बाजार बनत शिक्षा-कुंडलियां छंद
शासन अउ सरकार हा, काबर हे मिटकात।
पेपर लिक हो जात हे, हरे सरम के बात।
हरे शरम के बात, सबे भारत वासी बर।
एक खरीदे पोस्ट, एक तरसे बासी बर।।
इसन करे बर काम, लगा जे बइठे आसन।
उंखर धनबल रौब, सदा बर छीने शासन।।
भाजी पाला के असन, शिक्षा के बाजार।
बाढ़त हावै अब अबड़, कउने जिम्मेदार।।
कउने जिम्मेदार, इसन घटिया कारज बर।
कतको हें अघुवाय, पहुँच पइसा अउ पद धर।।
पढ़े लिखे नित एक, लगाके सब कुछ बाजी।
बेचें तिगड़म बाज, समझ शिक्षा ला भाजी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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