Friday, 18 April 2025

मजबूर मैं मजदूर

 बासी दिवस अउ मजदूर दिवस के सादर बधाई


बासी खावै रोज के, दँदर दँदर ते रोय।

फोटू खिंचवा एक दिन, खरतरिहा हे होय।।


गीत--बासी बासी बासी के हल्ला


साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन राशि।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


काम बूता बर होत बिहनया, पड़थे जल्दी जाना।

जुड़े जुड़ मा काम सिधोथँव, खाके बासी खाना।

बिन गुण जाने पेट भरे बर, खाथँव बारा मासी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन राशि।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


बड़ही कहिके बँचे भात ला, बोर देथौं मैं रतिहा।

सीथा खाथौं चारेच कौंरा, पेट भर पीथौं पसिया।

पर के हाड़ी के गंध सुंघ के, लगथे गजब ललासी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन राशि।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


छोट कुड़ेड़ा के बासी तक, घर भर ला पुर जाथे।

सीथा अउ पसिया हा मिलके, भूख पियास दुरिहाथे।

महल अटारी बाँध बाँधथँव, करथौं बाँवत बियासी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन राशि।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


बासी खावत उमर गुजरगे, होगे जर्जर काया।

नाँगर पुरतिन जाँगर मिलथे, राम मिले ना माया।

बासी खवइया बासी होगे, हो गे जग मा हाँसी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन राशि।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


मोर दरद देखिस नइ कोनो, देख डरिस बासी ला।

महल भीतरी बासी खाइस, बूता जोंग दासी ला।

भूख बैरी ला बासी चढ़ाथौं, मान के मथुरा काँसी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन राशि।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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रोला छंद


मजबूर मैं मजदूर


करहूँ का धन जोड़, मोर तो धन जाँगर ए।

रापा गैंती संग, मोर साथी नाँगर ए।

मोर गढ़े मीनार, देख लौ अमरे बादर।

मोर धरे ए नेंव, पूछ लौ जाके घर घर।


भुँइया ला मैं कोड़, ओगराथौं नित पानी।

जाँगर रोजे पेर, धरा ला करथौं धानी।

बाँधे हवौं समुंद, कुँआ नदिया अउ नाला।

बूता ले दिन रात, हाथ मा उबके छाला।


घाम जाड़ आषाढ़, कभू नइ सुरतावौं मैं।

करथौं अड़बड़ काम, तभो फल नइ पावौं मैं।

हावय तन मा जान, छोड़ दौं महिनत कइसे।

धरम करम ए काम, पूजथौं देवी जइसे।


चिरहा ओन्हा ओढ़, ढाँकथौं करिया तन ला।

कभू जागही भाग, मनावत रहिथौं मन ला।

रिहिस कटोरा हाथ, देख वोमा सोना हे।

भूख मरौं दिन रात, भाग मोरे रोना हे।


आँखी सागर मोर, पछीना यमुना गंगा।

झरथे झरझर रोज, तभे रहिथौं मैं चंगा।

मोर पार परिवार, तिरिथ जइसन सुख देथे।

फेर जमाना कार, अबड़ मोला दुख देथे।


थोर थोर मा रोष, करैं मालिक मुंसी मन।

काटत रहिथौं रोज, दरद दुख डर मा जीवन।

मिहीं बढ़ाथौं भीड़, मिहीं चपकाथौं पग मा।

अपने घर ला बार, उजाला करथौं जग मा।


पाले बर परिवार, नाँचथौं बने बेंदरा।

मोला दे अलगाय, बदन के फटे चेंदरा।

कहौं मनुष ला काय, हवा पानी नइ छोड़े।

ताप बाढ़ भूकंप, हौसला निसदिन तोड़े।।


सच मा हौं मजबूर, रोज महिनत कर करके।

बिगड़े हे तकदीर, ठिकाना नइहे घर के।

थोरिक सुख आ जाय, विधाता मोरो आँगन।

महूँ पेट भर खाँव, रहौं झन सबदिन लाँघन।।


मोर मिटाथे भूख, रात के बोरे बासी।

करत रथौं नित काम, जाँव नइ मथुरा कासी।

देखावा ले दूर, बिताथौं जिनगी सादा।

चीज चाहथौं थोर,  मेहनत करथौं जादा।


आँधी कहुँती आय, उड़ावै घर हा मोरे।

छीने सुख अउ चैन, बढ़े डर जर हा मोरे।

बइठ कभू नइ खाँव, काम मैं मांगौं सबदिन।

करके बूता काम, घलो काँटौं दिन गिनगिन।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

मजदूर दिवस अमर रहे,,,,


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गीतिका छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


हे गजब मजबूर ये,मजदूर मन हर आज रे।

पेट बर दाना नहीं,गिरगे मुड़ी मा गाज रे।।

रोज रहि रहि के जले,पर के लगाये आग मा।

देख लौ इतिहास इंखर,सुख कहाँ हे भाग मा।।


खोद के पाताल ला,पानी निकालिस जौन हा।

प्यास मा छाती ठठावत,आज तड़पे तौन हा।

चार आना पाय बर, जाँगर खपावय रोज के।

सुख अपन बर ला सकिस नइ,आज तक वो खोज के।


खुद बढ़े कइसे भला,अउ का बढ़े परिवार हा।

सुख बहा ले जाय छिन मा,दुःख के बौछार हा।

नेंव मा पथरा दबे,तेखर कहाँ होथे जिकर।

सब मगन अपनेच मा हे,का करे कोनो फिकर।


नइ चले ये जग सहीं,महिनत बिना मजदूर के।

जाड़ बरसा हा डराये, घाम देखे घूर के।

हाथ फोड़ा चाम चेम्मर,पीठ उबके लोर हे।

आज तो मजदूर के,बूता रहत बस शोर हे।।


ताज के मीनार के,मंदिर महल घर बाँध के।

जे बनैया तौन हा,कुछु खा सके नइ राँध के।

भाग फुटहा हे तभो,भागे कभू नइ काम ले।

भाग परके हे बने,मजदूर मनके नाम ले।।


दू बिता के पेट बर,दिन भर पछीना गारथे।

काम करथे रात दिन,तभ्भो कहाँ वो हारथे।

जान के बाजी लगा के,पालथे परिवार ला।

पर ठिहा उजियार करथे,छोड़ के घर द्वार ला।


आस आफत मा जरे,रेती असन सुख धन झरे।

साँस रहिथे धन बने बस,तन तिजोरी मा भरे।

काठ कस होगे हवै अब,देंह हाड़ा माँस के।

जर जखम ला धाँस के,जिनगी जिये नित हाँस के।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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आल्हा छन्द - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया


गरमी घरी मजदूर किसान


सिर मा ललहूँ पागा बाँधे,करे  काम मजदूर किसान।

हाथ मले बैसाख जेठ हा,कोन रतन के ओखर जान।


जरे घाम आगी कस तबले,करे काम नइ माने हार।

भले  पछीना  तरतर चूँहय,तन ले बनके गंगा धार।


करिया काया कठवा कस हे,खपे खूब जी कहाँ खियाय।

धन  धन  हे  वो महतारी ला,जेन  कमइया  पूत  बियाय।


धूका  गर्रा  डर  के  भागे , का  आगी  पानी  का  घाम।

जब्बर छाती रहै जोश मा,कवच करण कस हावै चाम।


का मँझनी का बिहना रतिहा,एके सुर मा बाजय काम।

नेंव   तरी   के  पथरा  जइसे, माँगे  मान  न माँगे नाम।


धरे  कुदारी  रापा  गैतीं, चले  काम  बर  सीना तान।

गढ़े महल पुल नँदिया नरवा,खेती कर उपजाये धान।


हाथ  परे  हे  फोरा  भारी,तन  मा  उबके हावय लोर।

जाँगर कभू खियाय नही जी,मारे कोनो कतको जोर।


देव  दनुज  जेखर  ले  हारे,हारे  धरती  अउ  आकास।

कमर कँसे हे करम करे बर,महिनत हावै ओखर आस।


उड़े बँरोड़ा जरे भोंभरा,भागे तब मनखे सुखियार।

तौन  बेर  मा  छाती  ताने,करे काम बूता बनिहार।


माटी  महतारी  के खातिर,खड़े पूत मजदूर किसान।

महल अटारी दुनिया दारी,सबे चीज मा फूँकय जान।


मरे रूख राई अइलाके,मरे घाम मा कतको जान।

तभो  करे माटी के सेवा,माटी  ला  महतारी मान।


जगत चले जाँगर ले जेखर,जले सेठ अउ साहूकार।

बनके  बइरी  चले पैतरा,मानिस नहीं तभो वो हार।


धरती मा जीवन जबतक हे,तबतक चलही ओखर नाँव।

अइसन  कमियाँ  बेटा  मनके, परे  खैरझिटिया हा पाँव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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जयकारी छन्द- बासी


जरे घाम मा चटचट चाम, लगे थकासी रूकय काम।


खेवन खेवन गला सुखाय, बदन पछीना मा थर्राय।


चले हवा जब ताते तात, भाय नही मन ला जब भात।


चक्कर घेरी बेरी आय, तन के ताप घलो बढ़ जाय।


घाम झाँझ मा पेट पिराय, चैन चिटिक तन मन नइ पाय।


तब खा बासी दुनो जुवार, खाके दुरिहा जर बोखार।


बासी खाके बन जा वीर, खेत जोत अउ लकड़ी चीर।


हकन हकन के खंती कोड़, धार नदी नरवा के मोड़।


गार पछीना बिहना साँझ, सोन उगलही धरती बाँझ।


सड़क महल घर बाँध बना, ताकत तन के अपन जना।


खुद के अउ दुनिया के काम, अपन बाँह मा ले चल थाम।


करके बूता पाबे मान, बन जाबे भुइयाँ के शान।


सुनके बासी मूँदय कान, उहू खात हे लान अथान।


खावै बासी पेज गरीब, कहे तहू मन आय करीब।


खावत हें सब थारी चाँट, लइका लोग सबे सँग बाँट।


बासी कहिके हाँसे जौन, हाँस हाँस के खावै तौन।


बासी चटनी के गुण जान, खाय अमीर गरीब किसान।


पिज़्ज़ा बर्गर चउमिन छोड़, खावै सबझन माड़ी मोड़।


बदलत हे ये जुग हा फेर, लहुटत हे बासी के बेर।


बड़े लगे ना छोटे आज, बासी खाये नइहे लाज।


बासी बासी के हे शोर, खावै नून मही सब घोर।


भाजी चटनी आम अथान, कच्चा मिरी गोंदली चान।


बरी बिजौरी कड़ही साग, मिले संग मा जागे भाग।


बासी खाके पसिया ढोंक, जर कमजोरी के लू फोंक।


करे हकन के बूता काम, खा बासी मजदूर किसान।


गर्मी सर्दी अउ आसाढ़, एको दिन नइ होवै आड़।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)

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शोभन छंद


चान चानी गोंदली के, नून संग अथान।


जुड़ हवै बासी झडक ले, भाग जाय थकान।


बड़ मिठाथे मन हिताथे, खाय तौन बताय।


झाँझ झोला नइ धरे गा, जर बुखार भगाय।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)


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दुर्मिल सवैया-मजदूर


मजदूर रथे मजबूर तभो दुख दर्द जिया के उभारय ना।

पर के अँगना उजियार करे खुद के घर दीपक बारय ना।

चटनी अउ नून म भूख मिटावय जाँगर के जर झारय ना।

सिधवा कमियाँ तनिया तनिया नित काज करे छिन हारय ना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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