Sunday 6 November 2022

ग्रामीण अर्थव्यवस्था(छत्तीसगढ़ी गीत कविता के माध्यम ले) मा छत्तीसगढ के नारी मन के योगदान-खैरझिटिया*

 *ग्रामीण अर्थव्यवस्था(छत्तीसगढ़ी गीत कविता के माध्यम ले) मा छत्तीसगढ के नारी मन के योगदान-खैरझिटिया*


               नारी मन न सिर्फ गृहस्थी के बल्कि जिनगानी रूपी गाड़ी के घलो दू पहिया मा एक ए। नारी शक्ति के बिगन सृष्टि-समाज के कल्पना करना निर्थक हे। नर जब ले ये धरा मा जनम धरे हें उंखर संगनी बनके नारी सदा संग देवत आवत हे, अउ एखरे प्रताप आय कि आज दुनिया चलत हे। आवन"ग्रामीण अर्थव्यवस्था मा छत्तीसगढ़ के नारी मन के योगदान" ऊपर चर्चा करीं। वइसे तो जब अर्थ के बात होथे, ता नगदी रकम नयन आघू झूले बर लग जथे। शहरी अर्थव्यवस्था मा लगभग काम कर अउ पइसा ले चलथे फेर ग्रामीण अर्थव्यवस्था आजो कतको प्रकार के विनिमय मा चलथे, जइसे वस्तु विनिमय,श्रम विनिमय--। नगद या फेर अर्थ तो बहुत बाद मा आइस, पहली जिनगानी विनिमय मा ही चलत रिहिस। पौनी पसारी परम्परा मा घलो सेवा के बदला मा चाँउर,दार अउ जरूरत के चीज बस मिलत रिहिस। पहली हाथी घोड़ा,गाय भैस वाले घलो धनवान कहिलात रिहिस,फेर आज फकत पइसा वाले ही धनवान हे। आज गांवों मा घलो काम,बूता अउ सेवा सत्कार के अन्ततः मोल अर्थ ही होगे हे। पहली ग्रामीण महिला मन घर मा ही रहिके, घर के अर्थव्यवस्था ल बरोबर नाप तोल मा चलावत रिहिस, आज भले बाहिर नवकरी, व्यवसाय अउ सेवा कारज मा जावत हे। पहली घर मा ही दाई महतारी मन अर्थ के भार ला कम करे बर, चाउंर दार ला घरे मा कुटे अउ दरे, संगे संग साग भाजी बोवत तोड़त, बरी बिजौरी घलो बनावय। घर के जम्मो बूता के संग खेत खार मा घलो श्रम देवयँ। पहली ग्रामीण महिला मन फेरी लगा लगा के सामान, साग भाजी घलो बेचे अउ आजो बेचते हें। दुकान, हाट बाजार,खेत खार,स्कूल कालेज,आफिस दफ्तर,खेल-रेल सबें जघा आज महिला मन अपन बरोबर योगदान देवत हे। 

     गाँव मा लोहार, नाई, मरार, कुम्हार, धोबी, मोची, रौताइन, मालिन--- आदि कतको समाज के जातिगत व्यवसाय रहय। जेमा वो समाज के महिला अउ पुरुष मन अपन सेवा अउ श्रम देवयँ। जइसे मरारिन मन बाजार हाट अउ गली खोर मा घूम घूम के भाजी पाला बेंचे, तुर्किन मन चुरी चाकी, कुम्हारिन मन गगरी-मटकी,रौताइन मन दूध दही अउ देवार जाति के महिला मन गोदना गोदत रीठा अउ मंदरस------


             मैं ये विषय के अंतरगत, छत्तीसगढ़ी गीत कविता मा ग्रामीण अर्थव्यवस्था ला बढ़ाय बर नारी मन के योगदान के झलकी खोजे के प्रयास करना चाहत हँव। काबर कि कवि मनके गीत कविता समय के पर्याय होथे, जे वो समय ला परिभाषित करत नजर आथे। वइसे तो छत्तीसगढ़ी मा असंख्य गीत अउ कविता हे, जे कतकोन विषय मा लिखाय,गवाय जनमानस बीच रचे बसे हे, अउ कतको कापी पुस्तक मा कलेचुप लुकाये हे। मोला जउन मिलिस उही ला आप सबो के बीच रखे बर जावत हँव,अउ आपो मन के मन मा काम बूता/अर्थव्यवस्था ले सम्बंधित कोनो गीत कविता होही ता जरूर बताहू-----


               छत्तीसगढ़ी दान लीला भगवान कृष्ण के लीला ऊपर आधारित हे, फेर एखर पृष्ठ भूमि गोकुल वृन्दावन ना होके छत्तीसगढ़ लगथे, काबर कि पं सुंदरलाल शर्मा जी मन भगवान कृष्ण,गोप गुवालिन अउ सखा सम्बन्धी सबें ला छत्तीसगढिया अंदाज मा चित्रित करे हे। गोप गुवालिन मन वइसे तो भगवान कृष्ण के मया मा मोहित  किंदरत दिखथें, फेर दूध दही अउ लेवना बेचत घर परिवार ला पालत पोसत घलो नजर आथें--

चौपाई

*जतका-दूध-दही-अउ-लेवना। जोर-जोर-के दुधहा जेवना*

*मोलहा-खोपला-चुकिया-राखिन। तउला ला जोरिन हैं सबझिन॥*

*दुहना-टुकना-बीच मड़ाइन। घर घर ले निकलिन रौताइन*

*एक जंवरिहा रहिन सबे ठिक। दौंरी में फांद के-लाइक॥*


ये परिदृश्य पहली कस आजो हे,कतको रौताइन मन गांव गली मा घूम घूम दूध दही मही बेचथे अउ पार परिवार बर आर्थिक योगदान करथें।


                       मरार समाज के नारी मन पहली अउ आजो साग भाजी बारी बखरी के काम मा बरोबर लगे दिखथें, तभो तो  छत्तीसगढ़ के दुलरुवा गायक शेख हुसैन जी कहिथे--

*एक पइसा के भाजी ला, दू पइसा मा बेचँव दाई*

*गोंदली ला राखेंव वो मँड़ार के*

*कभू मचिया वो, कभू पीढ़ी मा वो बइठे मरारिन बाजार मा*

 ये गीत सिरिफ गीत नही बल्कि वो समय के झांकी आय। जेमा साग भाजी बेच के नारी शक्ति मन ग्रामीण अर्थव्यवस्था मा अपन योगदान देवत दिखथें। एखर आलावा अउ कतको गीत हे जेमा भाजी भाँटा पताल बेचे के वर्णन मिलथे।

    

          छत्तीसगढ़ के नारी मन चूल्हा चौका, बारी बखरी  के बूता काम के संगे संग खेत खार मा घलो काम करथें, बाँवत, बियासी,निंदई,कोड़ई,लुवई-मिंजई कोनोअइसन बूता नइहे जेमा मातृ शक्ति के योगदान नइ हे- तभे तो जनकवि कोदूराम दलित जी नारी शक्ति के नाम गिनावत उंखर किसानी खातिर योगदान बर लिखथे-

*चंदा, बूंदा, चंपा, चैती, केजा, भूरी, लगनी।*

*दसरी, दसमत, दुखिया,ढेला,पुनिया,पाँचो, फगनी।*

*पाटी पारे, माँग सँवारे,हँसिया खोंच कमर-मा,*

*जाँय खेत, मोटियारी जम्मो,तारा दे के घर- मा।*

               धान लुवाई म घलो महिला मनके योगदान के एक अंश दलित जी के काव्य पंक्ति मा देखव-

*दीदी लूवय धान खबा खब, भांटो बांधय भारा।*

*अउहा, झउहा बोहि-बोहि के, लेजय भौजी ब्यारा।*


               अर्थोपार्जन करे बर नारी मन कुटीर उघोग कस कतको छोटे मोटे काम धंधा करयँ जेमा- मुर्रा लाड़ू बनाना, बाहरी,दरी,चटाई बनाना, सूपा चरिहा बनाना-----आजो ये सब चलत हे, संग मा नवा जमाना के चीज जइसे दोना पत्तल बनाना, बाँस शिल्प अउ कतको सजावटी सामान जुड़ गेहे। अइसन बूता मा घलो नारी मन ना पहली पाछू रिहिस ना आजो हे। 

ये सन्दर्भ मा, दलित जी के काव्य के एक पंक्ति देखव-

*ताते च तात ढीमरिन लावय,  बेंचे खातिर मुर्रा।*

*लेवँय दे के धान सबो झिन, खावँय उत्ता-धुर्रा।।*

धान देके मुर्रा लाड़ू लेय बर कहना वस्तु विनिमय प्रणाली ल घलो बतावत हे।


              निर्माण अउ विनिर्माण के काम मा घलो नारी शक्ति मन सबर दिन अपन जांगर खपावत आयँ हे, चाहे घर,सड़क, पूल- पुलिया, महल- अटारी होय या फेर ईटा भट्ठा अउ कोनो उधोग धंधा। छत्तीसगढ़ के नारी मन अपन घर परिवार के स्थिति देखत सबें क्षेत्र मा काम करके पार परिवार ला पाले पोसे के उदिम करे हे। मरारिन,रौताइन, तुर्किन, कुम्हारिन, बनिहारिन, पनिहारिन, मालिन, कड़ड़िन,देवारिन,रेजा ना जाने का का रूप धरके, नारी शक्ति मन जीवकायापण बर जांगर बेच के धनार्जन करें हें- 

रोज रोज काम के तलास मा चौड़ी मा बइठे रेजा मन के मार्मिक चित्रण करत वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील भोले जी लिखथें-


*चौड़ी आए हौं जांगर बेचे बार, मैं बनिहारिन रेजा गा*

*लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा...*

*सूत उठाके बड़े बिहन्वे काम बुता निपटाए हौं*

*मोर जोड़ी ल बासी खवाके रिकसा म पठोए हौं*

*दूध पियत बेटा ल फेर छोड़ाए हौं करेजा गा*

*लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा॥*


             हमर छत्तीसगढ़ मा नाना किसम के जाति हे, ओमा एक जाति हे- देवार जाति। ये जाति के नारी शक्ति मन गाँव गली मा फेरी लगावत मंदरस,रीठा बेचत गोदना गोदे के बूता करयँ। मनखे के मरे के बाद घलो गोदना साथ नइ छोड़े ते पाय के हमर छत्तीसगढ़ मा ना सिर्फ महिला मन बल्कि पुरुषों मन गोदना गोदवाथें। हाथ,पाँव,नाँक,ठुड्डी अउ  गला मा गोदना गोदवाये के रिवाज हे। फूल, चँदा, सितारा, नाम,गाँव, अउ देवी देवता के चित्र गोदना मा दिखथें। पारम्परिक ददरिया मा छत्तीसगढ़ के कतको लोक गायिका मन *गोदना गोदाले रीठा लेले वो मोर दाई* ये गीत ला गायें हे। तभो ये गीत ममता चन्द्राकर जी के स्वर मा जादा सुने बर मिलथे। किस्मत बाई देवार, रेखा बाई देवार, लता खापर्डे, कुल्वनतींन बाई, दुखिया बाई कस कतको लोक गायिका मन गोदना उपर कतको गाना गायें हे।

         

         माटी के दुलरुवा कवि गायक लक्ष्मण मस्तूरिहा के लिखे गीत - *ले चल गा ले चल* मा साग भाजी बेचइया महिला के मार्मिक पुकार हे। जेमा वोहा मोटर वाले ला अपन गाँव ले चल कहिके किलौली करत हे, संगे संग बदला मा भाजी भाँटा देय के बात कहत हे,काबर कि ओखर एको सौदा गंडई बाजार मा नइ बेचा पाय हे। पंक्ति देखन----


*ले चल गा ले चल, ए मोटर वाला ले चल*

*रुक तो सुन वही धमधा डहर बर हावै मोला जाना*

*बेर ढरकगे साँझ होगे, थक गे पाँव चलई मा।*

*सौदा कुछु बेचाइस नही, अई गंडई मड़ई मा।*

*पइसा तो नइ पास हे मोरे,लेले भाजी पाला।*

         कुछु सामान बेचे बर का का दुख झेलना पड़थे, पइसा कमाए बर कतका धीर धरेल लगथे,कतका दुरिहा दुरिहा के बाजार हाट,मेला-मड़ई (धमधा ले गंडई),कइसे कइसे आय जाय बर पड़थे, ये सब दुख दरद ला मस्तूरिहा जी अपन कलम ले उकेरे हे। अउ ओतके मधुर गायें हे लता खापर्डे जी अउ कविता वासनिक जी मन।

               पंचराम मिर्झा अउ कुल्वनतीन बाई के गाये गीत- *"सस्ती मा बेचे वो, बस्ती मा बेचे"* मा घलो साग भाजी बेचे के चित्र मिलथे। अउ कतको जुन्ना अउ नवा गायक गायिका मन घलो भाजी भाँटा पताल करेला--- बेचे के वर्णन करे हे, फेर कतकोन गीत मन द्विअर्थी हे,जुन्ना गीत कस सुने मा आनंद नइ दे सके। 


              सुराज मिले के बाद सरकार डहर ले गांव गांव मा, विकास लाये बर काम बूता खुले लगिस, जइसे सड़क, पुल, नदिया, नहर  बांध बनई-बंधई आदि आदि। जेमा नारी शक्ति मन के श्रम ला कभू नइ भुलाये जा सके। आजो मनरेगा कस कतको बूता मा श्रम साधत नारी शक्ति मन धनार्जन करत माटी महतारी सँग देश अउ राज के सेवा करत हे,अउ देश राज ला आघू बढ़ावत हें। माटी पूत गायक कवि लक्ष्मण मस्तूरिहा जी के लिखे ये अमर गीत ला  स्वर कोकिला कविता वासनिक जी के स्वर मा सुन, मन मन्त्र मुग्ध हो जथे 


*चल सँगी जुरमिल कमाबों गा, करम खुलगे*

*पथरा मा पानी ओगराबों, माटी मा सोना उपजाबों*

*गंगरेल बाँधेन पैरी ला बाँधेन*

*हसदेव ला लेहन रोक।*

*खरखरा खारुन रुद्री के पानी*

*खेत मा देहन झोंक।*

*महानदी ला गांव गांव पहुँचाबों गा---*


       अर्थ भार कम करके अर्थव्यवस्था ला सुदृढ़ बनाय बर ग्रामीण महिला मन सबर दिन अघवा रहिथे, चाहे घरे मा साग भाजी उपजई होय या घरे मा चाँउर दार सिधोई या फेर घरे मा बरी बिजौरी बनई। रखिया बरी बनाये के विचार के एक बानगी वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण निगम जी के घनाक्षरी मा देखव--

रखिया   के    बरी   ला    बनाये   के   बिचार    हवे


*धनी  टोर  दूहू   छानी  फरे  रखिया के  फर*

*उरिद  के  दार  घलो   रतिहा   भिंजोय  दूहूँ*

*चरिह्या-मा  डार , जाहूँ   तरिया  बड़े  फजर*

*दार  ला नँगत  धोहूँ  चिबोर  -  चिबोर  बने*

*फोकला  ला  फेंक दूहूँ , दार  दिखही  उज्जर.*

*तियारे  पहटनीन  ला  आही    पहट   काली*      

*सील  लोढ़हा मा दार पीस देही  वो सुग्घर।।*


               हमर छत्तीसगढ़ चारो कोती ले जंगल झाड़ी के घिरे हे,जिहाँ किसम किसम के रुख राई, महुवा कोसा, लासा मन्दरस सँग नाना प्रकार के जीव जंतु निवास करथे,अउ संग मा रहिथे वनवासी मन,जउन मन जंगल ल ही जिनगी मानत ओखरे सेवा श्रम मा लगे रथे। चाहे महुवा बिनई होय, या तेंदू पाना टोरई या फेर कोसा लासा हेरई। जइसे मैदानी भाग मा काम बूता करत मनखे सुवा ददरिया गाथे,वइसने वनवासी मन घलो काम बूता संग अपन गीत रीत ला नइ भुलाये,येमा ना पुरुष लगे  ना महिला। 


*चल संगी मउहा बीने बर जाबों।*


*तेंदू पाना टोरेल आबे,डोंगरी मा ना।*

अइसने अउ कतकोन मनभावन सुने सुनाये गीत हे, जे वनवासी महिला मनके योगदान,समर्पण धनार्जन मा कतका हे तेला दिखाथें। चाहे तेंदू पाना टोरई होय या फेर मउहा बिनई या फर फुलवारी लकड़ी फाटा ल जतनई-- अइसन सबें बूता मा नारी शक्ति मा सतत लगे रिहिन अउ आजो लगे हे।    

 

         मालिन फूल चुनके हार अउ गजरा बनाके कभू माता ला चढ़ावत दिखथें ता कभू भक्तन मन ला बेचत, एक पारम्परिक जस गीत देखन-

*तैं गूथे वो मैया बर मालिन फूल गजरा।*

*काहेंन फूल जे गजरा*

*काहेंन फूल के हार।*

*काहेन फूल के माथ मुकुटिया सोला वो सिंगार*

             अइसने होली मा पिचका, बाजार हाट मा काँदा कुशा,भाजी पाला, चूड़ी चाकी, होटल मा बड़ा भजिया,पान ढेला मा पान अउ दुकान मा सामान बेचे के तको गीत सुने बर मिलथे, फेर ओतिक प्रचलित अउ ग्राह्य नइ हे।


             मनखे के जिनगी बराबर चलत रिहिस उही बीच मा बछर 2019 मा घोर विकराल महामारी कोरोना धमक दिस, खाय कमाए बर शहर नगर गे सबें कमइया ला बिनजबरन  सपरिवार अपन ठाँव लहुटे बर लग गिस। गाड़ी मोटर थमे के बाद,होटल ढाबा, बाजार दुकान  मा ताला लगे के बाद कोन कइसे छइयां भुइयाँ लहुटिस तेला उही मन जाने। *कहिथे जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि* इही भाव के दर्द वो समय मोरो आँखी मा दिखिस, तब महूँ लिखेंव, जेमा पत्नी अपन पति ला काहत हे--

*चल चल जोड़ी किरिया खाबों,सेवा करबों माटी के।*

*साग दार अउ अन्न उगाबों, मया छोड़ लोहाटी के।*

*चरदिनिया सुख चटक मटक बर,छइयां भुइयाँ नी छोड़न।*

*परके काज गुलामी खातिर, माटी के मुँह नइ मोड़न।*

*ठिहा बनाबों जनम भूमि मा,माटी मता मटासी के----*

           शहर नगर मा जाके नकदी कमाना ही धनार्जन नोहे, जइसे जिनगी जिये बर माटी मा पाँव रखना पड़थे,वइसने माटी ले जुड़ाव जरूरी हे। अपन ठिहा ठौर मा खेती किसानी करत, दू पइसा कमावत दया मया के धन दोगानी जोड़त सुकून के जिनगी बिताए जा सकत हे, जादा अउ चमक धमक के प्यास भारी घलो पड़ जथे। श्रम, सेवा के बदला पइसा मिले, वस्तु मिले या फेर मया, जीवकोपार्जन बर धन ही आय। जेखर थेभा मा सुकूँन के जिनगी जिये जा सकत हे। ग्रामीण अंचल मा आजो ये सब चलत हे,अब जब बात नारी मन के होवत हे ता, उन मन घलो जम्मो प्रकार के,सेवा - श्रम मा बरोबर योगदान देवत हे, जेला गीत कविता के माध्यम ले देख सुन सकथन। गीत कविता भले नारी मनके सबे बूता अउ योगदान तक नइ पहुँचे होही पर नारी मन आज आगास-पताल, जल-थल, खेल-रेल,घर-खेत, उत्तर दक्षिण,पूरब पश्चिम सबें कोती अपन श्रम सेवा,गुण गियान के परचम लहरावत हे, जेमा हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन उन्नीस नही बीस हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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