कुकुभ छंद-पिंजरा के पंछी(गीत)
घर में बैठे देख मनुष ला,पिंजरा के पंछी बोले।
कइसे लगथे बता धँधाये,पाँव पाँख ला बिन खोले।
असकटात हस दू दिन मा तैं,अपने महल अटारी मा।
मन नइ माढ़त हावय तोरे,कुरिया अँगना बारी मा।
बित्ता भरके मोरे पिंजरा,तनमन ला रहिरहि छोले।
घर में बैठे देख मनुष ला,पिंजरा के पंछी बोले----
दाना पानी देके मोला,धाँधे रहितथ तँय रोजे।
अउ कहिथस मैं गावौं गुरतुर,डर दुख जिवरा मा बोजे।
बँधे बँधे पिंजरा मा जिनगी,डगमग डगमग नित डोले।
घर में बैठे देख मनुष ला,पिंजरा के पंछी बोले----
मन मोरो नइ माड़े भैया,पिंजरा के बीच धँधाये।
छूना ऊँच अगास चाहथौं, डेना पंखा फइलाये।
तोर गली मा आफत आ हे,पिंजरा के पंछी होले।
घर में बैठे देख मनुष ला,पिंजरा के पंछी बोले--
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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