जय गणेश
पहली सुमिरन तोर करत हँव, हे गौरी के लाला।
रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।
कहूँ भगत के सदन बदन मा, दुख झन डेरा डारे।
बढ़े बुद्धि बल धन दोगानी, डर जर आफत हारे।।
सिरजे सत सुम्मत के कुटिया, उझरे इरसा झाला।
रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।
गाँव शहर घर गली खोर मा, आथस बनके संगी।
मन के भाव भजन ला पढ़के, सुख देथस सतरंगी।।
तोर रूप रँग सब ला भाथें, मुसक सवारी वाला।
रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।
मन मंदिर मा रहे बसेरा, तोर सदा हे देवा
मन के भाव उड़ेल जगत के, करत रहँव नित सेवा।
आखर बने बने बर डोंगा, अउ बइरी बर भाला।
रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छग)
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