खैरझिटिया: गीत
नारा नहीं है स्वच्छता,
है जीवन का अंग।
जिसने भी अपनाया इसको,
उसको मिली उमंग।।
आसपास हो घर द्वार हो,
या हो अपनी काया।
साफ सफाई है जरूरी,
सभी रतन धन माया।।
स्वस्थ रहने का यह मंत्र है,
भरे जीवन में रंग---
नारा नहीं है स्वच्छता है,
जीवन का अंग।।
धारा स्वच्छ हो गगन स्वच्छ हो,
स्वच्छ हो पानी पवन।
चारों ओर रहे स्वछता,
घर बन तन और मन।।
स्वस्थ रहेंगे तभी जीतेंगे,
जिंदगी का हर जंग---
नारा नहीं है स्वच्छता,
है जीवन का अंग।।
खैरझिटिया: सरसी छंद--प्लास्टिक
आज नहीं तो कल हम सच में, हो जाएंगे दीन।
छोड़ो छोड़ो छोड़ो यारों, प्लास्टिक पालीथीन।।
सड़े गले ना प्लास्टिक कचरा,भू बंजर हो जाय।
जल के दूषित करे वायु को, बीमारी फैलाय।
कल सबको पछताना होगा, आज भले हैं लीन।
छोड़ो छोड़ो छोड़ो यारों, प्लास्टिक पालीथीन।।
अपने जीवन में प्लास्टिक को, सभी लिए हैं जोड़।
भला सभी का होगा यदि हम, प्लास्टिक देंगे छोड़।।
जहर घोल देगा जीवन में, चैन सुकूँ सब छीन।
छोड़ो छोड़ो छोड़ो यारों, प्लास्टिक पालीथीन।।
नये जमाने की मस्ती में, आज सभी हैं चूर।
जीव जानवर पेड़ प्रकृति सब, होंगें कल मजबूर।
जटिल समास्या है दुनिया की, भारत हो या चीन।
छोड़ो छोड़ो छोड़ो यारों, प्लास्टिक पालीथीन।।
खैरझिटिया
भ्रष्टाचार मिटाओ
रखो हृदय में स्वच्छ विचार।
तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।।
मानव हो मानवता दिखाओ,
फर्ज निभाओ करो परोपकार।
इसको उसको ना कहो,
स्वयं सीमा में बँधे रहो।
लालच और स्वागत छोड़ो,
सत्यता से नाता जोड़ो।।
धीर बन चलो वीर बन चलो,
होगी नहीं कभी भी हार।
रखो हृदय में स्वच्छ विचार,
तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।।
ईमानदारी काम में हो,
खास में हो और आम में हो।
क्या कम और क्या ज्यादा,
हम सब तो है एक प्यादा।।
खाली आना खाली जाना,
फिर क्यों मचाना हाहाकार।
रखो हृदय में स्वच्छ विचार,
तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।।
खैरझिटिया
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