मनहरण घनाक्षरी
अगास अमर झन,पताल टमड़ झन।
भुइयाँ मा रच बस,बने बने काम कर।।
बैर रिस द्वेष पाल,बन कखरो न काल।
मानुष काया ला तँय,झन बदनाम कर।।
कर झन तीन पाँच,जल थल हवा नाप।
हुशियारी ल दिखात,झन ताम झाम कर।।
ज्ञान गुण धरे रही, पैसा कौड़ी परे रही।
समे बलवान हवै,बेरा ल सलाम कर।।
धन सरी पड़े हवै,गाड़ी घोड़ा खड़े हवै।
ज्ञानी गुणी सबे ल जी,समय नचात हे।।
चढ़त हे सादा रंग, बदलत हवै ढंग।
पश्चिम के लहर ह,दुरिहा फेकात हे।।
हरहर कटकट, सब ला लेहे झटक।
जिनगी ल थाम देहे,कोरोना डरात हे।।
पेट के अगिन बुझे,अउ कुछु नइ सुझे।
घर बन किसानी के,महत्ता बतात हे।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया
बाल्को,कोरबा
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