Tuesday, 13 August 2024

सुख्खा म हरेली हरागे जी

 

📝सुख्खा म हरेली हरागे जी

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किसान के हरे हरेली सुनके,

चुंहथे आंसू ऑखी ले|

परब तिहार म घलो

पेज पसिया,

रोजेच अघाथन बासी ले|

नांगर बख्खर पूजव कइसे,

बुता बॉचे हे खेती के|

रॉपा-कुदारी चिक्कन माढ़े हे,

सुख्खा ह चिथ दिस

मॉस चेथी के |

मुंहतुर होईस तिहार के,

फेर मोर खुशी धरागे जी...|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी...|


किसान के घर पिसान नईहे,

कइसे रॉधौव बरा सोंहारी|

पेटौरा के भूख ह मरगे,

का करहूं   झॉक  हॉड़ी|

बेरा म बावत नही,

न   बेरा  म बियासी |

धीर धर-धर मंईन्ता भोगागे,

लगथे अब केंधियासी |

मोर सपना तेलई म डबकत हे,

मोर धीरज अब  खरागे जी..|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी...|


सुरूच तिहार में मार खागेन,

कइसे मनॉहूं तिजा पोरा |

मोर धान ल ढेला धरे हे,

दुच्छा हे  कोठी- बोरा |

हंरियर नईहे मोर खेती खार,

हंरियर नईहे  मोर   सपना |

कभू भिंगेन रदरदे-रदरद,

त   कभू  पड़िस तपना |

बिपत कस बईला के मारे,

मोर जम्मो खेती चरागे जी...|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी....|


घुरवा के घलो दिन बहुरगे,

फेर किसान जइसे के तइसे|

भुंजागे मोर धान-पान,

फेर  मनाव  हरेली  कइसे  |

चाकू-छुरी गुण्डामन पूजे,

खंजर पूजे कसाई |

पईसा पूजे ब्यपारीमन,

का पूजे किसान भाई|

मोर सुख ल लीले बर,

सुरसा के मुहुं फरागे जी....|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी...|


दुख पा-पाके किसन्हा,

पथरा म मुड़ी ठेंसत हे|

दलाल मनके गरी म फंसके,

खेत-खार बेंचत हे |

समय म पानी;घांम देके,

रखबे बिधाता लाज |

किसन्हा काटत हे कन्नी

खेती ले,

होवत हे आने के राज |

मोर जिनगी के खुशी,

मुंसर-बॉहना म छरागे जी....|

कइसे करव मय किसन्हा,

सुख्खा म हरेली हरागे जी....|

                जीतेन्द्र वर्मा

                खैरझिटी(राज.)

            📝किसन्हा आशिक

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