथे कतको प्रानी।


हाथी घोड़ा हैना मिरगा, नील गाय चीतल सांभर।

बघवा बिज्जू बारह सिंगा, बनबिलवा गिलहरी मगर।।

मछरी मेढक बतख कोकड़ा, इतराथे पाके पानी।

हमर नैन के सुख बर जू मा, कैद रथे कतको प्रानी।


पांडा गैंडा गोह गोरिल्ला, जेब्रा जगुआर छछूंदर।

कंगारू जिराफ तेंदुवा, शाही चीता शेर सुअर।

लामा उद दरियाई घोड़ा, जू ला माने छत छानी।

हमर नैन के सुख बर जू मा, कैद रथे कतको प्रानी।


अपन देश दुनिया ले दुरिहा, रहिके जिनगी नित काटे।

अपन दुःख ला जाने उहि हा, काखर तीरन जा बाँटे।।

पिंजरा भीतर मर खप जाथे, जंगल के राजा रानी।

हमर नैन के सुख बर जू मा, कैद रथे कतको प्रानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

हाल खेती भुइयाँ के- सरसी छंद

 हाल खेती भुइयाँ के- सरसी छंद


भुइयाँ के रखवार सिरागे, बढ़गे देख दलाल।

शहर लगे ना गाँव लगत हे, फइले हावै जाल।।


कुटका कुटका कर भुइयाँ ला, बना बना के प्लाट।

बेंचत हावै वैपारी मन, नदी ताल तक पाट।।

धान गहूँ तज समय फसल बो, नाचै दे दे ताल।

भुइयाँ के रखवार सिरागे, बढ़गे देख दलाल।।


माटी हा महतारी जइसे, उपजाये धन सोन।

आफत आगे ओखर ऊपर,जतन करै अब कोन।।

धमकी चमकी अउ पइसा मा, होय किसान हलाल।

भुइयाँ के रखवार सिरागे, बढ़गे देख दलाल।।


बड़े बड़े बिल्डर बइठे हें, भुइयाँ मा लिख नाम।

गला घोंट खेती भुइयाँ के, करत हवै नीलाम।।

अइसन मा मुश्किल हो जाही, कल बर रोटी दाल।

भुइयाँ के रखवार सिरागे, बढ़गे देख दलाल।।


इंच इंच मा बनगे बासा, नइ बाँचिस दैहान।

जीव जंतु के मरना होगे, देवै कोन धियान।।

तार रुधांगे भू कब्जागे, बचिस पात ना डाल।

भुइयाँ के रखवार सिरागे, बढ़गे देख दलाल।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

रेलगाड़ी(रूपमाला)

 रेलगाड़ी(रूपमाला)


रेलगाड़ी    रेलगाड़ी   रेलगाड़ी   रेल।

नित सवारी के लहू पीये समझ के तेल।

टेम  म  आये  नही न टेम मा पहुँचाय।

दू मिनट लाँघे डहर घंटो खड़े रहि जाय।


कोट करिया ओढ़ के कइथे टिकिट देखाव।

वो सवारी के भला कइसे ग देखय घाव।

हे ठसाठस भीड़ तभ्भो ले चढ़े सब पेल।

रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेल---------।


रेल के रद्दा ल जोहव रोज माछी मार।

अउ कहूँ जब लेट होबे होय तब वो पार।

माल गाड़ी मार सीटी सँग हवा बतियाय।

नाम के गाड़ी सवारी रोज के रोवाय।


झन करव एखर भरोसा थाम बूता काम।

का ठिकाना रेल के होही सुबे ले शाम।

जोर जे जग लेगथे जादा जनावै जेल।

रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेल-------।


कोहरा का घाम पानी होय सब दिन लेट।

अउ नवा ला काय करबों काय मेट्रो जेट।

रेलवे तरसाय तेमा चोर अउ चंडाल।

हाल हे बेहाल भारी काल मा अउ काल।


यातरी के यातना ला देखही अब कोन।

काखरो बेरा गँवाये काखरो धन सोन।

कब समे मा दौड़ही आवय समझ ना खेल।

रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेल-----------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

मन अरझगे तरिया के कमल फूल मा-सार छंद

 मन अरझगे तरिया के कमल फूल मा-सार छंद


एक फूल ले दुसर फूल मा, मन बइठे जा जाके।

फँसा डरे हे अपन जाल मा, कमल फूल तरिया के।।


तरिया भीतर फूल पान हा, चौंक पुरे कस लागे।

दुर्योधन कस अहमी मन हा, धोखा खात झपागे।।

हँसे पार अउ पानी खिलखिल, मन दुबके सकुचाके।

फँसा डरे हे अपन जाल मा, कमल फूल तरिया के।।


पात पीस के पिये कभू ता, कभू पोखरा खाये।

कभू ढेंस गुण सुन चुन राँधे, कभू फूल लहराये।।

पाँव परे माता लक्ष्मी के, पग मा कमल चढ़ाके।

फँसा डरे हे अपन जाल मा, कमल फूल तरिया के।।


डर देखा नहवइया मन ला, तरिया ले खेदारे।

कहे पोगरी मोर फूल ए, भौंरा तितली हारे।।

सुरुज देख के सँग सँग जागे, सोये सँग संझा के।

फँसा डरे हे अपन जाल मा, कमल फूल तरिया के।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गर्मी छुट्टी(रोला छंद)

 """"""""गर्मी छुट्टी(रोला छंद)


बन्द हवे इस्कूल,जुरे सब लइका मन जी।

बाढ़य कतको घाम,तभो घूमै बनबन जी।

मजा उड़ावै घूम,खार बखरी अउ बारी।

खेले  खाये खूब,पटे  सबके  बड़ तारी।


किंजरे धरके खाँध,सबो साथी अउ संगी।

लगे जेठ  बइसाख,मजा  लेवय  सतरंगी।

पासा  कभू  ढुलाय,कभू  राजा अउ रानी।

मिलके खेले खेल,कहे मधुरस कस बानी।


लउठी  पथरा  फेक,गिरावै  अमली मिलके।

अमरे आमा जाम,अँकोसी मा कमचिल के।

धरके डॅगनी हाथ,चढ़े सब बिरवा मा जी।

कोसा लासा हेर ,खाय  रँग रँग के खाजी।


घूमय खारे  खार,नहावय  नँदिया  नरवा।

तँउरे ताल मतंग,जरे जब जब जी तरवा।

आमाअमली तोड़,खाय जी नून मिलाके।

लाटा खूब बनाय,कुचर अमली ला पाके।


खेले खाय मतंग,भोंभरा  मा गरमी के।

तेंदू कोवा चार,लिमउवा फर दरमी के।

खाय कलिंदर लाल,खाय बड़ ककड़ी खीरा।

तोड़  खाय  खरबूज,भगाये   तन   के  पीरा।


पेड़ तरी मा लोर,करे सब हँसी ठिठोली।

धरे  फर  ला  जेब,भरे बोरा अउ झोली।

अमली आमा देख,होय खुश घर मा सबझन।

कहे  करे बड़ घाम,खार  मा  जाहू  अबझन।


दाइ ददा समझाय,तभो कोनो नइ माने।

किंजरे  घामे घामे,खेल  भाये  ना आने।

धरे गोंदली जेब,जेठ ला बिजरावय जी।

बर पीपर के छाँव,गाँव गर्मी भावय जी।


झट बुलके दिन रात,पता कोई ना पावै।

गर्मी छुट्टी आय,सबो  मिल मजा उड़ावै।

बाढ़े मया पिरीत,खाय अउ खेले मा जी।

तन मन होवै पोठ,घाम  ला झेले मा जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

सार छंद(गीत)-भाजी साग खवादे

 सार छंद(गीत)-भाजी साग खवादे


रोज रोज के भाँटा आलू,लगगे अब बिट्टासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।


चना चनौरी चेंच चरोटा,चौलाई चुनचुनिया।

मुसकेनी मेथी अउ मुनगा,मुरई मास्टर लुनिया।

कुरमा कांदा कुसमी कुल्थी,कोचाई करमत्ता।

गुमी लाखड़ी गोभी बर्रे,बरबट्टी के पत्ता।

प्याज अमारी पटवा पालक,सरसो के मैं दासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


रोपा गुड़रू मखना झुरगा,कजरा कुसुम करेला।

पोई अउ बोहार जरी के,हरौं बही मैं चेला।।

उरिद लाल चिरचिरा खोटनी,कोइलार तिनपनिया।

भथुवा पहुना लहसुनवा खा, चलहूँ छाती तनिया।

भूँज बघार बनाबे बढ़िया,अड़बड़ लगे ललासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


खेत खार बारी बखरी ले,झट लाबों चल टोरी।

खनिज लवण अउ रथे विटामिन,दुरिहाथे कमजोरी।

तेल बाँचही नून बाँचही,समय घलो बच जाही।

भाजी पाला ला खाये ले,तन मा ताकत आही।

भाजी कड़ही बरी खोइला,खाथे कोसल वासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

जेठ महीना- सार छंद

 जेठ महीना- सार छंद


जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।

धनबोहर मा फूल फुले हे, टपकै आमा गरती।।


लाली फुलवा गुलमोहर के, गावत हावै गाना।

नवा पहिर के हरियर लुगरा, बिरवा मारे ताना।।

छल बल धर गरमाये मनखे, निकलै बेरा ढरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।।


निमुवा अमवा बर पीपर हा, जुड़ जुड़ छँइहा बाँटै।

तरिया नदिया कुँवा सुखावै, हवा बँवंडर आँटै।।

होय फूल फर कतको झरती, ता कतको के फरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।


जीव जंतु सब लहकै भारी, पानी तीरन लोरे।

भाजी पाला अब्बड़ निकलै, मोहे बासी बोरे।।

पेड़ प्रकृति हा जिनगी आये, सुख दुख देय सँघरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत-झन छोड़ मया ला।

 खैरझिटिया: गीत-झन छोड़ मया ला।


झन छोड़ मया ला।

झन छोड़ मया ला।।

हाय मोर मया ला।

हाय मोर मया ला।।

जान के तैंहा खेल खिलौना,

झन तोड़ मया ला—----------


मया हे ता,  सांस चलत हे।

मया मा मन पंछी पलत हे।।

बिन मया के तन न मन हे,

राखे रहिबे जोड़ मया ला—------


देखेंव सपना मया ला पा के।

सरी दुनिया ले दुरिहा जाके।।

बीच मझधार मा तैंहा सजनी,

झन बोर मया ला—-----------


लड़की

जरत हवों मैं अलथी कलथी।

होगे मोर ले काये गलती।।

अंतस मा बसाके रखे हँव,

सभदिन मैं तोर मया ला—----------


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


 


नवतप्पा के घाम-सरसी छंद

 नवतप्पा के घाम-सरसी छंद


अल्थी कल्थी भूंजत हावै, नवतप्पा के घाम।

आकुल ब्याकुल जिनगी होगे, का बिहना का शाम।।


आग लगे हे घर के भीतर, बाहिर ला दे छोड़।

सोच समझ नइ पावत हे मन, उसलत नइहे गोंड़।।

चले झांझ झोला बड़ भारी, थमगे बूता काम।

अल्थी कल्थी भूंजत हावै, नवतप्पा के घाम।।


पक्का हावै ठिहा ठिकाना, पक्का गली दुवार।

सड़क साँप कस फुस्कारत हे, खाके अपने गार।।

तरिया नदिया नरवा पटगे, कटगे पेड़ तमाम।

अल्थी कल्थी भूंजत हावै, नवतप्पा के घाम।।


बदल डरे हन रूप प्रकृति के, कहिके हमन विकास।

आफत बाढ़त जावत हे अब, होय चैन सुख नास।।

पानी बिना बुझावत हावै, जीव जंतु के नाम।

अल्थी कल्थी भूंजत हावै, नवतप्पा के घाम।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी

 अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


तैं सरग ले सुघ्घर,अउ मैं नरक के द्वार।

तै ठाहिल पटपर भाँठा,मैं चिखला कोठार।

तैं उर्वर बाहरा,अउ मैं बंजर भर्री।

मोर नैन झिमिर झामर,तोर नैन कर्री।

तोर जिनगी ताजमहल कस उज्जर,

अउ मोर जिनगी, करिया जेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,

तोर अउ मोर मेल गोरी।


छप्पन भोग माढ़े हवै,तोर चारो कोती।

चाबत हौं मैं नानकुन,सुख्खा जरहा रोटी।

खीर मेवा पकवान कस,तैं करे भूख के नास।

मैं हड़िया मा लटके हौं, बने चिबरी भात।

तैं हवा संग उड़ागेस,

अउ मैं बढ़त हौं जिनगी ल ढँकेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


आगर इत्तर माहुर मोहर,सेंट के भरमार के।

चंपा चमेली मोगरा कस,महके महार महार तैं।

तन धोवा निरमल हो जाथे, वो गंगा के धार तैं।

मोर झन पूछ ठिकाना,मैं खजवइय्या तेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।


तैं कहाँ सरग के परी,उड़े अगास मा पंख लगाके।

मैं रेंगत हौं उलंड-घोलंड के,चिखला पानी मा सनाके।

संगमरमर के तैं ईमारत,तोर नाम जमाना मा छागे।

ओदरहा मोर ठौर ठिहा मा,नइ आये कोनो भगाके।

तै छाये क्रिकेट हाँकी कस,

मैं लुकाछुपउल के खेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।।


तैं कहाँ मथुरा अउ काँसी, मैं हरौं फाँसी के दासी।

तिहीं खींचे अपन करम के रेखा,मोर हवै बिगड़हा राशि।

चंपा चमेली कमल कुमुदिनी,गोंदा कस तैं गमके।

इती उती उड़ात हौं, मैं फूल बने बेसरम के।

तै कम्प्यूटर के सीपीयू,मैं सस्तहा सेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


तैं कहाँ पिंकी अउ रिंकी,मैं बुधारू मंगलू।

तैं जनम के मालामाल,मैं जनमजात कंगलू।

मैं हँसिया अउ तुतारी,तैं कहाँ बारूद के गोला।

नवा डिजाइन के बैग तैं, अउ मैं चिरहा झोला।

मैं मरहा मेचका,अउ तैं मछरी व्हेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


एक जमाना म अइसनो कविता लिखाय हे,,

मनखे मन के करनी के फल- सार छंद

 मनखे मन के करनी के फल- सार छंद


छोट बड़े सब जीव जंतु बर, बेरा हे मरनी के।

फल ला भोगत हावय फोकट, मनखें के करनी के।।


चिरई चिरगुन मरे घाम मा, नइहे पेड़उ पानी।

लहकत हावय बानर भालू, हलाकान जिनगानी।

बोहय बन विकास के गंगा, धारा बैतरनी के।

छोट बड़े सब जीव जंतु बर, बेरा हे मरनी के।।


धरती दाई के छाती मा, छड़ सीमेन्ट छभागे।

माटी के सेउक मन मरगे, उद्योगी हरियागे।।

इंच इंच ला चाँट खात हें, चटनी कस बरनी के।

छोट बड़े सब जीव जंतु बर, बेरा हे मरनी के।।


आज जनम धर काली मरगे, जीव जंतु मन कतको।

कोनो जुग मा नइ देखें हन, निरदई मनखें अतको।।

स्वारथ बर सरलग माते हे, लूट पाट धरनी के।

छोट बड़े सब जीव जंतु बर, बेरा हे मरनी के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

छींद-जयकारी छंद

 विश्व पर्यावरण दिवस मा


छींद-जयकारी छंद


कमती कहाँ खजूर ले, हमर गांव के छींद।

गर्मी के फर ये हरे, खाके भाँजव नींद।।


गुण ला सुन उड़ जाही नींद। एक पेड़ जेला कहिथे छींद।।

छींद पेड़ के गुण अउ राज। मोर कलम बरनत हे आज।।


जागे अउ बाढ़े बिन बोय। पात फोंक काँटा कस होय।।

इही गांव के हरे खजूर। खाये हँस किसान मजदूर।।


नरिया नरवा नदी कछार। खेत खार सँग मेड़उ पार।।

रथे छींद के झुँझकुर झाड़। सहत घाम पानी अउ जाड़।।


एक तना मा बाढ़े सोझ। कई मुरख मन माने बोझ।।

काटे कहि नइ आये काम। जाने तेमन पाये दाम।।


चटई बहरी शादी मौर। बिना छींद नइ हाँसे ठौर।।

माटी घर के बन रखवार। रोके बरसा घरी झिपार।।


आय पँदोली दै के काम। एखर कुँदरा दै आराम।।

गाड़ा के टट्टा बन जाय। पहिर बबा कलगी मुस्काय।।


चलत फिरत उद्योग कुटीर। छाये रहे छींद सब तीर।।

छींद रसा तक बड़ मन भाय। गुड़ अउ शक्कर घलो मिठाय।।


छींद गबौती जौने खाय। खेवन खेवन खाय ललाय।।

पाके फर के नही जवाब। खाये ते बन जाय नवाब।।


बैरी काँटा देख डराय। ठिहा छींद मा बया बनाय।।

खग के करलव जिया लुभाय। छतरी जइसन छींद सुहाय।।


पूरा के पानी ला सोख। सींचे धरती दाई कोख।

वाटर लेबल घलो बढ़ाय। नाइट्रोजन जर हा गठियाय।।


बाँध रखे माटी के कोर। जर जइसे रेशम के डोर।।

माटी ला उपजाउ बनाय। सखा किसनहा के ये आय।।


पाना बाजे चटचट खूब। खेले लइका मन हा डूब।।

खेलत बनथे छींद डँगाल। उल्हवा पाना लगे कमाल।।


सुक्खा लकड़ी पाना डार। बने पठउँहा पाठ मियार।।

बनथे सजावटी सामान। मनुष आज के हें अंजान।।


हवा दवा फर लकड़ी देय। खड़े खड़े पर जिनगी सेय।।

धरे काठ मा झटकुन आग। पानी घलो बिगाड़ै राग।।


छिंदवाड़ा छिंदई कस गांव। धरे छींद के कारण नांव।।

पारा मोहल्ला बन खार। छींद नाम ले परे गुहार।।


छिंदी कांदा फर जर पान। देय जीव ला जीवनदान।।

नित डँट पर्यावरण बचाय। दूत प्रकृति के छींद आय।।


सबके अलग महत्त्व हें, होय कइसनों पेड़।।

छींद लगावव जान गुण, रिता रहे झन मेड़।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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जंगल बचाओ-सरसी छन्द


पेड़ लगावव पेड़ लगावव, रटत रथव दिन रात।

जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।


हवा दवा फर फूल सिराही, मरही शेर सियार।

हाथी भलवा चिरई चिरगुन, सबके होही हार।

खुद के खाय कसम ला काबर, भुला जथव लघिनात।

जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।


जंगल हे तब जुड़े हवय ये, धरती अउ आगास।

जल जंगल हे तब तक हावै,ये जिनगी के आस।

आवय नइ का लाज थोरको, पर्यावरण मतात।

जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।


सड़क खदान शहर के खातिर, बन होगे नीलाम।

उद्योगी बैपारी फुदकय, तड़पय मनखे आम।

लानत हे लानत हव घर मा, आफत ला परघात।

जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


न उजाड़ो

न उजाड़ो,धरती के धन को|

मिलजुल; बढ़ाओ वन को|न उजाड़ो..


बाग-बगीचे,फूल-पौधे,

लुभाते है,सबके मन को ||न उजाड़ो...


जीवन को खुशहाल बनाती,

निरोग रखते है तन को |न उजाड़ो....


तपती धूप में छाँव देती,

लाते हैं, वन घन को|न उजाड़ो..........


रक्षा का स्वयं सौगंध लें,

समझाओ सभी जन को|न उजाड़ो........


पेड़ लगाकर पुण्य कमाओ,

धन्य करो ,जीवन को|न उजाड़ो.......,..


      जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

                बालको कोरबा

 विश्व परियावरण दिवस की ढेरो बधाई💐💐💐💐💐

चोपाई छंद-बेसरम चालीसा

 चोपाई छंद-बेसरम चालीसा


*उगथे पउधा बेसरम, तरिया डबरी तीर।*

*गुण ला मैं बतलात हौं, सुनले धरके धीर।*


बँगला पान बरोबर पाना। हाल हवा मा गावै गाना।

हाँसे मुचमुच फूल गुलाबी। ठाटबाट ले लगे नवाबी।


इही बेसरम थेथर आये। कहूँ मेर गुलबसी कहाये। 

नाम बेहया मनुष न भाये। कौने एखर बाग बनाये


अपने दम ये जागे बाढ़े। सब मौसम मा रहिथे ठाढ़े।

एखर नाम मा हावै गारी। हमर राज मा अड़बड़ भारी।


खेत खार डबरी अउ परिया। एखर घर ए नरवा तरिया।

होथे झुँझकुर एखर झाड़ी। ठाढ़े रहिथे आड़ा आड़ी।।


ये गरीब के बाँस कहाये। एखर थेभा समय पहाये।

गाँथ बाँध के आड़ा आड़ी। रूँधय घर बन खेती बाड़ी।


पाठ पठउहाँ पीटे भदरी। बना खोंधरा भैया बदरी।

टट्टा राचर रुँधना बनथे। जाने ते एखर गुण गनथे।


भँवरा जइसे होय गोल फर। लइका मन खेले येला धर।

एखर लउठी गजब काम के। बरे चूल मा सुबे शाम के।


जइसे उपयोगी ए घर मा। तइसे फोड़ा फुंसी जर मा।

एखर पान भगाये पीरा। पीस लगाये मरथे कीरा।


दाद खाज खजरी बीमारी। मिटे दूध मा एक्केदारी।

सावचेत जे करे मुखारी। भागे पायरिया बीमारी।


पाना हरियर पिंवरा भुरवा। खा खाके मोटावै घुरवा।

पात बने खातू सड़गल के। पइधे कीरा मरे फसल के।


*सुख्खा पान सँकेल के,देय कहूँ यदि बार*

*माछी मच्छर भागथे, गुँगुवा  ले झट हार*


चाबे बिच्छी बड़ अगियाये। पान बेसरम जलन मिटाये।

धीरे धीरे हरे जहर जर। पत्ता पीस लगाले एखर।


उबके हे तन मा कसटूटी। तभो काम आवै ये बूटी।

दूध चुँहाये मा झट माड़े। घावे गोंदर पपड़ी छाड़े।


सरसो तेल मिलाके पाना। लेप लगाके सुजन भगाना।

लासा असन दूध हा चटके। आँख कान कोती झन छटके।


दाँत रोग मा झर्रा कीरा। वातरोग मा दुरिहा पीरा।

दूध फूल फर लकड़ी पाना। दरद दुख्ख दुरिहाये नाना।


सुघर एखरो फोटू आथे। कुकुर कोलिहा इँहे लुकाथे।

एक जरी ले होय हजारो। मिले नही अब जादा आरो।


भले बेसरम नाम कहाये। तभो काम येहर बड़ आये।

खाय बेसरम एक बेसरम।आय होश अउ आँख बरे झम।


काम नीच हे जे मनखे के। वोला कोसे गारी देके।

लाज शरम ला जौन भुलाये। उही बेसरम मनुष कहाये।


काम बेसरम आवै कतको। फेर मनुष मन करे न अतको।

बिरथा हावै तब ये गारी। कहाँ मनुष मा हे खुददारी।।


पउधा मरे बढ़े मनखे मन। हवै बेसरम जइसे ते मन।

इती उती उपजत हे भारी। करत हवै नित कारज कारी।


कहे बेसरम मनखे मन ला। झन गरियावौ मोरे तन ला।

अपन पटन्तर देथव मोला। हवै मोर जइसे का चोला।


*मनुष बेसरम होय ता, कहाँ काम कुछु आय।*

*रहै बेसरम गुण धरे, लिख जीतेन्द्र लजाय।*


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

अगोरा असाड़ के हे

 अगोरा असाड़ के हे


बइला मेछरात हे, असकटात हे नाँगर ।

खेती-किसानी बर, ललचात हे  जाँगर।

कॉटा-खूटी  बिनागे  हे।

तन मन मा उमंग समा गेहे।

बँधा गेहे मुही ,जेन मेड़-पार के हे।

अब तो अगोरा,असाड़ के हे।


बिजहा लुकलुकात हे, कोठी ले खेत  जाय बर।

मन करत हे मेड़ म, चटनी बासी-पेज खाय बर।

खेत कोती मेला लगही अब।

बन दूबी कांदी जगही अब।

पीये बर पानी पपीहा कस भुइयाँ,

खड़े मुहँ फार के हे |

अब तो अगोरा असाड़ के हे|


झँउहा-टुकनी,रापा-कुदारी।

अगोरत हे अपन अपन पारी ।

बड़का बाबू सधाये हे धान जोरे बर।

नान्हे नोनी सुर्रह्त हे टोकान कोड़े बर।

तियार हे खेले बर खेती के जुआ,

जे किसान पऊर सब चीज हार गेहे।

अब तो अगोरा असाड़ं के हे।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

सब बण्ठाधार होगे हे

 सब बण्ठाधार होगे हे


दहीं के जघा कपसा माढ़े हे।

देवता के जघा रक्सा ठाढ़े हे।

दवा अउ दुवा थोरको भी, काम नइ आत हे।

जरूरतमंद के राशनकार्ड म, नाम नइ आत हे।

मिर्चा मिट्ठा होगे, नून जमकरहा झार होगे हे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


मार मा झरगेहे, ढोलक तबला के खरवन।

ददा दाई ला तपत हे, आज के सरवन।

नाम के नदियाँ हे, जिहाँ पानी के नाम नही।

कोड़िहा मन काटे फर्जी,कमैया बर काम नही।

घर मा बारी बखरी दबगे, बंजर खेत खार होगे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


मनखे दवा ल मजबूरी मा,अउ दारू ल हाँस के पीयत हे।

कोई जीये बर खात हे, ता कतको खाय बर जीयत हे।

शहर के सताये सर्व सुविधा गाँव खोजत हे।

गाँव के लफरहा, पिज़्ज़ा बर्गर बोजत हे।

हँसिया बसुला भोथरागे,मनखे मन कटार होगे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


भँइसा के भाग म, स्विमिंग पूल हे।

तितली भौरा मरे,माछी बर फूल हे।

बेंदरा बइठे हे, परवा छानी मा।

झगरा फदके हे, जेठानी देरानी मा।

करधन ककनी ले वजनी, ढार होगे हे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


खजाना वाले, चिख चिख के खात हे।

भुखाय मनखे चीख चीख चिल्लात हे।

बूता के मारे कखरो,माँस नइहे।

ता कखरो तन मा, अमात नइहे।

निच्चट सरहा, नत्ता रिस्ता के तार होगे हे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


राजा घोड़ा छोड़, गदहा चढ़त हे।

सत स्वाहा होवत हे,बुराई बढ़त हे।

एक दूसर के ला खात हे, ता एक ला दूसर खवात हे।

बने मनखे बीच के,घानी के बइला कस पेरात हे।

बिन लड़े भिड़े, सिपइहा के हार होगे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


मनखे आन लाइन गुलाम होगे।

मोबाइल धरे सुबे ले शाम होगे।।

भीड़ घलो गोठियात नइहे।

नता गोत्ता सुहात नइहे।

रमजत हे घेरी बेरी आँखी अउ बाटा ला।

बुता  सब माड़े हे उरकात हे डाटा ला।

लाइक कमेंट चाहे ते साहित्यकार होगे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत-जोरा खेती किसानी के

 गीत-जोरा खेती किसानी के


जोरा करले ग, खेती किसानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


झँउहा बिसाले नवा, नवा टुकनी चरिहा।

पजवा ले नाँगर के, लोहा ल नँघारिया।

हला डोला देख, जुड़ा डाँड़ी अउ नाँगर।

अब तो खपायेल लगही, दिन रात जाँगर।

फुरसत हो जा ग,छा खपरा छानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


घण्टी कानी नाथ नवा,बैला ल पहिराले।

नाहना जोंता काँसरा, केंनवरी बनाले।

जतन के रख रापा टँगिया, हँसिया कुदारी।

साग भाजी बर घलो, चतवार ले झट बारी।

खातू माटी ल,चाल धरती रानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


लमती टेंड़गी टपरी अउ, बाहरा हे बोना।

मासुरी महामाया कल्चर, सफरी अउ सरोना।

हरहुना अउ माई, सबो धान अलगाले।

लकड़ी छेना पैरा भूंसा, कोठा म भितराले।

भँदई चामटी म, तेल चुपर घानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


मोरा कमरा खुमरी अउ, छत्ता तिरियाले।

तुतारी बनाले, चामटी इरता लगाले।

बाँध बने मुही पार, गाँसा पखार।

कांद काँटा छोल छाल, डोली चतवार।

गा कर्मा ददरिया, हमर बानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

खुमान जी ल काव्यांजलि (चौपई छंद)

 खुमान जी ल काव्यांजलि (चौपई छंद)


धान कटोरा के दुबराज,करबे तैंहर सब जुग राज।

सुसकत हावय सरी समाज,सुरता तोर लमा महराज।1।


चंदैनी गोदा मुरझाय,संगी साथी मुड़ी ठठाय।

तोर बिना सुन्ना संगीत,लेवस तैं सबके मन जीत।2।


हारमोनियम धरके हाथ,तबला ढोलक बेंजो साथ।

बाँटस मया दया सत मीत,गावस बने सजा के गीत।3।


तोर दिये जम्मो संगीत,हमर राज के बनके रीत।

सुने बिना नइ जिया अघाय,हाय साव तैं कहाँ लुकाय।4।


झुलथस नजर नजर मा मोर,काल बिगाड़े का कुछु तोर।

तोर कभू नइ नाम मिटाय,जिया भीतरी रही लिखाय।5।


तोर पार ला पावै कोन,तैंहर पारस अउ तैं सोन।

मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर,देय धरा मा अमरित घोर।6।


तोर उपर हम सबला नाज,शासन ले हे बड़े समाज।

माटी गोंटी मुरुख सकेल,खेलत हें देखावा खेल।7।


छत्तीसगढ़ के तैं हर शान, सबझन कहे खुमान खुमान।

धन धन धरा ठेकवा धाम, गूँजय गीत सुबे अउ शाम।8।


सबके अन्तस् मा दे घाव,बसे सरग मा दुलरू साव।

सच्चा छत्तीसगढ़िया पूत,शारद मैया के तैं दूत।9।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटी, राजनांदगांव(छग)

9981441795

मानसून

 मान अउ सुन रे मानसून-झट आ


""""""""मानसून""""""""


तैं  आबे  त बनही,मोर बात मानसून।

मया करथों मैं तोला,रे घात मानसून।


का पैरा भूँसा अउ,का छेना लकड़ी।

सबो  चीज धरागे, रीता होगे बखरी।

झिपारी  बँधागे अउ, देवागे पलाँदी।

चातर होगे डोली, नइहे काँद काँदी।

तोर नाम रटत रहिथों,दिन रात मानसून।

तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून----।


तावा कस तीपे हे,धरती के कोरा।

फुतका उड़त हे, चलत हे बँरोड़ा।

चितियाय पड़े हे,जीव जंतु बिरवा।

कुँवा  तरिया रोये,पानी  हे निरवा।

बड़ पियास मरत हे,डारपात मानसून।

तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून।


झउँहा  म  जोरागेहे ,रापा कुदारी।

बीज भात घलो,जोहे अपन बारी।

नाँगर के नास नवा,नवा जोंता डाँड़ी।

तोरे  अगोरा  म , धड़के  बड़  नाड़ी।

लोग लइका मन जोहे,तोर बाट मानसून।

तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून......।


छत्ता  मैनकप्पड़ खुमरी बरसाती।

खड़े हे मुहाटी म,धरके मोर नाती।

फाँफा फुरफुन्दी ल,झटकुन उड़ादे।

झिंगुरा  बिंधोल  के  , गीत  सुनादे।

देखा  मँजूरा  ल,नाचत गात मानसून।

तैं  आबे  त बनही,मोर बात मानसून।


धरती के कोरा ल,हरियर करदे।

पानी बरसा झट खुसी तैं भरदे।

थेभा  म  तोरे हे, मोरे जिनगानी।

तैं आबे त गाही,कर्मा मोर बानी।

खाहूँ खेत  म बासी अउ भात मानसून।

झन तरसा तैं आजा लघिनात मानसून।

तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून....।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


Happy birth day gyanu sir

चिरई जाम- चौपाई छंद

 चिरई जाम- चौपाई छंद


हरे ब्लैकबेरी इही ,जामुन चिरई जाम।

मुँह मा पानी आ जथे, सुनके एखर नाम।।


दिखे पके मा कारी कारी। चिरई जाम मिठाथे भारी।।

डार पात फर सब गुणकारी। आज करत हँव एखर चारी।।


रंग रूप एखर मन भाथे। जुड़ छइहाँ बड़ जिया लुभाथे।

पँढ़री डारा हरियर पाना। हले हवा मा गाये गाना।।


देख फरे जोत्था जोत्था फर। मन बड़ ललचाथे खाये बर।।

स्वाद खाय तउने हा जाने। टोर बिसा हर बच्छर लाने।।


हीमोग्लोबिन खूब बढ़ाथे। अल्सर कब्ज दमा दुरिहाथे।।

हिरदय बर होथे गुणकारी। हरै नयन के ये बीमारी।।


लीवर गठिया अउ दिमाग बर। बड़ उपयोगी हे एखर फर।।

पाचक होथे अड़बड़ फर हा। रखे बाँध के माटी जर हा।


बेंकिंग बर ये हे उपयोगी। चगले पात सुगर के रोगी।

पाना के रस वजन घटाथे। चमकदार बड़ चाम बनाथे।।


करे दतुन मजबूत मसूड़ा। काटे एलर्जी फर गूड़ा।

मधूमेह बर पिसके बीजा। संझा बिहना सपसप पी जा।।


मुँह के छाला छाल भगाथे। लहू घलो सफ्फा हो जाथे। 

पोषक तत्व विटामिन भारी। जामुन के ये आय चिन्हारी।।


दवा बरोबर पात बीज फर।  खाय खोज के जीव जानवर।  

बना खोंधरा पंछी गाये। देव सहीं सब आस पुराये।।


रिता पेट एखर फर खाना। मतलब पड़ सकथे पछताना।।

दूध +अचार हल्दी अउ पानी। झन खा तुरते हे नुकसानी।।


पेड़ चढ़इया बर ईशारा। रटहा होथे एखर डारा।।

गिरत साँठ फर छरिया जाथे। ठाढ़ घाम के बेरा आथे।।


तपथे घाम घरी मा भारी। पात पेड़ फर कारी कारी।।

स्वाद तभे सब ला बड़ भाथे। डँटे रथे ते नाम कमाथे।।


आजो चिरई जाम के, हावय अड़बड़ माँग।

रोप खेत घर खार मा, झन दे फोकट बाँग।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

काल कस तरिया (दोहा चौपाई)

 काल कस तरिया (दोहा चौपाई)


*तरिया के गत देख के, देथँव मुँह ला फार|*

*एक समय सबझन जिहाँ, लगर नहावै मार|*


*आज हाल बेहाल हे, लिख के काय बताँव।*

*जिवरा थरथर काँपथे, सुन तरिया के नाँव।*


कोन जनी काखर हे बद्दी। तरिया भीतर बड़ हे लद्दी।

सुते ढ़ोड़िहा लामा लामी। धँसे मोंगरी रुदवा बामी।।


तुलमुलाय बड़ मेंढक मछरी। काई मा रचगे हे पचरी।

घोंघा घोंघी जोक जमे हे। सुँतई भीतर जीव रमे हे।


कमल सिंघाड़ा जलकुंभी जड़। पानी उप्पर फइले हे बड़।

उरइ ओगला कुकरी काँदा। लामे हावै जइसे फाँदा।।


टूट गिरे हे बम्हरी डाला। पुरे मेकरा जेमा जाला।

सड़ सड़ मरगे थूहा फुड़हर। सांस आखरी लेय कई जर।


गाद ढेंस चीला हे भारी। नरम कई ता कुछ जस आरी।

जड़ उपजे हे कई किसम के। थकगे हावै पानी थमके।


घाट घठौंदा काँपत हावय। जघा केकड़ा नापत हावय।

तुलमुल तुलमुल करे तलबिया। उफले हे मंजन के डबिया।


भैंसा भैंसी तँउरे नइ अब। मनुष कमल बर दँउड़े नइ अब।

कोन पोखरा जरी निकाले। कोन फोकटे आफत पाले।।


किचकिच किचकिच करे केचुआ। पेट गपागप भरे केछुवा।

चले नाँव कस कीरा करिया। रदखद लागै अब्बड़ तरिया।


बतख कोकडा अउ बनकुकरी। दिखय काखरो नइ अब टुकड़ी।

चिरई चिरगुन डर मा काँपे। मनुष तको कोई नइ झाँके।


*दहरा हे लहरा नही, पानी हे जलरंग।*

*जड़ अउ जल के बीच मा, छिड़े हवै बड़ जंग।।*


*पानी के जस हाल हे, तस फँसगे हे पार।*

*कीरा काँटा काँद धर, पारत हे गोहार।।*


पार तको के हालत बद हे। काँटा काँद उगे रदखद हे।

खजुर केकड़ा चाँटा चाँटी। पार उपर पइधे हे खाँटी।।


बम्हरी बोइर अमली बिरवा। बेला मा ढँकगे हे निरवा।

हवै मोखला गुखरू काँटा। चारो कोती हे बन भाँटा।


सोये जागे आड़ा आड़ी। हवै बेसरम अब्बड़ भारी।

झुँझकुर छँइहा बर पीपर के। सुरुज देव तक भागे डरके।


हले हवा मा झूला बर के। फंदा जइसे सर सर सरके।

मटका पीपर मा झूलत हे। पासा जइसे फर ढूलत हे।


बिच्छी रेंगे डाढ़ा टाँगे। चाबे ते पानी नइ माँगे।।

घिरिया झींगुर उद बनबिल्ली। करे रात दिन चिल्लम चिल्ली।


बिखहर नागिन बिरवा नाँपे। देख नेवला थरथर काँपे।

हे दिंयार मन के घरघुँदिया। सरपट दौड़त हे छैबुँदिया।


घउदे हे बड़ निमवा बुचुवा। भिदभिद भिदभिद भागे मुसुवा।

फाँफा चिटरा मुड़ी हलाये। घर खुसरा घुघवा नरियाये।।


भूत प्रेत के लागे माड़ा। कुकुर कोलिहा चुँहके हाड़ा।

डर मा कतको मनुष मरे हे। कतको कइथे जीव परे हे।


देख जुड़ा जावै नस नाड़ी। पार उपर के झुँझकुर झाड़ी।

काल ताल मा डारे डेरा। नइ लगाय मनखे मन फेरा।


*मन्दिर तरिया पार के, हे खँडहर वीरान।*

*पानी बिन भोला घलो, होगे हे हलकान।*


*तरिया आना छोड़ दिस, जबले मनखे जात।*

*तबले खुशी मनात हे, जींव जंतु जर पात।।*


मनखे के नइ पाँव पड़त हे। जींव जंतु जर पेड़ बढ़त हे।

मछरी मेढक बड़ मोटावै। कछुवा पथरा तरी उँघावै।।


करे साँप हा सलमिल सलमिल। हांसे कमल बिहनिया ले खिल।

पेड़ पात घउदत हे भारी। पटय सबे के सब सँग तारी।


रंग रंग के फुलवा महके। चिरई चिरगुन चिंव चिंव चहके।

खड़े पेड़ सब मुड़ी नँवाके, गूँजै सरसर गीत हवा के।


तिरथ बरोबर राहय तरिया। नाहै जिहाँ गोरिया करिया।

बइला भैसा मनखे बूड़े। दया मया सब उप्पर घूरे।।


दार चुरे तरिया पानी मा। राहै शामिल जिनगानी मा।

करे सबो झन दतुन मुखारी। नाहै धोवै ओरी पारी।


घाम घरी दुबला हो जावै। बरसा पानी पी मोटावै।

लहरा गावै गुरतुर गाना। मछरी कस तँउरे बर पाना।


सुबे शाम डुबके लइका मन। तन सँग मन तक होवै पावन।

छोटे बड़े सबे झन नाहै। तरिया के सुख सब झन चाहै।


अब होगे घर मा बोरिंग नल। चौबिस घण्टा निकलत हे जल।

आगे हे अब नवा जमाना। नाहै घर मा दादा नाना।


हाँसय सब सुख सुविधा धरके। मनखे मन अब होगे घर के।

शहर लहुटगे गाँव जिहाँ के। हाल अइसने हवै तिहाँ के।।


*नेता मन जुरियाय हें, देख ताल के हाल।*

*तरिया ला सुघराय बर, फेकत हावै जाल।*


*जीव जंतु मरही गजब, कटही कतको पेड़।*

*हो जाही क्रांकीट के, घाट घठौदा मेड।।*


*सुंदरता जब बाढ़ही, मनखे करही राज।*

*जीव जंतु झूमत हवै,पेड़ पात सँग आज।*


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

बेल-गीतिका छंद

 बेल-गीतिका छंद


बेल खाये तेन जाने स्वाद कइसन लागथे।

संक्रमण कतको किसम के बेल खाये भागथे।।

पीत अउ कफ बढ़ जथे तेला करे कंट्रोल ये।

लू लगे मा काम आथे फर हरे अनमोल ये।।


काम के होथे सबे बर बेल के फर पात हा।

दस्त मा आराम देथे स्वस्थ रहिथे आँत हा।।

पेट किडनी अउ लिवर के रोग ला दुरिहाय ये।

छानथे तन के लहू ला ताकती बढ़हाय ये।।


पात खाली पेट खा नित तन बदन बढिया बना।

गैस स्कर्वी अनपचक बर बेल के पी ले पना।।

जेठ अउ बैसाख मा फर घाम पाके पाकथे।

बेल पाना के गजब के माँग सावन मा रथे।।


घर हरे चिटरा चिरइ बर झाड़ झुँझकुर बेल के।

पी पना तन मन बना हे स्वाद गुरतुर बेल के।।

थायरॉइड कब्ज रोगी बेल ले दुरिहा रहे।

जब गड़े काँटा सुजी कस सब ददा दाई कहे।।


आज हें अंजान लइका बेल बन के गुण पढ़ा।

शिव शिवा कहि कर सुमरनी पात भोले ला चढ़ा।।

घर डिही बन डोंगरी तरिया कुआँ के पार मा।

बेल के बिरवा लगा कोठार बारी खार मा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

मन(जयकारी छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 मन(जयकारी छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


जब तक मन मा हवै उमंग, तब तक हे जिनगी मा रंग।

मर जावै जब मन के आस, तब हो जावै जिया निरास।


हबरे तब डर जर अउ दुक्ख, भागे नींद चैन अउ भुक्ख।

मन के जब हो जावै हार, नइ भावै तब घर संसार।


करे काट नइ अमरित धार, सूखय दया मया के नार।

होय ह्रदय के धड़कन  तेज, नींद घलो नइ देवै सेज।


सच अउ झूठ परख नइ पाय, कतको गिनहा कदम उठाय।

कतको खुद हो जावय राख, कतको करे दुसर ला खाख।


टूटय जब मनके अरमान, तब गड़ जावै अंतस बान।

बोली बयना बीख समान, अंतस मन ला देवै चान।


कतको ला नइ आवै लाज, करे काज बन धोखाबाज।

धोखा खाके जी घबराय, तभो हताशा मन मा छाय।


रखना चाही जिया कठोर, मार सके झन डर दुख जोर।

करना चाही कारज नाँप, लोटे झन अंतस मा साँप।।


मिले बखाना अउ ना श्राप, यहू बिगाड़े मन के ग्राफ।

करौ कभू झन दगा अनीत, दुवा कमावव मिलही जीत।


भरे दवा मा तनके घाव, मन बर चाही बढ़िया भाव।

आशा मया दया विश्वास, लावय जीवन मा उल्लास।


तन ले जादा मन हे रोठ, तेखर करथे दुनिया गोठ।

ओखर कभू होय नइ हार, मन दरिया अउ मन पतवार।


जेखर मन मा मातम छाय, तेखर जिनगी मा हे हाय।

छोट छोट दुख मा घबराय, हो निराश बस माथ ठठाय।


तन के थेभा मन हा ताय, मन हा सुख के दीप जलाय।

मन जिनगी के आवय आस, बुझ जावै ता जिनगी नास।


अलहन के पथ हवै हजार, सुख सत के दरवाजा चार।

जिंहा होय सुख के बौछार, उँहा भिंगावौ तन मन यार।


दया मया सत राखव मीत, हार भागही होही जीत।

जीते बर जिनगी के जंग, हवै जरूरी आस उमंग।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

जिंदा राखेल लगही-गीत

 जिंदा राखेल लगही-गीत


अधमी अत्याचारी मन बर, निंदा राखेल लगही।

सत संस्कृति संस्कार ला, जिंदा राखेल लगही।।


बइरी हरहा मन ला, मनाके  रखे बर।

मनखे ला मनखे कस, बनाके के रखे बर।।

धरम करम ला बाँध नियम मा, सोच उछिंदा राखेल लगही।

सत संस्कृति संस्कार ला, जिंदा राखेल लगही।।


अवइया पीढ़ी मा, मानवता भरे बर।।

जानवर अउ मनखें मा, भेद करे बर।।

मन मा आस विश्वास राम गोविंदा राखेल लगही।

सत संस्कृति संस्कार ला, जिंदा राखेल लगही।।


नता रिस्ता अउ छोटे बड़े के, लिहाज बर।

देखावा मा चूर उड़त मनखें, रंगबाज बर।।

दंभ दुराचारी बधे बर, किष्किन्धा राखेल लगही।

सत संस्कृति संस्कार ला, जिंदा राखेल लगही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ददा

 ...............ददा.....................


घर बर 'बर' फेर बइरी  बर, बान कस ददा।

भदरी कांड़ मुड़का म, नेवान कस ददा।


बड़का बर मचान,छोटका बर ढलान,

हाड़ -मांस-गुदा  म, परान कस ददा।


उछिन्द होके सोये, सबो  घर  भरके,

त सोवत-जागत दिखे,उड़ान कस ददा।


बेटा बहू नाती पंथी ,दाई भाई सब बर,

बइठे हे डेरऊठी म , दान  कस  ददा।


मुहूँ के सुवाद बर, बाकी सब कोई,

त पेट भरे बर सबके,धान कस  ददा।


सबो  ल  पुरोथे,जांगर पेर - पेर  के,

सिरागे तभो माड़े रथे,अथान कस ददा।


कभू  नइ  बदले गुँड़ड़ी ल मुड़ी के,

बोहे रथे घर ल ,शेषनांग  कस  ददा।


कोनो हुदरे-कोचके ,कोनो देवे गारी,

तभो कर्मा-ददरिया  के,तान कस ददा।


दिखथे भले उप्पर ले,नरियर कस ठाहिल,

फेर भीतर ले हे कोंवर  पिसान  कस ददा।


हाँकत हे घर के गाड़ा ल रात दिन,

बांधे पागा मुड़ म,ईमान कस ददा।


घपटे अंधियारी,सिरागे सबके मति,

तभो बरथे जगमग,गियान  कस  ददा।


घाव  भरे   हे, जिया   म   जँऊहर,

तभो रिहिथे कलेचुप,सियान  कस  ददा।


तोर चरन पखारे,तोर गुन गाये खैरझिटिया,

तँय  ये   भुइयां   मा   ,भगवान  कस  ददा।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795


ना जाने क्या कर लेगा, कुछ खास बचाकर पापा।

आठो पहर चलता है, बस आस बचाकर पापा।।

घरवालों को खिलाता है,चना चाँट चर्पटी चौपाटी में,

खुद बिन खाये आ जाता है, पचास बचाकर पापा।।


खैरझिटिया

किसम किसम के धान(सार छंद)

 अपन खेत म ऐसो का का धान बोवत हव?


किसम किसम के धान(सार छंद)


धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।

धरती दाई के कोरा मा, धान गजब लहराही।।


हवै धान के नाम हजारो, कहौं काय मैं भाई।

देशी अउ हरहुना संकरित, मोटा पतला माई।

लाली हरियर कारी पढ़री, धान चँउर तक होथें।

सुविधा देख किसनहा मन हा, खेत खार मा बोथें।

मुंदरिया मरहन महमाया, मछलीपोठी मेहर।

मालवीय मकराम माँसुरी, कार्तिक कैमा कल्चर।

चनाचूर चिन्नउर चेपटी, छतरी चीनीशक्कर।।

बाहुबली बलवान बंगला, बाँको बिरसा बायर।

बिरनफूल बुढ़िया बइकोनी, बिसनी बरही माही।

धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।


पंत पूर्णिमा पंकज परहा, परी प्रसन्ना प्यारी।

पूर्णभोग पानीधिन पंसर, नाकपुरी नरनारी।

आईआर अर्चना झिल्ली, अजय इंदिरासोना।

समलेश्वरी सुजाता साम्भा, सागरफेन सरोना।

कालाजीरा कनक कामिनी, करियाझिनी कलिंगा।

साहीदावत सफरी सरना, सरजू सिंदुरसिंगा।।

स्वेतसुंदरी सादसरोना, सहभागी सुरमतिया।

गंगाबारू गुड़मा गोकुल, गोल्डसीड गुरमटिया।

बासमती दुबराज सुगंधा, विष्णुभोग ममहाही।

धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।


क्रांति किरण कस्तूरी केसर, नयना बुधनी काला।

कालमूंछ केरागुल कोड़ा, बरसाधानी बाला।

कंठभुलउ केकड़ा ककेरा, कदमफूल कनियाली।

कावेरी कमोद कर्पूरी, कामेश कुकुरझाली

रामकली राजेंद्रा रासी, राधा रतना रीता।

सहयाद्री सन सोनाकाठी, सोनम सरला सीता।

जसवाँ जीराफूल जोंधरा, जगन्नाथ जयगुंडी।

जया जयंती जयश्री जीरा, लौंगफूल लोहुंडी।

सत्यकृष्ण साठिया शताब्दी , बादशाह अन साही।

धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।


पूसा पायोनियर नन्दिनी, नाजिर नुआ नगेसर।

गटवन गर्राकाट गायत्री, खैरा रानीकाजर।

रतनभाँवरा राजेलक्ष्मी, आदनछिल्पा रामा।

तिलकस्तूरी तुलसीमँजरी, जवाँफूल सतभामा।

गाँजागुड़ा नवीन नँदौरी, काली कुबरीमोहर।

दन्तेश्वरी दँवर डॅक दुर्गा, दांगी खैरा नोहर।

हहरपदुम हंसा सन बोरो, हरदीगाभा ठुमकी।

लुचई भुसवाकोट भेजरी, लूनासंपद झुमकी।

कलम फाल्गुनी फूलपाकरी, इलायची मन भाही।

धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

हम नही

 हम नही


रिस्तें बिगड़ने का, किसी को कोई गम नही।

आज सबको सिर्फ पैसा चाहिये, हमदम नही।।


खंजर से खुदे जख्म भी भर जाते हैं मरहम से।

जुबां से बढ़कर जमाने में, बारूद बम नही।।


खुद को राजा समझ रहें हैं, रील वालें।

रीयल में उनमें, जरा सा भी दम नही।।


एकता अखंडता भाई चारा, दिखावा है।

जहर जाति धर्म का, हो रहा है कम नही।


पता नही, ये पैमाना है या मौका परस्ती,

देश संविधान से चलेगा, पर हम नही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

देखे हँव

 देखे हँव


बद  ले  बदतर  हाल   देखे   हँव।

काट के करत देखभाल देखे हँव।


शेर भालू  हाथी  डरके  भागे  बन ले,

गदहा ल ओढ़े बघवा खाल देखे हँव।


काखर जिया म जघा हे पर बर बता,

अपन  मन ल फेकत जाल देखे हँव।


जीयत  जीव  जंतु जरगे  मरगे सरगे,

बूत बैनर टुटे फुटे म बवाल देखे हँव।


सेवा  सत्कार  करे  म  मरे सब सरम,

चाटुकारिता म  कदम ताल देखे हँव।


काखर उप्पर  करके भरोसा चलन,

चारो मुड़ा म पइधे दलाल देखे हँव।


भाजी पाला ले गे गुजरे कुकरी मछरी,

मनखे घलो ल होवत हलाल देखे हँव।


कोन भला बच पाही ए जुग म,

पगपग म बइठे काल देखे हँव।


जात-पात ऊँच-नीच तोर-मोर के खातिर,

मनखे मनखे के आँखी ल लाल देखे हँव।


गियानी के  जम्मो  गियान उरकगे,

अड़हा के मुख म सवाल देखे हँव।


जाँगर   वाले   ल   जरत   बरत   मरत,

बैठागुंर मन ला ल माला माल देखे हँव।


"खैरझिटिया" के  खरागे जम्मो धीरज,

मया पीरा म घलो झोलझाल देखे हँव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795

बाजार बनत शिक्षा-कुंडलियां छंद

 बाजार बनत शिक्षा-कुंडलियां छंद


शासन अउ सरकार हा, काबर हे मिटकात।

पेपर लिक हो जात हे, हरे सरम के बात।

हरे शरम के बात, सबे भारत वासी बर।

एक खरीदे पोस्ट, एक तरसे बासी बर।।

इसन करे बर काम, लगा जे बइठे आसन।

उंखर धनबल रौब, सदा बर छीने शासन।।


भाजी पाला के असन, शिक्षा के बाजार।

बाढ़त हावै अब अबड़, कउने जिम्मेदार।।

कउने जिम्मेदार, इसन घटिया कारज बर।

कतको हें अघुवाय, पहुँच पइसा अउ पद धर।।

पढ़े लिखे नित एक, लगाके सब कुछ बाजी।

बेचें तिगड़म बाज, समझ शिक्षा ला भाजी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


दो हप्ते में नीट अब नेट पेपर घोटाला

योग(दोहा)

 योग(दोहा)


महिमा  भारी योग के,करे  रोग जर दूर।

जेहर थोरिक ध्यान दै,नफा पाय भरपूर।


थोरिक समय निकाल के,बइठव आँखी मूंद।

योग  ध्यान तन बर हवे,सँच मा अमरित बूंद।


योग  हरे  सत साधना,साधे ते फल पाय।

कतको दरद विकार ला,तन ले दूर भगाय।


बइठव  पलथी मार के,लेवव छोंड़व स्वॉस।

राखव मन ला बाँध के,नवा जगावव आस।


सबले बड़े मसीन तन,नितदिन करलव योग।

तन  ले   दुरिहा  भागही,बड़े  बड़े  जर  रोग।


योगा करलव रोज के, सुख के ये संजोग।

तन मन ला करथे बने, योग भगाथे रोग।


आही जीवन मा खुशी, तन के रखव खियाल।

कसरत बिन काया कभू, रहे नही खुशहाल।।


योग भगाथे रोग ला, देथे खुशी अपार।

रोजे समय निकाल के, योग करव दू बार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के सादर बधाई।।।

सन्त कवि सतगुरु कबीरदास जी महराज अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया

 सतगुरु कबीर साहेब प्राकट्य दिवस के बहुत बहुत बधाई---


सन्त कवि सतगुरु कबीरदास जी महराज अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया


                   संत कवि सतगुरु कबीर दास जी महाराज के नाम जइसे ही हमर मुखारबिंद म आथे, त ओखर जीवन-दर्शन, साखी-शबद अउ जम्मों सीख सिखौना नजर आघू झूल जथे। *वइसे तो कबीरदास जी के अवतरण हमर राज ले बाहिर होय रिहिस, तभो ले, सन्त कवि कबीर दास जी अउ ओखर शिक्षा दीक्षा हमर छत्तीसगढ़ म अइसे रचबस गिस, जेला देखत सुनत कभू नइ लगिस कि कबीरदास जी आन राज के सिध्द संत रिहिन।* सतगुरु कबीर दास जी के नाम छत्तीसगढ़ भर म रोज सुबे शाम गूँजत रहिथे। इहाँ के बड़खा आबादी कबीरपंथी हें, जेला कबीरहा घलो कहिथें,येमा कोनो जाति विशेष नही, बल्कि सबे जाति धरम के मनखे मन कबीर साहब के पंथ ल स्वीकारे हें। छत्तीसगढ़ ल कबीरमय करे म कबीर दास जी के पट चेला धनी धरम दास(जुड़ावन साहू) जी के बड़खा योगदान हे। सुने म मिलथे कि , एक बेर कबीरदास जी नानक देव संग पंथ के प्रचार प्रसार बर छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा म अपन पावन पग ल मढ़ाये रहिन हे, उही समय ,जुड़ावन साहू जी कबीरदास जी ले अतका प्रभावित होइस कि अपन जम्मों धन दौलत ल कबीरदास के चरण कमल म अर्पित कर दिन, अउ ओखर दास बनगिन(जुड़ावन दीक्षा पाके धरम दास होगिन)। अउ हमर परम् सौभाग्य कि धनी धरम दास जी महाराज अपन गद्दी छत्तीसगढ़ म बनाइन, अउ इँहिचे रहिके कबीरपंथ ल आघू बढ़ाइन, अउ छत्तीगढ़िया मन अड़बड़ संख्या म जुड़िन घलो। धनी धरम दास जी ह कबीर के मुखाग्र साखी शब्द मन ल अपन कलम म ढालिस, ओ भी  हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म। वइसे तो कबीरदास जी के भाषा  ल पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी कहे जाथे, तभो ओखर प्रकशित पोथी म छत्तीसगढ़ी के प्रभाव दिखतेच बनथे--


धनी धर्मदास जी के कुछ छतीसगढ़ी पदः-


मैं तो तेरे भजन भरोसो अविनाशी

तिरथ व्रत कछु नाही करे हो

वेद पड़े नाही कासी

जन्त्र मन्त्र टोटका नहीं जानेव

नितदिन फिरत उदासी

ये धट भीतर वधिक बसत हे

दिये लोग की ठाठी

धरमदास विनमय कर जोड़ी

सत गुरु चरनन दासी

सत गुरु चरनन दासी

**


आज धर आये साहेब मोर। 

हुल्सि हुल्सि घर अँगना बहारौं, 

मोतियन चऊँक पुराई। 

चरन घोय चरनामरित ले हैं 

सिंधासन् बइ ठाई। 

पाँच सखी मिल मंगल गाहैं, 

सबद्र मा सुरत सभाई।

**


संईया महरा, मोरी डालिया फंदावों। 

काहे के तोर डोलिया, काहे के तोर पालकी 

काहै के ओमा बाँस लगाबो 

आव भाव के डोलिया पालकी 

संत नाम के बाँस लगावो 

परेम के डोर जतन ले बांधो, 

ऊपर खलीता लाल ओढ़ावो 

ज्ञान दुलीचा झारि दसाबो, 

नाम के तकिया अधर लगावो 

धरमदास विनवै कर जोरी, 

गगन मंदिर मा पिया दुलरावौ।"


ये पद मन पूर्णतः सतगुरु कबीरदास जी ले ही प्रभावित हे,


              धनी धरम दास जी के जनम घलो छत्तीसगढ़ ले इतर मध्यप्रदेश(उमरिया) म होय रहिस, फेर वो जुन्ना समय म मध्यप्रदेश के  मेड़ो तीर के गांव  सँग गौरेला पेंड्रा के जम्मो इलाका बिलासपुर के सँग जुड़े रहय, तेखर सेती धनी धरमदास जी म छत्तीगढ़िया पन कूट कूट के भरे रिहिस। अउ जब कबीर के साखी शबद रमैनी मन ल धनी धरम दास जी पोथी म उतारिन, त वो  जम्मों छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म सहज उतरगे। 


                   धनी धरम दास जी के परलोक गमन के बाद, ओखर सुपुत्र चूड़ामणि(मुक्तामणि नाम साहेब) साहब घलो छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के गद्दी ल सँभालिन, अउ कोरबा जिला के कुदुरमाल गाँव म अपन गद्दी बनाइन, कुदुरमाल के बाद कबीर गद्दी परम्परा आघू बढ़त गिस अउ रतनपुर, मण्डला, धमधा, सिंगोढ़ी, कवर्धा म घलो गुरुगद्दी बनिस। चूड़ामणि साहेब के बाद ओखर सुपुत्र सुदर्शन नाम साहेब रतनपुर म गुरुगद्दी परम्परा के निर्वहन करिन, तेखर बाद कुलपति नाम साहेब, प्रमोध नाम साहेब, केवल नाम साहेब -----आदि आदि गुरु मनके सानिध्य म कबीरपंथ छत्तीसगढ़ म फलन फूलन लगिस। *गुरुगद्दी के 12वा  गुरु महंत अग्रनाम साहेब ह दामाखेड़ा म धनी धरम दास जी महाराज के मठ सन 1903 म स्थापित करिन, जिहाँ आजो कबीरपंथी मनके विशाल मेला भराथे।* वइसे तो कबीर पंथ के मुख्यालय सन्त कवि कबीरदास जी के नाम म बने जिला कबीरधाम जिला म हे, फेर कबीर पंथी मन छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा म समाये हें। 


                   धनी धरम दास जी ल दक्षिण के गुरुगद्दी के कमान सौपत बेरा कबीरदास जी भविष्यबानी करे रिहिन कि, धरम दास जी के नेतृत्व म कबीरपंथ खूब  फलही फुलही, अउ उही होइस घलो। *धनी धरम दास जी, कबीर साहेब के आशीर्वाद ले ,कबीर पंथ के 42 गुरुगद्दी के स्वामी मनके नाम लिख के परलोक गमन करे रिहिन। वर्तमान म 14 वाँ गुरुगद्दी के स्वामी प्रकाशमुनि नाम साहेब जी हे।* छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन कबीरदास जी महाराज के नीति नियम ल हृदय ले स्वीकार करथें, अउ सुख दुख सबे बेरा कबीरदास जी महाराज के नाम लेथें। छत्तीसगढ़ म कबीरपंथी समुदाय म चौका आरती के परम्परा हें, जेमा कबीर साहेब के साखी शबद गूँजथें। कबीरपंथी छत्तीसगढ़ के उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो मुड़ा सहज मिल जथे, अउ जेमन कबीर पंथी नइहे उहू मन कबीरदास जी के सीख सिखौना ल नइ भुला सकें। सबे जाति वर्ग समुदाय म कबीरदास जी महाराज के छाप हे। छत्तीसगढ़ भर म कबीर जयंती धूमधाम ले मनाये जाथे। जघा जघा मेला भराथे। *दामाखेड़ा, कुदुरमाल, कवर्धा, सिरपुर,नांदिया, खरसिया* आदि जघा कबीरपंथी मनके पावन तीर्थ आय, जिहाँ न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जम्मो जाति समुदाय सँकलाथे।


           कबीरदास जी दलित शोषित मनके मसीहा, पीड़ित मनके उद्धारक, दबे कुचले मनके आवाज रिहिन, सामाजिक अन्याय अउ विषमता के  घोर विरोधी अउ न्याय संग समता के संस्थापक रिहिन। तेखरे सेती न सिर्फ हिन्दू मन बल्कि मुस्लिम अउ ईसाई मन घलो कबीरदास जी के अनुसरण करिन। कबीरदास जी के दोहा, साखी सबद न सिर्फ कबीरपंथी बल्कि छत्तीसगढ़ के घरों घर म टीवी रेडियो टेप टेपरिकार्डर के माध्यम ले मन ल बाँधत सरलग सुनाथे। कबीरदास जी महराज धनी धरम दास जी कारण छत्तीसगढ़ के कण कण म विराजित हे। कबीरदास जी के दोहा साखी सबद मनके कोनो सानी नइहे, विरोध के सुर के संगे संग जिनगी जिये के सार जम्मो छत्तीगढ़िया मन ल अपन दीवाना बना लेहे। पूरा भारत भर म छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के सबले जादा आश्रम अउ गद्दी संस्थान हे। कतको छत्तीगढ़िया मन आपस म *साहेब* कहिके सुबे शाम अभिवादन करथें। जनश्रुति के अनुसार कबीर साहेब के कबीरधाम जिला मा घलो आय जे बात पता चलथे। हमर छत्तीसगढ़ मा कबीरदास जी के नाम मा कबीरधाम जिला हे संगे संग गांव शहर गली खोर मा रामायण मण्डली, भजन मंडली, नाच पार्टी, चौक चौराहा, आश्रम, स्थल, पुस्तकालय, नगर, भवन, घर, दुकान सबे मा कबीर साहब के नाम समाहित हे। कबीर दास जी महाराज भक्ति के कभू विरोध नइ करिन, बल्कि भक्ति के नाम मा पैठ जमाये आडम्बर अउ देखावा ला कोसिन। कबीर साहब जी ला नमन करत, मोर कुछ कुंडलियाँ------


धरहा करके लेखनी, कहिन बात ला सार।

सत के जोती बार के, दुरिहाइन अँधियार।

दुरिहाइन अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।

हरिन आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।

एक तुला सब तोल, बताइन बढ़िया सरहा।

करिन कलह मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।


बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।

साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।

लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।

लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।

तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।

तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत- बतर के बेरा(रोला छंद)

 गीत- बतर के बेरा(रोला छंद)


आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे


गरजे बड़ आगास, जिया हा थरथर काँपे।

आँखी अपन उघार, बिजुरिया भुइयाँ नाँपे।

छाय घटा घनघोर, रात कस दिन तक लागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


घाम घरी भर काम, करे के किरिया खाके।

शहर नगर मा पाँव, रखे हस जोड़ी जाके।

बितगे बैरी घाम, सुरुज मा नरमी छागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


ले दे के दिन काट, बाट नैना जोहत हे।

गरमी भर बरसात, सही सरलग बोहत हे।

बरस बरस दिन रात, चार महिना हे जागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


बरसिस नैनन रोज, मातगिस तन मा गैरी।

छुटगिस भूख पियास, रात दिन बनगिस बैरी।

उसलत नइहे गोड़, हाथ हलना बिसरागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


दे देंतेंव उधार, नयन जल मैं बादर ला।

बरसा होतिस रोज, छोड़ते नइ तैं घर ला।

होगिस गर्मी काल, मोर सुख चैन गँवागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


खुश हो चातक मोर, गीत गावत हें मनभर।

बइला नांगर जोर, ददरिया छेड़य हलधर।

अमुवा निमुवा डार, झूलना डोर बँधागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


दँउड़ दँउड़ गरु गाय, चरत हे कांदी हरियर।

नदिया नरवा ताल, पियत हे पानी फरिहर।

काय जवान सियान, लोग लइका बइहागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


कतको कीट पतंग, चलै दल मा मिल-जुल के।

चिरई चोंच उलाय, चरै चारा झुल-झुल के।

खुद के गत ला सोच, बदन तज मन हा भागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


मछरी झींगुर साँप, मेचका मारे ताना।

मैं रोवौं दिन रात, बाकि सब गावैं गाना।

माटी तक बोहाय, मोर जिनगी मस्कागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


होगे हँव हलकान, बितावत गरमी बेरा।

पा बरसा के शोर, शोरियाले तैं डेरा।

गे जे रिहिस बिदेश, कमैया सब जुरियागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।

निकलै कई किसम के कीरा, रेंगय मुँह ला फारे।


रंग रंग के साँप निकलथे, रंग रंग के कीरा।

सावचेत नइ रहे म होथे, तन मन ला बड़ पीरा।

भरका बिला म पानी भरथे, गिल्ला रहिथे मिट्टी।

सलमल सलमल भागत दिखथे, इती उती पिरपिट्टी।

कीरा काँटा साँप बिच्छु ले, कतको जिनगी हारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।


रसल वाइपर अजगर डोमी, माम्बा अउ मुड़हेरी।

सुतत उठत बस झूलत रहिथे, नयन म घेरी बेरी।

फिरे करैत ढोड़िहा धमना, जिया देख के काँपे।

बारिस घरी काल बन घूमय, कई किसम के साँपे।

ठौर ठिहा बन खेत खार में, रइथे डेरा डारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।


फाँफा फुरफुन्दी चमगादड़, झिंगुरा मुसवा चाँटा।

कान खजूरा बत्तर अँधरी, बिच्छी कीरा काँटा।

डाढ़ा टाँग केकरा रेंगय, मेंढक टरटर बोले।

किलबिल किलबिल कीरा करथे, देखत जिवरा डोले।

झन सोवव बिन खाट धरा में, रेंगव नयन उघारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

जनउला-बुझो तो जाने-दोहा

 बुझो तो जाने-दोहा


करिया रँग के फूल हा, सिर के ऊपर छाय।

गरमी पानी  मा खिले, बाकि समय मिटकाय।1


आघू पाछू बाप माँ, लइका मन हे बीच।

लेजय अपने संग मा, दुरिहा दुरिहा खीच।2


पर के साँसा मा चलय, तन हे लंबा गोल।

छेद गला अउ पेट मा, बोले गुरतुर बोल।3


जुड़वा भाई दास बन, रहे सबे दिन संग।

एक बिना बिरथा दुसर, एक दुनो के रंग।4


खटे सबे एकेक झन, का दिन अउ का रात।

 इंखर सँग दुनिया चले, होवय भाई सात।5


पढ़े लिखे के काम बर, रखय कई झन संग।

नोहे कागज अउ कलम, नोहे कोनो अंग।6


जतिक देर पीये लहू, ततिक देर लै साँस।

ना रक्सा ना देवता, ना हाड़ा ना माँस।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

घर

 घर


मैं घर घर से निकाला हो गया हूँ।

हरा नीला लाल वाला हो गया हूँ।।


हाँ मैं कभी मंदिर हुआ करता था,

आज सिर्फ धर्मशाला हो गया हूँ।।


दानी बनकर देता था हरदिन हर सुख,

ब्याज खाने वाला लाला हो गया हूँ।।


एक जमाने में मैं चाबी था हर गम का।

आज बेशक बन्द ताला हो गया हूँ।।


सोता रहता था गाँव में पांव पसारकर,

खड़े खड़े शहर में काला हो गया हूँ।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)