📝सुख्खा म हरेली हरागे जी
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किसान के हरे हरेली सुनके,
चुंहथे आंसू ऑखी ले|
परब तिहार म घलो
पेज पसिया,
रोजेच अघाथन बासी ले|
नांगर बख्खर पूजव कइसे,
बुता बॉचे हे खेती के|
रॉपा-कुदारी चिक्कन माढ़े हे,
सुख्खा ह चिथ दिस
मॉस चेथी के |
मुंहतुर होईस तिहार के,
फेर मोर खुशी धरागे जी...|
कइसे करव मय किसन्हा,
सुख्खा म हरेली हरागे जी...|
किसान के घर पिसान नईहे,
कइसे रॉधौव बरा सोंहारी|
पेटौरा के भूख ह मरगे,
का करहूं झॉक हॉड़ी|
बेरा म बावत नही,
न बेरा म बियासी |
धीर धर-धर मंईन्ता भोगागे,
लगथे अब केंधियासी |
मोर सपना तेलई म डबकत हे,
मोर धीरज अब खरागे जी..|
कइसे करव मय किसन्हा,
सुख्खा म हरेली हरागे जी...|
सुरूच तिहार में मार खागेन,
कइसे मनॉहूं तिजा पोरा |
मोर धान ल ढेला धरे हे,
दुच्छा हे कोठी- बोरा |
हंरियर नईहे मोर खेती खार,
हंरियर नईहे मोर सपना |
कभू भिंगेन रदरदे-रदरद,
त कभू पड़िस तपना |
बिपत कस बईला के मारे,
मोर जम्मो खेती चरागे जी...|
कइसे करव मय किसन्हा,
सुख्खा म हरेली हरागे जी....|
घुरवा के घलो दिन बहुरगे,
फेर किसान जइसे के तइसे|
भुंजागे मोर धान-पान,
फेर मनाव हरेली कइसे |
चाकू-छुरी गुण्डामन पूजे,
खंजर पूजे कसाई |
पईसा पूजे ब्यपारीमन,
का पूजे किसान भाई|
मोर सुख ल लीले बर,
सुरसा के मुहुं फरागे जी....|
कइसे करव मय किसन्हा,
सुख्खा म हरेली हरागे जी...|
दुख पा-पाके किसन्हा,
पथरा म मुड़ी ठेंसत हे|
दलाल मनके गरी म फंसके,
खेत-खार बेंचत हे |
समय म पानी;घांम देके,
रखबे बिधाता लाज |
किसन्हा काटत हे कन्नी
खेती ले,
होवत हे आने के राज |
मोर जिनगी के खुशी,
मुंसर-बॉहना म छरागे जी....|
कइसे करव मय किसन्हा,
सुख्खा म हरेली हरागे जी....|
जीतेन्द्र वर्मा
खैरझिटी(राज.)
📝किसन्हा आशिक
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