गीत गाँबों
घूम घूम के चारो कोती, गाबों गुरतुर गीत।
दुःख दरद डर द्वेष मिटाके, लेबों मन ला जीत।
कोई सुलगे भीतर भीतर, कोई कहय लबारी।
कोई देखय गुर्री गुर्री, कोई देवय गारी।
भभकत इरखा मा पिरीत के, पानी देबों छीत।।
घूम घूम के चारो कोती, गाबों गुरतुर गीत----।
रोज डराय डरे ला सबझन, अउ हराय हारे ला।
मया करइया नइहे कोई, दँउड़े सब मारे ला।
मनखे मनखे ला मिलवाक़े, बधवाबों चल मीत।
घूम घूम के चारो कोती, गाबों गुरतुर गीत।
गिरे थके हारे हपटे ला, देबों चलव पँदोली।
कोन काय करना चाहत हे, सबके जिया टटोली।
मनुष होय के फरज निभाबों, बदल बुरा गत रीत।
घूम घूम के चारो कोती, गाबों गुरतुर गीत।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment