मनमोहन- जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
1, मतगयंद सवैया
देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।
रोवत हावय गाय गरू झट लेज मधूबन तीर चराना।
कान ल मोर सुहाय नही कुछु आ मुरलीधर गीत सुनाना।
काल बने बड़ कंस फिरे झट आ मनमोहन प्राण बचाना।
गोप गुवालिन के सँग मोहन रास मधूबन तीर रचावै।
कंगन देख बजे बड़ हाथ के पैजन पाँव के गीत सुनावै।
मोहन के बँसरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके मन भावै
एक घड़ी म दिखे सबके सँग एक घड़ी सबले दुरिहावै।
चोर सहीं झन आ ललना झन खा ललना मिसरी बरपेली।
तोर हरे सब दूध दहीं अउ तोर हरे सब माखन ढेली।
आ ललना झट बैठ दुहूँ मँय दूध दहीं ममता मन मेली।
मोर जिया ल चुरा नित नाचत गावत तैं करके अटखेली।
गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं गा।
फूल गुलाब न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं गा।
मोर सबे सुख शांति उड़े मुरलीधर रास रचे न कहीं गा।
दर्शन दे झट आ मनमोहन हाथ धरे हँव दूध दहीं गा।
2,मदिरा सवैया
मोहन माखन माँगत हे मइया मुसकावत देखत हे।
गोकुल के सब गोपिन ला घनश्याम दहीं बर छेकत हे।
देख गुवालिन के मटकी धरके पथरा मिल फेकत हे।
तारन हार हरे हरि हा पँवरी म सबे सिर टेकत हे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
कृष्ण जम्माष्टमी के सादर बधाई
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