Thursday, 26 September 2024

अपन ठिहा ठौर- आल्हा छन्द

 अपन ठिहा ठौर- आल्हा छन्द


उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, घूम घूम जब घर आयेंव।

अपन ठिहा अउ अपन लोग ले, बढ़के कुछ भी नइ पायेंव।


जंगल झाड़ी झरना झिरिया, मठ मीनार समुंदर रेत।

चरदिनिया बस जिया लुभाइस, चढ़गिस जादा दिन मा चेत।

होटल ढाबा के जिनगी ला, सोच सोच बड़ बगियायेंव।

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, घूम घूम जब घर आयेंव।।


इटली डोसा पिज्जा बर्गर, बिरयानी चउमिन मोमोस।

रंग रंग के खई खजानी, नइ मन भाइस चायउ टोस।

बासी चटनी फरा अँगाकर, खा खाना अपन अघायेंव।

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, घूम घूम जब घर आयेंव।।


कौड़ी कदर कराये बाहिर, पइसा हे ता बन ठन घूम।

अपन राज मा अपन बाग मा, गाँव गली घर मा नित धूम।

खाई घाटी जिया डराइस, मनुष देख धोखा खायेंव।

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, घूम घूम जब घर आयेंव।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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