Saturday, 17 August 2024

पोरा(तातंक छंद)

 पोरा(तातंक छंद)


बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।

जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।


बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।

पूजै नदिया बइला पोरा, सजा आरती के थारी।


भरे इही दिन दूध धान मा ,कोई नइ जावै डोली।

पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।


कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।

धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।


भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।

हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।


चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।

धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।


पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।

जुरमिल के सब संगी साथी ,रोटी पीठा हँस झेलै।


बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।

पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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