कलम कभू नइ भोथराय
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जेन चिखथे समाज के, मीठ अउ खारो ल।
जेन लेथे मनखे के,दुख-पीरा में आरो ल।।
जेन देखथे शहर-डहर,घर-दुवार खेत खारो ल।
जेन लेगथे अपन संगे-संग,गिरे-थके हजारो ल।
चुचवात आंसू पोछ के ,जेन लोगन ल हँसाय।
सिरतोन म ओखर कलम , कभू नइ भोथराय।
जेन बांधथे सत ल,आखर म।
जेन बांधथे असत ल,साँकर म।
जेन भभका बारथे,अंधियार म।
खोंचक-डिपरा पाटथे,पिंयार म।
जेन अंधरा ल घलो , सोज रद्दा देखाय।
सिरतोन म ओखर कलम,कभू नइ भोथराय।
जेन तगड़ा काम के ,तारीफ करथे।
जेन लबरा - ठगरा ल , ठीक करथे।
जेन गियान-धियान के,बिजहा बोथे।
बैरी बन बदऊर बर , बनिहार होथे।
जेन कोड़िहा ल रेंगाय,सोवत मनखे ल जगाय।
सिरतोन म ओखर कलम , कभू नइ भोथराय।
उघरा ल जेन ,फरिया देथे।
ऊज्जर बाँट के,करिया लेथे।
संकट शंका के समाधान करथे।
बड़े छोटे सबके सम्मान करथे।
मनखे म मया मों के ,जेन मया के गीत गाय।
सिरतोन म ओखर कलम,कभू नई भोथराय।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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