📝🖋लिखे हों📝🖋
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सत के रंग म,रच लिखे हों।
अतियाचार ले,बच लिखे हों।
बात सोला आना,सच लिखे हों।
तिहीं बता ,का गलत लिखे हों?
अपनेच अपन बर, करत हस जोरा।
छानी - परवा नोहे, भुंजे के होरा।
खाय के ल जानथस,कमाय के ल नही।
बिगाड़े के ल जानथस,बनाय के ल नही।
धर्मी बर धाम,अधर्मी के कुकुरगत लिखे हों।
तिहीं बता , का गलत लिखे हो?
बोल ओतकी, जतका कर सकथस।
लड़ंता हस,का बुरई ले लड़ सकथस?
देखावा के डेना , टूट जाही।
मरे म सब जिनिस, छूट जाही।
हाय - हाय, झन कर।
धरम - करमबअउ ईमान ल धर।
सोज रद्दा म चल,बुरई ले बच लिखे हों।
तिही बता , का गलत लिखे हों?
बने बर बने लिखे हों , गिनहा बर गिनहा।
मनखे अस मया बगरा,छोड़ अपन चिन्हा।
खुद के खने खोंचका म, तिही बोजाबे।
दूसर बर बारबे आगी,त तिहीं भुंजाबे।
स्वारथ के कलजुग मा, मन भीतर भरे,
ईरसा - दुवेस छल - कपट लिखे हों।
तिहीं बता , का गलत लिखे हों?
मारकाट ऊँच-नीच तोर-मोर,के बिजहा नंदाये।
दया-मया सेवा-सतकार, मनखे म समाये।
थूके - थूक म , बरा - भजिया नइ चूरे।
दूसर के नंगाय जिनिस , कभू नइ पुरे।
अधमी ल ले जा , धर्मी ल रख लिखे हों।
तिहीं बता , का गलत लिखे हों?
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
फोटो-राजभाषा काव्य समारोह,आयोजक-- उद्गार काव्य समिति
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