हम नही
रिस्तें बिगड़ने का, किसी को कोई गम नही।
आज सबको सिर्फ पैसा चाहिये, हमदम नही।।
खंजर से खुदे जख्म भी भर जाते हैं मरहम से।
जुबां से बढ़कर जमाने में, बारूद बम नही।।
खुद को राजा समझ रहें हैं, रील वालें।
रीयल में उनमें, जरा सा भी दम नही।।
एकता अखंडता भाई चारा, दिखावा है।
जहर जाति धर्म का, हो रहा है कम नही।
पता नही, ये पैमाना है या मौका परस्ती,
देश संविधान से चलेगा, पर हम नही।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment