Friday, 18 April 2025

ऐसो के धाम

 ऐसो के धाम


लकालक जरत हवे, ऐसो के घाम

रहि-रहि उसनावत हे, जम्मो के चाम ।

अइलागे भाजी-पाला, सुखागे केरा खाम ।।

लकालक जरत हवे, ऐसो के घाम------


जिवरा करथे रात दिन,

तँऊरत रहितेंव तरिया म।

झांझ- झोला चलत हवे, 

धूर्रा उड़त हे परिया म ।।

रेंगत नइ बनत हवे,

भुइयाँ म खोर्रा गोड़ |

अकेल्ला डोलांव डेना, 

संगी-संगवारी ल छोड़ ||

झोलागे हवे आमा, सेठरागे चिरई जाम ।

लकालक जरत हवे, एसो के घाम------


छानी -परवा तिपे हवे,

तिपे हवे पानी ।

रहि-रहि पसीना चुहे, 

हलाकान जिनगानी ।

दही-मही के सरबत, 

अब्बड़ मिठात हे ।

ठंढा बरफ तीर म.

सब कोनो जुरियात हे ।

धुकनी ल धुकत रहिथंव,

का सुबे का साम।

लकालक जरत हवे, एसो के घाम-----


नरवा के पानी अटागे हे, 

तरिया घलो हे सुक्खा ।

कुआँ-बऊली के तीर ले घलो,

लहुटेल पड़थे दुच्छा ।।

अइसने म कइसे करही, 

बिन मुंहुँ के परानी ।

 पियास म बियाकुल हे, 

इती-उती खोजे पानी ।।

जुड़ छाँव खोजे सबो, 

नइ भाये बुता काम।

लकालक जरत हवे, एसो के घाम ।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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