Saturday, 26 April 2025

मनहरण घनाक्षरी

 मनहरण घनाक्षरी


अगास अमर झन,पताल टमड़ झन।

भुइयाँ मा रच बस,बने बने काम कर।।

बैर रिस द्वेष पाल,बन कखरो न काल।

मानुष काया ला तँय,झन बदनाम कर।।

कर झन तीन पाँच,जल थल हवा नाप।

हुशियारी ल दिखात,झन ताम झाम कर।।

ज्ञान गुण धरे रही, पैसा कौड़ी परे रही।

समे बलवान हवै,बेरा ल सलाम कर।।


धन सरी पड़े हवै,गाड़ी घोड़ा खड़े हवै।

ज्ञानी गुणी सबे ल जी,समय नचात हे।।

चढ़त हे सादा रंग, बदलत हवै ढंग।

पश्चिम के लहर ह,दुरिहा फेकात हे।।

हरहर कटकट, सब ला लेहे झटक।

जिनगी ल थाम देहे,कोरोना डरात हे।।

पेट के अगिन बुझे,अउ कुछु नइ सुझे।

घर बन किसानी के,महत्ता बतात हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

बाल्को,कोरबा

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