Friday, 16 August 2024

किसान के कलपना

 गीत


किसान के कलपना


झड़ी बादर के बेरा,,,

डारे राहु केतु डेरा,,,,

संसो मा सरत सरी अंग हे।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।

बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।

चुँहे तरतर पछीना,,,,,,

का ये सावन महीना,,,,

दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।

तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।

हाय हाय होत हावै,,,

जम्मे जीव रोत हावै,,,

हरियर धरती के नइ रंग हे------।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 

झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 

नइ गिरबे जब पानी,,,,,

कइसे होही किसानी,,,,

मोर सपना बरत बंग बंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


https://youtu.be/KB_X_LzdDO0

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