...............ददा.....................
घर बर 'बर' फेर बइरी बर, बान कस ददा।
भदरी कांड़ मुड़का म, नेवान कस ददा।
बड़का बर मचान,छोटका बर ढलान,
हाड़ -मांस-गुदा म, परान कस ददा।
उछिन्द होके सोये, सबो घर भरके,
त सोवत-जागत दिखे,उड़ान कस ददा।
बेटा बहू नाती पंथी ,दाई भाई सब बर,
बइठे हे डेरऊठी म , दान कस ददा।
मुहूँ के सुवाद बर, बाकी सब कोई,
त पेट भरे बर सबके,धान कस ददा।
सबो ल पुरोथे,जांगर पेर - पेर के,
सिरागे तभो माड़े रथे,अथान कस ददा।
कभू नइ बदले गुँड़ड़ी ल मुड़ी के,
बोहे रथे घर ल ,शेषनांग कस ददा।
कोनो हुदरे-कोचके ,कोनो देवे गारी,
तभो कर्मा-ददरिया के,तान कस ददा।
दिखथे भले उप्पर ले,नरियर कस ठाहिल,
फेर भीतर ले हे कोंवर पिसान कस ददा।
हाँकत हे घर के गाड़ा ल रात दिन,
बांधे पागा मुड़ म,ईमान कस ददा।
घपटे अंधियारी,सिरागे सबके मति,
तभो बरथे जगमग,गियान कस ददा।
घाव भरे हे, जिया म जँऊहर,
तभो रिहिथे कलेचुप,सियान कस ददा।
तोर चरन पखारे,तोर गुन गाये खैरझिटिया,
तँय ये भुइयां मा ,भगवान कस ददा।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
ना जाने क्या कर लेगा, कुछ खास बचाकर पापा।
आठो पहर चलता है, बस आस बचाकर पापा।।
घरवालों को खिलाता है,चना चाँट चर्पटी चौपाटी में,
खुद बिन खाये आ जाता है, पचास बचाकर पापा।।
खैरझिटिया
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