Friday, 18 April 2025

जेठ महीना- सार छंद

 जेठ महीना- सार छंद


जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।

धनबोहर मा फूल फुले हे, टपकै आमा गरती।।


लाली फुलवा गुलमोहर के, गावत हावै गाना।

नवा पहिर के हरियर लुगरा, बिरवा मारे ताना।।

छल बल धर गरमाये मनखे, निकलै बेरा ढरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।।


निमुवा अमवा बर पीपर हा, जुड़ जुड़ छँइहा बाँटै।

तरिया नदिया कुँवा सुखावै, हवा बँवंडर आँटै।।

होय फूल फर कतको झरती, ता कतको के फरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।


जीव जंतु सब लहकै भारी, पानी तीरन लोरे।

भाजी पाला अब्बड़ निकलै, मोहे बासी बोरे।।

पेड़ प्रकृति हा जिनगी आये, सुख दुख देय सँघरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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