Monday, 26 August 2024

आठे परब के सादर बधाई

 आठे परब के सादर बधाई


मोला किसन बनादे (सार छंद)


पाँख  मयूँरा  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|

हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|

फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |

घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|

तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|

बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|

संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|

रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |

बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "

बालको (कोरबा )


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1,मदिरा सवैया


मोहन माखन माँगत हे मइया मुसकावत देखत हे।

गोकुल के सब गोपिन ला घनश्याम दहीं बर छेकत हे।

देख गुवालिन के मटकी धरके पथरा मिल फेकत हे।

तारन हार हरे हरि हा पँवरी म सबे सिर टेकत हे।


2, मतगयंद सवैया


देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।

रोवत हावय गाय गरू झट लेज मधूबन तीर चराना।

कान ल मोर सुहाय नही कुछु आ मुरलीधर गीत सुनाना।

काल बने बड़ कंस फिरे झट आ मनमोहन प्राण बचाना।


गोप गुवालिन के सँग मोहन रास मधूबन तीर रचावै।

कंगन देख बजे बड़ हाथ के पैजन पाँव के गीत सुनावै।

मोहन के बँसरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके मन भावै

एक घड़ी म दिखे सबके सँग एक घड़ी सबले दुरिहावै।


चोर सहीं झन आ ललना झन खा ललना मिसरी बरपेली।

तोर हरे सब दूध दहीं अउ तोर हरे सब माखन ढेली।

आ ललना झट बैठ दुहूँ मँय दूध दहीं ममता मन मेली।

मोर जिया ल चुरा नित नाचत गावत तैं करके अटखेली।


गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं गा।

फूल गुलाब न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं गा।

मोर सबे सुख शांति उड़े मुरलीधर रास रचे न कहीं गा।

दर्शन दे झट आ मनमोहन हाथ धरे हँव दूध दहीं गा।


धर्म ध्वजा धरनी धँसगे झटले अब आ करिया फहराना।

खोर गली म भरे हे दुशासन द्रौपति के अब लाज बचाना।

शासक संग समाज सबे ल सुशासन के सत पाठ पढ़ाना।

झाड़ कदम्ब जमे कटगे यमुना मतगे मनमोहन आना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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लोकछंद- रामसत्ता


विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।

दीन दुखी के डर दुख हरके, धर्म ध्वजा फहराये हो राम।


एक समय देवकी बसदेव के, राजा कंस ब्याह रचाये।

उही बेर मा आकाशवाणी, कंस के काने मा सुनाये।।

आठवाँ सुत हा मारही तोला, सुनत कंस भारी बगियाये।

बाँध छाँद बसदेव देवकी ला, कारागर मा झट ओइलाये।।

*सुख शांति के देखे सपना, एके छिन छरियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।1


राजा कंस हा होके निर्दयी, देवकी बसदेव पूत मारे।

करँय किलौली दूनो भारी, रही रही के आँसू ढारे।।

थर थर काँपे तीनो लोक हा, कंस करे अत्याचारी।

भादो अठमी के दिन आइस, प्रभु अवतरे के बारी।।

*बिजुरी चमके बादर गरजे, नदी ताल उमियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।2


अधरतिहा अवतरे कन्हैया, बेड़ी भाँड़ी सब टुटगे।

देवी देवता फूल बरसाये, राजा बसदेव देख उठगे।।

देख मनेमने गुनय बसदेव, निर्दयी राजा के हे डर।

धरे कन्हैया ला टुकनी में, चले बसदेव नंद के घर।।

*यमुना बाढ़े शेषनांग ठाढ़े, गिरधारी मुस्काये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।3


छोड़ कन्हैया ला गोकुल में, माया ला धरके लाये।

समै के काँटा रुकगे रिहिस, बसदेव सुधबुध बिसराये।।

रोइस माया तब जागिस सब, आइस दौड़त अभिमानी।

पुत्र नोहे पुत्री ए राजा, हाथ जोड़ बोले बानी।।

*विष्णु के छल समझ कंस हा, मारे बर ऊँचाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।4


छूटे कंस के हाथ ले माया, होय देख पानी पानी।

तोर काल होगे हे पैदा, सुन के काँपे अभिमानी।।

जतका नान्हे लइका हावै, कहै मार देवव सब ला।

सैनिक मन के आघू मा, करे किलौली कई अबला।

*रोवै नर नारी मन दुख मा, हाँहाकार सुनाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।5


राजा कंस के काल मोहना, गोकुल मा देखाय लीला।

दाई ददा संग सब ग्राम वासी, नाचे गाये माई पीला।।

छम छम बाजे पाँव के पइरी, ठुमुक ठुमुक चले कन्हैया।

शेषनाग के अवतारे ए, संग हवै बलदऊ भइया।।

*किसन बलदऊ ला मारे बर, कंस हा करे उपाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।6


कंस के कहना मान पुतना, गोकुल नगरी मा आये।

भेस बदल के कान्हा ला धर, गोरस अपन पिलाये।।

उड़े गगन मा मौका पाके, कान्हा ला धरके पुतना।

चाबे स्तन ला कान्हा हा, तब भारी भड़के पुतना।।

*असल भेस धर गिरे भूमि मा, पुतना प्राण गँवाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।7


पुतना बध सुन तृणावर्त ला, कंस भेजे गोकुल नगरी।

बनके आय बवंडर दानव, होगे धूले धूल नगरी।।

मारे लात फेकाये दानव, प्राण पखेडू उड़े तुरते।

बगुला भेस बनाके बकासुर, गोकुल मा आये उड़ते।

भारी भरकम देख बगुला ला, नर नारी घबराये हो राम।

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।8


अपन चोंच मा मनमोहना ला, धरके बगुला उड़िड़ाये।

चोंच फाड़ बगुला ला मारे, कंस सुनत बड़ घबराये।।

बछरू रूप धरे बरसासुर, मोहन ला मारे आये।

खुदे बरसासुर हा मरगे, अघासुर आ डरह्वाये।।

*गुफा समझ सब ग्वाल बाल मन, अजगर मुख मा जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।9


कंस के भेजे सब दानव मन, एक एक करके मरगे।

गोकुल वासी जय बोलावै, दानव मन मरके तरगे।।

माखन खावै दही चोरावै, मटकी फोड़े गुवालिन के।

मुँह उला के जग देखावै, माटी खावै बिनबिन के।।

*कदम पेड़ मा बइठ कन्हैया, मुरली मधुर बजाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।10


पेड़ बने दुई यक्ष रिहिन हे, कान्हा उन ला उबारे।

गेंद खेलन सब ग्वाल बाल संग, मोहन गय यमुना पारे।

रहे कालिया नाग जल मा, चाबे नइ कोनो बाँचे।

कालीदाह मा कूदे कन्हैया, नाँग नाथ फन मा नाँचे।

*गोबर्धन के पूजा करके, इन्द्र के घमंड उतारे हो  राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।11


मधुर मधुर मुरली धुन छेड़े, रास रचाये मधुबन मा।

गाय बछरू ला गोकुल के, कान्हा चराये कानन मा।।

सिखाय नाहे बर गोपियन ला, चीर हरण करके कान्हा।

राधा ला भिंगोये रंग मा, पिचकारी भरके कान्हा।।

*कृष्ण बलदउ ला अक्रूर जी, मथुरा लेके जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।12


गोकुल मधुबन मरघट्टी कस, बिन कान्हा के लागत हे।

मनखे मन कठवा कस होगे, सूतत हे ना जागत हे।।

यमुना आँसू मा भरगे हे, रोवय जम्मो नर नारी।

कान्हा जाके मथुरा नगरी, दुखियन के दुख ला हारी।

*कंस ममा ला मुटका मारे, लहू के धार बोहाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।13


अत्याचारी कंस मरगे, जरासन्त शिशुपाल पाल मरे।

असुरन मनके नाँव बुझागे, विदुर सुदामा सखा तरे।।

दुशासन चिर खींचत थकगे, बने सहारा दुरपति के।

महाभारत ला पांडव जीतिस, कौरव फल पाइस अति के।

*हरि कथा हे अपरम पारे, खैरझिटिया का सुनाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।14


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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कलजुग म घलो आबे कान्हा

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स्वारथ म  रक्सा  बनके मनखे,

सिधवा गोप-गुवाल ल मारत हे।

कालीदाह   के   कालिया   नाग,

गली - गली   म    फुस्कारत हे।

बरसत हे ईरसा-दुवेस लड़ई-झगरा,

मया  के  गोवरधन उठाबे कान्हा।।

कलजुग  म  घलो  आबे   कान्हा।।


देवकी-बसदेव  ल  का  किबे,

जसोदा-नन्द  घलो  रोवत  हे।

कहाँ बाजे बंसुरी,कती रचे रास?

घर - घर  महाभारत  होवत   हे।

सड़क डहर म बइठे हे तोर गईया,

मधुबन म ले जाके चराबे कान्हा।

कलजुग  म  घलो आबे   कान्हा।


दूध - दही  ले  दुरिहाके  मनखे,

मन्द - मऊहा   म  डूब   गे  हे।

अलिन-गलिन म  सोवा  परे हे,

कदम  के  रुखवा  टूट  गे  हे।

घेंच म बांधे घूमे भरस्टाचार के हांड़ी,

आके  दही  लूट  देखादे  कान्हा।

कलजुग  म  घलो  आबे  कान्हा।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

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गीत-करिया कन्हैया आ


मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।

बंसी के बजइया आ----

माखन खवैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


तोर बिना गोकुल न, तोर बिना मधुबन।

तोरबिन बन बाग सुन्ना, तोरबिन भव भुवन।।

मोर पाँख पहरैया आ-----

नाग के नथैया आ-------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


नंद यशोदा रोवैं, रोवैं गोपी ग्वाला।

राधा के आँखी के, बोहै नदी नाला।।

चीर हरैया आ-----

पीर हरैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


हवा चलत नइहे, पत्ता हलत नइहे।

गरवा चरत नइहे, बिरवा फरत नइहे।।

गोवर्धन उठैया आ------

भवपार लगैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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रामसत्ता-दशावतार गाथा


कल्कि रूप धर ये कलयुग मा, आके दरस देखादे हो राम।

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


पहली लिये तैं मत्स्य अवतारे।

जल परलय ले जग ला उबारे।।

*सत्यव्रत ला तत्वज्ञान दे, मत्स्य पुराण सुनाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


कच्छप रूप दुसर तैं बनाये।

देव दानव मनके भाग जगाये।।

*मंदराचल पर्वत ला बोह के, सागर मंथन कराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


तीसर रूप बरहा अवतारे।

हिरण्याक्ष के भुजा उखाड़े।।

*समुंद में डूबे धरती ला, तैंहर बाहिर निकाले हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


चौथा रूप मा नरसिंह बनके।

बने सहाई तैं सुर जन के।।

*हिरण्यकश्यप मार गिराके, प्रह्लाद पार लगाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


पाँचवा रूप धर वामन अवतारे।

राजा बलि के गरब उतारे।।

*नाप पाँव मा तीनो लोक, लीला गजब देखाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


परसुराम के ले अवतारे।

सहस्रबाहु ला दिये पछाड़े।।

*क्षत्रिय मनके गरब तोड़ के,जपतप जग ला सिखाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


सातवां अवतार मा बन राम।

त्रेता युग ला तारे तमाम।।

*मर्यादा पुरुषोत्तम बनके, रावण मार गिराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


आठवा रूप मा बन गोपाला।

कहाये नंद यशोदा के लाला।।

*अर्जुन के रथ हाँक कन्हैया, धर्म ध्वजा लहराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


नवम रूप मा बुद्ध बनके।

बनगेस राजा तैं जन जन के।।

*सत मारग धर जपतप करके,ज्ञान के धार बोहाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


कल्कि रूप धर आजा प्रभु जी।

कलजुग ला सिरजा जा प्रभु जी।।

*सुमरत हावन तोला भगवन, आके दरश देखाजा हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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........माते हे दही लूट..........

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गोकुल गँवागे,ब्रिज बोहागे |

सिरागे जम्मो सुख.............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


परिया तरिया पार लुटागे |

डहर गाँव खेत-खार लुटागे |

नांगर बक्खर बखरी -बारी,

खेक्सा,करेला,सेमी नार लुटागे |

कागज कस फूल ममहाय नही|

गाय-गरवा कोनो ल भाय नही |

न गोपी हे न ग्वाला हे |

जम्मो मनचलहा, मतवाला हे |

नइ पीये दूध दही,

सब ढ़ोकत हें मँउहा घूट...............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


जसोदा के लोरी लुटागे |

नंद ग्राम के  होरी लुटागे |

दुहना,मथनी,डोरी लुटागे |

किसन बलदाऊ के जोड़ी लुटागे |

पेंट पुट्टी के दिवाल म,

आठे कन्हैया नइ नाँचे |

घर घर भरे असुर के मारे,

गोकुल- मधुबन नइ बाँचे |

अपनेच पेट के देखइया सब,

सुदामा मरत हे भूख.................|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


पहली कस दही,

अब जमे नही |

घीव-लेवना नोहर होगे,

कड़ही तको बने नही |

दूध दही होटल म होत हे |

ग्वाल-बाल गली-गली म रोत हे |

न गौठान हे,न चरागन हे,

कहॉ बाजे बंसरी,नइ हे कदम रूख.....|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


                जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                        बाल्को(कोरबा )

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गीत-धर्म धजा लहराही कोन


ये कलयुग मा दीन हीन के, साथ देय बर आही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा लहराही कोन।।


सौ झन अधमी गरजत हावैं, धन अउ बल के बल रोज।

फिरैं मिलावत हाँ में हाँ सब, फोकट के खा पी अउ बोज।

सच्चा एक अकेल्ला कोती, आज भला बतियाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा लहराही कोन।।


करिया नाँग घलो ले बिखहर, बनगे हावैं मनखे आज।

स्वारथ खातिर फुस्कारत हें, बेच-भाँज डारे हें लाज।

सबे ललावैं हाड़ माँस बर, दूध दही घी खाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा लहराही कोन।।


बिन ग्वाला के गाय गरू अउ, बिन मुरली के मधुबन रोय।

दाता तरसे दार भात बर, देखावा के पूजा होय।

सुख सुविधा तज दनुज दलन बर, कंस नगरिया जाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा लहराही कोन।।


छल प्रपंच होवत हे भारी, अँधरा के सिर मा हे ताज।

हाँसत हवै दुशासन हिहि हिहि, चुपे चाप हें सभा समाज।

पापी मनके गरब तोड़ के, दुरपति लाज बचाही कोन।

सत के रथ के बने सारथी, धर्म धजा लहराही कोन।।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को,कोरबा

Thursday, 22 August 2024

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

 भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)


भोजली दाई ह बढ़ै, लहर लहर करै,

जुरै सब बहिनी हे, सावन के मास मा।

रेशम के डोरी धर, अक्षत ग रोली धर,

बहिनी ह आये हवै, भइया के पास मा।

फुगड़ी खेलत हवै, झूलना झूलत हवै,

बाँहि डार नाचत हे, जुरे दिन खास मा।

दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,

सावन अँजोरी उड़ै, मया ह अगास मा।


धान पान बन डाली, भुइयाँ के हरियाली।

सबे खूँट खुशहाली, बाँटे दाई भोजली।

पानी कांजी बने बने, सब रहै तने तने।

दुख डर दरद ला, काँटे दाई भोजली।

माई खोली मा बिराज, सात दिन करे राज।

भला बुरा मनखे ला, छाँटे दाई भोजली।

लहर लहर लहराये, नवा नत्ता बनवाये।

मीत मितानी के डोर, आँटे दाई भोजली।


माई कुरिया मा माढ़े,भोजली दाई हा बाढ़े।

ठिहा ठउर मगन हे, बने पाग नेत हे।

जस सेवा चलत हे, पवन म  हलत हे,

खुशी छाये सबो तीर, नाँचे घर खेत हे।

सावन अँजोरी पाख, आये दिन हवै खास,

चढ़े भोजली म धजा, लाली कारी सेत हे।

खेती अउ किसानी बर, बने घाम पानी बर

भोजली मनाये मिल, आशीष माँ देत हे।


अन्न धन भरे दाई, दुख पीरा हरे दाई,

भोजली के मान गौन, होवै गाँव गाँव मा।

दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,

धुँवा उड़े धूप के जी , भोजली के ठाँव मा।

मुचमुच मुसकाये, टुकनी म शोभा पाये,

गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।

राखी के बिहान दिन, भोजली सरोये मिल,

बदे मीत मितानी ग, भोजली के नाँव मा।


राखी के पिंयार म जी, भोजली तिहार म जी,

नाचत हे खेती बाड़ी, नाचत हे धान जी।

भुइँया के जागे भाग, भोजली के भाये राग,

सबो खूँट खुशी छाये, टरै दुख बान जी।

राखी छठ तीजा पोरा, सुख के हरे जी जोरा,

हमर गुमान हरे, बेटी माई मान जी।

मया भाई बहिनी के, नोहे कोनो कहिनी के,

कान खोंच भोजली ला, बनाले ले मितान जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


भोजली तिहार के बधाई,,जोहार जोहार

लावणी छन्द गीत- मनखे रे स्वभिमानी बन

 लावणी छन्द गीत- मनखे रे स्वभिमानी बन


फोकट बनथस अभिमानी तैं, मनखे रे स्वभिमानी बन।

चाल चलन आदत कर बढ़िया, जग बर नवा कहानी बन।।


झन कखरो आघू पाछू हो, कुकुर बरोबर पुछी हला।

दुसर इशारा मा बन बानर, झने पछीना खून गला।।

अपन पाथ ला खुदे बनाले, नदिया के तैं पानी बन।

फोकट बनथस अभिमानी तैं, मनखे रे स्वभिमानी बन।।


मनखेपन के लाज राख ले, गदहा बन झन ढो झोला।

धरम करम धर काज करत रह,फल मिलही खच्चित तोला।

साध साधना करके सब ला, गुण गियान धर ग्यानी बन।

फोकट बनथस अभिमानी तैं, मनखे रे स्वभिमानी बन।।


समय गुलामी के अब नइहे, तभो गुलामी करथस तैं।

लोभ मोह के चक्कर में पड़, पर के पँवरी परथस तैं।।

सही गलत ला नाप तौल ले, झन हाँ भरत जुबानी बन।

फोकट बनथस अभिमानी तैं, मनखे रे स्वभिमानी बन।।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

अफसर बाबू नेता गुंडा, कखरो ले पहिचान कहाँ हे।

 गीत(16-16 मात्रा)


अफसर बाबू नेता गुंडा, कखरो ले पहिचान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


बाजा असन बजाके जाथे, जउने आथे तउने हम ला।

जादा बर जिद कभू करन नइ, सबदिन माँगत रहिथन कम ला।

का देखावा रुपिया पइसा, पेट भरे बर धान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


बने ढंग ले करनी के फल, हाथ घलो नइ आय हमर गा।

खड़े रथे नित डँगनी धरके, बिचौलिया मन खाय अमर गा।

सीले रहिथन मुँह ला सब दिन, अधर भरे मुस्कान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


जीभ लमइया के झोली मा, सबे सहज आ जावत हावयँ।

काम कमइया एती ओती, दर दर भटका खावत हावयँ।

हमर असन के कहाँ पुछारी, ये जग मा ईमान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


कोट कछेरी सचिव सिपइहा, डाँका डारे नित थैली मा।

लेवैं कोल्लर कोल्लर भरके, देवैं बस पउवा पैली मा।

अंधेरी होवत हें भारी, सत साखी भगवान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


नियम धियम हमरे बर हावय, हमरे बर हे गलत सही हा।

आँख दिखाथे सबे हमी ला, गड़े सबे ला हमर नही हा।।

चमचागिरी करत हें सबझन, स्वभिमानी इंसान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


चित्र---ये फूल है या फर

सुरता के सावन-कुकुभ छंद

 सुरता के सावन-कुकुभ छंद


बही तोर सुरता के सावन, रहरहि आके भींगाथे।

पार जिया के बाँधौं कतको, मया छलक तभ्भो जाथे।।


करिया चुन्दी उड़ै हवा मा, लागे बदरा हे छाये।

आँखी चमके बिजुरी जइसे, मुस्की हा गाज गिराये।।

बूँद मया के बरसै रझरझ, मन मँजूर बन इतराथे।

बही तोर सुरता के सावन, रहरहि आके भींगाथे।


रोम रोम हा मोर रूख कस, लहर लहर बड़ लहराये।

मया जाल मा अरझे सपना, मछरी जइसे अँटियाये।।

नाम रटे मन दादुर बनके , फुरफुन्दी कस उड़ियाथे।।

बही तोर सुरता के सावन, रहरहि आके भींगाथे।।


आस जिया के ताल नदी कस, पी पी के नीर अघाये।

मया दया के घउदे खेती, सावन जिवरा हरसाये।।

झड़ी सही बरसे कतको दिन, सब सुधबुध जिया गँवाथे।

बही तोर सुरता के सावन, रहरहि आके भींगाथे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


चारो  मूड़ा  देख  ले,पानी  हे  जलरंग।

बढ़िया समे बिताय हौं,सागर तोरे संग।

                                   खैरझिटिया

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

मनखे बड़ हे छोट गा,कइसे  पाही पार।

मया धरे आवय सदा,सागर तोर झलार।

           आर के बिच विसाखापट्टनम से

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

मन  ला मोहत मोर हे,सागर तोर झलार।

हद मा रहिबे तैं अपन,झन चढ़बे गा पार।

            आर के बिच विसाखापट्टनम से

कुंडलियाँ छंद-स्वराज

 कुंडलियाँ छंद-स्वराज


साल पछत्तर बीत गे, हम ला पाय सुराज।

तभो कई ठन चीज में, पाछू हावन आज।।

पाछू हावन आज, गिनावन काला काला।

बूता दू ठन होय, चार हें गड़बड़ झाला।।

रोजगार बिन रोय, मनुष मन सौ मा सत्तर।

बिगड़े शिक्षा स्वास्थ, बीत गे साल पछत्तर।।


सेवा शिक्षा स्वास्थ हा, बनगे हें बिजनेस।

मनमानी माँगे रकम, लोक लाज ला लेस।

लोक लाज ला लेस, चलत हे कतको बूता।

बड़े बड़े अउ होय, छोट के घींसय जूता।।

कुर्सी वाले खाय, हाँस के सब दिन मेवा।

फुदरत हे वैपार, नाम के हावय सेवा।।


वैपारी के राज हे, रोय किसान जवान।

छोट मोट के हाथ मा, नून तेल ना धान।

नून तेल ना धान, जुटा पावत हे कतको।

महँगाई ला देख, उतर जावत हे पटको।

ना काली ना आज, छोट के आइस बारी।

कर काला बाजार, बढ़त हावयँ वैपारी।


बड़का मन के साथ मा, खड़े हवै सरकार।

भरै खजाना ला उँखर, आम मनुष ला मार।

आम मनुष ला मार, करत हावय मनमर्जी।

कहाँ मरे मोटाय, लाख मांगै वर अर्जी।

शासन अउ सरकार, आम जन ला दै हड़का।

ताल मेल बइठार, बइठ खावैं मिल बड़का।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday, 17 August 2024

नेता गिरी

 नेता गिरी


खेमा बदले के खेल जारी हे।

पद पाये बर पेलम पेल जारी हे।।


कोई आत हे ता कोई जात हे,

राजनीति के पटरी मा रेल जारी हे।।


मुर्गी चोर मंगलू काटत हे उमरकैद,

खूनी नेता मन के बेल जारी हे।।


वोट पाये बर बाँट देथे जनता ला,

खुद के पेंशन पइसा बर मेल जारी हे।।


सच के होगे हवय राम नाम सत,

झूठ के जघा जघा सेल जारी हे।।


पास होगे नेता पद पाके सब मा,

बिकास बाबू के फेल जारी हे।।


बाँटे बर हे बैर तोर मोर नेता तीर,

सात पीढ़ी बर धन सकेल जारी हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

राखी

*गीत-राखी*

बाँध मोर कलाई मा, राखी बहिनी।
तोर मोर मया के,साखी वो बहिनी।

सावन महीना भर नैना बाट तकथे।
पुन्नी हबरथे मोर किस्मत चमकथे।
रेशम के डोरी, मोर पाँखी वो बहिनी।
बाँध मोर कलाई मा राखी बहिनी---।

दाई के आशीष हे, ददा के दुलार हे।
सावन पुन्नी,भाई बहिनी के तिहार हे।
सदा शुभ रही हमर,राशि वो बहिनी।
बाँध मोर कलाई मा, राखी बहिनी--।

लामे रही जिनगी भर मया के डोरी।
बाधा बिघन के,  जरा देहूँ होरी।
देखाही कोन तोला,आँखी वो बहिनी।
बाँध मोर कलाई मा, राखी बहिनी---।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

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गीत

न रेशम न धागा न डोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया।।

तोर मोर नत्ता के, इही डोरी साखी।
दुख दरद ले बचाही, तोला मोर राखी।
लाही जिनगी मा सुख के हिलोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया----------

देखे बर तोला तरसत रहिथे नैना।
उड़थे सावन भर मोर मन मैना।।
लेवत रहिबे सुख दुख के शोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया---------

सुरता के संदूक ला मिल दूनो खोलबों।
मया अउ पीरा के दू बोली बोलबों।
बसे रही अन्तस् मा घर खोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया---------

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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,,,,भैया मोर राखी(गीत),,,,

नोहे रेशम,न धागा,न डोर भैया।
ये  राखी   मया  हरे  मोर  भैया।

पंछी कस बनही,भैया  ये तोर पाँखी।
सबो दुख ले बँचाही,मोर बांधे राखी।
लाही जिनगी म,खुशी के हिलोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया-----------|

सुरुज कस चमकही,तोर माथा के कुमकुम।
सुख रहै जिनगी भर,पाँव ला चुम चुम।
लेवत रहिबे सबर दिन,मोर सोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया-----------।

दाई  अउ  ददा के,तँय नाम जगाबे।
मोरो डेहरी म नित,आबे अउ जाबे।
लाहू लोटा म पानी,मया घोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया-------।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
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परेवना राखी देके आ
----------------------------
परेवना कइसे जावौं रे,
भइया तीर तँय बता?
गोला-बारूद चलत हे मेड़ो म,
तँय राखी देके आ.............|

दाई-ददा के छँइहा म रहँव त,
बइठाके भइया ल मँझोत में।
बाँधौं राखी कुंकुंम लगाके,
घींव के दीया  के  जोत   में।
मोर   लगगे    बिहाव   अउ,
होगे भइया देस  के।
कइसे दिखथे मोर भइया ह,
आबे  रे   परेवना   देख  के।
सुख के सुघ्घर समाचार कहिबे,
जा भइया के संदेसा ला........|

सावन पुन्नी आगे जोहत होही,
मोर राखी के बाट रे।
धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,
फइलाके दूनो पाँख रे।
चमचम-चमचम चमकत राखी,
भइया ल बड़ भाही रे।
नाँव जगा के ,दाई-ददा के,
बहिनी ल दरस देखाही रे।
जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,
भइया  के  पता...............|

देखही तोला भइया ह परेवना,
बहिनी  के   सुरता  करही  रे।
जे हाथ म भइया के राखी बँधाही,
ते हाथ देस बर लड़ही रे।
थर-थर कापही बइरी मन ह,
गोली के बऊछार ले,
रक्षा करही राखी मोर भइया के,
बइरी अउ जर-बोखार ले।
जनम-जनम ले अम्मर रही रे,
भाई-बहिनी के नता...........।

            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
                 बालको(कोरबा)
                  998144175
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....@@राखी@@...(गीत)

बॉध मोर कलाई म,
राखी वो बहिनी..........|
हे तोर मोर मया के,
ये साखी वो बहिनी......|

ददा के आसीस हे,
दाई के दुलार हे  |
सावन पुन्नी,
भाई-बहिनी के तिहार हे |
बने रेसम के डोरी,
मोर जिनगी के पॉखी वो बहिनी...|
बॉध मोर................................|

रिमझिम सावन म,
मन मोर नाचे  |
बहिनी के मया ले,
गुथाही मोर हाथे  |
बिनती करव भगवान ले,
शुभ रहे तोर रासि वो बहिनी....|
बॉध मोर.............................|

तोर मया के डोरी,
मोर साथ रहे जिनगी भर |
तोर सुख-दुख म लामत,
मोर हाथ रहे जिनगी भर |
किरिया रॉखी हे,
कोन देखाही तोला ऑखी वो बहिनी..|
बॉध मोर ....................................|
                                 जीतेन्द्र वर्मा
                               बाल्को(कोरबा)

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राखी-बरवै छंद

राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।
भैया मोला देबे, मया दुलार।।

जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।
सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।

राखी रक्षा करही, बन आधार।
करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।

झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।
दया मया बरसाबे, देबे मान।।

हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।
नता बहिन भाई के, होही पोठ।।

धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।
बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।

राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।
आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।

सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।
जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।

लइकापन के सुरता, आथे रोज।
रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।

कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।
जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।

पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।
देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।

मोरो अँगना आबे, भैया मोर।
जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

रक्षाबन्धन की ढेरों बधाइयाँ💐💐

पोरा(तातंक छंद)

 पोरा(तातंक छंद)


बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।

जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।


बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।

पूजै नदिया बइला पोरा, सजा आरती के थारी।


भरे इही दिन दूध धान मा ,कोई नइ जावै डोली।

पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।


कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।

धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।


भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।

हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।


चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।

धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।


पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।

जुरमिल के सब संगी साथी ,रोटी पीठा हँस झेलै।


बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।

पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

Friday, 16 August 2024

सुरता मइके के-गीत

 : सुरता मइके के-गीत


सावन काँटेंव मैं गिनगिन, सुरता मा दाई वो।

कि आही तीजा लेय बर, भादो मा भाई वो।।


मइके के सुरता, नजरे नजर म झुलथे।

देखतेंव दसमत पेड़ ल, के फूल फुलथे।

मोर थारी अउ लोटा म, कोन बासी खाथे।

तुलसी चौरा म बिहना, पानी कोन चढ़ाते।

हे का चकचक ले उज्जर, कढ़ाई दाई वो--

आही तीजा------


गाय गरुवा मोर बिन, सुर्हरथे कि नही।

खेकसी कुंदरू बारी म फरथे कि नही।

कुँवा तरिया म पानी कतका भरे रहिथे।

का मोला अगोरत,परोसिन खड़े रहिथे।

कोन करथे मोर कुरिया म पढाई दाई वो---

आही तीजा------


दुरिहा दिये दाई, तैंहर अपन कोरा ले।

मइके लाही कहिके,मोला तीजा पोरा में।

जल्दी भेज न दाई बाट जोहत हँव वो।

मइके के सुरता म मैं हा रोवत हँव वो।

एकेदरी थोरे सुरता भुलाही दाई वो---

आही तीजा---


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा


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मरना हे तीजा मा


सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


लइका लोग ल धरके गय हे,मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।


कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।

बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा, हालत होगे ढिल्ला।

एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नून मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।

दिखै खोर घर अँगना रदखद, रदखद हाँड़ी बारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।1।


सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।

नवा पेंट कुर्था मइलागे, पहिरँव ओन्हा जुन्ना।

कतको कन कपड़ा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।

ताजा पानी ताजा खाना, नोहर हो गय हावै।

कान सुने बर तरसत हावै,लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।2।


खाय पिये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे,पेट भरे हाथी के।

मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।

चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

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लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तीजा पोरा


मुचुर मुचुर मन मोर करत हे, देख करत तोला जोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कभू अकेल्ला कहाँ रहे हँव, तोर बिना मैं महतारी।

जावन नइ दँव मैंहर तोला, देवत रह कतको गारी।

बेटी बर हे सरग बरोबर, दाई के पावन कोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


अपन पीठ मा ममा चघाके, मोला ननिहाल घुमाही।

भाई बहिनी संग खेलहूँ, मोसी मन सब झन आही।

मया ममा दाऊ के पाहूँ, खाहूँ खाजी अउ होरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कइसे रथे उपास तीज के, नियम धियम होथे कइसन।

सीखे पढ़े महूँ ला लगही, नारी मैं तोरे जइसन।

गिनगिन सावन मास काटहूँ, भादो के करत अगोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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खमर्छठ(सार छंद)

 खमर्छठ(सार छंद)


खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।

चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।


भादो मास खमर्छठ होवय,छठमी तिथि अँधियारी।

घर लिपाय पोताय सुहावै, महकत रहै दुवारी।।


बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।

हलषष्ठी के करे सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।


घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।

पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।


चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।

हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।


पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।

लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।


लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।

छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।


खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।

महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।


भैंस दूध के भोग लगाये,भरभर मउहा दोना।

करे दया हलषष्ठी  देवी,टारे दुख जर टोना।


पीठ म  पोती   दे बर दाई,पिंवरी  माटी  घोरे |

लइका मनके पाँव ल दाई, सगरी मा धर बोरे।


चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।| 

महतारी के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।


द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।

रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।


घँसे पीठ मा महतारी मन,पोती कइथे जेला।

रक्षा कवच बने लइका के,भागे दुःख झमेला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


खमर्छठ परब के बहुत बहुत बधाई

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी

 अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


तैं सरग ले सुघ्घर,अउ मैं नरक के द्वार।

तै ठाहिल पटपर भाँठा,मैं चिखला कोठार।

तैं उर्वर बाहरा,अउ मैं बंजर भर्री।

मोर नैन झिमिर झामर,तोर नैन कर्री।

तोर जिनगी ताजमहल कस उज्जर,

अउ मोर जिनगी, करिया जेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,

तोर अउ मोर मेल गोरी।


छप्पन भोग माढ़े हवै,तोर चारो कोती।

चाबत हौं मैं नानकुन,सुख्खा जरहा रोटी।

खीर मेवा पकवान कस,तैं करे भूख के नास।

मैं हड़िया मा लटके हौं, बने चिबरी भात।

तैं हवा संग उड़ागेस,

अउ मैं बढ़त हौं जिनगी ल ढँकेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


आगर इत्तर माहुर मोहर,सेंट के भरमार के।

चंपा चमेली मोगरा कस,महके महार महार तैं।

तन धोवा निरमल हो जाथे, वो गंगा के धार तैं।

मोर झन पूछ ठिकाना,मैं खजवइय्या तेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।


तैं कहाँ सरग के परी,उड़े अगास मा पंख लगाके।

मैं रेंगत हौं उलंड-घोलंड के,चिखला पानी मा सनाके।

संगमरमर के तैं ईमारत,तोर नाम जमाना मा छागे।

ओदरहा मोर ठौर ठिहा मा,नइ आये कोनो भगाके।

तै छाये क्रिकेट हाँकी कस,

मैं लुकाछुपउल के खेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।।


तैं कहाँ मथुरा अउ काँसी, मैं हरौं फाँसी के दासी।

तिहीं खींचे अपन करम के रेखा,मोर हवै बिगड़हा राशि।

चंपा चमेली कमल कुमुदिनी,गोंदा कस तैं गमके।

इती उती उड़ात हौं, मैं फूल बने बेसरम के।

तै कम्प्यूटर के सीपीयू,मैं सस्तहा सेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


तैं कहाँ पिंकी अउ रिंकी,मैं बुधारू मंगलू।

तैं जनम के मालामाल,मैं जनमजात कंगलू।

मैं हँसिया अउ तुतारी,तैं कहाँ बारूद के गोला।

नवा डिजाइन के बैग तैं, अउ मैं चिरहा झोला।

मैं मरहा मेचका,अउ तैं मछरी व्हेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


एक जमाना म अइसनो कविता लिखाय हे,,

मरना हे तीजा मा

 मरना हे तीजा मा


सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


लइका लोग ल धरके गय हे,मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।


कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।

बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा, हालत होगे ढिल्ला।

एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नून मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।

दिखै खोर घर अँगना रदखद, रदखद हाँड़ी बारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।1।


सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।

नवा पेंट कुर्था मइलागे, पहिरँव ओन्हा जुन्ना।

कतको कन कपड़ा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।

ताजा पानी ताजा खाना, नोहर हो गय हावै।

कान सुने बर तरसत हावै,लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।2।


खाय पिये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे,पेट भरे हाथी के।

मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।

चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

माँग होटल ढाबा के- कुंडलियाँ छंद

 माँग होटल ढाबा के- कुंडलियाँ छंद


मजबूरी मा खाय बर, होटल ढाबा होयँ।

फेर मनुष मन आज के, रोज खाय बर रोयँ।।

रोज खाय बर रोयँ, सबे होटल ढाबा मा।

हाँसत हें पोटार, दिखावा ला काबा मा।।

तन के रखें खियाल, तौंन मन राखयँ दूरी।

बनगे फैशन आज, रहै पहली मजबूरी।।


घर कस जेवन नइ मिले, मनखे तभो झपायँ।

रोज रोज पार्टी कही, घर ले बाहिर खायँ।।

घर ले बाहिर खायँ, जुरै संगी साथी सब।

कोन भला समझायँ, सबे ला भावै ये अब।।

खानपान वैव्हार, आज सब होगे करकस।

चैन सुकून पियाँर, कहाँ मिल पाही घर कस।।


आज जमाना हे नवा, होटल सब ला भायँ।

अपन हाथ मा राँध खा, पहली जन मुस्कायँ।

पहली जन मुस्कायँ, भात बासी खा घरके।

होटल जावैं आज, लोग लइका सब धरके।।

खा मशरूम पुलाव, भात ला मारे ताना।

पहुँच चुके हे देख, कते कर आज जमाना।


बासी कड़हा कोचरा, काय परोसा दान।

हाड़ी सँग वैपार हे, त का धरम ईमान।

त का धरम ईमान, सबें होटल ढाबा के।

का का राँध खवाय, तभो इतरायें खाके।

धन सँग तन बोहायँ, बने होटल के दासी।

होगे मनुष अलाल, खायँ होटल मा बासी।


पानी पइसा मा मिले, कणकण देवयँ तोल।

काय जानही वो भला,दया मया के मोल।

दया मया के मोल, जानही का होटल हा।

पइसा जा बोहायँ, कामकाजी अउ ठलहा।

रथे मसाला तेल, खायँ नइ दादी नानी।

नाती नतनिन पूत, बहू पीयें ले पानी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

करू भात अउ करू पानी

 करू भात अउ करू पानी


दीदी के करू भात, जीजा के करू पानी।

का कहँव संगी, परब तीजा के कहानी।।


एक ला जुन्ना सहेली मिलगे,एक ला जुन्ना संगी।

एक पीटत हे मुड़ी, एक फेरत हे मुड़ मा कंगी।।

एक हाँसे हाहा हाहा, एक के नइ फुटत हे जुबानी।

का कहँव संगी, तीजा तिहार के कहानी।।


दीदी मन सम्हरे हे, जीजा मन के कुकुर गत हें।

दीदी मन बिंदास सुतत हें, जीजा मन जागत हें।।

जय जय गूँजे एक कोती, एक कोती राजा जानी।

का कहँव संगी, तीजा तिहार के कहानी।।


राँध के जीजा, नइ खा सकत हे कँवरा।

पड़े हे कपड़ा लत्ता, पड़े हे बर्तन भँवरा।

चेहरा मा चमक नइहे,रद खद हे छत छानी।

का कहँव संगी, तीजा तिहार के कहानी।।


उती तीजा के बिहान दिन,सरि सरि लुगरा।

अउ ए कोती जीजा हा, पड़े हवय उघरा।।

दीदी फोन उठात नइहे, हे हलाकान जिनगानी।

का कहँव संगी, तीजा तिहार के कहानी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत-मछरी

 गीत-मछरी


गरी म लहत हे, मछरी आनी बानी।

रझरझ गिरत हे, बड़ सावन मा पानी।।


कोमलकाल कटरंगा, केवई कटही कतला।

रुदवा रेछा रुखचग्घा, रोहू मोट्ठा पतला।।

सोंढुल सिंघी सरांगी, डड़ई डंडवा ढेसरा।

केंउ कोटरी कुप्पा, टेंगना खेगदा खेसरा।।

भाँकुड़ भेंड़ो भेर्री, भुंडा खोकसी कानी।।

रझरझ गिरत हे, बड़ सावन मा पानी।।


बामी ग्रासकाल गिनवा, मोहराली मोंगरी।

लुड्डू लुडुवा लपची, मिर्कल मुरल कोतरी।

पब्दा पढ़िना पेड़वा, बराकुड़ा तेलपिया।

बंजू बिजरवा चंदैनी, चिंगरी टोर कोकिया।

अरछा घँसरा वेला, हिनसा रावस रानी।

रझरझ गिरत हे, बड़ सावन मा पानी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(कोरबा)

वीरांगना अवंती बाई,

 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी अवंतीबाई लोधी


सरसी छंद गीत


वीरांगना अवंती बाई, लोधी कुल के शान।

देश राज के रक्षा खातिर, होगिस हें बलिदान।


डलहौजी के हड़प नीति ले, होके रानी तंग।

सन सन्तावन मा बैरी सँग, खूब लड़िस हे जंग।

दाँत फिरंगी कटरत रिहिगिस, देख समुंद उफान।

वीरांगना अवंती बाई, लोधी कुल के शान।।


चढ़के घोड़ा गरजे रानी, धर चमकत तलवार।

काटे भोंगे बैरी मन ला, बहय लहू के धार।।

देख युद्ध कौशल रण भीतर, गूँजय गौरव गान।

वीरांगना अवंती बाई, लोधी कुल के शान।।


डर के मारे कतको राजा, होगिस बैरी साथ।

तभ्भो लड़िस अवंती बाई, सदा उठा के माथ।

जीते जीयत देश धरम के, जावन नइ दिस मान।

वीरांगना अवंती बाई, लोधी कुल के शान।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


जन्म जयंती के बेरा मा,,,शत शत नमन


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐



कोनो लिखो न गा पाती"

 📝किसन्हा आशिक.....


"कोनो लिखो न गा पाती"

.....................................

मोर छाती सही भूंइया,

अब दर्रा हनत हे |

बिन पानी बादर,

न बियासी बनत हे |

अईलात हे सपना हमर,

गिरे पाना बरोबर,

तागा कस तन,

बैरी घाम म तनत हे |

भभकत हे जिवरा,

बिन तेल कस बाती.........|

बादर ल बरसाय बर,

कोनो लिखो न गा पाती....|


तीपे भूंइया कस तीर म,

तिपागे  मोर  भाग |

बादर ल देखत रहिथौ,

दिन  रात   जाग  |

बूंद-बूंद बर,

मोहताज होगेव विधाता|

का जम्मो दुख हरे,

मोरेच  बॉटा ?

असाड़-सावन म,

धूर्रा उड़त हे |

का मोरेच भाग ल,

राहु केतु घूरत हे |

मोरेच बर बघवा-भलवा,

मोरेच बर हाथी......|

बादर ल बरसाय  बर,

कोनो लिखो न गा पाती.....|


सुख संग भूख ल मार देते,

त कोनो आरो नई होतिस  |

सिंचतेव खेत भर धान ल,

चुंहे पसीना खारो नई होतिस |

उतरथौ घेरी-बेरी,

मेड़ ले खेत म |

का नई हे मोर खेती-किसानी,

तोर चेत म  |

जभे खेती हरियाही,

तभे जुड़ाही मोर छाती........|

बादर ल बरसाय बर ,

कोनो खिखो न गा पाती.......|

                   जीतेन्द्र वर्मा

                खैरझिटी(राज.)

किसान के कलपना

 गीत


किसान के कलपना


झड़ी बादर के बेरा,,,

डारे राहु केतु डेरा,,,,

संसो मा सरत सरी अंग हे।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।

बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।

चुँहे तरतर पछीना,,,,,,

का ये सावन महीना,,,,

दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।

तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।

हाय हाय होत हावै,,,

जम्मे जीव रोत हावै,,,

हरियर धरती के नइ रंग हे------।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 

झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 

नइ गिरबे जब पानी,,,,,

कइसे होही किसानी,,,,

मोर सपना बरत बंग बंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


https://youtu.be/KB_X_LzdDO0

Tuesday, 13 August 2024

सवैया

 सवैया


धर्म ध्वजा धरनी धँसगे झटले अब आ करिया फहराना।

खोर गली म भरे हे दुशासन द्रौपति के अब लाज बचाना।

शासक संग समाज सबे ल सुशासन के सत पाठ पढ़ाना।

झाड़ कदम्ब जमे कटगे यमुना मतगे मनमोहन आना।


खैरझिटिया

सुख्खा म हरेली हरागे जी

 

📝सुख्खा म हरेली हरागे जी

.......................................

किसान के हरे हरेली सुनके,

चुंहथे आंसू ऑखी ले|

परब तिहार म घलो

पेज पसिया,

रोजेच अघाथन बासी ले|

नांगर बख्खर पूजव कइसे,

बुता बॉचे हे खेती के|

रॉपा-कुदारी चिक्कन माढ़े हे,

सुख्खा ह चिथ दिस

मॉस चेथी के |

मुंहतुर होईस तिहार के,

फेर मोर खुशी धरागे जी...|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी...|


किसान के घर पिसान नईहे,

कइसे रॉधौव बरा सोंहारी|

पेटौरा के भूख ह मरगे,

का करहूं   झॉक  हॉड़ी|

बेरा म बावत नही,

न   बेरा  म बियासी |

धीर धर-धर मंईन्ता भोगागे,

लगथे अब केंधियासी |

मोर सपना तेलई म डबकत हे,

मोर धीरज अब  खरागे जी..|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी...|


सुरूच तिहार में मार खागेन,

कइसे मनॉहूं तिजा पोरा |

मोर धान ल ढेला धरे हे,

दुच्छा हे  कोठी- बोरा |

हंरियर नईहे मोर खेती खार,

हंरियर नईहे  मोर   सपना |

कभू भिंगेन रदरदे-रदरद,

त   कभू  पड़िस तपना |

बिपत कस बईला के मारे,

मोर जम्मो खेती चरागे जी...|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी....|


घुरवा के घलो दिन बहुरगे,

फेर किसान जइसे के तइसे|

भुंजागे मोर धान-पान,

फेर  मनाव  हरेली  कइसे  |

चाकू-छुरी गुण्डामन पूजे,

खंजर पूजे कसाई |

पईसा पूजे ब्यपारीमन,

का पूजे किसान भाई|

मोर सुख ल लीले बर,

सुरसा के मुहुं फरागे जी....|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी...|


दुख पा-पाके किसन्हा,

पथरा म मुड़ी ठेंसत हे|

दलाल मनके गरी म फंसके,

खेत-खार बेंचत हे |

समय म पानी;घांम देके,

रखबे बिधाता लाज |

किसन्हा काटत हे कन्नी

खेती ले,

होवत हे आने के राज |

मोर जिनगी के खुशी,

मुंसर-बॉहना म छरागे जी....|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी....|

                जीतेन्द्र वर्मा

                खैरझिटी(राज.)

            📝किसन्हा आशिक

अदरक-कुंडलियाँ छंद

 अदरक-कुंडलियाँ छंद


दिखथे अदरक टेंडगा, तभो बढ़े हे भाव।

रंग रूप मा का हवय, गुण के होय हियाव।।

गुण के होय हियाव, गुणी ला कोन भुलाथे।

खोज काम के चीज, जमाना पूछत आथे।।

का बड़का का छोट, नाम बेरा हा लिखथे।

हे बरसा के बेर, रुलावत अदरक दिखथें।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

Monday, 12 August 2024

कोनो लिखो न गा पाती"

 📝किसन्हा आशिक.....


"कोनो लिखो न गा पाती"

.....................................

मोर छाती सही भूंइया,

अब दर्रा हनत हे |

बिन पानी बादर,

न बियासी बनत हे |

अईलात हे सपना हमर,

गिरे पाना बरोबर,

तागा कस तन,

बैरी घाम म तनत हे |

भभकत हे जिवरा,

बिन तेल कस बाती.........|

बादर ल बरसाय बर,

कोनो लिखो न गा पाती....|

                  जीतेन्द्र वर्मा

               Khairjhiti

मनमोहन- जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

मनमोहन- जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


1, मतगयंद सवैया


देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।

रोवत हावय गाय गरू झट लेज मधूबन तीर चराना।

कान ल मोर सुहाय नही कुछु आ मुरलीधर गीत सुनाना।

काल बने बड़ कंस फिरे झट आ मनमोहन प्राण बचाना।


गोप गुवालिन के सँग मोहन रास मधूबन तीर रचावै।

कंगन देख बजे बड़ हाथ के पैजन पाँव के गीत सुनावै।

मोहन के बँसरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके मन भावै

एक घड़ी म दिखे सबके सँग एक घड़ी सबले दुरिहावै।


चोर सहीं झन आ ललना झन खा ललना मिसरी बरपेली।

तोर हरे सब दूध दहीं अउ तोर हरे सब माखन ढेली।

आ ललना झट बैठ दुहूँ मँय दूध दहीं ममता मन मेली।

मोर जिया ल चुरा नित नाचत गावत तैं करके अटखेली।


गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं गा।

फूल गुलाब न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं गा।

मोर सबे सुख शांति उड़े मुरलीधर रास रचे न कहीं गा।

दर्शन दे झट आ मनमोहन हाथ धरे हँव दूध दहीं गा।


2,मदिरा सवैया


मोहन माखन माँगत हे मइया मुसकावत देखत हे।

गोकुल के सब गोपिन ला घनश्याम दहीं बर छेकत हे।

देख गुवालिन के मटकी धरके पथरा मिल फेकत हे।

तारन हार हरे हरि हा पँवरी म सबे सिर टेकत हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कृष्ण जम्माष्टमी के सादर बधाई

Friday, 9 August 2024

कुंडलियाँ छंद

 कुंडलियाँ छंद


सत्ता खातिर रोज के, होवत हे गठजोड़।

नेता मन पद पाय बर, भागे पार्टी छोड़।

भागे पार्टी छोड़, मिले एखर ओखर ले।

पाँच साल बर वोट, पाय हे कुछु कर ले।

मत मरियादा मान, उड़त हे बनके पत्ता।

होय हार या जीत, सबे सपनावैं  सत्ता।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday, 8 August 2024

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।

खुडुवा  खेले  फेंके  नरियर,होय  मया  के  बाते।

भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली----।


सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।

नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया  मया मिल गारे।

घंटी  बाजै  शंख सुनावय,कुटिया  लगे हवेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे  हवै हरेली-।


चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।

रापा  गैंती नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।

हवै  थाल  मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।


गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।

लोंदी  खाये  बइला  बछरू,राउत पाये दाना।

लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकै फूल  चमेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


बेर बियासी के फदके हे,रँग मा हवै किसानी।

भोले बाबा आस पुरावय,बरसै बढ़िया पानी।

धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली---।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795


हरेली तिहार के आप सबला सादर बधाई

संसो किसान के-छंद त्रिभंगी

 संसो किसान के-छंद त्रिभंगी


तन मन नइ हरियर, बन नइ हरियर, काय हरेली मैं मानौं।

उना कुँवा तरिया, सुख्खा परिया, का खुमरी छत्ता तानौं।।

गाँवौं का कर्मा, बन अउ घर मा, भाग अपन सुख्खा जानौं।

मारौं का मंतर, अन्तस् गे जर, नीर कहाँ ले अब लानौं।।


खापौ का गेंड़ी, पग हे बेंड़ी, बोली मुँह नइ फूटत हे।

बिन होय बियासी, होगे फाँसी, प्राण धान के छूटत हे।।

का धीर धरौं अब, खुदे जरौं अब, आस जिया के टूटत हे।

बिन बरसे जाथे, टुहूँ दिखाते, घन बैरी सुख लूटत हे।।


आगी संसो के, भभके भारी, उलट पुलट मन चूरत हे।

आँखी पथरागे, चेत हरागे, बने सकल ना सूरत हे।।

आने कर सुख हे, मोरे दुख हे, पानी तक नइ पूरत हे।

काखर कर जावौं, कर फैलावौं, पथरा के सब मूरत हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

सड़क- रोला छंद

 सड़क- रोला छंद


घाम घरी मा धूल, होय चिखला बरसा मा।

कहँव काय मैं हाल, काल रहिथे धरसा मा।

गाड़ी मोटर छोट, चले नित हाँफत हाँफत।

मजबूरी मा जायँ, सवारी काँपत काँपत।


नजर जिहाँ तक जाय, दिखै बस चिखला सरभर।

बन जाही कब काल, सड़क हा जाने काखर।

डंफर ट्रेलर कार, हाल ला देखत रोवय।

लागे रहिथे जाम, सुबे ले संझा होवय।


सड़क लगे पाताल, बने हे गड्ढा बड़का।

काटयँ पुलिस चलान, हाल ये सब ला टड़का।

धँस जावत हे गोड़, कहौं का गाड़ी घोड़ा।

आम आदमी रोय, सबे लँग बरसय कोड़ा।


सड़क तीर के गाँव, शहर मा मचै तबाही।

घर भीतर हे बंद, बंद हे आवा जाही।।

अनहोनी हो जाय, आय दिन गाँव शहर मा।

सड़क हवैं बदहाल, रहै कब तक जन घर मा।


नवा बने हे रोड, तभो ये हालत होगे।

नेता ठेकेदार, सबे झन खा पी सोगे।

हल्का छड़ सीमेंट, चले ना चार महीना।

देख सड़क के हाल,होत हे मुश्किल जीना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया

मौसम अउ बेरा ले सम्बंधित छत्तीसगढ़ी शब्द

 यहू ला जानव


*मौसम अउ बेरा ले सम्बंधित छत्तीसगढ़ी शब्द*


बदरा/बादर/बदरिया-बादल


झड़ी- सरलग पानी गिरना


झक्कर- लगातार बादर छाय रहना


तरतरी-सरलग जोरदार पानी गिरई


उगासना/अँजोरना- पानी गिरे के बाद सूरज निकलना


अँधियारना/करियाना- घटा छाना


गरजना/गड़गड़ाना/गरजई- बादर के गड़गड़ाहट


घुमरई- करिया बादर के उड़ई


घुरुर-घारर/घुमड़ई - बादल के हल्का गरजना


करियाना/घपटना/घपटे- घटा छाना


बतर-बाँवत/बरसा


चमकई/बिजुरी चमकना/कड़कना- बिजली/तड़ित


झिमिर-झिमिर-कम पानी बरसना


रझरझ/रझारझ- बड़ पानी गिरना


फुसफुसी/कोड़हा फुहार- बरसा के पानी हवा मा उड़त रथे


दमोरना/बरसना- पानी गिरना


दरपना- एकदम कम पानी गिरना, धूल धुर्रा या फर्स के ऊपर एक परत पानी के गोल गोल चिन्हा दिखना


टपकना/चुँहना/रितना/रिसना- टप टप पानी गिरना


रूतोना- जादा धार मा पानी के गिरई


करा पानी-ओला वृष्टि


अतरना- बरसा रुक जाना


पुरवइया/पुरवा- पूरब के चलइया हवा


बसंती हवा-बसंत ऋतु म चलइया हवा


झिपार- एक विशेष दिशा म चलत हवा के कारण पानी के बहाव या छिड़काव


चकोरना-चारो दिशा ले बदल बदल के हवा चलना


झकोरा/झकोरना-हवा के संग पानी के एके दिशा मा बहना


झकझक ले-अंधियारे बर प्रयोग होथे


चकचक ले-उजाला बर


सनन सनन-पुरवा चले के शोर


अलमल-अड़बड़


गाज गिरना-बिजली गिरना


सवनाही बादर-सावन के बादर


भदरे बादर-भादो के बादर


कुँवरहा घाम-कुँवार के तेजहा घाम


लहसना-हवा पानी मा डारा के हलई


झाँझ-झोला/लू- तात हवा


बवंडर/बँरोड़ा- चक्रवात


शीत लहर-एकदम जुड़ हवा


धूपकाला-गर्मी


जड़काला-जाड़


दंद/भभक/कुघरना/उमस- गरमी 


तीपना/जरना/भोम्भरा- गर्मी म पाँव के जलई


घाम-सूरज के तेज


शीत- पेड़ पौधा के पान म पानी के मोती कस बूंद


कोहरा/कुहरा- वातावरण मा छाय जलवाष्प युक्त हवा, येमा 1km के बाद के चीज तको थोर थोर दिखथे


धुंध/धुंधरा- थोरिक जादा जलवाष्प अउ धुँवा युक्त वातावरण मा छाय हवा , येमा 1km से कम के चीज घलो बने से नइ दिखे


पाला-धरती मा ठंडी मा जमे बरफ


पतझड़-पत्ता झड़े के समय


ब्रम्ह मुहरत- 3 से 4 बजे के समय


भिनसरहा- सुबे 4  से 5 बजे तक के बेरा


सुकवा पहाती- भिनसरहा के पहली के बेरा (शुक्र या सुकवा इही बेर म दिखथे।। एखरबेरा झुलझुलहा होय बर लगथे।


झुलझुलहा/मुन्दरहा- भिनसरहा के बाद के बेरा, 5 से 6 बजे, जे समय थोर थोर सब दिखे बर लगथे


पँगपंगहा- सुरुज के लालिमा वाले बिहन


बिहनिया/उजरहा/उजाला/सुबे/फजर- सूरज निकल जाना


पहट/गरुवा ढिलाती- बिहनिया बर्दी म गरवा ठोंके के बेरा, जे बेर म राउत भाई मन गरवा ल गउठान म लाथें


मंझनिया- दोपहर 12 बजे 2 बजे तक।


बेरा ढरकती- संझा के पहली के बेर,2:30 से लगभग 4 बजे तक।


संझा/सांझ-4 बजे से 6 बजे तक


गोधूली-गरुवा ओइले के बेर


बेरा बुड़ती/मुंधियार- सूर्यास्त 


बियारी के बेरा- रात में खाना खाय के समय।


दु पेटिया बियारी- गर्भवती महिला मन ल जल्दी खाय बर निर्धारित समय 


कोष्टा बियारी-अंधियार होवत खाना खाना


अधरतिया- आधा रात


दिन के नाम-इतवार, सम्मार, मंगल,बुधवार, बिरसपत,शुक्रवार, शनिच्चर,


महीना-चइत,बइसाख,जेठ,आसाढ़,सावन भादो,कुँवार, कातिक, अगहन,पूस, माँघ,फागुन


तिथि-एक्कम,दूज, तीज, चौथ, पंचमी,छठमी, सतमी, अठमी,नम्मी,दसमी, एकादशी, दुवास,तेरस, चौदस, पुन्नी


पुन्नी-चंदा के पूर्ण गोलाई वाले दिन


अमावस-अंधियारी


पाख-अंधियारी पाख,अँजोरी पाख


चार जुग-सतजुग,त्रेता, द्वापर,कलजुग


चम्मास/चौमास-बरसा ऋतु के चार महीना


एक पहर-3 घण्टा के समय


चार पहर/चार जुवार-एक दिन


पखवाड़ा/पाख-15 दिन


एक हप्ता-7 दिन


आसों-वर्तमान साल


पउर-बीते साल


परिहार-बीते के बीते साल


बरिक दिन/बछर-साल के


भंडार-उत्तर


रक्सेल/रकसहूँ-दक्षिण


उक्ती-पूर्व


बूड़ती-पश्चिम


संकलन


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Tuesday, 6 August 2024

हथकरघा के बेरा-सार छंद

 हथकरघा के बेरा-सार छंद


सबे काम ला झट टारे बर, हे मशीन सब डेरा।

अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।


मुसर बाहना ढेंकी जाँता, सिललोढ़ा खलबत्ता।

आरा रेंदा गिरमिट सुंबा, हाथ भुलागे नत्ता।।

कोन गाँथथे माची खटिया, कोन आँटथे ढेरा।

अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।


अपन हाथ मा सूत कात के, पहिरिन गाँधी खादी।

मिला हाथ ले हाथ सुराजी, लड़भिड़ लिन आजादी।।

सबें हाथ अब ठलहा होगे, होवै तेरा मेरा।

अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।


अपन हाथ हे जगन्नाथ कहि, खुदे करैं सब बूता।

उहू दुसर के अब मुँह ताकें, पहिरे चश्मा जूता।।

नवा नवा तकनीक हबरगे, बदलै बसन बसेरा।

अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के आप सबो ला सादर बधाई

Monday, 5 August 2024

पइसा अउ संगी- सार छन्द

 पइसा अउ संगी- सार छन्द


पइसा के राहत ले मिलथें, किसम किसम के संगी।

रोज चढ़ाथें चना झाड़ मा, ख्वाब दिखा सतरंगी।।


काम करयँ नइ कभू अकेल्ला, रटथें यारी यारी।

जुगत बनाथें खाय पिये के, घूम घूम के भारी।।

चाँटुकार के घोर चासनी, बात कहयँ बेढंगी।

पइसा के राहत ले मिलथें, किसम किसम के संगी।


जिया जीतथें जुरमिल फोकट, झूठमूठ कर दावा।

राहन नइ दय पहली जइसे, रंग रूप पहिनावा।।

बना डारथें सिधवा ला तक, अपने कस हुड़दंगी।

पइसा के राहत ले मिलथें, किसम किसम के संगी।


देवयँ नइ सुझाव फोकट मा, साहब बइगा गुनिया।

किसन सुदामा के जुग नोहे, मतलब के हे दुनिया।

रसा रहत ले चुहके मनभर, तजयँ देख के तंगी।

पइसा के राहत ले मिलथें, किसम किसम के संगी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


अइसनो संगी मन ला मित्रा दिवस के बधाई

छत्तीसगढ़ के गाँव मन मा प्रयोग मा आनेवाला मशीन औजार अउ सामान के नाम, विवरण अउ उपयोगिता-

 यहू ला जानव


*"छत्तीसगढ़ के गाँव मन मा प्रयोग मा आनेवाला मशीन  औजार अउ सामान के नाम, विवरण अउ उपयोगिता-


*कलारी*- लकड़ी के बने औजार जे धान कोड़ियाये,पैरा अलगाय के काम मा उपयोग आथे। चना, गहूँ,अरसी अउ अन्य फसल ला घलो मिन्जे के बेरा कलारी उपयोगी होथे। ये लम्बा बांस मा कठखोलवा चिरई के मूड़ी बरोबर कोकवानी होथे।


*दॅतारी*- एक ले अधिक दाँता वाले लकड़ी के पाटा। कोदो मा दॅतारी मारे जाथे। छोट/हरु दॅतारी मा धान मिंजत बेरा पैरा ला घलो अलगाये जाथे। एक ठन बाँस मा एक लकड़ी फिट रहिथे,जेमा 7,8 ठन दाँता रहिथे।  भारी ला बइला खेत मा बइला तिरथे, छोट हरु ला मनखे खुदे खिचथे।


*कोप्पर*- कोप्पर लकड़ी के बने रहिथे जे धान, कोदो ला कोपराय के काम आथे। किसान मन कोप्पर ला नेवरिया बइला बछवा ला रेंगें बर सिखाये, खेत/ भर्री ला बरोबर करे आदि काम मा लाथे। एखरे कम वजनी रूप बख्खर कहिलाथे।


*ईरता*- ईरता बाँवत अउ बियासी बेरा उपयोगी होथे। खेत जोतत बेरा नांगर मा लेटा चिपकथे तेला ईरता के उपयोग ले निकाले जाथे, ये छोट लोहा के फरसा बरोबर बइला खेदारे के लउठी के नीचे जोती जुड़े रहिथे।


*आरी/तुतारी*- बइला खेदे के लउठी मा गड़े छोट खीला आरी कहिलाथे, एखर उपयोग बइला भइसा ला कोचे बर करे जाथे।


*चामटी*- बइला खेदारे के लउठी मा बंधे चमड़ा के रस्सी जेमा बइला ला नइ रेंगें ता मारे जाथे।


*खूँटा*- कोठा अउ दुवार मा गाय बाँधे बर भुइयाँ मा गड़े लकड़ी।


*पहुरा*- गाय गरवा बाँधे के अइसन छोट लकड़ी जेखर मुड़ी मा गरवा के गला के रस्सी अउ पूछी मा खूँटा मा फँसाय के रस्सी रथे।


*कोटना*- गरवा मन के पानी पीये के आयताकार पथरा के पात्र।


*धोनाही*- मिट्टी के गोल छोट गगरी जेमा धोवन फेके जाथे। 


*गरदेवा/केनउरी*- गाय गरवा के गला मा परमानेंट बंधे डोरी।


*खड़खड़ी*-  गाय गरवा के गला मा बंधे लकड़ी के घण्टी 


*लांहगर/लादका*- हरहा गाय गरु जे गला मा बंधे भारी लकड़ी।


*बिंधना*- लकड़ी ला मनवांछित आकार देय, छेद करे बर, काटे पीटे बर बिंधना उपयोगी होथे। चौड़ा नोक वाले पटासी बिंधना अउ पतला नोक वाले सुल्लू बिंधना कहलाथे। कई प्रकार के धार वाले बिंधना होथे। 


*बसुला*-  ये लकड़ी ला छोले के काम बर उपयोगी होथे।


*लोहाटी तारा/ताला*- करिया लोहा के जुन्ना ताला जेखर चाबी स्क्रुनुमा रहय।


*सँकरी*- दरवाजा/कपाट मा ताला देय बर लामे लोहा जे साँकल


*टँगिया*- लकड़ी काटे के औजार।


*खुरपी*- बन कांदी निकाले के औजार।


*रापा*- माटी जोरे संकेले के औजार।


*कुदारी*- माटी कोड़े के औजार।


*गैंती*- माटी कोड़े के काम अवइया कुदारी के बड़े रूप।


*हँथौडी*- ये खीला ठोंके के काम आथे, कुछु चीज ला फोड़े फाड़े बर घलो उपयोगी होथे।


*घन*- हथौड़ी के बड़े रूप,जे लकड़ी चीरे, लोहा लक्खड़ काटे बर काम आथे।


*धूम्म्स/धम्मस*-माटी कुचरे या दबाये के लोहा के बड़का पाटा असन औजार।


*छिनी*-लकड़ी फाड़े जे बड़का खीला, ये छोट, मोठ कई प्रकार के होथे।


*रोखनी/रेंदा*- लकड़ी ला प्लेन करे के काम मा आथे।


*भाँवरी/भँवारी*- लकड़ी मा छेदा करे के काम आथे। यहू आकार प्रकार के कई किसम के होथे।


*गिरमिट*- लोहा के औजार जेला घुमा घुमाके लकड़ी ला छेदा करे जाथे।


*हँसिया*- धान,कांदी, बन, दूबी लुवे तोड़े के काम आथे। साग भाजी घलो सुधारे जाथे।


*पैसुल*- सब्जी काटे के काम आथें।


*सब्बल/साबर*- भुइयाँ ला गड्ढा करे के लोहा के औजार।


*आरा/आरी*- लकड़ी चीरे के औजार।


*टेंवना*- लोहा धार करे के पथरा


*ठीहा*- लोहार, बढ़ई के घर गड़े लोहा या लकड़ी के टुकड़ा जेमा रखके लोहा ला पीटे जाथे अउ लकड़ी का काटे छाँटे जाथे।


*निहई*- टेंडग़ाय लोहा ला सोझ करे या मनचाहे आकार देय बर उपयोगी औजार।


*सुम्बा*- सुल्लू जघा मा ठोंकाय खीला खूंटी ला बरोबर करे बर उपयोगी।


*गुनिया*- कोन ला बरोबर मिलाय बर, खिड़की चौखट बनाए बर उपयोगी


*पेन्चिस*- खीला तिरे के काम आथे।


*सुजियारी*- खीला के अनुसार छेद ला बड़े करे के काम आथे।


*कनाछी*- लोहा ला धार दे के काम बर उपयोगी


*धमेला*- घर निर्माण बर उपयोगी लोहा के पात्र


*कौंचा*- घर निर्णाण में गारा मिलाये के काम बर उपयोगी


*फंटी/पाटा*- गारा सीमेंट ला बरोबर करे के काम आथें


*गोली*- ईंट जोड़त बेरा सोझ मिलाये बर काम आथें


*नकवार*- नाक के बाल आदि निकाले के चिमटा


*नाहनी*- नख काटे के औजार


*छूरा*- दाढ़ी बनाये के औजार


*चिमटा/ चिमटी/लोचनी*- आगी बूगी, काँटा खूंटी निकाले के बड़े छोटे लोहा के औजार


*सरोता*- सुपारी काटे के, बड़े हा आमा काटे के काम आथे।


*धुकनी*- लोहार घर रहय जेमा लोहा ला गरम करे।


*चाक*- कुम्हार घर के घड़ा/माटी के समान बनाए के मशीन


*घानी*- तेल पेरे जे मशीन


*टेड़ा/रहट*- पानी पलोये के मशीन।


*मंगठा*-कपड़ा बुने के मशीन।


*चरखा*- सुत काते के मशीन।


*मूसर*- धान/ कोदो छरे के लकड़ी के औजार जेखर तरी मा लोहा लगे होथे।


*बहाना*- बाहना मा ही धान कोदो ल रख के मूसर मा छरे जाथे।


*खलबट्टा/ओखली*- कूटे पीसे के काम बर उपयोगी, लोहा के ओखल।


*डंगनी/ अकोसी*- ऊपर के चीज ला अमरे बर बने बॉस।


*खलिहा*- आमा टोरे के झोला बंधे डंगनी।


*ढेंकी*- ढेंकी धान कूटे के काम आथे, येमा दू तीन आदमी एके संघरा काम करथे। कुछ मन ढेंकी के आघू भाग मा गोड़ ले अघाड़ी ला दबावत जाथे ता कुछ मन पाछू के बाहना मा धान ला डारे निकाले के काम करथें। ये देशी धनकुट्टी घलो कहिलाथे।


*घर लिपनी*- गोबर पानी भराय करसी जेमा घर ला लीपे जाथे, घर लीपे बर प्रयोग मा लाये चेन्द्रा पोतनी कहिलाथे।


*बाहरी*- घर दुवार बाहरे के झाड़ू।


*खर्रा*- कोठा/ बियारा बाहरे के राहेर काड़ी के गुच्छा।


*झंउहा*- गोबर कचरा हेरे, माटी फेके के काम बर उपयोगी बाँस के पात्र।


*सील-लोढ़ा*- चटनी हरदी मिर्चा पीसे बर उपयोगी पथरा।


*जाँता*- गहूँ, चना, अउ अन्य आनाज ला पिसान बनाये के हथ मशीन। कोदो जाँता, पिसान जाँता , ये बड़े छोटे प्रकार के होथे।, जेखर नाम घलो बदल जथे। जइसे जँतली, जँतुलिया,कोदो दरनी।


*पाउ*- जाँता मा लगे लकड़ी जेला धरके गोल गोल घुमाय जाथे।


*टिपली*- मिट्टी तेल रखे के डब्बा


*निसेनी*- चढ़े उतरे के लकड़ी के बने सीढ़ी


*चाँड़ी*- तेल ढारे के उपयोग मा लवइया टिन के नली दार  पात्र


*कुप्पी*- साइकिल,मशीन मा तेल डाले बर ये उपयोगी हे।


*गाड़ा*- बइला गाड़ी, खेती किसानी बर उपयोगी। 


*जुवाड़ी*-नांगर में जुड़ा के बीच के भाग जे मेर डाँड़ी आके मिलथे।


*नाहना*- चमड़ा के डोरी जे जुवाड़ी मेर बंधाय रथे, नाहना जुड़ा अउ डाँड़ी ला बाँधे रखथें।


*पंचारी*- जुड़ा के आखिर भाग के लकड़ी जे मेर बइला फंदाय रथे।


*जोंता*-नांगर जुड़ा के पंचारी मा बंधे डोरी जे बइला ला जुड़ा मा बाँधे रखथें। गाड़ा मा सुमेला मा बंधे रहिथे,अउ बइला ल सके जघा स्थिर रखथें।


*खाँसर*- गाड़ा के छोटे रूप,गांव गौतरी,मेला मड़ई जाय बर उपयोग मा लाये जाथे।


*घांघड़ा*- कौड़ी पट्टी युक्त बड़े घण्टी।


*कसेर गाड़ी*- टट्टा/ चापड़ बंधे गाड़ा।


*कोल्लर/लोदर*- बाँस के  टट्टा जे खूँटा तक  उठे रथे।


*चापड़ा*- गाड़ा मा लगे गोलाकार टट्टा


*नांगर*- हल


*जुड़ा*,- नांगर या गाड़ा के वो लकड़ी जेमा बइला फंदाय रथे, जुड़ा गाड़ा मा हमेशा बंधे रथे, जबकि नांगर मा जुवाड़ी कर नाहना मा बांधेल लगथे।


*बेलन*- अरसी, कोदो मिन्जे बर प्रयोग होवइया लकड़ी के भार युक्त गाड़ी।


*पटनी*- गाड़ा के डाँड़ी मा ठोंकाय पाटा।


*धोखर*- गाड़ा के चक्का के पहली वाले लम्बा पटनी जेमा माई खूंटा रहिथे,अउ बइला ला चक्का कोती आवन नइ देवय।


*खूँटा*- डाँड़ी अउ पटनी ला छेद जे गड़ाये गय बॉस या लकड़ी।


*अघाड़ी*- गाड़ा चक्का के आघू के पटनी।


*पिछाड़ी*- गाड़ा चक्का के बाद के पटनी।


*आरा*- चक्का के मूड मा गुथाये लकड़ी।


*पाठा/पुट्ठा*- आरा मा लगे लकड़ी, पुट्ठा  जुड़के गोल बनथे।


*पट्टा*- पाठा के ऊपर लगे गोल लोहा।


*चीपा*- पाठा अउ पट्टी के बीच गेप ला भरे बर ठोंके गय बॉस के टुकड़ा।


*मुड़*- चक्का के बीच के गोल लकड़ी।


*गुर्दा*- मुड़ मा फिट लकड़ी जेमा असकुड़ लगे रहिथे।


*असकुड़*- दोनो चक्का ला जोड़े बर बने लोहा।


*पोटिया*- असकुड़ ऊपर के बड़े खोल वाले लकड़ी।


*बैसकी* पोटिया ऊपर मा लगे लकड़ी जेमा डाँड़ी माड़थे।


*खीला* - असकुड़ के आखिर मा लगे रॉड, जे चक्का ला छेंके रखथें।


*धुरखिली*- पोटिया पटनी के मुख्य खीला।


*बरही*- डाँड़ी अउ जुड़ा के बंधना।


*धूरा*- गाड़ा के आघू के भाग जेमा दोनो डाँड़ी अउ जुड़ा बंधाय रथे।


*सुमेला*- जुड़ा के छेद मा लगाइया लोहा जेमा बइला फन्दाथे।


*सांकड़/ काँसड़ा*- बइला के गला के डोरी जे नाथ अउ केनवरी ले जुड़े होथे, जेला गाड़ा हाँकइया बइला ला काबू मा करे बर धरे रहिथे।


*केनवरी*- बइला के गला मा बंधाय डोरी।


*नाथ*- वो डोर जेमा बइला नँथाय रथे।


*टेकनी*- गाड़ा के धूरा मा टेकाय जाने वाला लकड़ी। ये गाड़ा ला खड़े करे बर उपयोग मा लाये जाथे।


*ओंगना*- गाड़ा के गुर्दा मा अण्डी तेल/ चिट ला चिकनाहट बर डारे जाथे।


*कंडील*- माटी तेल ले जलइया, काँच के गोल  छेंका मा बरत बाती।


*चिमनी/ढिबरी/भभका*- सीसी मा माटी तेल भरके ढक्कन मा बाती लगाके जराय जाथे।


*गियास*- देवारी तिहार बर कुछु प्लेट ला सजाके दीया ला बार के ऊँच आगास मा टांगना।


*तेल कुप्पी*- साइकिल या मशीन मा तेल डारे के छोटे डब्बा।


*गोरसी*- आगी तापे या आगी का रात भर छेना मा सिपचा/दगा के रखे बर उपयोग मा आने वाला माटी के टोकरी।


*पउला/फूला*- अनाज धरे बर बने माटी के छोटे पात्र


*कोठी*- अनाज धरे के बड़े पात्र


*ओंगना*- कोठी मा धान निकाले बर बने छेदा।


*पर्रा*- बॉस के बड़का पर्री।


*पर्री*- भात पसाये या तोपे बर बॉस के बने तोपना।


*तर्री*- जर्मन के तोपना


*बिजना*- बाँस के बड़े टुकना।


*सुताइल/रोखनी*-  छिले के काम बर उपयोगी।


 *चन्नी/चलनी* -  पिसान छाने के, चाउर चाले के काम बर।


*कोदई धोना*- कोदई धोय के काम बर उपयोगी,ये टिन के होथे।


*झेंझरी*- कनकी,कोदई धोय बर बॉस के टुकनी।


*चरिहा*- बॉस के बड़े टुकनी, धान पान नापे भितराये के काम


*सूपा*- छँटाई, निमराई,धान ओसई के काम बर उपयोगी।


*पउवा*- धान चाँउर नापे के पाव भर डब्बा।


*पैली*- एक किलो के डब्बा।


*काठा*- लगभग चार पैली धरउ लकड़ी या टीना के पात्र।


*झिपारी*- बरसात के पहली कोठ/ पर्दा ला पानी ले बचाये बर छिंद राहेर काड़ी अउ खदर मिलाके बनाये जिनिस। झिपार ले बचे बर घलो झिपारी के उपयोग होथे।


*मइरका*-पेंदी मा माटी छभाय करिया रंग के गगरी, जेमा आनाज आदि धरे जाथे।


*गगरी*- करिया रंग के माटी के बर्तन।


*गघरा गुंडी*- पानी भरके रखे बर ये उपयोगी होथे।


*कलौंजी*- साग राँधे के मिट्टी के बर्तन।


*ठेका*- दार चुरोये के माटी के छोटे बर्तन।


*गिरी*- गगरा, गुंडी ला बने मड़ाय बर जड़ या कपड़ा ला गोल गुरमेट के बनाय जाथे,एखर के गगरा गुंडी उंडे नइ।


*गूँड़ड़ी*- पानी लाने,माटी फेके के समय मूड़ ऊपर उपयोग मा अवइया कपड़ा, जे गोल गुरमेटाय रथे।


*बंगुनिया*- पीतल के छोट बर्तन।


*बटलोईया*- स्टील के छोटे मुंह वाले गोल बर्तन।


*गंज*- पीतल या स्टील के बड़े मुँह के बर्तन।


*गंजी*- पानी भरे,खाना बनाये के जर्मन के बर्तन।


*बॉल्टी*- कुँवा ले पानी निकाले के लोहा बर्तन, आजकल स्टील बाल्टी घलो पानी भरे के काम मा आथे।


*माली/कटोरी/कोपरी*- काँच/ स्टील के बर्तन


कुटेला-कपड़ा धोय या कोनो सुखाय फसल ल कुचरे के काम अवइया लकड़ी के  गोल या चाकर पटिया


मुड़ेसा- कपड़ा ले बने मोठ छोट गोल चाकर गद्दा जेन मुड़ के तरी सोवत बेर उपयोग होय।


चुरोना  - जादा या मोठ कपड़ा ल  धोय बर निरमा म डुबोना।


टठिया-- खाय के थाली जेला थारी घलो कथन


मुड़सरिया-तकिया कोती, मुड़ कोती


गोड़सरिया- गोड़ कोती


ओढ़ना..ओढ़े के


दसना...बिछाए के, बिस्तर


कोपरा ..परात


बटुवा.... भात राँधे के बर्तन


हँउला....पानी भरे के गुंडी या गगरी


मलिया,थरकुलिया...प्लेट..


सइकमी/सइकमा- बासी खाय के बटकी


कुंड़ेरा....माटी के दूध चुरोय के बर्तन..


*सुपेती*....रजाई


*कईधोना*= चाउर धोय के


*होमाही*= हूम देके


*तखत*=बइठे के लकड़ी के बाजवट जेंन सोय के घलो काम आवय


*करची*-जर्मन के बर्तन जेन भात बनाए के काम आथे


*जांँता*-अनाज पीसे के चक्की


*ढकेल गाड़ी* -लइका मन के गाड़ी


*तख्ता*-जमीन में बिछाय वाला,जेमा पहिली दर्जी मन कपड़ा काटे


*कागज के टुकनी*-  टुकनी


 *मरपरई*- सिसली गोरसी,कम गहराई के


*कजरौटी* काजर धरे के


*सुराही*-पानी भरे के 


*ढेरा*-रस्सी बनाय के 


*भँदई*-चमड़े का सेंडिल नुमा चप्पल जेला अक्सर राउत मन पहिरे ।


*मोरा*- पाना या झिल्ली से बने हुए  बरसाती जेला मुड़ी मा टाँग के ओढ़े जाथे।


*खुमरी*- पाना, कमचील या झिल्ली से बने हुए बड़का टोपी कस  बरसाती 


*संदूक*- पेटी


*धूसा*- बड़का साल जेला कंबल बरोबर ओढ़े जाथे।


*खोल*- कथरी जे उपर जे कपड़ा/गद्दा रजाई में चढ़ाने वाला कवर।


*पार्खत*- तामा के बने नान्हे मलिया जेमा भगवान के मूर्ति ल नहवाय जाथे।


*नेवार*- पलंग मा गंथे नायलोन/कपड़ा


*मचोली/माची*- छोट खटिया


*भेलवा*- लकड़ी के *झूलना*


*खूँटी*- बाँस के लकड़ी जे कोठ मा गड़े रहे


*मोरा*- बरसात मा ओढ़े के पन्नी


*पौतरा*- प्लेट


*कोपरी*-  गड्ढा वाले प्लेट


*कठौता*- लकड़ी के बर्तन


*फूलबहिरी/काँसी बहिरी/छीनबहिरी/खरेटा बहिरी/खरहेरा बहिरी/ झारिनि*- झाड़ू


*मोड़ा*- बइठे के 


*ठप्पा*- चौंक चाँदन पुरे के छेदरहा डब्बा


*पिल्हर/ मुड़की*- भारन


*चौखट*- दरवाजा के आधार


*कुँदवा खुरा*- खटिया के कुंदाये खुरा


*पठेरा/खोलखा*-कोठ के भीतर बनाय आलमारी


*तुमड़ी* --खेत जाय तब पानी भर के ले जाय, ये तुमा के बने रहय, जब तुमा सूखा जाय तब वोला बनाय।


*खड़ाऊ*- लकड़ी के चप्पल


*अकतरिया* -खेत खार म कांटा खूंटी ले बांचें बर महतारी मन पहिरे सेंडिल नुमा चप्पल


अरगेसनी- घर मा कपड़ा टांगें अउ सुखोय बांस के लकड़ी के


*भंदई* - चमड़ा के बने सेंडिल जइसे चप्पल


*कांवर* - लगभग 4-5 फीट फिट लंबा बांस के दूनों छोर मा जोंति लगा के पानी लाये बर उपयोग करे जाथे


*सिंगार पेटी*- सिंगार के समान रखे के बॉक्स


*मर्रा*-मुड़ कोरे के ककवा/कंघी


*कुरो*=धान नापे के


*पटका*- टॉवेल


*अँगोछा*- पानी मा भींगो के पोछे जाय वाले फरिया/कपड़ा


*गोदरी /कथरी*- सूती लुगरा के मोटा बिछोना


*झाँपी*- बाँस के बड़े टुकना


【रँधनी खोली ले संबधित कतको अकन समान अउ हे जइसे,--*गोरसी (मरपरई),पीढ़ही/ पीढ़ा,माली(काँसा का छोटा प्लेट),फुलकसिया लोटा, फुलकसिया थारी,

बटकी,कोपरा,कोपरी,झारा,डुआ,डुई,पलटनी,सइतमा,थारी,लोटा,गिलास,भँवराही,बटकी,कसेली,दइहा,मइरसा,मथनी,घम्मर,सीका,गिरि,हँउला,मरकी,गगरा,गगरी,घैला,दोहनी,

दुहना,तउला,ठेकवा,लकड़ी,चिल्फा,झिटका,परइ,कनौजी,तोपना,सील,लोढ़ा,पर्रा,पर्री,टुकनी,फुँकनी,अथनहाँ,मरकी,सरकी,दरी,पिढ़वा,फुला,पठेरा,घनौची,एकमूँहा चूल्हा,दुमुँहा चुल्हा,अँगेठा,अँगरा,कोइला, खोइला,तउला, चाक-कनौजी के दूसरा किसम,चँदाही-सबो किसम के थारी,लेन्च-सबो किसम के बाल्टी-बाल्टा, गोड़ही लोटा-गोड़ा वाला लोटा,खूराही गिलास-खूरा वाला गिलास, गोड़ही बटकी-गोड़ा वाला बटकी, भँवराही बटकी-बिगन गूरा वाला,ढिबरी, चिमनी, चटिया-मटिया, कुड़ेरा, डेचकी, चन्नी,कोटना, फरिया, चेंदरा( कपड़ा), फोरन, सुखसी*】


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

नींद ससन भर आही - गीत(सार छंद)

 नींद ससन भर आही - गीत(सार छंद)


बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।

संझा बिहना सुख मा कटही, मन मा खुशी हमाही।


तामझाम तकलीफ बाँटथे, जीवन जी ले सादा।

मना खुशी अउ दुख झन अब्बड़, जोर रतन झन जादा।

अपन आप ला बने बनाले, सरी जगत गुण गाही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


संसो फिकर घलो हा चिटिको, नैन मुँदन नइ देवै।

ऊँच नीच खाना पीना हा, नींद चैन हर लेवै।

अपन काम ला खुदे टारले, तन कसरत हो जाही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


रोज शबासी लेवत चल गा, झन खा एको गारी।

चलत रहा सत के रद्दा मा, तज के झूठ लबारी।

गरब गुमान घलो झन करबे, नइ ते दुःख झपाही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


जान अपन कस जमे जीव ला, ले ले सबके आरो।

बेर देख के फल खावत चल, मीठ करू अउ खारो।

बचपन के बेरा लहुटाले, तन मन तोर हिताही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

स्वतंत्रता दिवस अमर रहे, जय जय जय भारत

 स्वतंत्रता दिवस अमर रहे, जय जय जय भारत


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: अपन देस(शक्ति छंद)


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।

करौं बंदना नित करौं आरती।

बसे मोर मन मा सदा भारती।


पसर मा धरे फूल अउ हार ला।

दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।

बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।

सबे खूँट बगरे अँजोरी रहे।

बसे बस मया हा जिया भीतरी।

रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।


इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।

तभो हे घरो घर बिना बेंस के--।

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।


चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।

सजाके बनावौं ग रानी सहीं।

किसानी करौं अउ सियानी करौं।

अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।

वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।

करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।


फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।

वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: बागीश्वरी सवैया


मले  मूड़  मा  धूल  माटी  धरा के सिवाना म ठाढ़े हवे वीर गा।

लगे तोप गोला सहीं वीर काया त ओधे भला कोन हा तीर गा।

नवाये  मुड़ी  जेन  माँ  भारती तीर वोला खवाये बुला खीर गा।

दिखाये  कहूँ देश ला आँख बैरी त फेके भँवाके जिया चीर गा।


जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को,कोरबा(छग)


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अमृत महोत्सव (आल्हा छंदगीत)


आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।

जनम धरे हन भारत भू मा, हम सब ला हावयँ बड़ नाज।


स्कूल दफ्तर कोट कछेरी, गली खोर घर बन अउ बाट।

सबे खूँट लहराय तिरंगा, तोर मोर के खाई पाट।।

हर हिन्दुस्तानी के भीतर, भारत माता करथे राज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


रही सबर दिन सुरता हम ला, बलिदानी मनके बलिदान।

टूटन नइ देन उँखर सपना, नइ जावन देवन स्वभिमान।

सुख समृद्धि के पहिराबों, भारत माँ के सिर मा ताज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


सब दिन रही तिरंगा दिल मा, सबदिन करबों जयजयकार।

छोटे बड़े सबे सँग सबदिन, रखबों लमा मया के तार।।

छोड़ सुवारथ सुमता गारत, देश धरम बर करबों काज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जंगल झाड़ी झरना नदिया, खेत खदान हवय भरमार।

सोना उगले भारत भुइयाँ, कोई नइ पा पाये पार।

रक्षा खातिर लड़बों भिड़बों, बैरी उपर गिराबों गाज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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एक दिन के देश भक्ति (सरसी छन्द)-

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देशभक्ति चौदह के जागे, सोलह के छँट जाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


आय अगस्त महीना मा जब, आजादी के बेर।

देश भक्ति के गीत बजे बड़, गाँव शहर सब मेर।

लइका संग सियान मगन हे, झंडा हाथ उठाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


रँगे बसंती रंग म कोनो, कोनो हरा सफेद।

गावै हाथ तिरंगा थामे, भुला एक दिन भेद।

तीन रंग मा सजे तिरंगा, लहर लहर लहराय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


ये दिन आये सबझन मनला, बलिदानी मन याद।

गूँजय लाल बहादुर गाँधी, भगत सुभाष अजाद।

देशभक्ति के भाव सबे दिन, अन्तस् रहे समाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: स्वतंत्रता दिवस अमर रहे,,,


बलिदानी (सार छंद)


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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: दोहा गीत(हमर तिरंगा)


लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।

हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

लहर------------------------------ आज।


उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का  का  मैं  बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा,छत्तीसगढ़


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: कइसे जीत होही(सार छंद)


हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।

जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।


देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।

भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।

झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।

महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।

पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।

अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।

मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।

मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।

फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।

फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।

घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।

ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।

हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।

कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।

अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।

मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।

पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।


घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।

हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।

अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।

जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।

पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छग


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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: गीत


देस बर जीबो,देस बर मरबो।

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चल माटी के काया ल,हीरा करबो।

देस   बर    जीबो , देस बर  मरबो।

   

सिंगार करबों,सोन चिरँइयाँके।

गुन   गाबोंन , भारत  मइया के।

सुवारथ  के सुरता ले, दुरिहाके।

धुर्रा चुपर के माथा म,भुइयाँ के।


घपटे अंधियारी भगाय बर,भभका धरबो।

देस    बर    जीबो  ,  देस    बर     मरबो।


उंच - नीच    ल ,    पाटबोन।

रखवार बन देस ल,राखबोन।

हवा    म    मया  ,  घोरबोन।

हिरदे ल हिरदे ले , जोड़बोन।


चल  दुख-पीरा  ल , मिल  हरबो।

देस   बर  जीबों  , देस बर मरबो।


हम ला गरब-गुमान  हे,

ए   भुइयाँ  ल  पाके।

खड़े   रबों   मेड़ो   म ,

जबर छाती फइलाके।

फोड़ देबों वो आँखी ल,

जेन हमर भुइयाँ  बर गड़ही।

लड़बों मरबों  देस  बर ,

तभे काया के करजा उतरही।


तँउरबों बुड़ती समुंद म,उक्ती पहाड़ चढ़बो।

देस     बर    जीबो   ,  देस    बर     मरबो।


          जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बाल्को(कोरबा)

              9981441795


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अमृत महोत्सव (गीत)


तोरो हाथ मा हवै तिरंगा, मोरो हाथ मा हे।

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे--


आजादी के अमृत उत्सव, जुरमिल सबे मनाबों।

बलिदानी मन के सुरता कर, श्रद्धा सुमन चढ़ाबों।

चरण पखारत हावै सागर, हिमधर माथ मा हे---

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे-----


जात धरम भाँखा नइ जानन, रंग रूप ना भेष।

सबके दिल मा हवै तिरंगा, सबके बड़का देश।।

लहरावत स्कूल दफ्तर सँग, घर गली पाथ मा हे--

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे------


परब परंपरा संस्कृति, सरी दुनिया मा छाये।

धानी धरती नदिया पर्वत, गौरव गाथा गाये।

आँखी कोन देखाही हम ला, बैरी मन नाथ मा हे--

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे------


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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आल्हा छंद- रे बइरी


महतारी के रक्षा खातिर, धरे हवँव मैं मन मा रेंध।

खड़े हवँव नित छाती ताने, काय मार पाबे तैं सेंध।


मोला झन तैं छोट समझबे, अपन राज के मैंहा वीर।

अब्बड़ ताकत हवै बाँह मा, दू फाँकी देहूँ रे चीर।।


तन अउ मन ला करे लोहाटी, बासी चटनी पसिया नून।

देख तोर करनी धरनी ला, बड़ उफान मारे तन खून।।


नाँगर मूठ कुदारी धरधर, पथना कस होगे हे हाथ।

तोर असन कतको हरहा ला, पहिराये हौं मैंहर नाथ।


ललहूँ पटुकू कमर कँसे हौं, चप्पल भँदई सोहे पाँव।

अड़हा जान उलझबे झन तैं, उल्टा पड़ जाही रे दाँव।


कोन खेत के तँय मुरई रे, मोला का तँय लेबे जीत।

परही मुटका कँसके तोला, छिनभर मा हो जाबे चीत।


हवै हवा कस चाल मोर रे, कोन भला पा पाही पार।

चाहे कतको हो खरतरिहा, होही खच्चित ओखर हार।


देश राज बर नयन गड़ाबे, देहूँ खँड़ड़ी मैं ओदार।

महानदी अरपा पैरी मा, बोहत रही लहू के धार।


उड़ा जबे रे बइरी तैंहा, कहूँ मार पाहूँ मैं फूँक।

खड़े खड़े बस देखत रहिबे, होवय नही मोर ले चूँक।


देख मोर नैना भीतर रे, गजब भरे हावय अंगार।

पाना डारा कस तोला मैं, छिन भर मा देहूँ रे बार।


गोड़ हाथ हर पूरे बाँचे, नइ लागय मोला हथियार।

अपन राज के आनबान बर, सुतत उठत रहिथौं तैंयार।


भाला बरछी बम अउ बारुद, भेद सके नइ मोरे चाम।

दाँत कटर देहूँ ततकी मा, तोर बुझा जाही रे नाम।।


जब तक जीहूँ ये माटी मा, बनके रहिहूँ बब्बर शेर।

डर नइहे कखरो ले मोला, करहू काय कोलिहा घेर।


नाँव खैरझिटिया हे मोरे, खरतरिहा माटी के लाल।

चुपेचाप रह घर मा खुसरे, नइ ते हो जाही जंजाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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गीत-निराला मेरा देश


सारे जहांन से निराला मेरा देश है।

उत्तर में उच्च हिमालय दक्षिण रत्नेश है।।


माथे पर लगा लूं मिट्टी है चंदन।

वीरों की धरती को शतशत वंदन।।

चैन और अमन की धरती, मधुर परिवेश है।

सारे जहां से निराला मेरा देश है---------।।


ऋषि मुनि देवता बली दानी ज्ञानी।

लेकर जन्म यहां रचे कई कहानी।।

पग पग खुशियां है, कोसों दूर क्लेश है।

सारे जहां से निराला मेरा देश है-----।।


रंग रूप वेश भूषा अभिमान देश की।

अनेकता में एकता पहचान देश की।।

दिल से सभी जुड़े हैं, भिन्न भाषा भेष है।

सारे जहां से निराला मेरा देश है-------।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


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गीत- तिरंगा(लावणी छंद)


मन मंदिर में रोज तिरंगा, लहर लहर लहराता हूँ।

साँसों के नित तार छेड़कर, गीत वतन के गाता हूँ।।


रग-रग में मेरे बहने वाला, लहू बसंती रंग बने।

जज्बा जोश जगाये नित-दिन,सीना हरदम रहे तने।।

सोच सादगी समझ शांति को, सादा रंग बनाता हूँ।

मन मंदिर में रोज तिरंगा, लहर-लहर लहराता हूँ-----।।


रंग तरंग उछाह हृदय में, नदिया बनकर बहती है।

रोम रोम में माँ की मूरत, सदा समाई रहती है।।

हरे रंग की ध्वजा बनाकर, धड़कन को धड़काता हूँ।

मन मंदिर में रोज तिरंगा, लहर लहर लहराता हूँ-----।।


निर्माणों के लिये ये तन-मन, तत्पर रहते हैं हमदम।

चक्षु अशोक चक्र सम घूमे, मिट जाएँ सारे गम तम।।

सींच नयन जल रक्त पसीना, प्रेम फसल उपजाता हूँ।

मन मंदिर में रोज तिरंगा, लहर लहर लहराता हूँ---।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छ्ग)

Thursday, 1 August 2024

नाँग साँप---- (कहानी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 नागपंचमी के आप सब ला सादर बधाई


------नाँग साँप----

 (कहानी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


कथे न, राम राम के बेरा हाँव हाँव अउ खाँव खाँव, अइसने होइस घलो जब पहातिच बेरा शहर के एक ठन मुहल्ला म, किसन के  घर साँप दिखगे। कोनो दतवन चाबत, त कोनो लोटा धरे, त कोनो मन बिन मुँह - कान धोय घलो वो मेर पहुँच के किलबिल किलबिल करत रहय। पड़ोस के लइका  मनोज जेन दाई ददा के बिना लात घुसा खाय घलो नइ जागे तेखरो आँखी भिनसरहा ले उघर गे रहय, फेर अलाली  के मारे  कुछ देर  खटियच म पड़े पड़े गोहार ल  सुनिस, अउ आखिर म आँखी रमजत वो मेर हबरगे। जिहाँ देखथे कि बनेच मनखे सकलाय हे, अउ अपन अपन ले सबे चिल्लात हे। कोनो काहत हे- ओदे संगसा म खुसरे हे। कोनो काहत हे- रँधनी खोली कोती गेहे। कोनो काहत हे, दोनो हाथ ल फैलाबे तभो वो साँप ले छोटे पड़ जही। कोनो काहत हे- बड़ मोठ लामी लामा धनमा ये। कोनो कहे- करायेत हरे, त कोनो कहे- बिखहर डोमी आय। कोनो कहै नाँग साँप आय। मनोज के ददा घलो भीड़ म कहिथे, अरे नांग अउ डोमी एके आय।

उही भीड़ के सँग चिल्लावत, मनोज घलो कथे- बाकी साँप के तो पता नही फेर जब तक वो साँप फेन नइ काटही, नांग नइ हो सके। एक ठन साँप के आरो पाके कतको झन मनखे रूपी साँप मन बड़बड़ावत हे। एती किसन के मुँह घलो नइ उलत हे, लइका लोग सुद्धा, घर के बाहर थोथना ओरमाये खड़े हे। अउ करे त का, जेखर गला मा घाँटी ओरमथे, उही ओखर दुख ल जानथे, बाकी मन तो बस लफर लफर लुथे। सबे चिल्लावत हे ,फेर कोनो भगाये बर उदिम नइ करत हे। ले दे के एकझन सज्जन साँप पकड़इय्या ल धर के लाइस। पकड़इया ह बड़ महिनत करे के बाद साँप ल घर ले बाहिर निकालिस। साँप ह जुरियाय जम्मो मनखे मन ला देख के, फेन काट के तनियाय खड़े हो जथे। लोगन मन देख फेर फुसफुसात हे देखे जुन्नेट डोमी आय। ये भारी बिखहर होथे, एक घाँव चाबिस, मतलब राम नाम सत। येती मनोज अटियात  कहत हे, देखे में केहे रेहेंव, ते सहीं होइस न,फेन काटही कहिके, अब सब जान जाव नाँग सांप ए, अउ जेला पूजा पाठ करना हे, दूध पियाना हे  तेमन देख लव, काबर कि ये देवता साँप होथे। एक झन चुप करात चिचियावत कहिथे,ते चुप रे,आज के लइका का जानबे, का का साँप होथे तेला, भगवान शंकर के फोटू ल भर देखे हस, अउ ये मेर डिंग हाँकत हस, कभू बाप पुरखा नाँग देखे रेहेस।  येती किसन के पोटा लामी लामा मोठ फेन काटे,साँप ल देख के काँपत रहय। किसन कहिथे, येला कोई मार देवव, आज मोर घर म खुसरिस, काली तुँहर घर घूँस जही। आघू म खड़े एक झन मनखे कहिथे- बात तो बने काहत हस किसन,  फेर मोर डहर अँगरी काबर देखात हस, मोर घर काबर खुसरही।  वो मेर खड़े अउ मन फुसफुसावत कहिथे, काबर की तोर घर जादा धन दौलत हे। ततकी बेरा मनोज बात ल काटत कहिथे, इती के बात ल छोड़व। कइसे ग कका किसन, तैं जीव हत्या के बात करइया निरदई आदमी कइसे हो सकथस? बात वो किसन के अलग हे जउन नाँग नाथे रिहिस, फेर तँय तो निच्चट डरपोक आवस। हाँ नाँग देवता,तोर घर आय हे, बढ़िया पूजा पाठ कर, धन रतन बाढ़ही। ये मजाक के बेरा नइहे, किसन बिलखत कथे- अब तुही मन बतावव ददा, मोर घर  ले ये बला टरही।  ओतकी बेर साँप पकड़इय्या वो साँप ल चुंगड़ी म भरके, मनोज ल कहिथे, चल येला कहूँ मेर छोड़ के आबों। मनोज छाती ठोंकत कहिथे ,अइसन काम बर तो मैं बने हँव। अउ साँप घलो तो जीव आय, मारना पीटना बने बात नोहय। चल ये साँप ल खाली जघा म छोड़ आबों। तीर म ओखर ददा घलो रहय। वो मनोज ल कहिस -हव ",काम के न कौड़ी के, दँउरी के बजरंगा" अउ कामे का कर सकत हस, जा साँप पकड़े बर घलो सीख लेबे।  दुनो झन साँप ल चुंगड़ी म धरके निकल गे। इती किसन ला हाय जी लगिस। लोगन मन घलो छँटियाय लगिस।

                   साँप पकड़य्या के पाछू पाछू मनोज रेंगत कहिथे, अउ कतिक दुरिहा जाबों, ऐदे मेर छोड़ देथन। बेरा उग के चढ़त रहय, मनखे के चहल पहल बढ़ गे रहय। साँप ल छोड़े बर जइसे चुंगड़ी ल खोलेल धरथे, नजदीक के घर वाले करलावत निकलथे, हव छोड़ दव इही मेर, ताहन मोर घर खुसर जाय। चलो भागो ए कर ले।  दुनो फेर सड़क नापथे, सबो जघा मनखे मन देखे के बाद दुनो ल गरिया देवव। दुनो थक हार गे। आखिर में साँप पकड़य्या कहिथे, मोर ले गुनाह होगे जी मनोज, जे सांप ल पकड़ेव। फेर ये मोर बर थोरे हरे, भलाई के जमाना नइहे, मोरे मरना होगे।

दुनो लहुट के किसन घर कर आगे। किसन पुचपुचावत कहथे-बने करे दाऊ, तोर बिना मैं तो संसो म पड़ गे रेहेंव। ले चाय पीके जाबे। किसन के बात ल सुनके, मनोज कहिथे- का बने कका, साँप तो चुंगड़ी म हे। कोनो मन अपन तीर तखार म ढीलन नइ दिन। मुँह उठाके फेर आगेन। अब तोर नाँग ल तिहीं पूज, हमन चली। अरे अरे अइसे कइसे हो सकत हे, ये गलत ए, अउ ये कोनो मोर पोसवा थोरे आय, एखर मैं काय करहूँ, किसन बिलखत हे। मनोज का, सबे झन अपन अपन घर म खुसरगे।  किसन के मूड़ म  फेर पहाड़ टूट गे, ओखर दशा अगास ले गिरे अउ खजूर म अटके कस होगे। साँप धराय चुंगड़ी के दुरिहा म बैठे लइका लोग सुद्धा फेर रोय लगिस।

             अचानक मँझानिया, मनोज के ददा कल्हरत भागत चिल्लाथे, साँप साँप साँप। अरे भागो भागो, किसन घर के  डडडडडडडडडोमी नननननननाँग हमर घर खुसर गेहे। मनोज घलो गिरत हपटत भागथे। अउ किसन तीर  जाके ओला खिसियाथे, जेन चुंगड़ी के आघू अपन भाग ऊपर रोवत राहय। मनोज के ददा झाँक के देखथे, चुंगड़ी भोंगरा रहय, ओखर मुहड़ा थोरिक खुल गे रहय। मनोज सोचथे, साँप पकड़इय्या लगथे, ढीले के बेरा बने से नइ बाँधे रिहिस। फेर अब साँप तो मनोज घर खुसर गेहे। किसन जान के खुश तो नइ होइस, तभो अइसे लगिस जइसे ओखर करेजा म लदे पथना, हट गे। लइका लोग सुद्धा खैर मनाइस। अउ मुंह बजावत कइथे, कइसे बाबू मनोज, अब कइसे लगत हे, जा तिहीं पूजा कर नाँग देवता के , सावन घलो चलत हे, नागपंचमी घलो अवइया हे। मनोज के ददा दाँत कटर के रिहिगे, देखते देखत मनखे मन फेर जुरियागे, हो हल्ला मात गे। कोनो काहत हे अइसन म बात नइ बने, पुलिस म खबर देना चाही। कोनो कहय पुलिस का करही, वन विभाग के अधिकारी मन  ल बतावव, उही मन ले जही। फेर वोमन फोकट म बिन पइसा कौड़ी के थोरे आही। अउ वन विभाग वन कोती रइथे, शहर नगर म कहाँ के। मनोज के ददा किसन ल देखत कहिथे, चल दुनो मिलके वन विभाग ल बलाबों।  किसन मुँह अँइठत घर म खुसर गे।  अचानक साँप मनोज के घर म एक डाहर ले दूसर डाहर जावत दिखथे, भीड़ फुसफुसाए लग जथे,  किसन के बला, मनोज घर  सपड़ गेहे, लगथे किसन बने आदमी नोहे, नाना जाति के गोठ उभरे बर धर लेथे। फेर जेन संसो कुछ देर पहली किसन के रिहिस, वो अब मनोज अउ ओखर घरवाले ल सतावत हे। अब तो साँप धरइय्या घलो नइ आँव काहत हे, उहू अपन दुख दर्द बतावत हे कि मैं पकड़ के अचार थोड़े डालहू ,ये शहर म दूर दूर तक  न परिया हे न खाली जघा, मैं काल काबर मोल लेवँव। मनोज के पड़ोसी मन ल घलो संसो सताये बर लग गिस, कही ये साँप हमर घर म आ जही तब। अब सबे केहेल धर लिस, साँप ल दूध पियाबे त चाब्बे करही, ओला पाले के बजाय मार देना चाही। मनोज के ददा अउ वो मुहल्ला के दू सियान लउठी धरके, साँप कोती बढ़थे। साँप डर के मारे एती वोती भागेल धर लेथे। लउठी पड़इय्यच रहिथे, मनोज तीर में जाके हाथ ल धर लेथे। अउ कहिथे- मोर बात वन विभाग के अधिकारी मनले होगे हे, झन मारव। ये साँप बिचारा आखिर रहे त कहाँ रहे, जम्मे कोती हमन अपन ठिहा ठौर बना डरे हन, न कोनो मेर रीता भुइयाँ हे, न परिया। यहू मन तो ये धरती के प्राणी आय, अगास या पताल के थोरे, फेर हम मानव मन स्वार्थ अउ आधुनिकता के चकाचौंध म जम्मे कोती क्रंकीट अउ सीमेंट बिछा डरे हन, सांप बिच्छू मन चकचक ले  दिख जावत हे, उँखर बर बिला भरका घलो नइ  बचायेन , रुख राई के तो बातेच ल छोड़ दव। न बारी बखरी हे, न कोठा ,न कोला आखिर साँप बिच्छु कस विवश प्राणी मन रहे त कहाँ रहे? अउ कहूँ दिख जाथे, त साँप ले जादा खतरनाक हम मानव मन वोला मार डरथन। शहर नगर सिर्फ मनखे मन बर होगे हे, गाय,गरवा  मन घलो  सड़क म बैठे रहिथे। हमर करनी के फल हमन असमय गर्मी, बरसा, आंधी तूफान ल तो भुगतते हन, फेर ये निरीह प्राणी मन बिन जबरन काल के मुख म समा जावत हे। हमला उँखरो बारे म सोचना चाही।  वो मेर खड़े जम्मो झन मनखे मन मनोज के बात ल सुनके कलेचुप मुँह लुकावत छँटेल धरलिस। कुछ देर बात वन्य जीव संरक्षण विभाग वाले कर्मचारी मन आगे, अउ साँप ल लेगत बेरा, मनोज ल बूता जोंगत कहिथे- सिरिफ साँप का, कोनो भी जीव  यदि कभू भी अइसने ये मुहल्ला या आसपास भटकत दिखही त आज ले तैं हमन ल सूचना देबे। तोला हमन ट्रेनिंग घलो देबों, ताकि साँप बिच्छू अउ आने जानवर ल तैं पकड़ सकस। गारी गल्ला खावत, ठलहा पड़े, मनोज ल काम मिल जथे अउ  मुहल्ला वाले संग अपन ददा के घलो डाडला बन जथे। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

शिव ल सुमर

 शिव भोला ल अइसनो पहली घाँव मनाये के प्रयास


शिव ल सुमर


रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।

पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।


काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।

मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।


क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।

खेत खार घर रही। सुख सुकुन डहर रही।


आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।

भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।


सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।

जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।


देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।

रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।


नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।

तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।


सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।

हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।


दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।

तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।


फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।

भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।


फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।

आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।


शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।

ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।


भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।

ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)