Monday, 30 September 2024

विश्व रेबीज डे" के अवसर मा* सरसी छंद -गीत

 *"विश्व रेबीज डे" के अवसर मा*


सरसी छंद -गीत


भूं भूं भूं भूं गली खोर मा, करँय कुकुर मन रोज।

रेंगव सबझन साव चेत हो, अपन पाथ मा सोज।।


कई पोंसवा कई सीधवा, कई करें उत्पात।

हबक दिही कब काय भरोसा, हरे कुकुर के जात।।

चाबे चाहे नख गड़ जाये, लेवव टीका डोज।।

भूं भूं भूं भूं गली खोर मा, करँय कुकुर मन रोज।।


जहर कुकुर के होथे घातक, तुरते करव उपाय।

झट ले जावव डॉक्टर तीरन, नइ ते होथे बाय।।

दे देहे विग्यान मनुष ला, रेबीज दवा खोज।

भूं भूं भूं भूं गली खोर मा, करँय कुकुर मन रोज।।


देव दवाई टीका गोली, तब घर भीतर लाव।

रखव कुकुर ला कुकुर बरोबर, देव मनुष ला भाव।।

कई कुकुर बइठे गद्दी मा, बनके राजा भोज।

भूं भूं भूं भूं गली खोर मा, करँय कुकुर मन रोज।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

विश्व हिरदय दिवस म हिरदय- सार छंद

 विश्व हिरदय दिवस म


हिरदय- सार छंद


धड़कत हावय हिरदय जब तक, तब तक साँस चलत हे।

हिरदे हावय मानुष भीतर, दुनिया तभे पलत हे।।


जे हिरदय ए कठवा पथरा, दया मया नइ जाने।

हिरदय मोम बरोबर होथे, देय इही पहिचाने।।

बरफ बरोबर गलत गलत हे, सँच सत फुलत फलत हे।

धड़कत हावय हिरदय जब तक, तब तक साँस चलत हे।।


तन के ए आधार इही हा, हाव भाव के दाता।

हिरदय हावय तब तक हावय, जनम जनम जग नाता।।

ईर्ष्या द्वेष हवे जे हिरदय, वो तन भभक जलत हे।

धड़कत हावय हिरदय जब तक, तब तक साँस चलत हे।।


खाना पीना सोना गाना, काम धाम सब चंगा।

स्वस्थ रथे वो हिरदय सब दिन, बहिथे बनके गंगा।

हिरदय रो ना हाँस सकत हे, स्वारथ लोभ छलत हे।

धड़कत हावय हिरदय जब तक, तब तक साँस चलत हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

जीभ लमाये के का जरूरत

 जीभ लमाये के का जरूरत


जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।

शोभा देय नही चम्मच हा, कलम दवात साथ मा।।


मंच माइक सम्मान के खातिर, कलमकार नइ भागे।

कला गला के दम मा छाये, उही शारद पूत लागे।।

शब्द जोड़ के फूल बनालव, काँटा वाले पाथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


ताकत हौ मुँह कखरो काबर, जानव कलम के ताकत।

ये दुनिया के रथ ला आजो, साहित्य हावय हाँकत।।

मुड़ी उँचाके कलम चलावव, झन अरझो गेरवा नाथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


सूर कबीरा तुलसी जायसी, आजो अजर अमर हे।

जीभ लमाके नाम कमइया, नइ बाँचे स्वार्थ समर हे।।

सेवा मान के साहित गढ़लव, सजही ताज माथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत-शाकाहार

 विश्व शाकाहार दिवस ये अवसर मा---


गीत-शाकाहार


कंद मूल फर फूल पान खा, बनव सबे झन शाकाहार।

मछरी कुकरी भेड़ बोकरा, हरे राक्षसी जन आहार।।


महतारी कस धरती दाई, देथें धान पान फर साग।

सेवा करके पा लौ मेवा, हँस हँस खावव सँहिरा भाग।।

फर फुलवारी के नइ पाये, माँस मटन चिटिको कन पार।

कंद मूल फर फूल पान खा, बनव सबे झन शाकाहार।


काँदा कूसा के गुण भारी, खाव राँध के दुनो जुवार।

खाव मौसमी फर जर भाजी, तन के भागे रोग हजार।।

खनिज लवण प्रोटीन विटामिन,  सबे तत्व होथे भरमार।

कंद मूल फर फूल पान खा, बनव सबे झन शाकाहार।


कई किसम के होय वायरस, मास मटन ले भागव दूर।

जीव जानवर ला झन मारव, अपन पेट बर बनके क्रूर।।

कृषि भूमि भारत उपजाथे, भक्कम फर जर चाँउर दार।

कंद मूल फर फूल पान खा, बनव सबे झन शाकाहार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


विश्व शाकाहार दिवस के बधाई

Friday, 27 September 2024

डीजे अउ पंडाल- रोला छंद

 डीजे अउ पंडाल- रोला छंद


जस सेवा के धूम, होत हे कमती अब तो।

सजे हवै पंडाल, डांडिया नाचैं सब तो।।

नवा ओनहा ओढ़, करे हें मेकप भारी।

डी जे के सुन शोर, नँगत झूमैं नर नारी।


मूंदैं आँखी कान, आरती जस सेवा सुन।

भागैं मुँह ला मोड़, सुनत कोनो जुन्ना धुन।

दीया बाती धूप, हूम जग ला जे हीनें।

वोहर थपड़ी पीट, स्टेप गरबा के गीनें।


ना भक्ति ना भाव, दिखावा के दिन आगे।

बड़े लगे ना छोट, सबें देखव अघुवागे।

परम्परा के पाठ, भुलाके बड़ अँटियाये।

फेसन घेंच उठाय, मनुष ला फाँसत जाये।


चुभे जिया ला गीत, कान सुन बड़ झन्नाये।

नइहे होश हवास, उँहें सब हें सिर नाये।

ना मांदर ना ढोल, झोल डी जे मा होवै।

बचे खँचे गुण ज्ञान, दिखावा मा सब खोवै।


नाच गीत संगीत, सबें के बजगे बारा।

संगत सुर संस्कार, सुमत के टुटगे डारा।

कतको हें मतवार, कई हें मजनू लैला।

तन हावै उजराय, भरे हे मन मा मैला।


बइठे देवी देव, बरे बड़ बुगबुग बत्ती।

तभो भक्ति अउ भाव, दिखे नइ एको रत्ती।

मान मनुष  इतरायँ, देव ला माटी खड्डा।

मठ मंदिर अउ मंच, मजा के बनगे अड्डा।


डीजे अउ पंडाल, तिहाँ चंडाल हमागे।

मनखे हवैं मतंग, देवता देवी भागे।।

नवा जमाना ताय, चोचला इसने होही।

सबें चीज के स्वाद, धीर धर चुक्ता खोही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


करयँ हाँस के डांडिया, प्रेमा प्रिया प्रमोद।

कहै सुवा ला फालतू, देखत हवस विनोद।

Thursday, 26 September 2024

कुदरत के कई रूप-सार छंद

 कुदरत के कई रूप-सार छंद


नाना रूप देख कुदरत के, ठहर जथे मन नैना।

अँगरी दाँत तरी दब जाथे, मुँह ले फुटे न बैना।।


कई पेड़ जमकरहा मोठ्ठा, अमरे कई गगन ला।

कई किसम के पान फूल फर, देय खुशी बड़ मन ला।।

हूँप हूँप कहि कुदे बेंदरा, गाना गाये मैना।

कुदरत के कई रूप देख के,ठहर जथे मन नैना।।


मस्ती मा इतराय समुंदर, जलरँग धरके पानी।

नदिया झरना डिही डोंगरी, रोज सुनाय कहानी।।

घाटी पानी पथरा लाँघे, हाथी हिरणा हैना।

कुदरत के कई रूप देख के, ठहर जथे मन नैना।।


दुहरा तिहरा पथरा माड़े, देखत लगे अचंभा।

रूप प्रकृति के मन मोहें, लजा जाय रति रंभा।।

बने बने रखबों कुदरत ला, बने रही दिन रैना।

कुदरत के कई रूप देख के, ठहर जथे मन नैना।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

अपन ठिहा ठौर- आल्हा छन्द

 अपन ठिहा ठौर- आल्हा छन्द


उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, घूम घूम जब घर आयेंव।

अपन ठिहा अउ अपन लोग ले, बढ़के कुछ भी नइ पायेंव।


जंगल झाड़ी झरना झिरिया, मठ मीनार समुंदर रेत।

चरदिनिया बस जिया लुभाइस, चढ़गिस जादा दिन मा चेत।

होटल ढाबा के जिनगी ला, सोच सोच बड़ बगियायेंव।

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, घूम घूम जब घर आयेंव।।


इटली डोसा पिज्जा बर्गर, बिरयानी चउमिन मोमोस।

रंग रंग के खई खजानी, नइ मन भाइस चायउ टोस।

बासी चटनी फरा अँगाकर, खा खाना अपन अघायेंव।

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, घूम घूम जब घर आयेंव।।


कौड़ी कदर कराये बाहिर, पइसा हे ता बन ठन घूम।

अपन राज मा अपन बाग मा, गाँव गली घर मा नित धूम।

खाई घाटी जिया डराइस, मनुष देख धोखा खायेंव।

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, घूम घूम जब घर आयेंव।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत गाँबों

 गीत गाँबों


घूम घूम के चारो कोती, गाबों गुरतुर गीत।

दुःख दरद डर द्वेष मिटाके, लेबों मन ला जीत।


कोई सुलगे भीतर भीतर, कोई कहय लबारी।

कोई देखय गुर्री गुर्री, कोई देवय गारी।

भभकत इरखा मा पिरीत के, पानी देबों छीत।।

घूम घूम के चारो कोती, गाबों गुरतुर गीत----।


रोज डराय डरे ला सबझन, अउ हराय हारे ला।

मया करइया नइहे कोई, दँउड़े सब मारे ला।

मनखे मनखे ला मिलवाक़े, बधवाबों चल मीत।

घूम घूम के चारो कोती, गाबों गुरतुर गीत।


गिरे थके हारे हपटे ला, देबों चलव पँदोली।

कोन काय करना चाहत हे, सबके जिया टटोली।

मनुष होय के फरज निभाबों, बदल बुरा गत रीत।

घूम घूम के चारो कोती, गाबों गुरतुर गीत।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Wednesday, 25 September 2024

छुट्टी के दिन........

 ............छुट्टी के दिन...........

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बबा   संग   ढेरा , आँटत    रेहेन।

ददा    संग दॅऊरी , हाँकत   रेहेन।

डोहारत      रेहेन , दाई संग पानी।

कका संग छात रेहेन,खपरा-छानी।

ओइलात  रेहेन  कोठा   म,

गरुवा-छेरी  ल   गिन-गिन।

छुट्टी के दिन,छुट्टी के दिन।


लिपत  रेहेन   ,  अंगना    दुवारी।

टोरत   रेहेन   ,  बम्हरी  मुखारी।

खेत  म   करन , निंदई  - कोड़ई।

बखरी म टोरन,रमकलिया तोरई।

पढ़ई  के  संगे-संग    बुता,

बड़ मजा आय  गऊकिन।

छुट्टी के दिन,छुट्टी के दिन।


बार  के  चूल्हा , भात दार राँधन।

खेत म कूद-कूद,मेड़-पार  बाँधन।

संगी संगवारी संग,मनभर खेलन।

खेवन - खेवन, मही-बासी झेलन।

रमायेण रामसत्ता-रामधुनी म,

हो    जात   रेहेन    लिन ।

छुट्टी के दिन,छुट्टी के दिन।


सँइकिल पनही चप्पल ल,

पोछ - पाँछ    के   रखन।

कका दाई  संग  बजार म,

मुर्रा   -   लाड़ू       चखन।

कुर्था कपड़ा ड्रेस काँच काँच उजरान।

बइला-भँइसा धोके,कूद-कूद नहान।

धनकुट्टी    म   धान   कुटान,

दार-चांउर सिधोन गोंटी बिन।

छुट्टी के  दिन , छुट्टी के  दिन।


ममा घर जाय बर,संग  धरन।

भांटो ल पइसा बर,तंग करन।

तिहार  बार  म , नाचन  गान।

गाँव  भर  के ,  आसीस पान।

बांवत,     बियासी,  भारा,

बुता   करन    कई   ठिंन।

छुट्टी के दिन,छुट्टी के दिन।


  जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)

              9981441795

बेटी बर(गीत) -------------------

 बेटी बर(गीत)

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बेटी    बर , बबा  काबर?

गांव-गली मा, रहिथे डर।

अइसन देखे सुनेल मिलथे,

सबो जघा, सबो घर-----।


अकेल्ला वो रेंग नइ पाये।

हँसी -ठिठोली ले दुरिहाये।

नइ कर सकय,मन के काँही।

आखिर मा,बासी पेज खाँही।

घर - दुवार  के  भार, मूड़   मा।

बखरी-बारी,खेत-खार मूड़ मा।

लउहा-लउहा;  बुता  करे तभो,

नइ थके उंखर गतर-----------।

बेटी    बर ,    बबा      काबर?

गांव - गली   मा, रहिथे    डर।


घूंघट कहिदेस,लाज ला तंय।

देख बता अब,आज ला तंय?

का गत हे ,का हाल हवे?

अपनेच घलो,काल हवे।

कोन लिही,सुध ला ओखर?

भाई   घुमे   बनके,  लोफर।

अपनेच घर मान नइ  पाही,

त कइसे ,भाही पर--------।

बेटी    बर ,  बबा     काबर?

गांव - गली  मा, रहिथे  डर।


कइसन कइसन,रीत बनाये?

बस   पीरा  के,गीत  गवाये।

पिंजरा मा  तंय, धांध दिये।

डेना, सपना ला बाँध दिये।

मान मिलिस का,आज ले देख?

बाँचिस कहाँ बैरी,बाज ले देख।

रोवत  हे  भीतरे - भीतर,

तभो  हँसी  हे  अधर---।

बेटी    बर , बबा  काबर?

गांव-गली मा, रहिथे डर।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795


अतंराष्ट्रीय बेटी दिवस के सादर बधाई

लिखे हों📝🖋 ---------------------

 📝🖋लिखे हों📝🖋

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सत   के   रंग   म,रच लिखे हों।

अतियाचार     ले,बच लिखे हों।

बात सोला आना,सच लिखे हों।

तिहीं बता  ,का गलत लिखे हों?


अपनेच   अपन   बर,  करत    हस    जोरा।

छानी - परवा     नोहे,   भुंजे     के     होरा।

खाय के ल  जानथस,कमाय   के   ल  नही।

बिगाड़े के ल जानथस,बनाय  के    ल  नही।

धर्मी बर धाम,अधर्मी के कुकुरगत लिखे हों।

तिहीं    बता    ,   का       गलत    लिखे हो?


बोल ओतकी, जतका   कर सकथस।

लड़ंता हस,का बुरई ले लड़ सकथस?

देखावा   के    डेना ,     टूट    जाही।

मरे म सब    जिनिस,     छूट   जाही।

हाय    -    हाय,           झन      कर।

धरम  - करमबअउ ईमान    ल   धर।

सोज रद्दा म चल,बुरई ले बच लिखे हों।

तिही   बता   ,  का   गलत   लिखे  हों?


बने बर बने लिखे हों  , गिनहा बर गिनहा।

मनखे अस मया बगरा,छोड़ अपन चिन्हा।

खुद के खने खोंचका म,  तिही    बोजाबे।

दूसर बर बारबे आगी,त   तिहीं     भुंजाबे।

स्वारथ  के  कलजुग  मा, मन  भीतर  भरे,

ईरसा  - दुवेस    छल - कपट   लिखे   हों।

तिहीं    बता      , का    गलत   लिखे हों?


मारकाट ऊँच-नीच तोर-मोर,के बिजहा नंदाये।

दया-मया   सेवा-सतकार,  मनखे  म   समाये।

थूके  -  थूक  म ,  बरा  -  भजिया  नइ    चूरे।

दूसर के   नंगाय  जिनिस ,   कभू   नइ   पुरे।

अधमी ल   ले   जा  , धर्मी   ल रख लिखे हों।

तिहीं    बता  ,  का     गलत     लिखे      हों?

                जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                     बालको(कोरबा)

                     9981441795


फोटो-राजभाषा काव्य समारोह,आयोजक-- उद्गार काव्य समिति

पितर- सरसी छंद

 पितर- सरसी छंद


पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।

ये धरती मा जनम लेय के, करिन हमर बढ़वार।


खेत खार बन बाट बनाइन, बसा मया के गाँव।

जतिन करिन पानी पुरवा के, सुन चिरई के चाँव।

जीव जानवर पेड़ पात सँग, रखिन जोड़ के तार।।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।


रीत नीत अउ धरम करम के, सदा पढ़ाइन पाठ।

अपन भरे बर कोठी काठा, बनिन कभू नइ काठ।

जियत मरत नइ छोड़िन हें सत,नेत नियम संस्कार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


डिही डोंगरी मंदिर मंतर, सब उँकरे ए दान।

गाँव गुड़ी के मान बढ़ाइन, अपन सबे ला मान।

एक अकेल्ला रिहिन कभू नइ,दिखिन सबे दिन चार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।


उँखरे कोड़े तरिया बवली, जुड़ बर पीपर छाँव।

जब तक ये धरती हा रइही, चलही उंखर नाँव।

गुण गियान के गुँड़ड़ी गढ़के, चलिन बोह सब भार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


पाप पुण्य पद प्रीत रीत के, करिन पितर निर्माण।

स्वारथ खातिर आज हमन हन, धरे तीर अउ बाण।

देख आज के गत बुढ़वा बर, बइठे हे थक हार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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पितर पाख म

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पितर      आय      हे ,

पितर       पाख     म।

महर-महर ममहावत हे,

बरा-सोंहारी  नाक  म।


माड़े     हे     मुहाटी      म,

मुखारी बोरे लोटा म  पानी।

चंऊक पुराय भूतवा    कस,

चढ़े हे   फूल  आनी - बानी।

तोरई पाना म उरिद दार धरे,

ददा           गेहे       तरिया।

दाई   साने      हे      पिसान,

दार   धोय हे चरिहा - चरिहा।

टुरी - टुरा  बइठे  चूल्हा   तीर,

तेलई रोटी   के    ताक    म।

पितर आय हे....................।


झेंझरी   -    झेंझरी       रोटी ,

बनके           तियार         हे।

पारा  -   परोसी    सगा-सोदर,

सब     बर       तिहार       हे।

हम  -   धूप      के       गुंगवा,

घर        भर      गुंगवात     हे।

कुकुर-कँऊवा नरिया-नरिया के,

किंजर -  किंजर   के  खावत  हे।

दूधे     दूध   के  तसमई  बने हे,

बरबट्टी -  तोरई   हे    साग   म।

पितर आय हे......................।


ये धरती के पितर मन धुरी हें।

उंखर आदर सत्कार जरूरी हे।।

मया पिरित बढ़थे, पितर के बहाना।

सगा सोदर पारा परोसी, खाथें मिल खाना।

ददा दाई पार परिवार ले दुरिहा,

भागे हें जेन शहर मा।

उही मन प्रवचन,

झाड़त दिखथें पितर मा।

मनखें सँग खीर बरा सोंहारी,

रथे कुकुर कँउवा के भाग मा।


    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

      बालको(कोरबा)

      9981441795

गुत्तुर गोठ🤗🤗 -------------------

लड़ेल पड़ही

उन्ना कोठी काठा ल,भरेल पड़ही।

महतारी   के  सेवा , करेल पड़ही।


अउ कतिक बोजाबे,छल-कपट के घुरवा म?

दया  -  मया   के    निसेनी , चढ़ेल   पड़ही।


के  दिन  ले जीबे,मन  ल  मार-मार के?

जिनगी जीये बर,बने रद्दा गढ़ेल पड़ही।


कोड़िहा  नई रेंगे,बिन हाँके-फटकारे।

रेंगाय बर सत के तुतारी,धरेल पड़ही।


बंधाय बइला कस , के  दिन ले खाबे पेरा-भूंसा?

छोंर  के गेरवा,अपन मन के काँदी चरेल पड़ही।


ठीक हे;होत हे  गुजारा ,अल्वा - जलवा।

फेर बढ़त जमाना संग,आघू बढ़ेल पड़ही।


झन भाग धन- दऊलत, के पीछू  जादा।

छोड़  के  सबो  जिनिस  , मरेल पड़ही।


बईरी   ले   लड़े  बर , तियार      हे   "जीतेन्द्र"

फेर जिया जरही जब,अपनेच ले लड़ेल पड़ही।


               जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                  बालको(कोरबा)

                    9981441795

Tuesday, 24 September 2024

स्वच्छता, प्लास्टिक,भ्रष्ट्राचार पर- गीत

 खैरझिटिया: गीत


नारा नहीं है स्वच्छता,

 है जीवन का अंग।

 जिसने भी अपनाया इसको,

 उसको मिली उमंग।।


 आसपास हो घर द्वार हो,

 या हो अपनी काया।

 साफ सफाई है जरूरी,

 सभी रतन धन माया।।

 स्वस्थ रहने का यह मंत्र है,

 भरे जीवन में रंग---

 नारा नहीं है स्वच्छता है,

 जीवन का अंग।।


 धारा स्वच्छ हो गगन स्वच्छ हो,

 स्वच्छ हो पानी पवन।

 चारों ओर रहे स्वछता,

 घर बन तन और मन।।

 स्वस्थ रहेंगे तभी जीतेंगे, 

जिंदगी का हर जंग---

 नारा नहीं है स्वच्छता,

 है जीवन का अंग।।

 खैरझिटिया: सरसी छंद--प्लास्टिक


आज नहीं तो कल हम सच में, हो जाएंगे दीन।

छोड़ो छोड़ो छोड़ो यारों, प्लास्टिक पालीथीन।।


 सड़े गले ना प्लास्टिक कचरा,भू बंजर हो जाय।

 जल के दूषित करे वायु को, बीमारी फैलाय।

कल सबको पछताना होगा, आज भले हैं लीन।

छोड़ो छोड़ो छोड़ो यारों, प्लास्टिक पालीथीन।।


अपने जीवन में प्लास्टिक को, सभी लिए हैं जोड़।

भला सभी का होगा यदि हम, प्लास्टिक देंगे छोड़।।

जहर घोल देगा जीवन में, चैन सुकूँ सब छीन।

 छोड़ो छोड़ो छोड़ो यारों, प्लास्टिक पालीथीन।।


नये जमाने की मस्ती में, आज सभी हैं चूर।

जीव जानवर पेड़ प्रकृति सब, होंगें कल मजबूर।

जटिल समास्या है दुनिया की, भारत हो या चीन।

छोड़ो छोड़ो छोड़ो यारों, प्लास्टिक पालीथीन।।


खैरझिटिया

भ्रष्टाचार मिटाओ


रखो हृदय में स्वच्छ विचार। 

तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।।

मानव हो मानवता दिखाओ,

फर्ज निभाओ करो परोपकार।


 इसको उसको ना कहो,

 स्वयं सीमा में बँधे रहो।

 लालच और स्वागत छोड़ो,

 सत्यता से नाता जोड़ो।।

 धीर बन चलो वीर बन चलो,

होगी नहीं कभी भी हार।

रखो हृदय में स्वच्छ विचार,

 तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।।


 ईमानदारी काम में हो,

 खास में हो और आम में हो।

 क्या कम और क्या ज्यादा,

 हम सब तो है एक प्यादा।।

खाली आना खाली जाना,

फिर क्यों मचाना हाहाकार।

रखो हृदय में स्वच्छ विचार,

तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।।

खैरझिटिया


Friday, 20 September 2024

जय गणेश

 जय गणेश


पहली सुमिरन तोर करत हँव, हे गौरी के लाला।

रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।


कहूँ भगत के सदन बदन मा, दुख झन डेरा डारे।

बढ़े बुद्धि बल धन दोगानी, डर जर आफत हारे।।

सिरजे सत सुम्मत के कुटिया, उझरे इरसा झाला।

रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।


गाँव शहर घर गली खोर मा, आथस बनके संगी।

मन के भाव भजन ला पढ़के, सुख देथस सतरंगी।।

तोर रूप रँग सब ला भाथें, मुसक सवारी वाला।

रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।


मन मंदिर मा रहे बसेरा, तोर सदा हे देवा

मन के भाव उड़ेल जगत के, करत रहँव नित सेवा।

आखर बने बने बर डोंगा, अउ बइरी बर भाला।

रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

Thursday, 12 September 2024

अब का पोरा-जांता जी ?

 📝किसन्हा आशिक.............

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      अब का पोरा-जांता जी ?


अब का पोरा जांता जी ?

ठाढे़ अंकाल के मारे,

होगेव चउदा बांटा जी |


सपना ल दर-दर जांता म,

कब तक मन ल बांधव ?

चांउर-दार पिसान नइहे,

का  कलेवा   रांधव  ?

भभकत मंहगाई म,

अलथी कलथी भुंजात हौ |

भात- बासी ल तको,

चटनी  कस  खात  हौ   |

उबके हे लोर तन भर,

पड़े हे गाल म चांटा जी....|

अब का पोरा जांता जी....?


सिरतोन के बईला भूख मरे,

का  जिनिस  खावाहूं  |

माटी के बईला बनाके,

अब का करम ठठाहूं |

किसान  अउ गाय-गरूवा,

जघा-जघा कुटात हे |

सहर-नगर म कहॉ,

कोनो पोरा मनात हे ?

कइसे नाचे नंदियॉ बईला,

गड़गे गोड़ म कांटा जी.......|

अब का पोरा जांता जी.......|


गांव के गरीब किसन्हा,

कब तक चिमोटे रिही |

जुग अउ समाज के संग,

बिधाता के जुलूम होते रिही|

अइसन जमाना म,

पोरा-जांता नंदा झिन जाय |

बईला के जघा म किसन्हा,

फंदा    झिन    जाय |

हिरदे छर्री-दर्री होगे,

कोन लगाही टांका जी......|

अब का पोरा-जांता जी....?


      जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

     बाल्को(कोरबा) छ.ग.

कलम कभू नइ भोथराय -----------------------------------------

 कलम कभू नइ भोथराय

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जेन चिखथे समाज के, मीठ  अउ   खारो  ल।

जेन लेथे मनखे  के,दुख-पीरा में  आरो ल।।

जेन देखथे शहर-डहर,घर-दुवार खेत खारो ल।

जेन लेगथे अपन संगे-संग,गिरे-थके हजारो ल।

चुचवात आंसू  पोछ के ,जेन लोगन ल हँसाय।

सिरतोन म ओखर कलम , कभू नइ भोथराय।


जेन  बांधथे  सत ल,आखर म।

जेन बांधथे असत ल,साँकर म।

जेन भभका बारथे,अंधियार म।

खोंचक-डिपरा पाटथे,पिंयार म।

जेन   अंधरा   ल  घलो , सोज  रद्दा  देखाय।

सिरतोन म ओखर कलम,कभू नइ भोथराय।


जेन तगड़ा  काम के ,तारीफ करथे।

जेन लबरा - ठगरा ल , ठीक  करथे।

जेन गियान-धियान के,बिजहा बोथे।

बैरी बन बदऊर  बर , बनिहार  होथे।

जेन कोड़िहा ल रेंगाय,सोवत मनखे ल जगाय।

सिरतोन म ओखर कलम , कभू नइ भोथराय। 


उघरा   ल  जेन ,फरिया देथे।

ऊज्जर बाँट के,करिया लेथे।

संकट शंका के समाधान करथे।

बड़े छोटे सबके सम्मान करथे।

मनखे म मया मों के ,जेन मया के गीत गाय।

सिरतोन म ओखर कलम,कभू नई भोथराय।


                        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                             बालको(कोरबा)

                             9981441795


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