Friday, 18 April 2025

विश्व गौरैय्या दिवस विशेष- दोहा गीत

 विश्व गौरैय्या दिवस विशेष- दोहा गीत


गौरैय्या चिरई हरौं, फुदकत रहिथौं खोर।

चींव चींव चहकत रथौं, नाँव लेत मैं तोर।।


मोर पेट भर जाय बस, दाना  देबे  छीत।

पानी रखबे घाम मा, जिनगी जाहूँ जीत।।

गोटीं मोला मारके, देथस काबर खेद।

भले पड़े या झन पड़े, जी हो जाथे छेद।।

हावय तोरे हाथ मा, ये जिनगी हा मोर।

चींव चींव चहकत रथौं, नाँव लेत मैं तोर।।


दू दाना के आस मा, आथँव बिना बुलाय।

कभू पेट जाथे अघा, कभू रथँव बिन खाय।

जंगल झाड़ी भाय नइ, नइ भाये वीरान।

मनुष देख फुदकत रथँव, मैं पंछी अंजान।।

पानी पुरवा पेड़ मा, बिख जादा झन घोर।।

चींव चींव चहकत रथौं, नाँव लेत मैं तोर।।


बाढ़त हावय ताप हा, बाढ़त हे संताप।

छिन भर मा मर जात हौं, मैंहा अपने आप।

सबदिन मैं फुदकत रहौं, इही हवै बस आस।

गाना गाहूँ तोर बर, छोड़ भूख अउ प्यास।

कुनबा देख सिरात हे, आरो ले ले मोर।।

चींव चींव चहकत रथौं, नाँव लेत मैं तोर।।


जीतेंद्र वर्मा"खैझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


गौरइया


परछी अँगना मा फुदक, मन ला लेवै जीत।

वो गौरइया नइ दिखे, नइ सुनाय अब गीत।।

नइ सुनाय अब गीत, सिरावत हे गौरइया।

मारे पानी घाम, मनुष तक हे हुदरैया।

छागे छत सीमेंट, जिया मा गड़गे बरछी।

उजड़त हे बन बाग, कहाँ हे परवा परछी।।


काँदी पैरा जोड़ के, झाला अपन बनाय।

ठिहा ठौर के तीर मा, गौरइया इतराय।।

गौरइया इतराय, चुगे उड़ उड़ के दाना।

छत छानी मा बैठ, सुनावै गुरतुर गाना।

आही गाही गीत, रखव जल भरके नाँदी।

गौरइया के जात, खोजथे पैरा काँदी।।


दाना पानी छीन के, हावय मनुष मतंग।

बाढ़त स्वारथ देख के, गौरइया हे दंग।।

गौरइया हे दंग, तंग जिनगी ला पाके।

गाके काय सुनाय, मौत के मुँह मा जाके।

छिन छिन सुख अउ चैन, झरे जस पाके पाना।

कहाँ खुशी सुख पाय, कोन ला माँगे दाना।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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कुंडलियाँ


चिरई बइठे हाथ मा,कइसे चूमय गाल।

मनखे मनहा आज तो,बनगे हावै काल।

बनगे हावै काल, हवा पानी ला चुँहके।

मरे पखेड़ू भूख,छिंनय चारा ला मुँह के।

जंगल झाड़ी काट, करत हे मनके तिरई।

काखर कर बतियाय,अपन पीरा ला चिरई।


खैरझिटिया

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