गंगा अमली-रोला छंद
गंगा अमली नाम, सुनत जिवरा ललचाये।
फर गर्मी के आय, खाय तउने गुण गाये।।
होथे बड़का पेड़, खेत बन बाग डहर मा।
काँटा काँटा देख, जिया हर काँपे डर मा।1
खाये मा बढ़ जाय, रोग प्रतिरोधक क्षमता।
होय विटामिन खूब, खाय घुम जोगी रमता।।
कोलेस्ट्राल घटाय, त्वचा के चमक बढ़ाये।
राखै शांत दिमाग, काम कैंसर मा आये।।2
हिरदय रोग भगाय, आयरन तन ला देवै।
कब्ज दस्त अउ गैस, पेट के झट हर लेवै।।
गुण जाने ते खाय, तोड़ नइ ते ले ले के।
डँगनी मा अमराय, हाथ आये ले दे के।।3
काँटा हा चेताय, ढंग जिनगी जीये के।
सहज नही मिल पाय, चीज खाये पीये के।।
धरना पड़थे धीर, हाथ आथे तब फर जर।
काँटा काँटा बीच, बीतथे नित जिनगी हर।।4
घुमघुम घामे घाम, पेड़ एको नइ छोड़ें।
धरके डँगनी हाथ, लोग लइकन मन तोड़ें।।
खायें बाँट बिराज, बचा के घर तक लाये।
ददा बबा चिल्लाय, तहू मन चुप हो जाये।।5
खई खजानी आज, मिलत हे कई किसम के।
अब के लइका लोग, देख बारी बन चमके।।
होगे सब सुखियार, कोन फर तोड़े जाये।
घर मा खेलें खेल, चिप्स अउ बिस्कुट खाये।6
बेल आम अमरूद, तोड़ खुद जउने खाये।
जाने महिनत मोल, हाँस के समय बिताये।।
लइका पन मा ज्ञान, जउन मन हा पा जाथे।
बेर बिकट जब आय, धीर धर समय बिताथे।।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
अन्य नाम- जंगली जलेबी, विलायती इमली
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