📝किसन्हा आशिक.....
"कोनो लिखो न गा पाती"
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मोर छाती सही भूंइया,
अब दर्रा हनत हे |
बिन पानी बादर,
न बियासी बनत हे |
अईलात हे सपना हमर,
गिरे पाना बरोबर,
तागा कस तन,
बैरी घाम म तनत हे |
भभकत हे जिवरा,
बिन तेल कस बाती.........|
बादर ल बरसाय बर,
कोनो लिखो न गा पाती....|
तीपे भूंइया कस तीर म,
तिपागे मोर भाग |
बादर ल देखत रहिथौ,
दिन रात जाग |
बूंद-बूंद बर,
मोहताज होगेव विधाता|
का जम्मो दुख हरे,
मोरेच बॉटा ?
असाड़-सावन म,
धूर्रा उड़त हे |
का मोरेच भाग ल,
राहु केतु घूरत हे |
मोरेच बर बघवा-भलवा,
मोरेच बर हाथी......|
बादर ल बरसाय बर,
कोनो लिखो न गा पाती.....|
सुख संग भूख ल मार देते,
त कोनो आरो नई होतिस |
सिंचतेव खेत भर धान ल,
चुंहे पसीना खारो नई होतिस |
उतरथौ घेरी-बेरी,
मेड़ ले खेत म |
का नई हे मोर खेती-किसानी,
तोर चेत म |
जभे खेती हरियाही,
तभे जुड़ाही मोर छाती........|
बादर ल बरसाय बर ,
कोनो खिखो न गा पाती.......|
जीतेन्द्र वर्मा
खैरझिटी(राज.)
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