ऐसो के धाम
लकालक जरत हवे, ऐसो के घाम
रहि-रहि उसनावत हे, जम्मो के चाम ।
अइलागे भाजी-पाला, सुखागे केरा खाम ।।
लकालक जरत हवे, ऐसो के घाम------
जिवरा करथे रात दिन,
तँऊरत रहितेंव तरिया म।
झांझ- झोला चलत हवे,
धूर्रा उड़त हे परिया म ।।
रेंगत नइ बनत हवे,
भुइयाँ म खोर्रा गोड़ |
अकेल्ला डोलांव डेना,
संगी-संगवारी ल छोड़ ||
झोलागे हवे आमा, सेठरागे चिरई जाम ।
लकालक जरत हवे, एसो के घाम------
छानी -परवा तिपे हवे,
तिपे हवे पानी ।
रहि-रहि पसीना चुहे,
हलाकान जिनगानी ।
दही-मही के सरबत,
अब्बड़ मिठात हे ।
ठंढा बरफ तीर म.
सब कोनो जुरियात हे ।
धुकनी ल धुकत रहिथंव,
का सुबे का साम।
लकालक जरत हवे, एसो के घाम-----
नरवा के पानी अटागे हे,
तरिया घलो हे सुक्खा ।
कुआँ-बऊली के तीर ले घलो,
लहुटेल पड़थे दुच्छा ।।
अइसने म कइसे करही,
बिन मुंहुँ के परानी ।
पियास म बियाकुल हे,
इती-उती खोजे पानी ।।
जुड़ छाँव खोजे सबो,
नइ भाये बुता काम।
लकालक जरत हवे, एसो के घाम ।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment