Friday, 18 April 2025

गर्मी छुट्टी(रोला छंद)

 """"""""गर्मी छुट्टी(रोला छंद)


बन्द हवे इस्कूल,जुरे सब लइका मन जी।

बाढ़य कतको घाम,तभो घूमै बनबन जी।

मजा उड़ावै घूम,खार बखरी अउ बारी।

खेले  खाये खूब,पटे  सबके  बड़ तारी।


किंजरे धरके खाँध,सबो साथी अउ संगी।

लगे जेठ  बइसाख,मजा  लेवय  सतरंगी।

पासा  कभू  ढुलाय,कभू  राजा अउ रानी।

मिलके खेले खेल,कहे मधुरस कस बानी।


लउठी  पथरा  फेक,गिरावै  अमली मिलके।

अमरे आमा जाम,अँकोसी मा कमचिल के।

धरके डॅगनी हाथ,चढ़े सब बिरवा मा जी।

कोसा लासा हेर ,खाय  रँग रँग के खाजी।


घूमय खारे  खार,नहावय  नँदिया  नरवा।

तँउरे ताल मतंग,जरे जब जब जी तरवा।

आमाअमली तोड़,खाय जी नून मिलाके।

लाटा खूब बनाय,कुचर अमली ला पाके।


खेले खाय मतंग,भोंभरा  मा गरमी के।

तेंदू कोवा चार,लिमउवा फर दरमी के।

खाय कलिंदर लाल,खाय बड़ ककड़ी खीरा।

तोड़  खाय  खरबूज,भगाये   तन   के  पीरा।


पेड़ तरी मा लोर,करे सब हँसी ठिठोली।

धरे  फर  ला  जेब,भरे बोरा अउ झोली।

अमली आमा देख,होय खुश घर मा सबझन।

कहे  करे बड़ घाम,खार  मा  जाहू  अबझन।


दाइ ददा समझाय,तभो कोनो नइ माने।

किंजरे  घामे घामे,खेल  भाये  ना आने।

धरे गोंदली जेब,जेठ ला बिजरावय जी।

बर पीपर के छाँव,गाँव गर्मी भावय जी।


झट बुलके दिन रात,पता कोई ना पावै।

गर्मी छुट्टी आय,सबो  मिल मजा उड़ावै।

बाढ़े मया पिरीत,खाय अउ खेले मा जी।

तन मन होवै पोठ,घाम  ला झेले मा जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

No comments:

Post a Comment