सार छंद(गीत)-भाजी साग खवादे
रोज रोज के भाँटा आलू,लगगे अब बिट्टासी।
खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।
चना चनौरी चेंच चरोटा,चौलाई चुनचुनिया।
मुसकेनी मेथी अउ मुनगा,मुरई मास्टर लुनिया।
कुरमा कांदा कुसमी कुल्थी,कोचाई करमत्ता।
गुमी लाखड़ी गोभी बर्रे,बरबट्टी के पत्ता।
प्याज अमारी पटवा पालक,सरसो के मैं दासी।
खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।
रोपा गुड़रू मखना झुरगा,कजरा कुसुम करेला।
पोई अउ बोहार जरी के,हरौं बही मैं चेला।।
उरिद लाल चिरचिरा खोटनी,कोइलार तिनपनिया।
भथुवा पहुना लहसुनवा खा, चलहूँ छाती तनिया।
भूँज बघार बनाबे बढ़िया,अड़बड़ लगे ललासी।
खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।
खेत खार बारी बखरी ले,झट लाबों चल टोरी।
खनिज लवण अउ रथे विटामिन,दुरिहाथे कमजोरी।
तेल बाँचही नून बाँचही,समय घलो बच जाही।
भाजी पाला ला खाये ले,तन मा ताकत आही।
भाजी कड़ही बरी खोइला,खाथे कोसल वासी।
खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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