"अतंर्राष्ट्रीय डांस डे" के अवसर म
नृत्य/नाच:- तब अउ अब
बर बिहाव, छट्ठी बरही, पार्टी सार्टी, भागवत, रमायण कस चाहे कुछु भी जुराव या मंगल के कार्यक्रम होय आज बिना नाच(नृत्य) के नइ होत हे। नृत्य जे युगों युगों ले चलत आवत हे, ता आज भला कइसे रुक जही। बल्कि आज तो दुनिया के लगभग 80-85% मनखें नाचत गावत दिखथें। एक जमाना रिहिस जब नचइया गिनती के राहय। सुनब मा आथे कि स्वर्ग लोक मा रम्भा, मेनका, उर्वशी, तिलोत्तमा कस गन्धर्व कन्या मन नाच करें। अउ उही मन ला पृथ्वी लोक मा घलो राजा अउ राक्षस मन अपन शक्ति के दम मा नचावै। खैर वो समय ला छोड़व। जब 1912 मा दादा साहब फाल्के फिलिम बनाए के सोचिस ता वो बेरा मा, उन मन चारो मुड़ा नृत्यांगना अउ फिलिम बर हीरोइन खोजिस, फेर उन ला निरासा हाथ लगिस, आखिर मा पुरुष कलाकार मन ही स्त्री पात्र के रोल करिन। एक दौर रिहिस जब नचई ला बने नइ समझे जावत रिहिस। अउ जे नाचे गावै तेला समाज मा घलो बने मान सम्मान नइ मिलत रिहिस। नोनी मन के शादी बिहाव मा घलो नचई गवई अड़ंगा डाल देवत रिहिस। फेर धीरे धीरे समाज स्वीकारत गिस अउ आज के स्थिति ला तो सब देखतेच हन।
लगभग 200 ईसापूर्व मा भरत मुनि नाट्य शास्त्र के रचना करे रिहिन, जिहाँ रंगमंच, नृत्य अउ संगीत के वर्णन मिलथे। ऋग्वेद के श्लोक मन मा घलो नृत्य के वर्णन हे। प्राचीन वैदिक धर्म ग्रंथ मन मा देवी देवता मन ला घलो नृत्य करे के चित्रण करे गय हे। भगवान शंकर ला तो साक्षात नटराज घलो कहे जाथे।नृत्य करत नटराज के मूर्ति सहज दिखथे। महाभारत मा वर्णन हे, कि अर्जुन हा इंद्रलोक मा नृत्य अउ संगीत के शिक्षा लिए रिहिन। त्रेता युग मा भगवान कृष्ण अउ गोपी मन के द्वारा प्रस्तुत रास नृत्य के वर्णन मिलथे। नृत्यकला 64 कला मा अपन एक महत्वपूर्ण स्थान रखथे। एक मात्र भगवान कृष्ण ला सम्पूर्ण 64 कला मा पारंगत बताए गय हे।
वैदिक काल मा नृत्य, देवी देवता मनके आराधना अउ पूजा पाठ करत बेरा करे जावत रिहिस, फेर धीरे धीरे समय अनुसार जम्मों मंगल काज, ताहन फेर मनखें मन के मनोरंजन बर होय लगिस। मोहनजोदड़ो के खुदाई मा प्राप्त तांबा के मूर्ति मन के भाव भंगिमा ला देखे ले नृत्य के पुष्टि होथे। प्राचीन काल में नृत्य के एकमात्र उद्देश्य रिहिस- धार्मिक अउ आधात्मिक उद्देश्य के पूर्ति बर देवी देवता मन के नाच नाच आराधना अउ पूजा। जे शास्त्रीय नियम अउ लय ताल मा बँधाये रहय। भक्तिकाल में रामलीला अउ अउ कृष्णलीला कस कतको दैविक कथा ला नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करे के वर्णन मिलथे। समय बीतत राजा महाराज अउ मुगलकाल मा नृत्य राजदरबार मा मनोरंजन अउ सभा सदन के मन बहलाये बर होय लगिस। आज घलो विभिन्न अवसर मा नृत्य देखे बर मिलथे।
अलग अलग देश, राज अउ क्षेत्र के अलग अलग नृत्य देखब मा मिलथे। पहली भारतीय नृत्य कला के सिर्फ दुई रूप रिहिस शास्त्रीय नृत्य अउ लोक नृत्य। शास्त्रीय नृत्य मा भरतनाट्यम, कत्थक, कत्थक्कली, कुचिपुड़ी, ओड़िसी, मणिपुरी, मोहनीअट्टम,सत्रिया जइसन नृत्य शामिल हे, ता लोक नृत्य मा भांगड़ा, गरबा, गिद्दा, चौ, लावणी, कर्मा, घूमर कस नृत्य मन के नाम आथे। बॉलीवुड नृत्य मा ये दुनो के सम्मिश्रण ले विशेष शैली मा नृत्य होय लगिस। एखर आलावा समय के साथ साथ वैश्विक प्रभाव पड़त गिस, अउ पश्चिमी नृत्य घर करत गिस। ब्रेक डांस, हिपहॉप, स्विंग, कांट्रा कस कतको नृत्य देखे बर मिले लगिस। समकालीन नृत्य घलो भारतीय नृत्य मा झट झट समाहित होगे। जेमा बैले, जैज अउ आधुनिक नृत्य कस अउ कतको प्रकार नाच शामिल हे।
भाव(अभिव्यक्ति), राग(संगीत) अउ ताल(लय) ये तीनों के मधुर समन्वय बिन नृत्य नइ होय। सबे प्रकार के नृत्य के अलग अलग शैली होथे, जेमा भाव, राग अउ लय होबेच करथे। प्राचीन कालीन नृत्य मा चेहरा के भाव अउ हस्तमुद्रा प्रमुख रहय, फेर आज शरीर के अन्य अंग भी शामिल दिखथे। धार्मिक, आध्यात्मिक ले चालू होके नृत्य मनोंरंजन के साथ साथ आज आकर्षण, ग्लैमर अउ व्यवसायिक होवत जावत हे। आधुनिकता के चकाचौंध मा नृत्य फूहड़ता कोती भागत हे। जे नाच ला देखत आध्यात्मिक अउ मानसिक सुख मिलत रिहिस, उहाँ आज काम वासना जाग्रत होवत हे। आज शारीरिक खुलापन, अउ बेढंग शारीरिक मुद्रा नृत्य के पारम्परिकता ला भंग करत हे। जे चिंतनीय हे। पहली नाच देखे बर मनखें तरस जावत रिहिस, कई कोस के दूरी लांघे के बाद नृत्य के आनंद मिले, उंहे आज सोशलमीडिया के दौर मा, घर बैठे रंग रंग के नाच देखे बर मिल जावत हे। नचइया अतका के देखइया घलो कमती हो जावत हे। नाचे मा छोटे, बड़े, बुढ़वा, जवान सबे लगे हें, अउ एखर श्रेय जाथे इस्टाग्राम अउ रील ला। रील के चक्कर मा नृत्य के छाती मा खील गोभावत हे। मन ला मोहित करइया अउ परम् शांति प्रदान करइया नृत्य आज उत्तेजक, फूहड़ अउ मन ला अशांत करइया हो गय हे। अइसे भी नही कि सबे नाच मा अश्लिता हे। आज भी विशेष पोशाक अउ शैली के कतको नृत्य जस के तस प्रभावी हे, चाहे कत्थक होय, कुचीपुड़ी होय,ओड़िसी होय या कोनो लोक नृत्य, फेर आधुनिकता के छाप अब नृत्य के शैली, हाव भाव अउ भाव भंगिमा मा आघात करत हे।
गुण ज्ञान अउ कला कखरो भी होय यदि मनोभाव सकारात्मक हे, ता वो गुण, ज्ञान अउ कला ला देखत सुनत मन मा आनंद अउ सुख के संचार होबेच करथे, अउ यदि कहीं मनोभाव नकारात्मक हे, ता डाह घलो उपजत दिखथें। यदि वो डाह प्रतियोगिता ला जनम देवत हे, ता तो बने बात हे, फेर यदि टांग खिचई के उदिम होय लगथे, ता वो बड़ घातक हे। आजो कई कलाकार नृत्य कला के ज्ञान पाय बर बड़ महिनत करत हे, कतको जघा सीखत पढ़त हें। कई ठन नृत्य अउ संगीत के विद्यालय अउ कोचिंग खुलगे हे, जिहाँ नृत्य सीखे के सरलग उदिम होवत हे। कला, साधना के नाम आय, अउ साधना साधे ले सधते। कला ला तपस्या घलो कहे जाथे, जेखर बर ईमानदारी, लगन अउ महिनत के जरूरत पड़थे। फेर आज कला मात्र देख देखावा अउ ग्लैमर के चीज बनत हे, चाहे नचई होय या फेर गवई। जे नही ते देखासीखी बेढंग कनिहा हलावत हे। सोसल मीडिया मा चढ़े डांस अउ अभिव्यक्ति के नशा देखत लाज लगथे। रील बनई के चक्कर मा बहू बेटी मन में मर्यादा अउ डांस के दायरा ला लांघत हें।
महतारी कतको भूख मरत रहै, भुखाय लइका के पेट भरत देख, परम् शांति अउ सुख के अनुभव करथे, अउ अपन भूख ला भूला जाथे। घर मा कोनो एक के तरक्की या नाम होय ले, न सिर्फ घर, बल्कि पूरा गाँव गर्व करथे। कहे के मतलब मनखें दूसर के सुख अउ दुख ले आत्मीय भाव ले जुड़े रथे, अउ सुख दुख के अनुभव करथे। वइसने गीत संगीत सुने अउ नाच देखे मा परम् सुख मिलथे। एक गवइया या एक नचइया हजारों करोड़ो के मन ला मोहित कर लेथे। फेर आज मनखें नचइया के संग खुदे नाचत दिखथें या बिन नाचे नइ रही सकत हे। बस कुछु नाचे के बहाना चाही ताहन घर भर कनिहा मटकाए बर धर लेथे। आज वो अनुभव के चीज ला खुदे करे ला धर लेहे। पहली नाचे ते समाज मा असहज महसूस करे, फेर आज जे नइ नाचे तेखर मरना हो जावत हे। इशारा मा नाचना या कठपुतली बनना मुहावरा ला तो सबे जानते हन। येला स्वीकारना बने बात नइ रहय। अइसन करना मतलब अपन आप ला झुका देना या स्वाभिमान ला बेच देना होय। शोले फिलिम मा गब्बर के आघू मा बसंती नाचे बर तैयार नइ रिहिस। बड़े मिया छोटे मिया फिलिम मा अमिताभ अउ गोविदा गुंडा के आघू नाचे बर अनाकानी करथे। कहानी, क्वीन, साहब बीबी और गुलाम, मदर इंडिया, राजी अइसन कतको फिलिम अउ हकीकत दृश्य हे, जिहाँ हीरो हीरोइन अउ मनखें मन गुंडा या कखरो आन के आघू मा नाचे बर या अपन स्वाभिमान बेचे बर मना करथें। फेर आज कोनो भी मनखें कही भी नाच देवत हे, वाह रे जमाना। शादी मा पहली नचइया लगाय जाय, अउ घर भर के मनखें सगा सोदर संग आनंद उठावय। आज घरे के मन सगा सोदर सुद्धा जे बेर पाय ते बेर रही रही के नाचत हें। भागवत, रमायण मा बेढंग ठुमका लगावत मनखें भला का वो पावन ग्रंथ के मरम ला पा पाही? पंडा, पंडित मन घलो नाच ला प्राथमिकता देवत हें। अपने अपन सब मिलजुल के नाचत कूदत हें, अइसन मा जोक्कड़, परी, नचइया अउ गवइया मन के पेट भरना मुश्किल हो जावत हे। नाचत हे ते तो ठीक हे, फेर कुछ भी नाचत हे, ते चिंतनीय हे। रील अउ नेम फेम अउ चंद पइसा के चक्कर मा मनखें मन गिरत जावत हे। छोटे बड़े के लिहाज नइहे। इस्टाग्राम अउ रील के चक्कर मा नचइया मनके बाढ़ आ गय हे। कोनो भी चीज होय, मर्यादा मा ही शोभा पाथे। जिहाँ मरियादा नइ रहय उहाँ इज्जत मान सम्मान के जघा नइ रहय। लाज रूपी चिड़िया आज विलुप्तप्राय होवत जावत हे। बेटी, बहू के फूहड़ नृत्य ला देख के, बाप,भाई अउ पति ऊपर का बीतत होही तेला उही मन जाने? फेर पूरा समाज तो मजा ले ले के देखत हें, यहू बात सही हें। व्यूह,लाइक अउ सब्सक्राब पाय बर आँय बाँय नाच आज निश्चित ही चिंतनीय विषय हे। पर्दा के चीज आज उघरत हे अउ उघरे के चीज तोपावत हे। कोन जन जमाना आघू बेरा मा नृत्य जइसन पाक कला ला अउ कतका गिराही? बहरहाल अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के आप जम्मों ला सादर बधाई।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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अंतरराष्ट्रीय डांस डे म
"""""फकत नचइयाँ बाढ़गे""""
गवइया बजइया कमती होगे,
बढ़िया जिनिस तरी मा माढ़गे।
गांव लगत हे ना शहर लगत हे,
फकत नचइयाँ बाढ़गे-----------।
परी जोक्कड़ मन देख के दंग हें।
नचइया मन मा चढ़े जबर रंग हे।
बिन बाजा के घलो हाथ पांव हलात हें।
आ आ कहिके एला ओला बलात हें।।
नाचते नाचत जाड़,घाम अउ आसाढ़ गे।
गांव लगत हे------------------------।।
टूरा टूरी भउजी भैया ना बहू लगत हे।
एक जघा झूमत सब महू लगत हे।।
चुंहकत हें लाज शरम के फसल ला।
ढेंगा देखावत हे जुन्ना कल ला।।
नाचे संझा बिहना, रति रंभा ला पछाढ़गे।
गांव लगत हे------------------------।।
आज पर के नाच देख, कहाँ मजा आत हे।
नचनइया बनके नाचत हे, तभे मजा पात हे।।
मरनी भर ला छोड़, ताहन सब मा फकत नचई,
सोसल मीडिया मा तो, सबके आ गय हे रई।।
बरतिया कस धक्का मारे, झगड़ा लड़ई ठाढ़गे।
गांव लगत हे-------------------------------।।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)