Thursday, 12 September 2024

कलम कभू नइ भोथराय -----------------------------------------

 कलम कभू नइ भोथराय

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जेन चिखथे समाज के, मीठ  अउ   खारो  ल।

जेन लेथे मनखे  के,दुख-पीरा में  आरो ल।।

जेन देखथे शहर-डहर,घर-दुवार खेत खारो ल।

जेन लेगथे अपन संगे-संग,गिरे-थके हजारो ल।

चुचवात आंसू  पोछ के ,जेन लोगन ल हँसाय।

सिरतोन म ओखर कलम , कभू नइ भोथराय।


जेन  बांधथे  सत ल,आखर म।

जेन बांधथे असत ल,साँकर म।

जेन भभका बारथे,अंधियार म।

खोंचक-डिपरा पाटथे,पिंयार म।

जेन   अंधरा   ल  घलो , सोज  रद्दा  देखाय।

सिरतोन म ओखर कलम,कभू नइ भोथराय।


जेन तगड़ा  काम के ,तारीफ करथे।

जेन लबरा - ठगरा ल , ठीक  करथे।

जेन गियान-धियान के,बिजहा बोथे।

बैरी बन बदऊर  बर , बनिहार  होथे।

जेन कोड़िहा ल रेंगाय,सोवत मनखे ल जगाय।

सिरतोन म ओखर कलम , कभू नइ भोथराय। 


उघरा   ल  जेन ,फरिया देथे।

ऊज्जर बाँट के,करिया लेथे।

संकट शंका के समाधान करथे।

बड़े छोटे सबके सम्मान करथे।

मनखे म मया मों के ,जेन मया के गीत गाय।

सिरतोन म ओखर कलम,कभू नई भोथराय।


                        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                             बालको(कोरबा)

                             9981441795


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