करजा छूट देहूँ लाला(गीत)
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
तँय संसो झन कर,मोर मन नइहे काला।
मोर थेभा मोर बेटा बेटी, दाई ददा सुवारी।
मोरेच जतने खेत खार,घर बन अउ बारी।
येला छोड़ नइ पीयँव,कभू मैंहा हाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
तैंहा सोचत रहिथस,बिगाड़ होतिस मोरे।
घर बन खेत खार सब,नाँव होतिस तोरे।
नइ मानों कभू हार,लोर उबके चाहे छाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
जब जब दुकाल पड़थे,तब तोर नजर गड़थे।
मोर ठिहा ठउर खेत ल,हड़पे के मन करथे।
नइ आँव तोर बुध म,झन बुन मेकरा जाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
भूला जा वो दिन ला,जब तोर रहय जलवा।
अब जाँगर नाँगर हे,नइ चाँटव तोर तलवा।
असल खरतरिहा ले,अब पड़े हे पाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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