विश्व आदिवासी दिवस की ढेरों बधाइयाँ
मैं रहवया जंगल के- आल्हा छन्द
झरथे झरना झरझर झरझर, पुरवाही मा नाचय पात।
हवै कटाकट डिही डोंगरी, कटथे जिंहा मोर दिन रात।
डारा पाना काँदा कूसा, हरे मोर मेवा मिष्ठान।
जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना, लगथे मोला सरग समान।
कोसा लासा मधुरस चाही, नइ चाही मोला धन सोन।
तेंदू मउहा चार चिरौंजी, संगी मोर साल सइगोन।
मोर बाट ला रोक सके नइ, झरना झिरिया नदी पहाड़।
सुरुज लुकाथे बन नव जाथे, खड़े रथौं सब दिन मैं ठाड़।
घर के बाहिर हाथी घूमय, बघवा भलवा बड़ गुर्राय।
चोंच उलाये चील सोचथे, लगे काखरो मोला हाय।
छोट मोट दुख मा घबराके, जाय मोर नइ जिवरा काँप।
रोज भेंट होथे बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप।।
काल देख के भागे दुरिहा, मोर हाथ के तीर कमान।
झुँझकुर झाड़ी ऊँच पहाड़ी, रथे रात दिन एक समान।
रेंग सके नइ कोनो मनखे, उहाँ घलो मैं देथौं भाग।
आलस अउ जर डर जर जाथे, हवै मोर भीतर बड़ आग।
बदन गठीला तन हे करिया, चढ़ जाथौं मैं झट ले झाड़।
सोन उपजाथौं महिनत करके, पथरा के छाती ला फाड़।
घपटे हे अँधियारी घर मा, सुरुज घलो नइ आवय तीर।
देख मोर अइसन जिनगी ला, थरथर काँपे कतको वीर।
शहर नगर के शोर शराबा, नइ जानौं मोटर अउ कार।
माटी ले जुड़ जिनगी जीथौं, जल जंगल के बन रखवार।
आँधी पानी बघवा भलवा, देख डरौं नइ बिखहर साँप।
मोर जिया हा तभे काँपथे, जब होथे जंगल के नाँप।
पथरा कस ठाहिल हे छाती, पुरवा पानी कस हे चाल।
मोर उजाड़ों झन घर बन ला, झन फेकव जंगल मा जाल।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
विश्व आदिवासी दिवस के आप सब ला सादर बधाई
जंगल म बाँस के
जंगल म बाँस के,
कइसे रहँव हाँस के।
खेवन खेवन खाँध खींचथे,
चीखथे सुवाद माँस के।
------------------------।
सुरसा कस बाढ़े।
अँकड़ू बन वो ठाढ़े।
डहर बाट ल लील देहे,
थोरको मन नइ माढ़े।
कच्चा म काँटा खूँटी,
सुक्खा म डर फाँस के।
--------------------------।
माते हे बड़ गइरी।
झूमै मच्छर बइरी।
घाम घलो घुसे नही,
कहाँ बाजे पइरी।
कइसे फूकँव बँसुरी,
जर धर साँस के---।
झुँझकुर झाड़ी डार जर,
काम के न फूल फर।
सताये साँप बिच्छी के डर,
इँहा मोला आठो पहर।
बिछे हवे काँदी कचरा,
बिजराय फूल काँस के।
--------------------------।
शेर भालू संग होय झड़प।
कोन सुने मोर तड़प।
आषाढ़ लगे नरक।
जाड़ जड़े बरफ।
घाम घरी के आगी,
बने कारण नास के।
----------------------।
मोर रोना गूँजे गाना सहीं।
हवा चले नित ताना सहीं।
लाँघन भूँखन परे रहिथौं,
सुख दुर्लभ गड़े खजाना सहीं।
जब तक जिनगी हे,
जीयत हँव दुख धाँस के।
----------------------------।
रोजे देखथों बाँस के फूल।
जिथौं गोभे हिय मा शूल।
बस नाम भर के हमन,
जल-जंगल-जमीन के मूल।
परदेशिया मन पनपगे,
हमन ला झाँस के।
-------------------------।
पाना ल पीस पीस पी,
पेट के कीरा संग,
मोर पीरा घलो मरगे।
मोर बनाये चटई खटिया,
डेहरी म माड़े माड़े सरगे।
प्लास्टिक के जुग आगे,
सब लेवै समान काँस के।
------------------------।
न कोयली न पँड़की,
झिंगरा नित झकझोरे।
नइ जानँव अँजोरी,
अमावस आसा टोरे।
न डाक्टर न मास्टर,
मैं अड़हा जियौं खाँस खाँस के।
------------------------------------।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
No comments:
Post a Comment