विश्व पर्यावरण दिवस मा
छींद-जयकारी छंद
कमती कहाँ खजूर ले, हमर गांव के छींद।
गर्मी के फर ये हरे, खाके भाँजव नींद।।
गुण ला सुन उड़ जाही नींद। एक पेड़ जेला कहिथे छींद।।
छींद पेड़ के गुण अउ राज। मोर कलम बरनत हे आज।।
जागे अउ बाढ़े बिन बोय। पात फोंक काँटा कस होय।।
इही गांव के हरे खजूर। खाये हँस किसान मजदूर।।
नरिया नरवा नदी कछार। खेत खार सँग मेड़उ पार।।
रथे छींद के झुँझकुर झाड़। सहत घाम पानी अउ जाड़।।
एक तना मा बाढ़े सोझ। कई मुरख मन माने बोझ।।
काटे कहि नइ आये काम। जाने तेमन पाये दाम।।
चटई बहरी शादी मौर। बिना छींद नइ हाँसे ठौर।।
माटी घर के बन रखवार। रोके बरसा घरी झिपार।।
आय पँदोली दै के काम। एखर कुँदरा दै आराम।।
गाड़ा के टट्टा बन जाय। पहिर बबा कलगी मुस्काय।।
चलत फिरत उद्योग कुटीर। छाये रहे छींद सब तीर।।
छींद रसा तक बड़ मन भाय। गुड़ अउ शक्कर घलो मिठाय।।
छींद गबौती जौने खाय। खेवन खेवन खाय ललाय।।
पाके फर के नही जवाब। खाये ते बन जाय नवाब।।
बैरी काँटा देख डराय। ठिहा छींद मा बया बनाय।।
खग के करलव जिया लुभाय। छतरी जइसन छींद सुहाय।।
पूरा के पानी ला सोख। सींचे धरती दाई कोख।
वाटर लेबल घलो बढ़ाय। नाइट्रोजन जर हा गठियाय।।
बाँध रखे माटी के कोर। जर जइसे रेशम के डोर।।
माटी ला उपजाउ बनाय। सखा किसनहा के ये आय।।
पाना बाजे चटचट खूब। खेले लइका मन हा डूब।।
खेलत बनथे छींद डँगाल। उल्हवा पाना लगे कमाल।।
सुक्खा लकड़ी पाना डार। बने पठउँहा पाठ मियार।।
बनथे सजावटी सामान। मनुष आज के हें अंजान।।
हवा दवा फर लकड़ी देय। खड़े खड़े पर जिनगी सेय।।
धरे काठ मा झटकुन आग। पानी घलो बिगाड़ै राग।।
छिंदवाड़ा छिंदई कस गांव। धरे छींद के कारण नांव।।
पारा मोहल्ला बन खार। छींद नाम ले परे गुहार।।
छिंदी कांदा फर जर पान। देय जीव ला जीवनदान।।
नित डँट पर्यावरण बचाय। दूत प्रकृति के छींद आय।।
सबके अलग महत्त्व हें, होय कइसनों पेड़।।
छींद लगावव जान गुण, रिता रहे झन मेड़।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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जंगल बचाओ-सरसी छन्द
पेड़ लगावव पेड़ लगावव, रटत रथव दिन रात।
जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।
हवा दवा फर फूल सिराही, मरही शेर सियार।
हाथी भलवा चिरई चिरगुन, सबके होही हार।
खुद के खाय कसम ला काबर, भुला जथव लघिनात।
जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।
जंगल हे तब जुड़े हवय ये, धरती अउ आगास।
जल जंगल हे तब तक हावै,ये जिनगी के आस।
आवय नइ का लाज थोरको, पर्यावरण मतात।
जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।
सड़क खदान शहर के खातिर, बन होगे नीलाम।
उद्योगी बैपारी फुदकय, तड़पय मनखे आम।
लानत हे लानत हव घर मा, आफत ला परघात।
जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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न उजाड़ो
न उजाड़ो,धरती के धन को|
मिलजुल; बढ़ाओ वन को|न उजाड़ो..
बाग-बगीचे,फूल-पौधे,
लुभाते है,सबके मन को ||न उजाड़ो...
जीवन को खुशहाल बनाती,
निरोग रखते है तन को |न उजाड़ो....
तपती धूप में छाँव देती,
लाते हैं, वन घन को|न उजाड़ो..........
रक्षा का स्वयं सौगंध लें,
समझाओ सभी जन को|न उजाड़ो........
पेड़ लगाकर पुण्य कमाओ,
धन्य करो ,जीवन को|न उजाड़ो.......,..
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको कोरबा
विश्व परियावरण दिवस की ढेरो बधाई💐💐💐💐💐
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