Wednesday, 25 September 2024

गुत्तुर गोठ🤗🤗 -------------------

लड़ेल पड़ही

उन्ना कोठी काठा ल,भरेल पड़ही।

महतारी   के  सेवा , करेल पड़ही।


अउ कतिक बोजाबे,छल-कपट के घुरवा म?

दया  -  मया   के    निसेनी , चढ़ेल   पड़ही।


के  दिन  ले जीबे,मन  ल  मार-मार के?

जिनगी जीये बर,बने रद्दा गढ़ेल पड़ही।


कोड़िहा  नई रेंगे,बिन हाँके-फटकारे।

रेंगाय बर सत के तुतारी,धरेल पड़ही।


बंधाय बइला कस , के  दिन ले खाबे पेरा-भूंसा?

छोंर  के गेरवा,अपन मन के काँदी चरेल पड़ही।


ठीक हे;होत हे  गुजारा ,अल्वा - जलवा।

फेर बढ़त जमाना संग,आघू बढ़ेल पड़ही।


झन भाग धन- दऊलत, के पीछू  जादा।

छोड़  के  सबो  जिनिस  , मरेल पड़ही।


बईरी   ले   लड़े  बर , तियार      हे   "जीतेन्द्र"

फेर जिया जरही जब,अपनेच ले लड़ेल पड़ही।


               जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                  बालको(कोरबा)

                    9981441795

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