साँप मनके पीरा(सार छंद)
मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।
सबे खूँट सीमेंट छाय हे, ना साँधा ना छानी।।
जाके कती लुकावँव मैंहा, कोनो ठउर बतादौ।
भटकँव नही कहूँ कोती मैं, घर ला मोर सुखादौ।।
रझरझ रझरझ गिरथे पानी, तरिया कुँवा भराथे।
मोर बिला भरका नइ बाँचे, पानी मा बुड़ जाथे।।
छत के घर मा सपटँव कइसे, दिख जाथँव आँखी मा।
उड़ा भगावँव कइसे दुरिहा, नइ हँव मैं पाँखी मा।।
पानी बादर के बेरा मा, नित पेरावँव घानी-------।
मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।।
कटत हवय नित जंगल झाड़ी, नइहे भोंड़ू भाँड़ी।
नइहे डिही डोंगरी परिया, देख जुड़ाथे नाड़ी।।
लउठी धरे खड़े हावव सब, कइसे जान बचावौं।
आथँव ठिहा ठिकाना खोजत, चाबे बर नइ आवौं।।
चाबे मा कतको मर जाथे, बिक्ख हवै बड़ मोरे।
देख डराथस मोला तैंहर, अउ मोला डर तोरे।।
महुँला देवव ठिहा ठिकाना, मनुष आज के ज्ञानी।
मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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